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जब पूरी दुनिया विश्व में 2500 किग्रा के रॉकेट बना रही थी तब भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश था जो 250 किग्रा के क्रायोजेनिक रॉकेट बना रहा था और उसका श्रेय एकमात्र भारत के वैज्ञानिक को था वो हैं "Nambi Narayan".
एक थ्रेड पूरे Nambi मामले पर एवम् भारतीय वैज्ञानिकों की दशा पर।


शुरूआत होती है अक्टूबर 1994 से जब केरल के तिरूवनन्तपुरम् से दो मालदीव की लड़कियां मरियम राशिदा एवम् फौजिया हसन को गिरफ्तार किया जाता है जिनके पास से एक चित्र निकलता है जिसमें कुछ रॉकेट छपे होते हैं और वो सहज भाव में ही बता देतीं हैॆ कि वो ये चित्र इसरो से प्राप्त की हैं

व इसको उन्होंने पाकिस्तान को बेचा है। केरल पुलिस ने आनन फानन में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के डायरेक्टर नम्बी नारायण,डी शशिकुमार एवम् के चन्द्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया।
भारतीय मीडिया ने कुछ ही पलों में बिना सबूत के पुलिस की जानकारी के आधार पर ही नम्बी को भारत का गद्दार बता दिया।

जिस समय नम्बी की गिरफ्तारी हुयी उस समय वो अपने प्रोजेक्ट की समाप्ति के बेहद नजदीक थे और यदि ये प्रोजेक्ट समय पर समाप्त हो जाता तो आज जिस स्थान पर NASA है वहां पर ISRO होता क्योंकि NASA के पास इतने हल्के रॉकेट बनाने की क्षमता नहीं थी।
नम्बी ने स्वयं NASA का ऑफर ठुकराया था।

दिसम्बर 1994 में मामला सीबीआइ एवम् IB के पास आया तब तक Nambi को ढेरों मानसिक एवम् शारीरिक प्रताड़ना दी जा चुकीं थीॆ व उनका दोष सिर्फ इतना था कि वो देशहित में काम कर रहे थे और केरल पुलिस पर CIA का दवाब था।
शिखा सूत्र का प्राचीन विज्ञान

सिर के ऊपरी भाग को ब्रह्मांड कहा गया है और सामने के भाग को कपाल प्रदेश। कपाल प्रदेश का विस्तार ब्रह्मांड के आधे भाग तक है। दोनों की सीमा पर मुख्य मस्तिष्क की स्थिति समझनी चाहिए।


ब्रह्मांड का जो केन्द्रबिन्दु है, उसे ब्रह्मरंध्र कहते हैं। ब्रह्मरंध्र में सुई की नोंक के बराबर एक छिद्र है जो अति महत्वपूर्ण है। सारी अनुभूतियां, दैवी जगत् के विचार, ब्रह्मांड में क्रियाशक्ति और अनन्त शक्तियां इसी ब्रह्मरंध्र से प्रविष्ट होती हैं।

हिन्दू धर्म में इसी स्थान पर चोटी (शिखा) रखने का नियम है। ब्रह्मरंध्र से निष्कासित होने वाली ऊर्जा शिखा के माध्यम से प्रवाहित होती है ।

वास्तव में हमारी शिखा जहां एक ओर ऊर्जा को प्रवाहित करती है, वहीं दूसरी ओर उसे ग्रहण भी करती है।

वायुमंडल में बिखरी हुई असंख्य विचार तरंगें और भाव तरंगें शिखा के माध्यम से ही मनुष्य के मस्तिष्क में प्रविष्ट होती हैं। कहने की आवश्यकता नहीं, हमारा मस्तिष्क एक प्रकार से रिसीविंग और ब्रॉडकास्टिंग सेंटर का कार्य शिखारूपी एंटीना या एरियल के माध्यम से करता है।

मुख्य मस्तिष्क( सेरिब्रम) के बाद लघु

मस्तिष्क(सेरिबेलम) है और ब्रह्मरंध्र के ठीक नीचे अधो मस्तिष्क (मेडुला एबलोंगेटा) की स्थिति है जिसके साथ एक 'मेडुला' नामक अंडाकार पदार्थ संयुक्त है। वह मस्तिष्क के भीतर विद्यमान एक तरल पदार्थ में तैरता रहता है।
मूर्ति के हाथ मे जो डमरू देख रहे हो ना, वो पत्थर का है। ये तो कुछ भी नही है,डमरू पर जो रस्सी देख रहे हो ना, वह भी पत्थर की है। ओर तो ओर आप पत्थर की रस्सी के निचे उंगली भी डाल सकते हो इतनी जगह है।हुआ ना आश्चर्य।


अब जरा सोचिए बिना किसी तकनीक के क्या केवल छेनी और हथौड़ी से यह सब कैसे संभव है।
एक हल्की सी गलत चोट क्या पूरी मूर्ति को खराब नहीं कर सकती थी।
और अगर छेनी -हतोड़े से संभव है तो आज इतनी तकनीक के बावजूद भी इतनी सटीकता से कोई इसकी प्रतिलिपि क्यों नहीं बना पाता है।

ऐसे हजारों आश्चर्य है सनातन में लेकिन कुछ वामपंथी इतिहासकारों ने इनको आश्चर्य ही बनाकर रहने दिया किसी के सामने आने ही नहीं दिया और हमारी विडंबना देखिए कि हम बड़ी-बड़ी बातें करते हैं लेकिन हमें हमारे पूर्वजों द्वारा बनाई गई इन महान कलाकृतियों का ज्ञान भी नहीं है।

धन्य है हमारे वह पूर्वज जिन्होंने यह सब कुछ बनाया धन्य है हमारी सनातन संस्कृति।

केशव मन्दिर,कर्नाटक
!!! #कैलाश_मानसरोवर_रहस्य !!!

#भगवान_शंकर_के_निवास_स्थान कैलाश पर्वत के पास स्थित है कैलाश मानसरोवर। यह अद्भुत स्थान रहस्यों से भरा है। शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में #कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां की महिमा का गुणगान किया गया है।


#पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। #कैलाश_पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है।

आओ जानते हैं इसके 12 रहस्य।

#1_धरती_का_केंद्र:धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है,तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव।दोनोंके बीचोबीच स्थितहै हिमालय।हिमालय काकेंद्र है कैलाश पर्वत।वैज्ञानिकोंकेअनुसार यह धरती का केंद्रहै।कैलाशपर्वत दुनिया के4मुख्य धर्मों #हिन्दू_जैन_बौद्ध_और_सिख धर्मका केंद्र है

#2_अलौकिक_शक्ति_का_केंद्र : यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां #दसों_दिशाएं मिल जाती हैं

। रशिया के वैज्ञानिकों के अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।

#3_पिरामिडनुमा_क्यों_है_यह_पर्वत : कैलाश पर्वत एक विशालकाय पिरामिड है, जो 100 छोटे पिरामिडों का केंद्र है।
*POWER of OM (ॐ)*

*एक घडी, आधी घडी,*
*आधी में पुनि आध।*
*तुलसी चरचा राम की,*
*हरै कोटि अपराध।।*

1 घड़ी = 24 मिनट
1/2 घडी़ = 12 मिनट
1/4 घडी़ = 06 मिनट


*क्या ऐसा हो सकता है कि 6 मिनट में किसी साधन से करोडों विकार दूर हो सकते हैं।*

उत्तर है *हाँ हो सकते हैं*
वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि......

सिर्फ 6 मिनट *ॐ* का उच्चारण करने से सैकडौं रोग ठीक हो जाते हैं जो दवा से भी इतनी जल्दी ठीक नहीं होते.........

छः मिनट *ॐ* का उच्चारण करने से मस्तिष्क में विषेश वाइब्रेशन (कम्पन) होता है.... और ऑक्सीजन का प्रवाह पर्याप्त होने लगता है।

कई मस्तिष्क रोग दूर होते हैं.. स्ट्रेस और टेन्शन दूर होती है, स्मरण शक्ति बढती है..।

लगातार सुबह शाम 6 मिनट *ॐ* के तीन माह तक उच्चारण से रक्त संचार संतुलित होता है और रक्त में *ऑक्सीजन लेबल* बढता है।
*रक्त चाप, हृदय रोग, कोलस्ट्रोल* जैसे रोग ठीक हो जाते हैं...।

मात्र 2 सप्ताह दोनों समय *ॐ* के उच्चारण से *घबराहट, बेचैनी, भय, एंग्जाइटी* जैसे रोग दूर होते हैं।

कंठ में विशेष कंपन होता है *मांसपेशियों को शक्ति* मिलती है।

*थाइराइड,गले की सूजन दूर होती है और स्वर दोष दूर होने लगते हैं।
एक माह तक दिनमें तीन बार 6 मिनट तक *ॐ*के उच्चारण से *पाचन तन्त्र,लीवर,आँतों को शक्ति प्राप्त होती है,*और डाइजेशन सही होता है, सैकडौं*उदर रोग*दूर होते हैं
हमारे #सनातन धर्म में #तिलक को बहुत महत्त्व दिया गया है,
इसी कारण हमारे पूर्वज कभी बिना तिलक नहीं रहते थे इतना ही नहीं कई लोग तो बिना तिलक के रात्रि में सोते भी नहीं थे क्योंकि उनका यही मानना था की क्या पता मौत कब आ जाये और कब इस शरीर को छोड़कर यमलोक प्रस्थान करना पड़े।


सनातन धर्म में प्रचलित सभी #परम्परों के पीछे कोई न कोई कारण आपको अवश्य मिलेगा।तिलक लगाने के वैज्ञानिक तथ्य भी है जो लोग तिलक लगाते है उनमे क्रोध की भावना कम होती हैं तथा तिलक मस्तिष्क को ढंडा बनाये रखता है।हमने अपने बड़े बुजुर्गो की तस्वीरों को देखा होगा।


उनकी तस्वीर में वे सदैव मस्तक पर तिलक लगाया करते थे।आज हिन्दुओं के घर से तिलक लगाने की परम्परा लुप्त हो चुकी है । परंतु हिन्दू परंपरा के अनुसार ललाट (माथे) को सुना नहीं रखना चाहिए।किसी प्रकार का तिलक या टीका अवश्य लगाना चाहिए।

सभी विभिन्न तिलकों में एक नाम आता है , #गोपी चंदन।
वैष्णव तिलक गोपी-चन्दन से लगाया जाता है।इस तिलक को देखते ही #भगवान श्री कृष्ण का स्मरण होता है। यह तिलक मानव शरीर को शुद्ध कर बुरे प्रभाव से रक्षा भी करता है।


#गर्ग संहिता के अनुसार जो मनुष्य प्रतिदिन गोपी-चंदन का वैष्णव तिलक धारण करता है। उसे एक हजार #अश्वमेघ यज्ञों तथा राजसूय यज्ञों का फल प्राप्त होता है। गोपी-चंदन से वैष्णव तिलक धारण करने वाला पापी मनुष्य भी भगवान कृष्ण के धाम, गोलोक वृन्दावन को प्राप्त होता है।
रावण जब सीता माता के पास विवाह प्रस्ताव लेकर गया तो माता ने द्रुवा के एक टुकड़े को अपने और रावण के बीच रखा व कहा,'हे रावण!सूरज और किरण की तरह राम-सीता अभिन्न हैं।राम व लक्ष्मण की अनुपस्थिति में मेरा अपहरण कर तुमने कायरता का परिचय दिया व राक्षस जा‍ति के विनाश को आमंत्रित किया है।


तुम्हारा श्रीरामजी की शरण में जाना ही इस विनाश से बचने का एकमात्र उपाय है अन्यथा लंका का विनाश निश्चित है।'
सीता माता की इस बात से निराश रावण ने राम को लंका आकर सीता को मुक्त करने को दो माह की अवधि दी। इसके बाद रावण या तो सीता से विवाह करेगा या उसका अंत।

रावण ने सीता को हर तरह के प्रलोभन दिए।यदि वह उसकी पत्नी बन जाए तो वह अपनी सभी पत्नियों को उसकी दासी बना देगा और उसे लंका की राजरानी। लेकिन सीता माता रावण के किसी भी तरह के प्रलोभन में नहीं आईं। तब रावण ने सीता को जान से मारने की धमकी दी लेकिन यह धमकी भी काम नहीं कर पाई।


इसके बाद रावण के पास सीता माता की हां के इंतज़ार के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा क्योंकि ज़ोर-जबरदस्ती वो कर नहीं सकता था।
आखिर क्यों रावण सीता माता के साथ जबरदस्ती नहीं कर सकता था? आइए जानते हैं।

रावण के भाई कुबेर द्वारा निर्मित सोने की लंका अद्भुत,अगम्य,भव्य और दिव्य थी, जिसकी सुंदरता देखते ही बनती थी। उसी कुबेर के पुत्र नलकुबेर की होनेवाली पत्नी थी अप्सरा रंभा जिसके सौंदर्य पर रावण मोहित हो गया था।
एक बार जब विश्व-विजय करने के लिए रावण स्वर्गलोक पहुंचा तो उसे वहां...
Part 2/2: List of 139+ Temples demolished to build m∆sjids in #UttarPradesh (Rest of the districts)

The first part had 134+ Temples frm 22 districts!!

273+ Hindu, Jain & Buddhist #Temples were destroyed by INVADERS, in 43 districts of UP!

NEVER FORGET NEVER FORGIVE 🙏


XXIII #Jalaun District

1 Kalpi

i Chaurãsî Gumbad complex of tombs. Many temple sites.

ii D∆rgãh of Shãh Abdul Fath Alãi Quraishi (1449) Temple site

iii Darg∆h of Shãh Bãbû Hãjî Samad (1529) Temple site

iv DeoDhi or Jãmi M•sjid (1554) Temple site

2 Katra, Møsjid (1649) Temple site
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XXIV #Jaunpur District

1 Jaunpur

i Atãlã M°sjid (1408) Atala Devi Temple materials used

ii Daribã M∆sjid. Vijayachandra's Temple materials used

iii Jhãñjarî Masj!d. Jayachandra's Temple materials used

iv Lãl Darwãzã Måsjid. Temple materials from a Temple at Varanasi used

v Hammam Darwãzã Ma$jid (1567-68) Temple materials used

vi Ibrãhîm Bãrbak-kî-Masj!d inside the Fort (1360) Temple materials used

vii Jãmi Masj!d. Pãtãla Devî Temple site.

viii Akbarî Bridge on the Gomatî. Temple materials used

ix Khãlis Mukhlis or Chãr Angulî M°sjid. Temple site

x Khãn Jahãn-kî-M∆sjid (1364) Temple site

xi Rauzã of Shãh Fîruz. Temple site.

2 Shahganj, D∆rgãh of Shãh Hazrat Alî. Temple site.
पुराणों के अनुसार सात ऐसी पुरियों का निर्माण किया गया है, जहां इंसान को मुक्ति प्राप्त होती है। मोक्ष यानी कि मुक्ति, जो इंसान को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति देती है। इन मोक्ष दायिनी पुरियों में शरीर त्यागना मनुष्य जीवन के लिए सभी मूल्यवान वस्तुओं से ऊपर है।

#सप्तपुरियां

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1.) त्रेता युग से कलयुग तक अपनी पहचान बनाने वाले अयोध्या शहर को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है। इस पवित्र नगरी के पास सरयू नदी बहती है जहां भगवान श्रीराम ने अपना मानव रूप त्याग कर वैकुण्ठ लोक की ओर प्रस्थान किया था।

#सप्तपुरियां

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2.) पौराणिक कथा के अनुसार मथुरा को भगवान श्रीराम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न द्वारा खोजा गया था। यह नगरी श्राद्ध कर्म के लिए विशेष है। दूर-दूर से लोग यहां अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए आते हैं। मथुरा नगरी के पास यमुना नदी बहती है। वराह पुराण में कहा गया है कि इस नगरी में.

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जो लोग शुद्ध विचार से निवास करते हैं, वे मनुष्य के रूप में साक्षात देवता हैं।

3.) हरिद्वार दो शब्दों हरि + द्वार का मेल है। मां गंगा के किनारे बसा यह शहर दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। इसे पौराणिक व्याख्या में "मायापुरी" के नाम से भी पुकारा गया है।

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भोलेनाथ के जटा से निकली गंगा नदी इस शहर की पवित्रता को और भी बढ़ाती है। सदियों से लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए हरिद्वार के दर्शन करने आते हैं।

4.) काशी, इसे बनारस या वाराणसी भी कहा जाता है। इस नगरी को गंगा नदी के साथ अन्य दो नदियां वरुणा एवं असी नदी भी यहां मौजूद हैं।

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