Statue of Equality (Ramanuja) Muchintal, Hyderabad, Telangana

The Statue of Equality is a monument in India dedicated to the 11th-century Vaishnavaite Sage Bhagavad Ramanuja, commemorating 1000 years since his birth. It was inaugurated by Prime Minister Narendra Modi ji in 2019.

In 2014, Sri Chinna Jeeyar came up with the idea to commemorate the 1000th anniversary of Sri Ramanuja's teachings by building the Statue of Equality. The statue is constructed on an estimated 34 acres in Hyderabad, India.
It consists of a 216 foot tall statue of Ramanuja and is surrounded by 108 Divyadesams (model temples) and includes an educational gallery. The project budget is 1000 crore rupees.The foundation stone for the Statue of Equality was laid by Chinna Jeeyar.
The statue was built by Aerosun Corporation in China before being shipped to India. It is made of panchaloha, a combination of gold, silver, copper, brass and titanium. The statue relies on donations to fund its construction.
The temple is located on the 27,870 square metre second floor with a 120 kg statue of Ramanuja, representing the years he lived, meant for daily worship. The 1,365 square metre third floor including a Vedic digital library and research center.
An Omnimax theatre featuring life stories of Ramanuja and a library of ancient Indian texts are also planned. This project has been designed by D.N.V.Prasad Sthapathy under enlightenment of H.H.Sri Chinna Jeeyar Swamiji.

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#Thread
महात्मा की खाल ओढ़े ऐक भेड़िये का सच!!

मनु बेन के आइने में गांधी:

मनु बेन महात्मा गाँधी के अंतिम वर्षों की निकट सहयोगी थीं। मनु को प्रायः गाँधीजी की पौत्री कहा जाता है। वास्तव में यह रिश्ता बहुत दूर का था। वह गाँधीजी के चाचा की प्रपौत्री थी।

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लगभग अशिक्षित, सोलह-सत्रह वर्ष की लड़की, जिस के पिता जयसुखलाल गाँधी एक लाचार से साधारण व्यक्ति थे। उसी मनु को लेकर गाँधी के ‘ब्रह्मचर्य प्रयोग’ न केवल गाँधी के जीवन के अंतिम प्रयोग हैं, बल्कि सर्वाधिक विवादास्पद भी।

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गाँधी की जिद और उन के परिवार व निकट सहयोगियों के विरोध का यह दौर 1946-1947 ई. के दौरान कई महीने चला। इस पर गाँधी से उन के पुत्र देवदास तथा सरदार पटेल, किशोरलाल, नरहरि, आदि सहयोगियों ने गाँधी से आंशिक/ पूर्ण संबंध-विच्छेद तक कर लिया था।

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जिन लोगों ने तीखा विरोध किया उन में ठक्कर बापा, बिनोबा भावे, घनश्याम दास बिड़ला, आदि भी थे। आजादी से पहले एक बार सरदार पटेल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि गांधी जी के ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग बन्द कर दिए जाने चाहिए। परन्तु नेहरू ने कभी इन प्रयोगों पर प्रश्न नही उठाया।

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शायद इसी कारण सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नही बन सके। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 25 जनवरी 1947 को गांधी जी को पत्र लिखा था, जिसमें उनके प्रयोग को भयंकर भूल बताते हुए उसे रोकने को कहा था। पटेल ने लिखा था कि ऐसे प्रयोग से उनके अनुयायियों को गहरी पीड़ा होती है।

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#Thread
आजकल लोगों की एक सोच बन गई है कि राजपूतों ने लड़ाई तो की, लेकिन वे एक हारे हुए योद्धा थे, जो कभी अलाउद्दीन से हारे, कभी बाबर से हारे, कभी अकबर से, कभी औरंगज़ेब से। क्या वास्तव में ऐसा ही है ? यहां तक कि राजपूत समाज में भी ऐसे कईं राजपूत हैं...

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जो महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान आदि योद्धाओं को महान तो कहते हैं, लेकिन उनके मन में ये हारे हुए योद्धा ही हैं।

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महाराणा प्रताप के बारे में ऐसी पंक्तियाँ गर्व के साथ सुनाई जाती हैं :- “जीत हार की बात न करिए, संघर्षों पर ध्यान करो”, “कुछ लोग जीतकर भी हार जाते हैं, कुछ हारकर भी जीत जाते हैं”।असल बात ये है कि हमें वही इतिहास पढ़ाया जाता है, जिनमें हम हारे हैं।

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मेवाड़ के राणा सांगा ने अनेक युद्ध लड़े, जिनमें मात्र एक युद्ध में पराजित हुए और आज उसी एक युद्ध के बारे में दुनिया जानती है, उसी युद्ध से राणा सांगा का इतिहास शुरु किया जाता है और उसी पर ख़त्म।

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राणा सांगा द्वारा लड़े गए खंडार, अहमदनगर, बाड़ी, गागरोन, बयाना, ईडर, खातौली जैसे युद्धों की बात आती है तो शायद हम बता नहीं पाएंगे और अगर बता भी पाए तो उतना नहीं जितना खानवा के बारे में बता सकते हैं।

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