गीता ही जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का एकमात्र पर्याप्त ग्रंथ है।
एक अनियंत्रित, विचलित, अशांत व कामनाओं से युक्त मन को किस प्रकार नियंत्रित करें?
इसका एक सर्वश्रेष्ठ उपाय श्रीमदभगवदगीता का नियमित पाठ करना ही मन को शांति प्रदान करने में निस्संदेह सक्षम है।
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गीता ही जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का एकमात्र पर्याप्त ग्रंथ है।
कोई भी प्राणी कर्म किये बिना जीवित नही रह सकता, जब तक वह इस धरती पर रहता है वह कर्मो के बंधन के आधीन है। और प्रकृति के नियमों से बंधा हुआ है।
अर्थात कोई भी प्राणी क्षण भर भी कर्मो से परे नही रह सकता है।
त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः। कामः क्रोधस्तथा लोभस्तरमादेतत्त्रयं त्यजेत्।।
काम, क्रोध व लोभ के आवेश में प्राणी अपने जीवन को समाप्ति की ओर ले जाता है, मुक्ति के द्वार को प्राणी इन कामनाओं के आवेश में स्वतः ही समाप्त कर देता है।
इन अवगुणों के आधार पर मनुष्य अपने जीवन में कभी शांत नही रह सकता, न ही कभी क्रोध के आवेग को समाप्त कर सकता है।
तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
श्रीकृष्ण, अर्जुन से अपने उपदेश में कहते है कि मनुष्य को आवश्यक है कि वह अपनी समस्त इंद्रियों को अपने नियंत्रण में करें जिससे वह अपनी बुद्धि को स्थिर कर सकता है....
मन में अनेकों विचारों का आवागमन बना रहेगा।