महाभारत की कहानी कौन नहीं जानता।लेकिन क्या आपको पता है कि महाभारत के ज्यादातर पात्र किसी न किसी श्राप में फंसे थे।अगर ये श्राप न होते तो कदाचित महाभारत की कहानी कुछ और होती।हिन्दु पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न श्रापों का वर्णन मिलता है व हर श्राप के पीछे कोई कहानी अवश्य होती है।

आइए आज जानते हैं महाभारत कथा में वर्णित कुछ श्रापों के बारे में।

1) राजा पाण्डु को ऋषि किन्दम का श्राप

एकबार महाराज पाण्डु शिकार खेलने वन गए।झाडियों के पीछे कुछ हिल रहा था। मृग है सोचकर राजा ने बाण चलाया जो जाकर ऋषि किन्दम और उनकी पत्नी को लगा।वे दोनो रति-क्रीड़ा में लिप्त थे।
जब राजा ने उन्हें देखा तो बहुत दुखी हुए कि ये मुझसे क्या पाप हो गया।बहुत क्षमा याचना के बाद भी किन्दम ऋषि ने पाण्डु को श्राप दे दिया कि जब भी वो किसी स्त्री को काम भावना से स्पर्श करेंगे उसी क्षण उनकी मृत्यु हो जाएगी।पश्चाताप करने, वे सिंहासन पे अन्धे राजा धृतराष्ट्र को बैठाकर...
..स्वयं अपनी रानियों कुंती व माद्री के साथ वन चले गए।पांडवों का जन्म भी कुंती को ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गए मंत्र से हुआ था जिसमे किसी भी देव का स्मरण कर उस देव से कुंती,पुत्र प्राप्त कर सकती थी।एक बार माद्री पे मोहित हो जब पांडु ने उसे स्पर्श किया,उसी क्षण पांडु की मृत्यु होगयी।
2) उर्वशी का अर्जुन को श्राप

महाभारत युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गयी। अर्जुन ने जब उन्हें अपनी माता के समान बताया तो यह सुनकर उर्वशी क्रोधित हो गयी और अर्जुन को श्राप दे डाला कि तुम नपुंसक की भांति...
...बात कर रहे हो, इसलिए तुम नपुंसक हो जाओगे और तम्हें स्त्रियों में नर्तक बनकर रहना पड़ेगा। व्याकुल होकर जब ये बात अर्जुन ने देवराज इन्द्र को बताई तो उन्होनें उर्वशी को समझाकर इस श्राप की अवधि एक साल करा दी क्योंकि श्राप वापस नहीं हो पाता। तब इन्द्र ने अर्जुन को कहा कि ये श्राप..
..तुम्हारे अज्ञात वास के दौरान तुम्हारे बहुत काम आएगा। तुम्हें कोई पहचान नहीं पाएगा।

3) प्रभु परशुराम का कर्ण को श्राप

सूर्यपुत्र कर्ण परशुराम के शिष्य थे।कर्ण ने उन्हें अपना परिचय सूतपुत्र के रूप में दिया था क्योकिं उनकी परवरिश एक सूत ने की थी।एक बार परशुराम कर्ण की गोद...
...में सिर रख कर विश्राम कर रहे थे कि तभी एक बिच्छू ने उनके हाथपे काट लिया।गुरु की निद्रा में विघ्न न पड़े, ये सोचकर कर्ण चुपचाप दर्द सहते रहे लेकिन उन्होने अपने गुरु को नींद से नहीं उठाया।जागने पर जब परशुराम ने ये देखा तो वे समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र नहीं बल्कि क्षत्रिय है...
...क्योंकि इतना दर्द कोई क्षत्रिय ही सह सकता है।उन्हें लगा की कर्ण ने अपनी सच्चाई उनसे छुपाई इसलिए उन्होने क्रोधित होकर कर्ण को श्राप दे दिया कि मेरी सिखाई हुई शस्त्र विद्या की जब तुम्हें सबसे ज्यादा जरुरत होगी,तुम उस समय इस विद्या को भूल जाओगे ।
3) युधिष्ठिर का सम्पूर्ण स्त्री जाति को श्राप

महाभारत के शन्ति पर्व के अनुसार जब युद्ध समाप्त होने के बाद कुंती ने युधिष्ठिर को यह बताया कि कर्ण तुम्हारा बड़ा भाई था तो सभी पाण्डवों को बहुत दुख हुआ।युधिष्ठिर ने तब पुरे विधि विधान के साथ कर्ण का भी अन्तिम संस्कार किया।
इतनी बड़ी बात छुपाने के लिए वे अपनी माता कुंती से बहुत नाराज हुए और शोक में आकर सम्पूर्ण स्त्री जाति को उन्होने श्राप दे दिया कि आज के पश्चात कोई भी स्त्री ज्यादा देर तक कोई भी बात गुप्त नहीं रख सकेगी।
4) महर्षि वशिष्ठ का वसुओं को श्राप

भीष्म पितामह पूर्व जन्म में अष्ट वसुओं में से एक थे।एकबार इन अष्ट वसुओं ने ऋषि वशिष्ठ की गाय का बलपूर्वक अपहरण कर लिया।जब ऋषि को ये पता चला तो उन्होनें अष्टवसुओं को श्राप देदिया कि तुम आठों वसुओं को मृत्यु लोक में मानव रूप में जन्म लेना होगा ।
और आठवें वसु को राज,स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति नहीं होगी।इन आठों वसुओं को गंगा मैया ने जन्म दिया।पहले सात वसुओं को जन्म के साथ ही गंगा में बहाकर गंगा मैया ने मुक्ति दिलाई और आठवां वसू गंगा पुत्र भीष्म के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
5) श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप

महाभारत युद्ध के अन्तमें जब अश्वत्थामा ने पाण्डव पुत्रों का वध किया तब पाण्डव भगवान कृष्ण के साथ अश्वत्थामा का पीछा करते हुए ऋषि वेदव्यास के आश्रम पहुंच गए।अश्वथामा ने पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया तो अर्जुन नेभी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा
महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया और अश्वथामा व अर्जुन से अपने ब्रह्मास्त्र वापस लेने को कहा।अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया परंतु अश्वत्थामा को ये विद्या नहीं आती थी।इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी।
ये देख श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दे दिया कि तुम 3000 वर्ष तक इस पृथ्वी पे भटकते रहोगे।तुम्हारे शरीर से पीक और लहु की गंध निकलेगी जिस कारण तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे अपितु दुर्गम वन में पड़े रहोगे।
6) श्रीकृष्ण को गांधारी का श्राप

कौरवों की माता गांधारी ने महाभारत युद्ध के लिये श्रीकृष्ण को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्हें श्राप दे दिया कि जिस प्रकार कुरुवंश का नाश हुआ है,ठीक उसी प्रकार से यदु वंश का भी नाश होगा।गांधारी के श्राप के कारण श्रीकृष्ण द्वारिका लौटकर यदुवंशीयों को..
...लेकर प्रयास क्षेत्र आगए थे।कृष्ण ने ब्राह्मणों को दान देकर यदुवन्शियों को मृत्यु का इन्तज़ार करने का आदेश दिया था।कुछ दिन बाद सात्यकि व कृतवर्मा में महाभारत को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि सात्यकि ने क्रोधमें आकर कृतवर्मा का सिर काट दिया।इस घटना केबाद यदुओं में आपसी युद्ध बढ़क उठा।
वे दो समूहों में बन्टकर एक दुसरे का संहार करने लगे।इस लड़ाई में कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न व मित्र सात्यकि समेत सभी यदुवन्शी मारे गए।केवल बब्रू और दारूक बचे।

7) भीष्म को अम्बा श्राप

काशीराज ने अपनी पुत्रियों के स्वयंवर में कुरुओं को आमंत्रित नहीं किया तो भीष्म बड़े क्रोधित हुए।
वे काशी गए और काशीराज की तीनों पुत्रियों (अम्बा,अम्बिका,अम्बालिका) को अपने छोटे भाई विचित्रवीर्य के लिए उठा लाए।अम्बा ने रस्ते में उन्हें बताया कि वह मन में किसी और को अपना पति मान चुकी है।तब भीष्म ने उसे ससम्मान छोड़ दिया परंतु हरण होने के कारण शाल्व (जिससे वह प्रेम करती थी)...
..ने उसे अस्वीकार करदिया।अम्बा ने तब हस्तिनापुर जाके न्याय की मांग की व भीष्म को खुद से विवाह करने को कहा।भीष्म प्रतिज्ञा के कारण ऐसा करने में असमर्थ थे,तब अम्बा ने उन्हें श्राप दिया कि तुम्हारी मृत्यु का कारण मैं बनूंगी।अगले जन्म में अम्बा शिखंडी बन भीष्म की मृत्यु का कारण बनी।
8) यमराज को मांडव्य ऋषि का श्राप

एकबार राजा ने ऋषि मांडव्य को भूलवश चोरी का दोषी मानकर सूली पे चढ़ाने की सजा दी।कुछ दिनतक सूली पे चढ़े रहने के बाद भी जब ऋषि के प्राण न निकले तो राजा को अपनी भूल एहसास हुई।उन्होने ऋषि से क्षमा माँगकर उन्हें छोड़ दिया।तब ऋषि यमराज के पास जा पहुंचे
ऋषि ने यमराज से पूछा कि मैने जीवन में कौनसा ऐसा पाप किया था कि मुझे इस प्रकार सजा मिली।तब यमराज ने कहा कि जब आप 12 वर्ष के थे तब आपने एक फतींगे (एक छोटा सा कीड़ा)को सींक चुभाई थी, ये उसका फल आपको भुगतना पड़ा।ऋषि बोले कि 12 वर्ष की आयु में किसी को धर्म-अधर्म ज्ञात नहीं होता ।
तुमने छोटे अपराध का बड़ा दंड दिया इसलिए मैं तुम्हे श्राप देता हूं कि तुम्हें एक दासीपुत्र के रूपमें जन्म लेना पड़ेगा।ऋषि मांडव्य के इसी श्राप के कारण यमराज ने महत्मा विदुर के रूप में जन्म लिया।

ये महाभारत के कुछ श्रापों का आलेख है जो यदि नहोते तो संभवत: हमारा इतिहास कुछ और होता।

More from Vibhu Vashisth

शमशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायी और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में अपने तीन वर्ष के बालक को रख के स्वयं चिता पे बैठ कर सती हो गयी ।इस प्रकार ऋषी दधीचि और उनकी पत्नी की मुक्ति हो गयी।


परन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़पने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो वो कोटर में पड़े पीपल के गोदों (फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के फलों और पत्तों को खाकर बालक का जीवन किसी प्रकार सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजर रहे थे ।नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देख कर उसका परिचय मांगा -
नारद बोले - बालक तुम कौन हो?
बालक - यही तो मैं भी जानना चहता हूँ ।
नारद - तुम्हारे जनक कौन हैं?
बालक - यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने आँखें बन्द कर ध्यान लगाया ।


तत्पश्चात आश्चर्यचकित हो कर बालक को बताया कि 'हे बालक! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो । तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्रास्त्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी।तुम्हारे पिता की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी'।

बालक - मेरे पिता की अकाल मृत्यु का क्या कारण था?
नारद - तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक - मेरे उपर आयी विपत्ति का कारण क्या था?
नारद - शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर बड़े हुए उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
THE MEANING, SIGNIFICANCE AND HISTORY OF SWASTIK

The Swastik is a geometrical figure and an ancient religious icon. Swastik has been Sanatan Dharma’s symbol of auspiciousness – mangalya since time immemorial.


The name swastika comes from Sanskrit (Devanagari: स्वस्तिक, pronounced: swastik) &denotes “conducive to wellbeing or auspicious”.
The word Swastik has a definite etymological origin in Sanskrit. It is derived from the roots su – meaning “well or auspicious” & as meaning “being”.


"सु अस्ति येन तत स्वस्तिकं"
Swastik is de symbol through which everything auspicios occurs

Scholars believe word’s origin in Vedas,known as Swasti mantra;

"🕉स्वस्ति ना इन्द्रो वृधश्रवाहा
स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदाहा
स्वस्तिनास्तरक्ष्यो अरिश्तनेमिही
स्वस्तिनो बृहस्पतिर्दधातु"


It translates to," O famed Indra, redeem us. O Pusha, the beholder of all knowledge, redeem us. Redeem us O Garudji, of limitless speed and O Bruhaspati, redeem us".

SWASTIK’s COSMIC ORIGIN

The Swastika represents the living creation in the whole Cosmos.


Hindu astronomers divide the ecliptic circle of cosmos in 27 divisions called
https://t.co/sLeuV1R2eQ this manner a cross forms in 4 directions in the celestial sky. At centre of this cross is Dhruva(Polestar). In a line from Dhruva, the stars known as Saptarishi can be observed.

More from All

You May Also Like

I like this heuristic, and have a few which are similar in intent to it:


Hiring efficiency:

How long does it take, measured from initial expression of interest through offer of employment signed, for a typical candidate cold inbounding to the company?

What is the *theoretical minimum* for *any* candidate?

How long does it take, as a developer newly hired at the company:

* To get a fully credentialed machine issued to you
* To get a fully functional development environment on that machine which could push code to production immediately
* To solo ship one material quanta of work

How long does it take, from first idea floated to "It's on the Internet", to create a piece of marketing collateral.

(For bonus points: break down by ambitiousness / form factor.)

How many people have to say yes to do something which is clearly worth doing which costs $5,000 / $15,000 / $250,000 and has never been done before.