भगवान अपने भक्तों की यश वृद्धि करने के लिए अनेक प्रकार की लीलाएं करते हैं।इस तरह के अनेकों उदाहरण आपको हमारे पुराणों में मिल जाएंगे।ऐसी ही एक भक्त थी सती अनुसुइया जिसकी कथा हम आज सुनेंगे।
त्रिदेवियां माताएं लक्ष्मी,पार्वती और सरस्वती सोचती थीं कि उनसे बड़ी पतिव्रताएं कोई नहीं ।

एक बार त्रिदेवों ने त्रिदेवियों का ये भ्रम तोड़ने का और साथ ही अपनी परम भक्त अनुसुइया का मान बढ़ाने का सोचा।
इसी कार्य को संपन्न करने के लिए भगवान नारायण ने देवर्षि नारद के मन में जिज्ञासा उत्पन्न की। इसके फलस्वरूप वे लक्ष्मी जी के पास पहुंचे। लक्ष्मी माता देवर्षि को देख...
...बड़ी प्रसन्न हुईं और उनसे कहा,"देवर्षि! आप बड़े दिनो के बाद आए हैं।कहिए कैसे हैं?" नारद जी बोले,"माता! क्या बताऊँ? कुछ बताते नहीं बन रहा।अब की बार मैं घूमता हुआ चित्रकूट की ओर चला गया था।वहां महर्षि अत्रि के आश्रम जाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। माता! मैं तो महर्षि अत्रि ...
..जी की पत्नी माता अनुसुइया के दर्शन करके कृतार्थ हो गया।तीनों लोकों में उनके समान पवित्र व पतिव्रता स्त्री कोई नहीं है।"
माता अनुसुइया का यही गुणगान देवर्षि नारद ने जाकर माता पार्वती और माता सरस्वती से भी किया।ये सुनकर त्रिदेवियों ने जिज्ञासावश अनुसुइया की परीक्षा लेने की सोची।
तब त्रिदेवियों ने अपने पतियों-ब्रह्मा,विष्णु और महेश से अनुसुइया के सतीत्व की परीक्षा लेने का हठ किया।त्रिदेवों ने बहुत समझाने की कोशिश की परंतु अपनी पत्नियों के हठ के कारण अन्ततः वे अनुसुइया की परीक्षा लेने को तैयार हो गए।

तीनों देव साधुवेष धारण कर महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे।
उस समय महर्षि अत्रि वहां उपस्थित नहीं थे। माता अनुसुइया ने अपने द्वार पर तीन साधुओं को खड़ा देखा तो उनसे भोजन ग्रहण करने का आग्रह किया परंतु साधुओं ने मना कर दिया। तब माता ने आश्चर्य से उनसे पूछा कि मुझसे ऐसा क्या अपराध हो गया जो आप मेरा आतिथ्य स्वीकार नहीं कर रहे।
तब साधुओं ने अनुसुइया से कहा कि हम आपका आतिथ्य व भोजन अवश्य स्वीकार करेंगे परंतु हमारा नियम है कि जब हमें निर्वस्त्र होकर भोजन परोसा जाए तभी हम उसे ग्रहण करते हैं।अनुसुइया असमंजस में पड़ गईं कि साधुओं को द्वार से भूखा भेजना पाप है और निर्वस्त्र होकर मैं इन्हें भोजन करा नहीं सकती।
तब माता ने प्रभु का ध्यान किया और अपने सतीत्व की दिव्य शक्ती से यह जान लिया कि ये तिनों तो साधुओं के वेष में त्रिदेव मेरे घर पधारे हैं।
तब माता अनुसुइया मुस्कुराते हुए उनसे बोली,"जैसी आपकी इच्छा।"
तब साध्वी माता अनुसुइया ने अपने कमण्डल से तिनों साधुओं पे जल छिड़क के उन्हें...
...तीन प्यारे शिशुओं में बदल दिया। शिशुओं को देख अनुसुइया में मातृत्व भाव उमड़ पड़ा। तब माता ने उन्हें दूध-भात खिलाया और लोरी गाकर अपनी गोद में सुलाया ।
तब शिशुओं को झूले में डालकर अनुसुइया सोचती है की मैं कितनी भाग्यशाली हूं जो इन त्रिदेवों की माता बनने का सुख मुझे प्राप्त हुआ।
उसी समय एक सफेद बैल, एक विशाल गरुड़ और एक राजहंस कमल को चोंच में लिए अत्रि ऋषि के आश्रम आ पहुंचे। ये बहुत ही अद्भुत दृश्य था।
उधर त्रिदेवों के वापस न लौटने से तीनों देवियां व्याकुल हो उठीं। तब नारद ने वहां आकर सारी बात बताई की अनुसुइया ने अपने सतीत्व की शक्ती से त्रिदेवों को...
...शिशु बना दिया है और वे माता के आश्रम में पालने में सो रहे हैं। ये सुनकर तिनों देवियां नारद सहित माता अनुसुइया के आश्रम पहुंची और उनसे माफी मांगी तथा उनसे ये विनती की, कि हमारे पतियों को उनके असली स्वरूप में लाकर कृप्या हमें सौंप दीजिए। त्रिदेवियों ने ये भी कहा कि हमारे...
...हठ की वजह से ये आपकी परीक्षा लेने आए थे। ये सुनकर माता अनुसुइया ने तीनों देवियों को प्रणाम किया और उन शिशुओं पर जल छिड़क कर उन्हें अपने वास्तविक स्वरूप में ले आई। जब त्रिदेव अपने वास्तविक स्वरूप में आए तो माता अनुसुइया ने उनकी सहृदय पूजा की। त्रिदेवों ने अनुसुइया से प्रसन्न...
...होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा। तब माता अनुसुइया बोली,"प्रभु! मेरी कोई संतान नहीं है, अत: आप मुझे ये वरदान दें कि आप तीनों मेरे पुत्र बनकर मेरे घर जन्म लेंगे। मुझे यही वरदान चाहिए, अन्यथा नहीं।"
इसपर त्रिदेव "तथास्तु" कहकर त्रिदेवियों संग वहां से अंतर्ध्यान हो गए।
तभी से अनुसुइया, माता सती अनुसुइया के नाम से प्रख्यात हुईं और कालांतर में भगवान विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का, ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा का तथा भगवान शिव के अंश से दुर्वासा का जन्म माता अनुसुइया के गर्भ से हुआ।

ऊँ नम: शिवाए 🌺🌺🙏

More from Vibhu Vashisth 🇮🇳

🌺हम सभी ने ऋषि, मुनि, महर्षि, साधु और संत जैसे शब्द तो सुने ही हैं और हम सोचते हैं कि इन सबका अर्थ एक ही है परन्तु वास्तव में इन सब मे अंतर होता है?🌺

⚜️क्या आपको पता है कि ऋषि, मुनि, महर्षि, साधु और संत जैसे शब्दों में क्या अंतर है?⚜️

आइए देखते हैं:👇


भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का विशेष महत्व रहा है।आज से सैकड़ों साल पहले 'ऋषि', 'मुनि', 'महर्षि' और 'ब्रह्मर्षि' समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे। तब यही लोग अपने ज्ञान और तप के बल पर समाज कल्याण का कार्य किया करते थे और लोगों को समस्याओं से मुक्ति दिलाते थे।

आज के समय में भी हमें कई तीर्थ स्थलों, मंदिरों, जंगलों और पहाड़ों में साधु-संत देखने को मिल जाते हैं।

♨️ऋषि♨️

ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' है जिसका अर्थ 'देखना' या 'दर्शन शक्ति' होता है।


ऋषि अर्थात "दृष्टा" भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। वे व्यक्ति विशिष्ट जिन्होंने अपनी विलक्षण एकाग्रता के बल पर गहन ध्यान में विलक्षण शब्दों के दर्शन किये उनके गूढ़ अर्थों को जाना व मानव अथवा..

..प्राणी मात्र के कल्याण के लिये ध्यान में देखे गए शब्दों को लिखकर प्रकट किया। इसीलिये कहा गया -

⚜️“ऋषयो मन्त्र द्रष्टारः
न तु कर्तारः।”⚜️

अर्थात् ऋषि तो मंत्र के देखनेवाले हैं नकि बनानेवाले अर्थात् बनानेवाला तो केवल एक परमात्मा ही है।

More from All

You May Also Like

Trading view scanner process -

1 - open trading view in your browser and select stock scanner in left corner down side .

2 - touch the percentage% gain change ( and u can see higest gainer of today)


3. Then, start with 6% gainer to 20% gainer and look charts of everyone in daily Timeframe . (For fno selection u can choose 1% to 4% )

4. Then manually select the stocks which are going to give all time high BO or 52 high BO or already given.

5. U can also select those stocks which are going to give range breakout or already given range BO

6 . If in 15 min chart📊 any stock sustaing near BO zone or after BO then select it on your watchlist

7 . Now next day if any stock show momentum u can take trade in it with RM

This looks very easy & simple but,

U will amazed to see it's result if you follow proper risk management.

I did 4x my capital by trading in only momentum stocks.

I will keep sharing such learning thread 🧵 for you 🙏💞🙏

Keep learning / keep sharing 🙏
@AdityaTodmal
A brief analysis and comparison of the CSS for Twitter's PWA vs Twitter's legacy desktop website. The difference is dramatic and I'll touch on some reasons why.

Legacy site *downloads* ~630 KB CSS per theme and writing direction.

6,769 rules
9,252 selectors
16.7k declarations
3,370 unique declarations
44 media queries
36 unique colors
50 unique background colors
46 unique font sizes
39 unique z-indices

https://t.co/qyl4Bt1i5x


PWA *incrementally generates* ~30 KB CSS that handles all themes and writing directions.

735 rules
740 selectors
757 declarations
730 unique declarations
0 media queries
11 unique colors
32 unique background colors
15 unique font sizes
7 unique z-indices

https://t.co/w7oNG5KUkJ


The legacy site's CSS is what happens when hundreds of people directly write CSS over many years. Specificity wars, redundancy, a house of cards that can't be fixed. The result is extremely inefficient and error-prone styling that punishes users and developers.

The PWA's CSS is generated on-demand by a JS framework that manages styles and outputs "atomic CSS". The framework can enforce strict constraints and perform optimisations, which is why the CSS is so much smaller and safer. Style conflicts and unbounded CSS growth are avoided.