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कब तक नेहरू - गांधी की अंध पूजा ?

हमारे देश की पाठ्य-पुस्तकों में जवाहरलाल नेहरू का गुण-गान होते रहना कम्युनिस्ट देशों वाली परंपरा की नकल है। अन्य देशों में किसी की ऐसी पूजा नहीं होती जैसी यहाँ गाँधी-नेहरू की होती है।

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अतः जैसे रूसियों, चीनियों ने वह बंद किया, हमें भी कर लेना चाहिए। वस्तुतः खुद नेहरू ने जीवन-भर जिन बातों को सब से अधिक दुहराया था, उसमें यह भी एक था – ‘हमें रूस से सीखना चाहिए’ और सचमुच नेहरू और पीछे-पीछे पूरे भारत ने कम्युनिस्ट रूस से अनेकों नारे और हानिकारक चीजें सीखीं।

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तब क्या अब कुछ अच्छा नहीं सीखना चाहिए?

जिस तरह रूसियों ने लेनिन-पूजा बंद कर दी, हमें भी नेहरू और गाँधी-पूजा खत्म करनी चाहिए। यह तुलना अनोखी नहीं है। यहाँ पैंतीस-चालीस साल पहले नेहरू की लेनिन से तुलना बड़ी ठसक से होती थी।

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नेता और प्रोफेसर इस पर लेख, पुस्तकें लिखते थे, और सरकार से ईनाम पाते थे। तब रूस में लेनिन और यहाँ नेहरू की महानता एक स्वयं-सिद्धि थी। दोनों को अपने-अपने देश का प्रथम मार्गदर्शक, महामानव, दार्शनिक, आदि बताने का चलन था। फिर समय आया कि रूसियों ने लेनिन-पूजा बंद कर दी।

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वही स्थिति चीन में माओ की हुई। आज उन देशों में अपने उन कथित मार्गदर्शकों की जयंती तक मनना बंद हो चुका है। रूस और चीन में इस अंध-पूजा के पटाक्षेप के लिए कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं हुई। जनता ने सर्वसम्मति से उस कथित महानता का अध्याय बंद किया।

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क्योंकि वह पूजा उन पर दशकों तक जबरन थोपी हुई थी। लेनिन, माओ की महानता की गाथाएं सत्ता की ताकत के बल पर गढ़ी और प्रचारित की गई थी। उन के जीवन के हर काले अध्याय पर पर्दा डाल कर रूसी-चीनी जनगण के दिमाग को लेनिन-माओमय बना डाला गया था।

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इसीलिए, जैसे ही वह जबरदस्ती हटी, लोगों ने वह लज्जास्पद पूजा बंद कर दी। इस पर रूस या चीन में मामूली विवाद तक न हुआ। सहमति इतनी साफ थी। आज रूस और चीन में टॉल्सटॉय और कन्फ्यूशियस ही सर्वोच्च चिंतक माने जाते हैं, लेनिन और माओ नहीं।

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अतः इस बिन्दु पर भी नेहरू को लेनिन से तुलनीय बनाने का समय आ गया है। जैसे कम्युनिस्ट पार्टी ने रूस पर लेनिन-पूजा थोपी थी, उसी तरह नेहरू परिवार ने यहाँ नेहरू-गाँधी पूजा थोपी। आखिर किस आधार पर नेहरू की जन्म-शताब्दी मनाने के लिए असंख्य मँहगे सरकारी उपक्रम हुए..

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जबकि डॉ. राजेंद्र प्रसाद के लिए कुछ न हुआ? यदि नेहरू प्रथम प्रधान मंत्री थे, तो राजेंद्र बाबू भी प्रथम राष्ट्रपति थे।

उसी तरह, किस तर्क से गाँधी को राष्ट्र-पिता घोषित किया गया? ऐसी अनगिनत बातें गाँधी-नेहरू को भारतीय मानस पर जबरन थोपे जाने की पुष्टि करती हैं।

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किसी देश में किसी की जयंती मनाने, न मनाने के कारण समान होते हैं। जिस ने देश की सच्ची सेवा की, उसे याद करते हैं। जिस ने ऐसा कुछ विशेष न किया अथवा हानि की, उसे भूला जाता है। इसी तर्क से लेनिन और माओ अपने-अपने देशों में भुलाए जा चुके।

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इसलिए भी नेहरू का राजनीतिक, वैचारिक रिकॉर्ड लेनिन से तुलनीय है। अर्थ-नीति, विदेश-नीति, गृह-नीति, शिक्षा-नीति, आदि बुनियादी बिन्दुओं पर नेहरू की हानिकारक विरासत देखनी चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश-नीति में नेहरू के कार्यों, विचारों में एक से एक शर्मनाक अध्याय हैं।

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नेहरू ने तिब्बत पर पारंपरिक भारतीय संरक्षण को खुद छोड़ कर उस महत्वपूर्ण देश को अपने ‘मित्र’ चीन के हवाले कर दिया। इस तरह, भारत को अरक्षित कर डाला! अरुणाचल प्रदेश पर चीन का दावा तिब्बत के माध्यम से है, और किसी तरह नहीं।

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फिर, नेहरू ने प्रधान मंत्री पद से अपनी प्रथम अमेरिका यात्रा (1956) में अमेरिकियों को साम्राज्यवाद पर कम्युनिस्ट लेक्चर पिलाकर स्तब्ध कर दिया। इस प्रकार, दुनिया के सब से महत्वपूर्ण देश से अकारण संबंध बिगाड़ने की ठोस शुरुआत की!

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फिर, जब ‘मित्र’ चीन ने घुस-पैठ कर लद्दाख का एक भाग चुपचाप दखल कर लिया, तब नेहरू ने संसद में बयान दिया कि ‘उस हिस्से में तो घास भी नहीं उगती’! ऐसी बचकानी समझ और योग्यता वाले व्यक्ति को प्रथम प्रधानमंत्री बनाने का दोष गाँधीजी का था।

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लेकिन दशकों के झूठे, सरकारी प्रचार के कारण आज लोग जानते भी नहीं कि 1947 में कांग्रेस में प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू पहली क्या, दूसरी पसंद भी नहीं थे! पहले सरदार पटेल, फिर कृपलानी को देश भर के कांग्रेसियों ने अपनी चाह बताया था। उसे ठुकरा कर गाँधी ने नेहरू को थोपा..

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जिस ने राष्ट्रीय सुरक्षा का कचरा तो किया ही; स्वतंत्र भारत के नव-निर्माण की पूरी मिट्टी पलीद की। यहाँ तक कि नेहरू का व्यक्तिगत जीवन भी अनुकरणीय नहीं था। यह नेहरू के वरिष्ठतम सहयोगियों समेत अनगिनत समकालीनों ने लिखा है।

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एक विदेशी स्त्री, लेडी माउंटबेटन, के अंतरंग प्रभाव में नेहरू ने देश-विभाजन, कश्मीर की ऐसी-तैसी तथा कम्युनिस्ट षडयंत्रकारियों की मदद की। कश्मीर को विवादित और पाकिस्तान को स्थाई लोलुप बनाने में नेहरू का सब से बड़ा हाथ है।

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और यह सब उन्होंने अपने गृह मंत्री सरदार पटेल को अँधेरे में रख कर किया था! यह सब कोई आरोप नहीं, जग-जाहिर तथ्य हैं जिन के प्रमाण सर्व-सुलभ हैं। तब ऐसे ‘प्रथम’ मार्गदर्शक के बारे में हम पाठ्य-पुस्तकों में क्या बताएं ?

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क्या वही झूठ दुहराते रहें जो नेहरूवंशी सत्ता ने जोर-जबरदस्ती और छल-प्रपंच से स्थापित की है? क्या रूसी और चीनी जनता से इस मामले में कुछ न सीखें? किसी भ्रम में न रहें। नेहरू की विरुदावली और ‘योगदान’ के जितने भी किस्से और तर्क दिए जाते थे...

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वे ठीक वैसे ही हैं जैसे सोवियत सत्ता के दिनों में लेनिन के पक्ष में मिलते थे। अतः बिना उन गंभीर दोषों के, जो नेहरू में थे, बावजूद हमारी पाठ्य-पुस्तकों में यदि प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद की कोई चर्चा नहीं रहती...

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तो कोई कारण नहीं कि अनगिन लज्जास्पद कार्यों के बावजूद हम नेहरू पर देश के बच्चों को अनुचित गर्व करना सिखाते रहें। स्वतंत्र भारत में पहला प्रधान मंत्री निवास तीन-मूर्ति भवन था। नेहरू की मृत्यु के बाद उसे ‘नेहरू स्मारक’ बना दिया गया।

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फिर तो, ल्युटन की दिल्ली में विविध नेताओं को आवंटित बंगलों को उन की मृत्यु बाद कथित ‘स्मारक’ बनाकर उन के वंशजों द्वारा कब्जाने की प्रक्रिया चल पड़ी। देश की जमीन और संपत्ति पर ऐसा बेशर्म व्यक्तिगत, पारिवारिक कब्जा और किसी देश में भी क्या होता है?

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हमारे बच्चों को तो इस पर सोचना सिखाना चाहिए। जयंती, स्मारक, संस्थाओं, योजनाओं के नामकरण, आदि प्रक्रियाओं में गाँधी-नेहरू की अंध-पूजा किस सिद्धांत के तहत होती रही है? दूसरी ओर, पतंजलि, पाणिनि, चाणक्य, कालिदास, तुलसीदास, जैसे शाश्वत मूल्य के अनगिन मनीषी ही नहीं...

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स्वामी दयानन्द, बंकिमचन्द्र, श्रद्धानंद, श्रीअरविन्द, जगदीशचंद्र बोस, जदुनाथ सरकार, मेजर ध्यानचंद, आदि भारत के समकालीन सच्चे महापुरुषों को कितना सरकारी-राष्ट्रीय आदर मिला है? यहाँ लगभग अशिक्षित नेताओं के नाम पर बीसियों विश्वविद्यालय खोले गए हैं...

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और महान इतिहासकार जदुनाथ सरकार या महाकवि निराला के नाम पर एक भी नहीं! इस का लज्जास्पद तर्क केवल सोवियत व्यवस्था से मिलता है। जहाँ पूरी शिक्षा को लेनिन-स्तालिनमय कर दी गई थी, जबकि दॉस्ताएवस्की, सोल्झेनित्सिन जैसे मनीषी पुस्तकालयों तक से बहिष्कृत थे।

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हमें अपने देश के मनीषियों, महापुरुषों की पहचान, सम्मान और सीखने का सच्चा मानदंड बनाना होगा, नहीं तो विश्व-मंच पर हमारी वही निस्तेज, बुद्धि-हीन छवि बनी रहेगी जो नेहरू ने बनाई थी।

लेखक : डॉ शंकर शरण
Post credit : @Itihaasnama FB page

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।। हरि ॐ।।
शिव के रुद्राभिषेक से होते हैं 18 आश्चर्यजनक लाभ, जरूर पढ़े..

रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही 'रुद्र' कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी कि भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।


हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है।


और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं..


और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं।


रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली के महापाप भी जलकर भस्म हो जाते हैं और हममें शिवत्व का उदय होता है। भगवान शिव का शुभाशीर्वाद प्राप्त होता है। सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं
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जन्मदिवस विशेष

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की 6 अच्छी बातें जो उनसे सीख सकते हैं:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने आप को युथ के अनुसार सबसे अधिक ढाला है। कार्यों को लेकर उनका जुनून, यूथ से लगातार जुड़े रहना, टेक्‍नोलॉजी से अपडेट रहना..

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जमी से आसमां तक के फैसले उन्होंने इस कदर लिए है कि उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है। राजनीति दष्टि को एकतरफ रखते हैं तो उनमें कई सारी ऐसी स्किल्‍स है जो जीवन में हमेशा काम आएगी। तो आइए जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 6 कौन सी अच्‍छी बातें हैं जो जरूर सीखना चाहिए -

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1. लीडरशीप स्किल - पीएम मोदी से लीडरशीप स्किल जरूर सीखना चाहिए। एक बार मंच से संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा था कि, 'अपने सबऑर्डिनेट से हमेशा एक घंटा अधिक काम करना चाहिए। ताकि अपने तजुर्बे से तुम उन्हें आगे की रणनीति बता सकों।

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2.विनम्रता - पीएम मोदी ने हमेशा जगह को देखते हुए अपने भाषण को उस अनुसार प्रस्‍तुत किया। जब देश को गंभीर मुद्दे पर संबोधित करते हैं तब वह कभी उग्र तो एकदम विनम्र भाव में जनता से अपील करते हैं। जब विदेश में भारत को प्रस्‍तुत करते हैं तो उनके प्रजेंटेशन स्किल पूरी तरह से बदल जाती है


जोश से वह भारत को प्रस्‍तुत करते हैं और जब कोई उनसे कोई सवाल करता है तब उसका सहजता और विनम्रता से उत्‍तर देते हैं।

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कुंडली में 12 भाव होते हैं। कैसे ज्योतिष द्वारा रोग के आंकलन करते समय कुंडली के विभिन्न भावों से गणना करते हैं आज इस पर चर्चा करेंगे।
कुण्डली को कालपुरुष की संज्ञा देकर इसमें शरीर के अंगों को स्थापित कर उनसे रोग, रोगेश, रोग को बढ़ाने घटाने वाले ग्रह


रोग की स्थिति में उत्प्रेरक का कार्य करने वाले ग्रह, आयुर्वेदिक/ऐलोपैथी/होमियोपैथी में से कौन कारगर होगा इसका आँकलन, रक्त विकार, रक्त और आपरेशन की स्थिति, कौन सा आंतरिक या बाहरी अंग प्रभावित होगा इत्यादि गणना करने में कुंडली का प्रयोग किया जाता है।


मेडिकल ज्योतिष में आज के समय में Dr. K. S. Charak का नाम निर्विवाद रूप से प्रथम स्थान रखता है। उनकी लिखी कई पुस्तकें आज इस क्षेत्र में नए ज्योतिषों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
प्रथम भाव -
इस भाव से हम व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता, सिर, मष्तिस्क का विचार करते हैं।


द्वितीय भाव-
दाहिना नेत्र, मुख, वाणी, नाक, गर्दन व गले के ऊपरी भाग का विचार होता है।
तृतीय भाव-
अस्थि, गला,कान, हाथ, कंधे व छाती के आंतरिक अंगों का शुरुआती भाग इत्यादि।

चतुर्थ भाव- छाती व इसके आंतरिक अंग, जातक की मानसिक स्थिति/प्रकृति, स्तन आदि की गणना की जाती है


पंचम भाव-
जातक की बुद्धि व उसकी तीव्रता,पीठ, पसलियां,पेट, हृदय की स्थिति आंकलन में प्रयोग होता है।

षष्ठ भाव-
रोग भाव कहा जाता है। कुंडली मे इसके तत्कालिक भाव स्वामी, कालपुरुष कुंडली के स्वामी, दृष्टि संबंध, रोगेश की स्थिति, रोगेश के नक्षत्र औऱ रोगेश व भाव की डिग्री इत्यादि।

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THIS.

Russia hasn't been a willing partner in this treaty for almost 3 decades. We should have ended the pretense long ago.

Naturally, Rand Paul is telling anyone who will listen to him that Trump is making a HUGE MISTAKE here.


Rand is just like his dad, Ron. 100% isolationist.

They've never grasped that 100% isolationist is not 'America First' when you examine it. It really means 'America Alone'.

The consistent grousing of pursuing military alliances with allies - like Trump is doing now with Saudi Arabia.

So of course Rand has also spent the last 2 days loudly calling for Trump to kill the arms deal with Saudi Arabia and end our alliance with them.

What Obama was engineering with his foreign policy was de facto isolationism: pull all the troops out of the ME, abandon the region to Iranian control as a client state of Russia.

Obama wasn't building an alliance with Iran; he was facilitating abandoning the ME to Iran.

Obama wouldn't even leave behind a token security force, so of course what happened was the rise of ISIS. He also pumped billions of dollars into the Iranian coffers, which the Mullah's used to fund destabilizing activity [wars/terrorism] & criminal enterprises all over the globe
The chorus of this song uses the shlokas taken from Sundarkand of Ramayana.

It is a series of Sanskrit shlokas recited by Jambavant to Hanuman to remind Him of his true potential.

1. धीवर प्रसार शौर्य भरा: The brave persevering one, your bravery is taking you forward.


2. उतसारा स्थिरा घम्भीरा: The one who is leaping higher and higher, who is firm and stable and seriously determined.

3. ुग्रामा असामा शौर्या भावा: He is strong, and without an equal in the ability/mentality to fight

4. रौद्रमा नवा भीतिर्मा: His anger will cause new fears in his foes.

5.विजिटरीपुरु धीरधारा, कलोथरा शिखरा कठोरा: This is a complex expression seen only in Indic language poetry. The poet is stating that Shivudu is experiencing the intensity of climbing a tough peak, and likening

it to the feeling in a hard battle, when you see your enemy defeated, and blood flowing like a rivulet. This is classical Veera rasa.

6.कुलकु थारथिलीथा गम्भीरा, जाया विराट वीरा: His rough body itself is like a sharp weapon (because he is determined to win). Hail this complete

hero of the world.

7.विलयगागनथाला भिकारा, गरज्जद्धरा गारा: The hero is destructive in the air/sky as well (because he can leap at an enemy from a great height). He can defeat the enemy (simply) with his fearsome roar of war.