हनुमानजी के बारे में कई बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं।
शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे।

1.हनुमानजी का जन्मस्थान

कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं।

किष्किन्धा हनुमान मन्दिर

तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मातंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मातंगवन' था। हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मातंग पर्वत के नाम से जानी जाती है।
मातंग ऋषी के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।
2. कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी :
इंद्र से उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्पांत होने पर उन्हें सायुज्य की प्राप्ति होगी।सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरंजीवी रहेंगे। इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम व अर्जुन की परीक्षा लेते हैं।
कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं। ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे -

'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर ।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर ।।'
श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजी
कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।
3. कपि नामक वानर जाति

हनुमान जी का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। रामायण में हनुमानजी और उनके सजातीय बंधु सुग्रीव, अंगद आदि के नाम के साथ वानर,कपि प्लवंगम आदि विशेषण प्रयुक्त किए गए।
रामायण में वाल्मीकि जी ने जहां उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि...
..प्रकट किया है,वहीं उनको लोमश व पूंछधारी भी शतश: प्रमाणों में व्यक्त किया है।अत: सिद्ध होता है कि वे जाति से वानर थे।

4. हनुमान परिवार

हनुमानजी की माता अंजनी पूर्वजन्म में पुंजिकस्थला नामक अप्सरा थीं।उनके पिता कपिराज केसरी था।ब्रह्मांड पुराण अनुसार हनुमान सबसे बड़े भाई हैं।
उनसे छोटे पांच भाईयों के नाम मतिमान, श्रुतिमान, केतुमान, गतिमान, और धृतिमान थे। कहते हैं जब वर्षों तक केसरी और अंजनी के कोई संतान नहीं हुई तब पवनदेव के आशीर्वाद से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। इसलिए हनुमानजी को पवनपुत्र भी कहा जाता है। हनुमानजी को रुद्रावतार भी कहा गया है ।
5. इन बाधाओं से बचाते हैं हनुमान जी :

रोग, शोक, भूत-पिशाच, शनि, राहु-केतु और अन्य ग्रह बाधा। सम्मोहन, उच्चाटन, घटना, दुर्घटना, मंगल दोष, पितृ दोष, कर्ज, संताप, तनाव, शत्रु बाधा, मायावी जाल आदि से हनुमानजी अपने भक्तों की रक्षा करते हैं।
6. हनुमानजी के पराक्रम :

हनुमान जी सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वत्र हैं। बचपन में उन्होने सुर्य को फल समझ कर निगल लिया था। एक ही छलांग में वे समुद्र लांघ गए थे। उन्होंने समुद्र में राक्षसी माया का वध किया था। लंका में घुसते ही उन्होने लन्किनी और अन्य राक्षसों का वध किया।
जब उनकी पूंछ में आग लगाई गयी तो उन्होने लंका जला डाली।हिमालय से एक पहाड़ उठा कर ले आए और लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा की।उन्होने कालनेमि राक्षस का वध किया।पाताल लोक जाकर राम-लक्ष्मण को छुड़ाया और अहिरावण का वध किया। उन्होने सत्यभामा, भीम, गरुड़, सुदर्शन का घमंड चूर-चूर कर दिया।
7.हनुमानजी पर लिखे गए ग्रंथ

तुलसीदास ने हनुमानचालीसा,बजरंग बाण,हनुमान बहूक,हनुमान साठिका, संकटमोचन हनुमानाष्टक आदि अनेक स्त्रोत लिखे।तुलसीदस से पहले कई साधुओं व संतों ने हनुमानजी की स्तुति लिखी है।
इन्द्रादि देवताओं के बाद हनुमानजी पर विभीषण ने हनुमानवडवानल स्त्रोत की रचना की।
समर्थ रामदास द्वारा मारुति स्त्रोत रचा गया है।आनंद रामायण में हनुमान स्तुति और उनके द्वादश नाम मिलते हैं। इसके अलावा कालांतर में उनपे हज़ारों वंदना, प्रार्थना, स्त्रोत, स्तुति, मंत्र, भजन लिखे गए हैं।
गुरु गोरखनाथ ने उनपर साबर मंत्रों की रचना की है।
8. इन्होनें देखा हनुमानजी को

13वीं शताब्दी में माधवाचार्य,16वीं शताब्दी में तुलसीदास और 17वीं शताब्दी में रामदास, राघवेंद्र स्वामी हनुमानजी को देखने का दावा करते हैं। हनुमानजी त्रेतायुग में श्रीराम, द्वापरयुग में श्रीकृष्ण व अर्जुन और कलियुग में राम भक्तों की सहायता करते हैं।

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प्राचीन काल में गाधि नामक एक राजा थे।उनकी सत्यवती नाम की एक पुत्री थी।राजा गाधि ने अपनी पुत्री का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र से करवा दिया।महर्षि भृगु इस विवाह से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होने अपनी पुत्रवधु को आशीर्वाद देकर उसे कोई भी वर मांगने को कहा।


सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र का वरदान मांगा।ये जानकर महर्षि भृगु ने यज्ञ किया और तत्पश्चात सत्यवती और उसकी माता को अलग-अलग प्रकार के दो चरू (यज्ञ के लिए पकाया हुआ अन्न) दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम्हारी माता पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन...

...करें और तुम भी पुत्र की इच्छा लेकर गूलर वृक्ष का आलिंगन करना। आलिंगन करने के बाद चरू का सेवन करना, इससे तुम दोनो को पुत्र प्राप्ति होगी।परंतु मां बेटी के चरू आपस में बदल जाते हैं और ये महर्षि भृगु अपनी दिव्य दृष्टि से देख लेते हैं।

भृगु ऋषि सत्यवती से कहते हैं,"पुत्री तुम्हारा और तुम्हारी माता ने एक दुसरे के चरू खा लिए हैं।इस कारण तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय सा आचरण करेगा और तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण सा आचरण करेगा।"
इस पर सत्यवती ने भृगु ऋषि से बड़ी विनती की।


सत्यवती ने कहा,"मुझे आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करे।"तब महर्षि ने उसे ये आशीर्वाद दे दिया कि उसका पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करेगा किन्तु उसका पौत्र क्षत्रियों सा व्यवहार करेगा। सत्यवती का एक पुत्र हुआ जिसका नाम जम्दाग्नि था जो सप्त ऋषियों में से एक हैं।

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