More from Education

Okay, #MAEdu, let's talk FY22 and the Student Opportunity Act: https://t.co/o1tgppGy4K


First up:

The FIRST year, Governor Baker?

This is the second year of SOA implementation: you're missing one.


So, are we going to do this in six years, or are we just going to kick the can ANOTHER year on kids?

Remember, school funding is builds on prior years.

We never get that missing funding back.


Also: what are the base numbers being used?

Is the Governor dropping enrollment, even though we all know that was an artificial drop?


There's a decent chance that a WHOLE bunch of those kindergartner and preschoolers are going to be back this fall if we manage to get kids into buildings, PLUS we'll have the USUAL enrollment of preK and K!

...and less funding than usual?

You May Also Like

राम-रावण युद्ध समाप्त हो चुका था। जगत को त्रास देने वाला रावण अपने कुटुम्ब सहित नष्ट हो चुका था।श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ और अयोध्या नरेश श्री राम के नेतृत्व में चारों दिशाओं में शन्ति थी।
अंगद को विदा करते समय राम रो पड़े थे ।हनुमान को विदा करने की शक्ति तो राम में थी ही नहीं ।


माता सीता भी हनुमान को पुत्रवत मानती थी। अत: हनुमान अयोध्या में ही रह गए ।राम दिनभर दरबार में, शासन व्यवस्था में व्यस्त रहते थे। संध्या को जब शासकीय कार्यों में छूट मिलती तो गुरु और माताओं का कुशल-मंगल पूछ अपने कक्ष में जाते थे। परंतु हनुमान जी हमेशा उनके पीछे-पीछे ही रहते थे ।


उनकी उपस्थिति में ही सारा परिवार बहुत देर तक जी भर बातें करता ।फिर भरत को ध्यान आया कि भैया-भाभी को भी एकांत मिलना चाहिए ।उर्मिला को देख भी उनके मन में हूक उठती थी कि इस पतिव्रता को भी अपने पति का सानिध्य चाहिए ।

एक दिन भरत ने हनुमान जी से कहा,"हे पवनपुत्र! सीता भाभी को राम भैया के साथ एकांत में रहने का भी अधिकार प्राप्त है ।क्या आपको उनके माथे पर सिन्दूर नहीं दिखता?इसलिए संध्या पश्चात आप राम भैया को कृप्या अकेला छोड़ दिया करें "।
ये सुनकर हनुमान आश्चर्यचकित रह गए और सीता माता के पास गए ।


माता से हनुमान ने पूछा,"माता आप अपने माथे पर सिन्दूर क्यों लगाती हैं।" यह सुनकर सीता माता बोलीं,"स्त्री अपने माथे पर सिन्दूर लगाती है तो उसके पति की आयु में वृद्धि होती है और वह स्वस्थ रहते हैं "। फिर हनुमान जी प्रभु राम के पास गए ।
I’m torn on how to approach the idea of luck. I’m the first to admit that I am one of the luckiest people on the planet. To be born into a prosperous American family in 1960 with smart parents is to start life on third base. The odds against my very existence are astronomical.


I’ve always felt that the luckiest people I know had a talent for recognizing circumstances, not of their own making, that were conducive to a favorable outcome and their ability to quickly take advantage of them.

In other words, dumb luck was just that, it required no awareness on the person’s part, whereas “smart” luck involved awareness followed by action before the circumstances changed.

So, was I “lucky” to be born when I was—nothing I had any control over—and that I came of age just as huge databases and computers were advancing to the point where I could use those tools to write “What Works on Wall Street?” Absolutely.

Was I lucky to start my stock market investments near the peak of interest rates which allowed me to spend the majority of my adult life in a falling rate environment? Yup.
दधीचि ऋषि को मनाही थी कि वह अश्विनी कुमारों को किसी भी अवस्था में ब्रह्मविद्या का उपदेश नहीं दें। ये आदेश देवराज इन्द्र का था।वह नहीं चाहते थे कि उनके सिंहासन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से कोई भी खतरा हो।मगर जब अश्विनी कुमारों ने सहृदय प्रार्थना की तो महर्षि सहर्ष मान गए।


और उन्होनें ब्रह्मविद्या का ज्ञान अश्विनि कुमारों को दे दिया। गुप्तचरों के माध्यम से जब खबर इन्द्रदेव तक पहुंची तो वे क्रोध में खड़ग ले कर गए और महर्षि दधीचि का सर धड़ से अलग कर दिया।मगर अश्विनी कुमार भी कहां चुप बैठने वाले थे।उन्होने तुरंत एक अश्व का सिर महर्षि के धड़ पे...


...प्रत्यारोपित कर उन्हें जीवित रख लिया।उस दिन के पश्चात महर्षि दधीचि अश्वशिरा भी कहलाए जाने लगे।अब आगे सुनिये की किस प्रकार महर्षि दधीचि का सर काटने वाले इन्द्र कैसे अपनी रक्षा हेतु उनके आगे गिड़गिड़ाए ।

एक बार देवराज इन्द्र अपनी सभा में बैठे थे, तो उन्हे खुद पर अभिमान हो आया।


वे सोचने लगे कि हम तीनों लोकों के स्वामी हैं। ब्राह्मण हमें यज्ञ में आहुति देते हैं और हमारी उपासना करते हैं। फिर हम सामान्य ब्राह्मण बृहस्पति से क्यों डरते हैं ?उनके आने पर क्यों खड़े हो जाते हैं?वे तो हमारी जीविका से पलते हैं। देवर्षि बृहस्पति देवताओं के गुरु थे।

अभिमान के कारण ऋषि बृहस्पति के पधारने पर न तो इन्द्र ही खड़े हुए और न ही अन्य देवों को खड़े होने दिया।देवगुरु बृहस्पति इन्द्र का ये कठोर दुर्व्यवहार देख कर चुप चाप वहां से लौट गए।कुछ देर पश्चात जब देवराज का मद उतरा तो उन्हे अपनी गलती का एहसास हुआ।