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#Series name : "Shiva - the voice of nature!" 1st part 👇🏻
Let's start with #Kashi, the city of Lord Shiva.

•Kashi is mentioned in the Rigveda, the oldest text of the world - 'काशिरित्ते.. आप इवकाशिनासंगृभीता!'
According to the Puranas, this is a proto-Vaishnavite place. https://t.co/xqTcrEjVzo


•Earlier it was the puri of Lord Vishnu (Madhava). Where Sri Harike's Anandashru had fallen, Bindusarovar was formed and the Lord was enshrined here in the name of Bindhumadhava.

There is such a story that when Lord Shankar cut off the fifth head of Lord Brahma in anger,...

...he got clinging to his deeds. Even after traveling in many pilgrimages for twelve years, that head did not separate from them. But as soon as he entered the border of Kashi, Brahmahatya left him and that skull also fell apart. The place where this incident took place...

...was called Kapalmochan-teerth.

Mahadev liked Kashi so much that he asked this holy puri from Vishnu for his regular residence. Since then Kashi became his abode.

According to Harivansh Purana, the Bharatvanshi king who settled Kashi was 'Kash'.

According to some scholars, Kashi is a city even before the Vedic period.

Being the oldest center of worship of Shiva, this belief seems to have originated; Because in general "Shivopasana" is considered to be of pre-vedic period.
🌺நான்.... அம்மா.... 🌺

குட்டைப் பாவாடையும் ரெட்டை ஜடையும் போட்டுத் துள்ளி விளையாடிய காலம். சின்ன வயது முதல் ஏனோ அப்பா, தம்பி, படிப்பு, விளையாட்டு.... நான்கு மட்டுமே உலகமென வளர்ந்தேன். உலகம் என்பதே அப்பாதான் அப்போது எனக்கு.


திருவிழா பார்க்கப் போனேன் அப்பா தோளில். திரும்பி வரும்வரை அதில் குதித்து ஆட்டம் போட்டது இன்றும் நினைவில் ஓடி வருகிறது.

அவர் போகும் இடமெல்லாம்... கோவில், பட்டிமன்றம், நூலகம், அரசியல் கூட்டம் என எல்லா இடத்திலும், ஒரு ஒற்றை விரல் பற்றி நானும் ஒட்டிக் கொண்டே போவேன்.


மடியில் உட்கார வைத்து, கதை சொல்லியபடி பிஞ்சு விரலில் மருதாணி இட்டுக் கொஞ்சுவார். அப்பாவின் முத்தத்துக்காகவே சமத்துக் குட்டியாய் இருப்பேன்....

"ஏந்தான் இப்படி இருக்கீங்களோ? நாளைக்கு ஆஃபீஸுல உங்க கையைப் பாக்கறவங்க என்ன நினைப்பாங்க?"

என அம்மா சத்தமாக ஒரு குரல் கொடுப்பாள்.


ஏனோ அவர் காதுகளுக்கு அது விழவே விழாது. இரு கை, கால்களிலும் மருதாணி வைத்து, தன் நெஞ்சில் படுக்க வைத்துத் தட்டுவார். அவரது மெல்லிய ரோமம் குறுகுறுக்கும்... அழுவேன்... ஓடிப்போய் சட்டை போட்டு வந்து, என்னை சாய்த்துக் கொள்ளும் அந்த மார்பு.


காலை எழுந்ததும், மருதாணியை அலம்பி, அதில் தேங்காய் எண்ணெய் வைத்து, என்னைக் குளிப்பாட்டி, தலைவாரிக் கட்டிக் கொஞ்சும் அப்பாவின் அந்த முரட்டு அரவணைப்புக்காகவே, அடிக்கடி மருதாணி கேட்டு அழுதது இன்றும் மறக்கவில்லை.

தம்பிக்கும் இதையெல்லாம் நான் செய்து மகிழ்வேன்.
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🩸 मोदी सरकार द्वारा Declassify की गई #NetajiSubhashChandraBose से जुड़ी फ़ाइलों से अंग्रेजों की एक ऐसी काली करतूत का पता चला जिससे आप यह अंदाज़ा लगा सकते हो की 18 August 1945 के बाद अपनी सार्वजनिक उपस्थिति भी नहीं दिखाने वाले नेताजी से “ब्रिटिश हुकूमत” कितना डरती थी !


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"क़दम क़दम बढ़ाये जा" नेताजी सुभाष चंद्र बोस की “आज़ाद हिंद फ़ौज” (INA-INDIAN NATIONAL ARMY) का Regimental Quick Marching गीत था॥ इस अमर गीत के Lyrics वंशीधर शुक्ला ने लिखे थे और INA के Band master राम सिंह ठाकुर द्वारा इस गीत को compose किया गया था॥#NetajiSubhashChandraBose


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इस गीत की लोकप्रियता अपने चरम पर थी ! British Raj में “Royal Indian Navy”, “Royal Indian Airforce”, “British Indian Army” के Soldiers भी INA के इस Marching Song से काफ़ी प्रभावित थे॥ अंग्रेज समझ गये की इस गीत से Soldiers और Civilians सब में विद्रोह की भावना बढ़ती जा रही है॥

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तब संगीत ग्रामोफ़ोन से सुनते थे, नेताजी की Declassify की गई FILES से पता चला कि अंग्रेजों ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद INA गीत 'कदम कदम बढ़ाए जा' को देशद्रोही माना था और कोलकत्ता स्थित ब्रिटिश ग्रामोफोन कंपनी को इसकी रिकॉर्डिंग पर प्रतिबंध लगाया था #NetajiSubhashChandraBose

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प्रतिबंध के बावजूद भी इस लोकप्रिय गीत के Records बॉम्बे(आज का मुंबई) में रिकॉर्डिंग होकर कोलकाता समित पूरे भारत में आग की तरह फैल रहे थे। यहाँ तक कि ब्रिटिश ग्रामोफोन कंपनी ने भारी Demand के चलते ब्रिटिश गवर्नमेंट को अपने लिए इस प्रतिबंध को हटा देने के लिए पत्र भी लिखा था॥
1️⃣ #KashmiriPandits के खिलाफ आतंकवाद का ये खूनी खेल शुरू हुआ था साल 1986-87 में, जब सलाहुद्दीन और यासीन मलिक जैसे आतंकवादियों ने J&K का चुनाव लड़ा॥

नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन की सरकार बनी लेकिन वहां हुकूमत चल रही थी आतंकवादियों और अलगाववादियों की. #KashmirExodus1990


2️⃣ चुनावों में हार से नाख़ुश यासीन मलिक का संगठन JKLF (Jammu Kashmir liberation front) जो “भारत से अलग” होना चाहता था उसने पाकिस्तान के साथ मिलकर घाटी में “आतंकी प्रवृत्ति को बढ़ाकर कश्मीरी पंडितों को कश्मीर घाटी से निकालने के षडयंत्र” के तहत अपने संगठन को विस्तृत करना शुरू किया॥


3️⃣
पाकिस्तान की मदद से JKLF ने अपने सदस्यों को POK मैं आतंकवाD की ट्रेनिंग दिलवाई,हथियार मुहैया करवाये JKLF ने कश्मीर घाटी के लोगों को भारत और कश्मीरी पंडितों के ख़िलाफ़ भड़काना शुरू किया, हालात यहाँ तक बिगाड़ दिए थे की JKLF के आतंकी घाटी की गलियों में AK-47 लेके घूमते थे!


4️⃣1988 अंत तक JKLF ने भारत से कश्मीर को आज़ाद कर ISLAM!C RULE (निज़ाम-E-मुस्तफ़ा) स्थापित करने के लिए अपनी आतंकी गतिविधियों को तेज कर दिया, कश्मीर घाटी में कश्मीरी पंडित Minority मे थे; जो कश्मीरी पंडित भारत के साथ रहने की बात करता था उसको को जान से मारने की धमकी दी जाने लगी॥

5️⃣ तत्कालीन पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने कश्मीर घाटी में जिहाD को बढ़ावा देने के लिए POK में सैकड़ों कश्मीर घाटी के उग्रवादियों को Training देकर आतंकी बनाया और हथियार मुहैया कराए गए॥ कश्मीरी पंडितों में डर फैला कर घाटी से निकालने के लिए TARGET करना शुरु हो चुका था॥
प्रश्न = वाल्मिकि रामायण कब,कहां और किस चीज पर लिखी गई थी और इतने समय तक सुरक्षित कैसे थी?


इस प्रश्न के लिए धन्यवाद। आपके इस प्रश्न का उत्तर हिन्दू धर्म के ही दो सबसे बड़े धर्मग्रंथों के समूह में छिपा हुआ है। हालांकि अधिकतर लोग उनसे परिचित नही है। आशा है कि उत्तर के समाप्त होते होते ना केवल आपकी शंका का समाधान हो जाएगा

बल्कि हम सभी हिन्दू धर्मग्रंथों के उन दो समूहों और व्यवस्था के विषय में भी जान जाएंगे। तो चलिए पहले आपकी शंका का समाधान ढूंढते हैं।

प्रश्न आपका उचित है कि कैसे वैदिक काल में इतने अधिक ज्ञान को संचित कर के रखा गया। उस समय तो कागज होते नही थे।

कागज से बहुत पहले शिलालेख और ताड़पत्र हुआ करते थे। जहां शिलालेख में सभी बातें पत्थर पर उकेर कर सुरक्षित रखी जाती थी वही ताड़पत्र वृक्षों की छाल और पत्तों से बनाया जाता था और उसे उसी प्रकार उपयोग में लाया जाता था जैसे आज कागज को लाया जाता है।

किंतु अगर हम महाभारत, रामायण और उससे भी प्राचीन वैदिक काल की बात करें तो उस समय तो शिलालेख और ताड़पत्र भी नही होते थे। फिर इतने ज्ञान को कैसे संचित रखा जाता था
आज के व्याख्यान में धर्मांतरण का वो मर्म जाना जो शायद हमें कभी पता ही नही चलता, अगर हमने इन विद्वान जन को ना सुना होता जैसे की धर्मांतरण सिर्फ धर्म परिवर्तन करना नही होता अपितु राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा को भी परिवर्तन करना होता है।


क्या कारण है कि हम हिंदू धर्मांतरण करते हैं अपितु कोई भी संप्रदाय हिंदू धर्म में परिवर्तित नहीं होता क्या कमज़ोरियां हैं हमारी जो हम इस दल दल में सहर्ष ही गिरना चाहते हैं !!

क्या हमारे निजी हित और जरूरतें इतनी अहम हैं की हम अपना धर्म अपना स्वाभिमान अपनी पहचान और सर्वोपरि राष्ट्र की सुरक्षा की भी अनदेखी कर देते हैं !!

क्या आज हम समझ पाते हैं गंभीरता कि हम अगर अपने धर्म को नहीं जानेंगे ना ही अध्ययन करेंगे तो इसके क्या दुष्परिणाम होंगे, कैसे हमारी भावी पीढ़ी को हमारी खामी भुगतनी पड़ेगी, क्यों हम ईश्वर को मानने वाले सनातनी, दूसरे धर्म के चमत्कार के झूठे प्रपंच में फंस जाते हैं !!

हमने जाना कि धर्मांतरण का जो वृक्ष हम देख रहे हैं आज के संदर्भ में, उसकी जड़ें इतिहास के किन अध्यायों में दर्ज है क्या वास्तव में जिन विदेशियों का हम महिमंडन करते हैं इतिहास की पुस्तकों में, वो सचमुच महान थे !!
संस्कार और धर्म:
#कलावे_को_कितने_बार_घुमाकर_बान्धना_चाहिए ।

हिंदू धर्म में कई रीति-रिवाज तथा मान्यताएं हैं।इन रीति-रिवाजों तथा मान्यताओं का सिर्फ धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक पक्ष भी है, जो वर्तमान समय में भी एकदम सटीक बैठता है।हिंदू धर्म में प्रत्येक धार्मिक कर्म यानि पूजा-पाठ,


यज्ञ,हवन आदि के पूर्व ब्राह्मण द्वारा यजमान के दाएं हाथ में कलावा/मौली (एक विशेष धार्मिक धागा) बांधी जाती है।
किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत करते समय या नई वस्तु खरीदने पर हम उसे कलावा/मौली बांधतेहै ताकि वह हमारे जीवन में शुभता प्रदान करे।कलावा/मौली कच्चे सूत के धागेसे बनाई जाती है।

यह लाल रंग, पीले रंग, या दो रंगों या पांच रंगों की होती है।इसे हाथ गले और कमर में बांधा जाता है।

शंकर भगवान के सिर पर चंद्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।कलावा/मौली बांधने की प्रथा तब से चली आ रही है जब दानवीर राजा बली की अमरता के लिए

वामन भगवान ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।शास्त्रों में भी इसका इस श्लोक के माध्यम से मिलता है

येन बद्धो बलीराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल।।

पूजन कर्म के समय हमारी कलाई पर लाल धागा बांधा जाता है। इसे रक्षासूत्र, कलेवा या मौली कहा जाता है।

ऐसी मान्यता है कि यह धागा बांधने के बाद पूजन कर्म पूर्ण होते हैं। इस मान्यता का सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि वैज्ञानिक पक्ष भी है।

प्रत्येक पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन में पूजा करवाने वाले हमारी कलाई पर मौली (एक धार्मिक धागा) बांधते हैं।