In Hinduism #Ahoi #Ashtami is festival dedicated to devi popularly known as Ahoi mata. It is majorly celebrated in northern India on 'ashtami' tithi of krishna paksh in the month of Kartik . Women perform vrat on this day for the wellbeing of their children.

Mothers worship mata Ahoi with utmost fervor and pray for a long, happy and healthy life for their children. After fasting for the entire day they break the fast only after seeing and worshipping the moon or the stars. This day is considered highly important for childless couples
Women who find it difficult to conceive religiously perform the Ahoi Vrat to have a child.This is the reason, this day is also known as 'Krishnashtami’. The holy place of #Mathura is thronged by couples and devotees to take the holy dip in '#RadhaKund .
women keep a garland made of silver or gold coins, belonging to generations of that family, in front of the mata during the Puja. whenever a new member gets added to the family, a coin is added to that garland. Every year, this same garland is used for the Ahoi Puja.
An elderly lady of the family reads out the Katha (story) of Ahoi mata while the other women listen. Holy Kalash filled with water is placed on the left side of the Ahoi mata picture.A Swastika is made on the Kalash, and a sacred thread or Moli is tied around the Kalash.
Poori, Halwa, and Pua, are offered to mata . It is popularly believed that Ahoi Mata is none other than Mata Parvati.
HAPPY AHOI ASHTAMI

#AhoiAshtami2021
#Hinduism
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मोक्ष की नगरी #काशी के कण कण में विराजमान हैं भगवान #शिव । यहां की संस्कृति और परंपराओं में शिव के विराट व्यक्तित्व की झलक दिखाई देती है। मतस्य पुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं मरते हुए व्यक्ति के कानों में #तारक मंत्र का उपदेश सुनाते हैं और #मोक्ष प्राप्त हो जाता है।


अर्थात उस व्यक्ति को जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। शिव-पार्वती का ये पावन स्थान मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि एक भक्त को भगवान शिव ने सपने में दर्शन देकर कहा था कि गंगा स्नान के बाद उसे दो शिवलिंग मिलेंगे और जब वो

उन दोनों शिवलिंगों को जोड़कर उन्हें स्थापित करेगा तो शिव और शक्ति के दिव्य शिवलिंग की स्थापना होगी और तभी से भगवान शिव यहां मां पार्वती के साथ विराजमान हैं| बाबा की आज्ञा से यहाँ मन्दिर का निर्माण हुआ ।


मंदिर के ऊपर के सोने के छत्र को ले कर यह मान्यता है कि अगर उसे देख कर कोई मुराद मांगी जाती है तो वह अवश्य ही पूरी होती है। रानी अहिल्या द्वारा मंदिर का जीर्णोद्धार कराने के पश्चात इंदौर के महाराज रणजीत सिंह ने मंदिर पर सोना लगाने का कार्य किया था ।


#गंगा किनारे बसा यह शहर कई बार तबाही और निर्माण का साक्षी बना है, जिसका असर काशीनाथ मंदिर पर भी पड़ा।परंतु जहाँ देवाधिदेव महादेव स्वयं बैठे हो वहाँ सिर्फ़ कल्याण होता है .. नकारात्मक शक्तियाँ दूर रहती हैं।
हमारे #सनातन धर्म में #तिलक को बहुत महत्त्व दिया गया है,
इसी कारण हमारे पूर्वज कभी बिना तिलक नहीं रहते थे इतना ही नहीं कई लोग तो बिना तिलक के रात्रि में सोते भी नहीं थे क्योंकि उनका यही मानना था की क्या पता मौत कब आ जाये और कब इस शरीर को छोड़कर यमलोक प्रस्थान करना पड़े।


सनातन धर्म में प्रचलित सभी #परम्परों के पीछे कोई न कोई कारण आपको अवश्य मिलेगा।तिलक लगाने के वैज्ञानिक तथ्य भी है जो लोग तिलक लगाते है उनमे क्रोध की भावना कम होती हैं तथा तिलक मस्तिष्क को ढंडा बनाये रखता है।हमने अपने बड़े बुजुर्गो की तस्वीरों को देखा होगा।


उनकी तस्वीर में वे सदैव मस्तक पर तिलक लगाया करते थे।आज हिन्दुओं के घर से तिलक लगाने की परम्परा लुप्त हो चुकी है । परंतु हिन्दू परंपरा के अनुसार ललाट (माथे) को सुना नहीं रखना चाहिए।किसी प्रकार का तिलक या टीका अवश्य लगाना चाहिए।

सभी विभिन्न तिलकों में एक नाम आता है , #गोपी चंदन।
वैष्णव तिलक गोपी-चन्दन से लगाया जाता है।इस तिलक को देखते ही #भगवान श्री कृष्ण का स्मरण होता है। यह तिलक मानव शरीर को शुद्ध कर बुरे प्रभाव से रक्षा भी करता है।


#गर्ग संहिता के अनुसार जो मनुष्य प्रतिदिन गोपी-चंदन का वैष्णव तिलक धारण करता है। उसे एक हजार #अश्वमेघ यज्ञों तथा राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। गोपी-चंदन से वैष्णव तिलक धारण करने वाला पापी मनुष्य भी भगवान कृष्ण के धाम, गोलोक वृन्दावन को प्राप्त होता है।

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