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शक्तिपीठ अलोपी देवी मंदिर प्रयागराज: जहां बिना मूर्ति की होती है पूजा 🙏🙏🚩🚩🚩
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प्रयागराज के अलोपीबाग में स्थित अलोपी देवी मंदिर को मां अलोपशंकरी का सिद्धपीठ मंदिर नाम से जाना जाता है। यहां मां सती के दाहिने हाथ का पंजा एक कुंड में गिरकर अलोप (लुप्त) हो गया था,


इसी वजह से इस शक्ति पीठ को अलोप शंकरी नाम दिया गया।अतः यह मंदिर मां शक्ति के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह एक ऐसा खास मंदिर है, जहां कोई मूर्ति नहीं रखी गई है।


मंदिर प्रांगण के बीच के स्थान में एक चबूतरा है जहां एक कुंड बना हुआ है। इसके ऊपर एक खास झूला या पालना है, जिसे लाल कपड़े से ढंक कर रखा जाता है। मां सती की कलाई इसी स्थान पर गिरी थी। यह प्रसिद्ध शक्ति पीठ है और इस कुंड के जल को चमत्कारिक शक्तियों वाला माना जाता है।


आस्था के इस अनूठे मन्दिर में भक्त प्रतिमा की नहीं, बल्कि झूले या पालने की ही पूजा करते हैं।

यहां मान्यता है कि यहाँ कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधकर मन्नत माँगने वाले भक्तों की हर कामना पूरी होती है और हाथ में धागा बंधे रहने तक देवी उनकी रक्षा करती हैं। नवरात्रों में यहां मां का श्रृंगार तो नहीं होता, परंतु उनके स्वरूपों का पाठ किया जाता है।
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जय श्री राम जय श्री हनुमान 🚩🚩

आपने हनुमान चालीसा के महत्व एवं चमत्कारी असर के बारे में जाना हैं समझा है और शायद महसूस भी किया है लेकिन क्या आपने कभी श्री हनुमान बाहुक के बारे में सुना है?

इसकी संरचना कैसे हुई और किसने पहली बार इसका जाप किया, इसके पीछे एक रोचक कहानी है। 👇🏻


आइए जाने:

संत तुलसीदास जी श्रीराम व हनुमान जी के परम भक्त थे। एकबार की बात है कलियुग के प्रकोप से उनकी भुजा में अत्यंत पीड़ा हुई, वे काफी बीमार पड़ गए।

उन्हें वात ने जकड़ लिया था, शरीर में काफी पीड़ा भी थी। पीड़ा भरी आवाज में उन्होंने हनुमान नाम का जाप आरंभ कर दिया।
👇🏻

अपने भक्त की पीड़ा देखते हुए हनुमान जी प्रकट हुए। तो पीड़ा व रोग निवारण के लिये तुलसीदास जी ने इस हनुमान बाहुक के पाठ की रचना की।

हनुमान बाहुक के 44 चरणों का पाठ हैं जिससे तुलसीदास जी के सभी शारीरिक कष्टों दूर हो गए। कोई भी प्राणी यदि विधि से इसका परायण करता है तो 👇🏻

हनुमानजी की कृपा से उसको शरीर की समस्त पीड़ाओं से मुक्ति मिलती हैं ।

हनुमान बाहुक के लाभ: यदि आप गठिया, वात, सिरदर्द, कंठ रोग, जोड़ों का दर्द आदि किसी भी रोग या दर्द से परेशान हैं, तो जल का एक पात्र सामने रखकर हनुमान बाहुक का 26 या 21 दिनों तक मुहूर्त देखकर पाठ करें।

हनुमान बाहुक का पाठ भक्त को भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से भी दूर रखता है।

हनुमान बाहुक के पाठ से भक्त के आसपास एक रक्षा कवच बन जाता है, जिसके प्रभाव से किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्ति उसे छू भी नहीं सकती👇🏻
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क्या आप जानते हैं कि राम जी अपने 14 वर्षों के वनवास के दौरान कहां कहां रहे व उन स्थानों पर क्या क्या घटनायें हुयीं?
कुल पड़ाव इस प्रकार हैं
प्रयाग,चित्रकूट,सतना,रामटेक,पंचवटी,भंडारदारा,तुलजापुर,सुरेबान,कर्दीगुड,कोप्पल,हम्पी,तिरूचरापल्ली,कोडिक्करल,रामनाथपुरम,रामेश्वरम् (भारत)


तीन स्थान वास्गामुवा,दुनुविला एवम् वन्थेरूमुलई ये श्रीलंका में हैं।
नुवारा एलिया एक वो स्थान है जहां से होकर प्रभु श्री राम जी लंका के लिये गुजरे थे।
@JyotiKarma7
@DramaQueenAT
@AgniShikha100

पहला पड़ाव था सिंगरौर जो कि प्रयाग राज से 35 किमी का दूरी पर है यहीं पर केवट प्रसंग हुआ था यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित है यहीं पर श्री राम जी ने मां सीता के साथ गंगा मां की वन्दना की थी।


यात्रा का दूसरा पड़ाव था कुरई जहां प्रभु सिंगरौर से गंगा पार करने के पश्चात् उतरे थे यहां
प्रभु ने लक्ष्मण जी एवम् मां सीता के साथ विश्राम किया था।


तीसरा स्थान है प्रयाग जिसको किसी कालखंड में इलाहाबाद कहा जाता था तीर्थों के राजा प्रयागराज को ही माना जाता है क्योॆकि यहां वैतरिणी मां गंगा एवम् गंगा नदी की मुख्य सहायक नदी यमुना जी का मां सरस्वती के साथ संगम होता है।