आज के व्याख्यान में धर्मांतरण का वो मर्म जाना जो शायद हमें कभी पता ही नही चलता, अगर हमने इन विद्वान जन को ना सुना होता जैसे की धर्मांतरण सिर्फ धर्म परिवर्तन करना नही होता अपितु राष्ट्र के प्रति अपनी निष्ठा को भी परिवर्तन करना होता है।
क्या कारण है कि हम हिंदू धर्मांतरण करते हैं अपितु कोई भी संप्रदाय हिंदू धर्म में परिवर्तित नहीं होता क्या कमज़ोरियां हैं हमारी जो हम इस दल दल में सहर्ष ही गिरना चाहते हैं !!
क्या हमारे निजी हित और जरूरतें इतनी अहम हैं की हम अपना धर्म अपना स्वाभिमान अपनी पहचान और सर्वोपरि राष्ट्र की सुरक्षा की भी अनदेखी कर देते हैं !!
क्या आज हम समझ पाते हैं गंभीरता कि हम अगर अपने धर्म को नहीं जानेंगे ना ही अध्ययन करेंगे तो इसके क्या दुष्परिणाम होंगे, कैसे हमारी भावी पीढ़ी को हमारी खामी भुगतनी पड़ेगी, क्यों हम ईश्वर को मानने वाले सनातनी, दूसरे धर्म के चमत्कार के झूठे प्रपंच में फंस जाते हैं !!
हमने जाना कि धर्मांतरण का जो वृक्ष हम देख रहे हैं आज के संदर्भ में, उसकी जड़ें इतिहास के किन अध्यायों में दर्ज है क्या वास्तव में जिन विदेशियों का हम महिमंडन करते हैं इतिहास की पुस्तकों में, वो सचमुच महान थे !!