SriramKannan77's Categories

SriramKannan77's Authors

Latest Saves

रामायण के हर 1000 श्लोक के बाद आने वाले पहले अक्षर से गायत्री मंत्र बनता हैl

आपने बचपन से सुना होगा, कि जब भी किसी समस्या के कारण मन शांति खोने लगे तो ‘गायत्री मंत्र’ का जप करने से मन को शांति मिलती है. बल्कि अधिकतर प्रार्थनाओं में भी गायत्री मंत्र का उच्चारण किया जाता है.


बड़े-बुर्जुगों द्वारा कहा जाता है कि इस मंत्र के रोजाना उच्चारण करने मात्र से ही, कई समस्याओं और विपदाओं का नाश होता है. आपने भी ध्यान दिया होगा कि वेदों और पुराण में कई मंत्र ऐसे हैं जिनके बारे में कोई शायद ही जानता हो या फिर किसी को याद हो.


लेकिन ‘गायत्री मंत्र’ के बारे में अधिकतर लोग जानते हैं. शास्त्रों के अनुसार ‘गायत्री मंत्र’ की उत्पत्ति ऋषि विश्वामित्र ने अपने कठोर तप से की थी. ऋगवेद में यह मंत्र संस्कृत में लिखा गया था.


इसलिए गायत्री मंत्र का उच्चारण बहुत आवश्यक माना जाता है. गायत्री मंत्र से जुड़ी सबसे खास बात ये है कि इस मंत्र के उच्चारण से, होने वाले स्वास्थ्य लाभ के बारे में न केवल भारत में कई धारणाएं हैं


बल्कि विदेशों में भी समूह में गायत्री मंत्र का उच्चारण करने के लिए सेमिनार का आयोजन किया जाता है. दक्षिण अमेरिका में गायत्री मंत्र पर रोजाना विशेष कार्यक्रम, वहां के मुख्य रेडियो स्टेशनों पर किया जाता है...
#प्राचीनहनुमानमंदिर
प्राचीन हनुमान मंदिर, महाभारत काल से बाल हनुमान को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। यह दिल्ली में पांडवों द्वारा स्थापित पांच मंदिरों में से एक माना जाता है।
दिल्ली का ऐतिहासिक नाम इंद्रप्रस्थ शहर है,


2
जो यमुना नदी के तट पर पांडवों द्वारा महाभारतकाल में बसाया गया था तथा तब पांडव इंद्रप्रस्थ और कौरव हस्तिनापुर पर राज्य करते थे।हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों में भीम को हनुमानजी का भाई माना जाता है।दोनों ही वायुपुत्र कहे जाते हैं और उनकी हनुमान जी पर असीम आस्था थी।


3
इसका जीर्णोद्धार दो बार कराया गया -
1540 - 1614 महाराजा मानसिंह प्रथम
1688 - 1743 जय सिंह द्वितीय
वर्तमान हनुमान मंदिर का स्वरूप सन 1724 में श्रद्धालुओं के सम्मुख आया जब जयपुर रियासत के महाराज जयसिंह ने इसका फिर से जीर्णोद्धार करवाया था।

4
इस मंदिर के इतिहास के संबंध में कहते है कि राजा जयसिंह मौजूदा हनुमान मंदिर परिसर में अपने किसी भवन का निर्माण करवा रहे थे। उस दौरान यहां पर स्वयंभू हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई थी। इसमें हनुमानजी दक्षिण दिशा की ओर देख रहे हैं। इसमें उनकी सिर्फ एक ही आंख दिखाई दे रही है।


5
अतः ये दक्षिणामुखी हनुमान जी भी कहलाते है।
यहाँ के महंत मंदिर की पिछली 33 पीढ़ियां से सेवा करते आ रहे हैं और इनका परिवार आमेर के राजा जयसिंह के आमंत्रण पर सन् 1724 में यहां आया था।
महंत मदन लाल शर्मा:
महंतजी की ही पहल पर हनुमान मंदिर में 1 अगस्त,1964 से
🌺एक संक्षिप्त,सुन्दर एवं सार्थक कथा🌺

बहुत पुरानी बात है,किसी कल्प में पृथ्वी के एक नगर में एक जुआरी रहता था।वो स्वभाव से ही नास्तिक था तथा वेदों व शास्त्रों की निंदा करता था।एक दिन उसने जुए में बहुत सारा धन जीत लिया था।


धन के मद में चूर वो उस रात पान, फूल,सुगंध लेकर नगर की सबसे महंगी और खूबसूरत वैश्या के पास जा रहा था। एक उजाड़ मार्ग पे उसे ठोकर लगी, उसका सिर एक पत्थर से टकरा गया और वो मूर्च्छित हो गया।

उस स्थान पर शिवलिंग था। मूर्छित होने पर उसके हाथ के फूल,सुगंध शिवलिंग पर अनजाने तरीके से अर्पित हो गए।वहीं पर उस जुआरी की मौत हो गई। मौत के बाद यमराज के दूत आये और उसे पाश में जकड़ कर यमपुर ले गए।


वहां चित्रगुप्त ने उसके कर्मों का लेखा-जोखा देखकर कहा कि इसने तो पाप ही पाप किए हैं,लेकिन मरते समय इसने जुए के पैसे से वेश्या के लिए खरीदे पुष्प,गंध अनजाने रूप से ‘शिवार्पण’ कर दिए।ये ही एकमात्र इसका पुण्य है। चित्रगुप्त की बात सुनकर यमराज ने उससे पूछा कि हे पापी,तू ही बता कि...


...पहले पाप का फल भोगेगा या पुण्य का।
जुआरी बोला की पाप के तो बहुत फल भोगने पड़ेंगे, पहले पुण्य का ही फल भोग लूं। तो उस एक पुण्य के बदले उसे दो घड़ी के लिए इन्द्र बनाया गया।
यमराज स्वर्ग पहुंचे और उन्होने दो घड़ी के लिए अपने पद से इन्द्र को त्यागपत्र देने को कहा।
श्री राम की माता कौशल्या का इकलौता मंदिर
#Thread
रायपुर से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर चंदखुरी गांव है। 126 तालाब वाले इस गांव में सात तालाबों से घिरे जलसेन तालाब के बीच प्राचीन द्वीप पर भगवान श्रीराम की माता कौशल्या की प्रतिमा स्थापित है और रामलला उनकी गोद में विराजमान हैं।


यहीं की थीं माता कौशल्या
स्थानीय लोगों की आस्था है कि चंदखुरी ही माता कौशल्या की जन्मस्थली है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि एक ही पत्थर में उभरी माता कौशल्या व भगवान श्रीराम की प्रतिमा गांव के जलसेन तालाब से ही प्राप्त हुई थी, जो आठवीं शताब्दी की है।


द्वीप पर स्थित कौशल्या माता का मंदिर हरियाली और मंदिरों से घिरा हुआ है। भगवान शिव और नंदी की विशाला प्रतिमा यहां स्थित है। द्वीप के द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। दशरथ जी का दरबार यहां लगा है। मन्नत का एक पेड़ भी यहां स्थित है। सुषेण वैद्य की समाधी है।


माता कौशल्या के पिता सुकौशल थे, जिन्हें स्थानीय निवासी भानुमंत राजा के नाम से जानते हैं। छत्तीसगढ़ को पहले कौशल प्रदेश के नाम से जाना जाता था। वहीं माता सुबाला/अमृतप्रभा थीं। रामचरित मानस व वाल्मिकी रामायण में भी कौशल प्रदेश का उल्लेख मिलता है।


मंदिर परिसर में ही सीताफल का एक पेड़ है, जहां पर्ची में नाम लिखकर उसे श्रीफल के संग बांधा जाता है। कहा जाता है कि ऐसा कर मांगी गई मन्नत पूरी होती है। असल में जहां पेड़ है, उस स्थान पर पहले नागराज की बड़ी बाम्बी हुआ करती थी और मान्यता है कि मन्नत नागराज ही पूरी करते हैं।
It seems this tweet of mine has triggered all the so called "liberal" feminists.

A thread by .@AskAnshul clearly explains several vulnerabilities of leaked pics on Telegram.

Almost daily CH sessions on abusing Hindu/Santani women are floated on Twitter.


Here are the advises given to us on this tweet:

1. Wear Burkha - Did I even say that? Posting pics on SM has nothing to do with what you wear.

2. "Aurat ki izzat chali jayegi" is filthy thinking. Santanis should fight & not get scared.

Great ideological advise.

Fight when?

It's like saying - learn to cope with an accident. Safe driving/following traffic rules are unnecessary.

RIP logic👏🏽👏🏽

Now they have started targeting/harassing me and my friend .@pahadanladki . Look at the SS of DMs we are getting.


The only man who had courage to continuously fight for us was .@Tushar_KN . And for that he was been called a Muzzie, and what not.

When .@OlhyanViir ji intervened, he was ridiculed badly.

Why were these men targeted? And look at the threats.


Look at the audacity of these so called Sanatanis, who are mocking and demeaning physical features of @Tushar_KN .

Is this what Sanatanis do? Ridicule someone's physical looks?

And all this after several having gained followers from his weekly #FF .👏🏽👏🏽

And this continues.....
#जयमाँझंडेवाली
राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवालान एक सिद्धपीठ है।
यह प्राचीन मंदिर अरावली पर्वत की श्रृंखलाओं में से एक श्रृंखला में स्थित है।
मंदिर का इतिहास करीब 100 साल पुराना है
माता झंडेवाली यहाँ माँ लक्ष्मी के स्वरूप में विद्यमान हैं जिनके एक तरफ मां काली हैं..1


2
और दूसरी तरफ मां सरस्वती हैं।
मंदिर के इतिहास की बात करें तो 100 साल से भी पहले दिल्ली के एक व्यापारी श्री बद्री भगत थे,जो धार्मिकवृत्ति के तथा वैष्णों माता के परम भक्त थे।
बद्री दास जी इस जगह नियमित रूप से सैर करने आते थे तथा यही पर ध्यान में लीन हुआ करते थे।


3
एक दिन जब बद्री दास मां भगवती की साधना में लीन थे तो उन्हें अनुभूति हुई कि यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो कि जमीन में धंसा हुआ है।
कुछ समय बाद उन्हें फिर सपने में वह मंदिर दिखाई दिया।
बद्री दास जी ने वहां जमीन खरीद कर, खुदाई आरम्भ करवाई।
थोड़ी ही खुदाई के पश्चात्‌ मंदिर के..


4
अवशेष मिलने प्रारम्भ हो गए। इसके पश्चात्‌ खुदाई का कार्य तेज करवा दिया गया। खुदाई करवाते समय उन्हें मंदिर के शिखर पर झंडा दिखा, और उसके बाद खुदाई में माँ की मूर्ति प्राप्त हुई। मगर खुदाई में माँ के हाथ खंडित हो गए।
मूल मूर्ति के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान


5
ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया गया और खंडित हाथो को चांदी के हाथ पिरोह दिए गए।
दूसरी चट्टान की खुदाई में शिवलिंग दिखाई पड़ा, मगर खंडित ना हो इस भय से उसे वही रहने दिया गया, आज भी वह शिवलिंग मंदिर की गुफा में स्थित है।
जिस स्थान पर माता की मूर्ति मिली थी उसी के ठीक...
अष्टभुजीदेवी- श्री कृष्ण की बहन 🙏🙏
#Thread
द्वापर युग से जुड़ी हुई यह अष्टभुजा मां भगवान कृष्ण की बहन है। श्रीमद्भागवत पुराण की कथा अनुसार पापी कंस ने अपनी मृत्यु के डर से अपनी बहन देवकी को पति सहित कारागार में कैद कर लिया था.


अपने विनाश के भय से वह देवकी की कोख से जन्म लेने वाले हर बच्चे को वध करता गया। देवकी के आठवें गर्भ से जन्में श्रीकृष्ण को वसुदेवजी ने कंस से बचाने के लिए रातोंरात यमुना नदी को पार गोकुल में नन्दजी के घर पहुंचा दिया था


तथा वहां यशोदा के गर्भ से पुत्री के रूप में जन्मीं भगवान की शक्ति योगमाया को चुपचाप वे मथुरा के जेल में ले आए थे। बाद में जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के जन्म का समाचार मिला तो वह कारागार में पहुंचा।


उसने उस नवजात कन्या को पत्थर पर पटककर जैसे ही मारना चाहा, वह कन्या अचानक कंस के हाथों से छूटकर आकाश में पहुंच गई और उसने अपना दिव्य स्वरूप प्रदर्शित कर कंस के वध की भविष्यवाणी की और अंत में वह भगवती विन्ध्याचल वापस लौट गई और अष्टभुजी देवी के रूप मे स्थापित हुई।


यह विन्ध्यवासिनी देवी को समर्पित मन्दिर से तीन किमी की दूरी पर स्थित है। मन्दिर चमत्कारिक पहाड़ियों की पृष्ठभूमि में स्थित है और अपने शांत और सुन्दर दृश्यों के कारण भक्तों के साथ-साथ पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय है।
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म 508BCE में केरल के कालड़ी गांव में हुआ था।उनके माता आर्याम्बा और पिता शिव गुरु उनको शंकर नाम से पुकारते थे। शंकर अपने माता पिता के एकलौते संतान थे। उनके पिताजी की मृत्यु बचपन में ही हो गई थी।


बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा के धनि शंकर के अंदर अद्भुत तर्क शक्ति तथा स्मरण शक्ति भी। मात्र आठ साल की उम्र में शंकर ने चारो वेदो को कंठस्थ कर लिया था। 12 वर्ष की उम्र में सभी उपनिषद दर्शन में महारथ हासिल कर लिए थे और 16 वर्ष की उम्र में ब्रह्मसूत्र भाष्य की रचना की थी।

आदि गुरु शंकराचार्य ने पुरे भारत की यात्रा की तथा सनातन धर्म को एक सूत्र में पिरोने के लिए चार दिशा में चार मठों की स्थापना की। पश्चिम दिशा के द्वारका में शारदामठ की स्थापना की। उत्तर दिशा में आदि गुरु शंकराचार्य ने बद्रिकाश्रम में ज्योतिर्मठ की स्थापना की।


पूर्व दिशा में उन्होंने जगन्नाथपुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना की।उन्होंने दक्षिण दिशा में श्रृंगेरी मठ की स्थापना की।इन सभी मठो में आज भी शंकराचार्य के पद पर सुपात्र को बैठाया जाता है लेकिन जो विलक्षण ज्ञान आदि शंकराचार्य का था आज तक किसी भी मठ के किसी शंकराचार्य का नहीं हुआ हैं।

मठों में आदि गुरु शंकराचार्य से लेकर अभी तक जितने भी गुरु शिष्य हुए, उनका इतिहास सुरक्षित है।
8 वर्ष की अल्पायु में ही शंकर ने गृहस्थ जीवन त्याग कर सन्यास और तप का मार्ग अपनाया। कई महिनों तक वह गुरु की खोज में जंगलों,पर्वतों और गुफाओं में भटकता रहा। शंकर ने गुरु की खोज में...
भगवान अपने भक्तों की यश वृद्धि करने के लिए अनेक प्रकार की लीलाएं करते हैं।इस तरह के अनेकों उदाहरण आपको हमारे पुराणों में मिल जाएंगे।ऐसी ही एक भक्त थी सती अनुसुइया जिसकी कथा हम आज सुनेंगे।
त्रिदेवियां माताएं लक्ष्मी,पार्वती और सरस्वती सोचती थीं कि उनसे बड़ी पतिव्रताएं कोई नहीं ।


एक बार त्रिदेवों ने त्रिदेवियों का ये भ्रम तोड़ने का और साथ ही अपनी परम भक्त अनुसुइया का मान बढ़ाने का सोचा।
इसी कार्य को संपन्न करने के लिए भगवान नारायण ने देवर्षि नारद के मन में जिज्ञासा उत्पन्न की। इसके फलस्वरूप वे लक्ष्मी जी के पास पहुंचे। लक्ष्मी माता देवर्षि को देख...

...बड़ी प्रसन्न हुईं और उनसे कहा,"देवर्षि! आप बड़े दिनो के बाद आए हैं।कहिए कैसे हैं?" नारद जी बोले,"माता! क्या बताऊँ? कुछ बताते नहीं बन रहा।अब की बार मैं घूमता हुआ चित्रकूट की ओर चला गया था।वहां महर्षि अत्रि के आश्रम जाने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। माता! मैं तो महर्षि अत्रि ...


..जी की पत्नी माता अनुसुइया के दर्शन करके कृतार्थ हो गया।तीनों लोकों में उनके समान पवित्र व पतिव्रता स्त्री कोई नहीं है।"
माता अनुसुइया का यही गुणगान देवर्षि नारद ने जाकर माता पार्वती और माता सरस्वती से भी किया।ये सुनकर त्रिदेवियों ने जिज्ञासावश अनुसुइया की परीक्षा लेने की सोची।


तब त्रिदेवियों ने अपने पतियों-ब्रह्मा,विष्णु और महेश से अनुसुइया के सतीत्व की परीक्षा लेने का हठ किया।त्रिदेवों ने बहुत समझाने की कोशिश की परंतु अपनी पत्नियों के हठ के कारण अन्ततः वे अनुसुइया की परीक्षा लेने को तैयार हो गए।

तीनों देव साधुवेष धारण कर महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे।