Let's talk about #Bhakti, #Vairagya, #Bhog and #Sanyaas -

Wisdom requires knowledge, body requires renunciation, mind requires dispassion and soul requires devotion.
"Jiveer Swarupe Hoy Nitya Krishna Das!" 🙏🏻

These four departments have been arranged by #Shrimad_Bhagwat.

Now it is necessary to reconcile them. The devotion will remain on the soul. If you keep devotion on your body, you will become pompous.
Knowledge will remain on the intellect, if you give place to knowledge somewhere other than the intellect, then that philosophy...
...will not be displayed. As everyone's seat is reserved.

If you want to give a seat to devotion, then give the seat of your soul, if you want to give a seat to dispassion, then give it to the mind.
Quietness sits on the couch of the mind, dispassion does not...
...sit on the couch of the body. I know many people who have made vairaag sit on the couch of the body and have luxuries on the mind.

Surprise happens when a person sitting on a golden throne says – "this world is Maya, this whole world is Maya."
Leaving a four-bedroom house, now the ashram of four hundred rooms is being maintained?

Don't mind my words. Those who have become are the best, I am talking about those who have to be.

The problem arose when the first problem was a four-room house and...
...how to feed five people with bread (Roti)? And now the problem is, how to make an ashram of four hundred rooms and store for two hundred and fifty people? So the system didn't change. There it is only.

"Sanyas is not the name of changing the system,...
...it is the name of changing the stage." This is the condition.

If there is any greatest sannyasi in the world at that time, then it is "Meera Baisaa" who lives in the palace of Mewar. Is she a lesser monk?
There is a sannyasi. This is his enthusiasm. Seeing...
...the sad world as a sannyasi Buddha, renunciation from sadness is the journey of Buddha, but renunciation from luxury is the journey of consciousness.

Sannyas is the rise of luxury, says Gauranga Mahaprabhu..."Anyone will leave after being sad."
Bhagwat sets this alignment. Never mind.

Kaviraj writes in 'Chaitanyacharitamrit' - "Be unattached, do subject breaking". The subject which has been achieved is under your destiny, has come, so eat it simply by being detached. This is its basis.
Give space to your mind. It would like to dominate the body too much. Keeping this in mind, when dispassion comes, it will first dominate the body, but when dispassion comes in 'Sri Chaitanya Mahaprabhu, he does not allow it to dominate the body, because when dispassion rises,...
he does not throw the 'Mala' but wears it around the neck of Vishnupriya. They don't throw 'besar' they apply it on Vishnupriya's head.

You have to cross the circumference of the body. Only then will you find it. This is God's vision. I don't know how many knows.

Shree Radhe!🙏🏻

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#समुद्र_मंथन से प्राप्त #चौदह_रत्नों का #रहस्य :- (First Part)
यह वह समय था, जब देवगण पृथ्वी पर रहते थे। पृथ्वी पर वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। कार्य था पृथ्वी का निर्माण करना तथा उसको रहने हेतु उपयुक्त बनाना और पृथ्वी पर मानव सहित अन्य प्रजातियों (जीवों) का विस्तार करना।

देवताओं के साथ यहाँ दैत्य भी निवास करते थे। तब पृथ्वी मात्र एक द्वीप ही थी, अर्थात पृथ्वी का एक ही भाग जल से बाहर निकला हुआ था। यह भी बहुत छोटा-सा भाग था। जल के बीचो बीच था मेरू पर्वत।

पृथ्वी के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के...

जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी इष्ट ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश ने लीला रची और उन्होंने देवगण तथा दैत्यगण की शक्त्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। समुद्र मंथन कराने के लिए सर्वप्रथम कारण निर्मित किया गया।

ऋषि दुर्वासा ने अपना अपमान होने के कारण...

देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी ) से हीन हो जाने का शाप दे दिया।

भगवान श्री हरि विष्णु ने इंद्र को शाप-मुक्त्ति के लिए दैत्यों के साथ 'समुद्र मंथन' के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। इस तरह हुआ समुद्र मंथन।

यह समुद्र था क्षीर सागर जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं।

जब देवताओं तथा दैत्यों ने समुद्र मंथन आरंभ किया, तब भगवान विष्णु ने कच्छप बनकर मंथन में भाग लिया।

वे समुद्र के बीचो बीच में स्थिर हो गये और उनके ऊपर रखा गया मंदराचल पर्वत। फिर वासुकी नाग को रस्सी बनाकर एक ओर से देवता और दूसरी ओर से दैत्यों ने समुद्र का मंथन करना प्रारंभ कर दिया।
😂😂 @garimaasinghh01 बात तो बहुत सरल है, 'और थोड़ा नहीं, पूर्ण रूप से धर्म से जुड़ी है'।

मुझे ये तो नहीं पता कि ये प्रश्न जिज्ञासा वश था, या so called secular & liberals की तरह सिर्फ़ हिन्दू धर्म पर कटाक्ष था... लेकिन मैं आपको इसका सटीक और शास्त्रोचित उत्तर अवश्य दूंगी।


माता लक्ष्मी को ही सदैव भगवान विष्णु के पैर दबाते हुये क्यूँ देखा है, या दिखाया जाता है?

"क्यूँ कि, माता लक्ष्मी को धन, ऐश्वर्य एवं भौतिक सुखों का कारक माना जाता है, और श्री हरिः विष्णु को परम पिता परमेश्वर, जगत कर्त्ता। अर्थात जो समस्त जगत का रचयता है, उसके चरणों में लक्ष्मी...

भी दासी है।" ये 'दर्शन' है।

दर्शन तो पता होगा आपको? जिस पर पूरी दुनियाँ सिर्फ़ अपनी अपनी खोज में भटक रही है, और कुछ विरले महापुरुषों ने इस पर अपना अद्भुत ज्ञान भी दिया है। जी हाँ, वही दर्शन।

तो दर्शन कहता है, कि जीव अर्थात आत्मा 33 करोड़ योनियों में विचरण करती हुयी...

33 कोटि (प्रकार) के देवी-देवताओं का पूजन करती हुयी अनेक सम्प्रदायों (आज-कल तो नये-नये धर्म भी रोज़ जन्म लेते हैं।) में अपने-अपने वैचारिक मतों का पालन करती हुयी, विभिन्न प्रकार के कर्म करती है और उन्हीं कर्म फलों को भोगते हुये अनंत काल तक भटकती रहती है।

मनुष्य योनि सर्वश्रेष्ठ कही जाती है, क्यूँ कि उसके पास ज्ञान को जागृत करने का अनुपन वरदान है जो अन्य जीवों के पास नहीं है। (वैसे ज्ञान और मष्तिष्क अलग अलग होता है।) और मष्तिष्क सबके पास होता है।

अब थोड़ा शास्त्रार्थ हो जाये -
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि.....
आप सभी ने सोरहा, सौरठा और बधाई के बारे में सुना या पढ़ा होगा? बृज क्षेत्र में बच्चे के जन्मोत्सव के समय बधाईयाँ बजाते हैं, गाते हैं। ऐसी ही एक बधाई-सोरहा मैं आपको बताती हूँ, आप भी गा सकते हो -

श्रीराम जन्मोत्सव बधाई 🙏🏻
राजा जू के आँगने री बधाइया बाजै।
पुत्र जन्म उत्सव अति आनंद,


आढ़यो बहुती भागने री।
छठी दिवस कुल रीति कीन्ह सब,
रात दिवस लव लागने री।
विविध बाजने बजत मधुर मधु,
सोहिल सुखकर रागने री।
गायक गुनी बिदूषक निज निज,
करहिं कला कल पागने री।
नचहिं अपसरा नारि नगर की,
बीती रजनी जागने री।
भूमि अकाश अनन्द अथाही,
देव मुनी नर नागने री।


पुष्प-इन-घन वर्षत सबहीं,
हर्षण हर्षित मागने री।।

आप सभी श्री राम-जन्म के बधाई महोत्सव की अनन्त शुभकामनाएँ। 🙏🏻😊

#रामनवमी_की_हार्दिक_शुभकामनाएं
#जयश्रीराम #रामनवमी२०२२

जय श्री राम! 🙌🏻💐
#कर्मफल तो भोगने ही पड़ेंगे, इस जन्म या अगले जन्म :

एक राजा बड़ा धर्मात्मा, न्यायकारी और ईश्वर का भक्त था। उसने ठाकुर जी का मंदिर बनवाया और एक ब्राह्मण को उसका पुजारी नियुक्त किया। वह ब्राह्मण बड़ा सदाचारी, धर्मात्मा और संतोषी था।


वह राजा से कभी कोई याचना नहीं करता था, राजा भी उसके स्वभाव से बहुत प्रसन्न था। उसे राजा के मंदिर में पूजा करते हुए बीस वर्ष बीत गये। उसने कभी भी राजा से किसी प्रकार का कोई प्रश्न नहीं किया।

राजा के यहाँ एक लड़का पैदा हुआ था। राजा ने उसे पढ़ा लिखाकर...

विद्वान बनाया और बड़ा होने पर उसकी शादी एक सुंदर राजकन्या के साथ करा दी। शादी करके जिस दिन राजकन्या को अपने राजमहल में लाये उस रात्रि में राजकुमारी को नींद न आयी।

वह इधर-उधर घूमने लगी जब अपने पति के पलंग के पास आयी तो क्या देखती है कि हीरे जवाहरात जड़ित...

मूठेवाली एक तलवार पड़ी है।

जब उस राजकन्या ने देखने के लिए वह तलवार म्यान में से बाहर निकाली, तब तीक्ष्ण धारवाली और बिजली के समान प्रकाशवाली तलवार देखकर वह डर गयी व डर के मारे उसके हाथ से तलवार गिर पड़ी और राजकुमार की गर्दन पर जा लगी।

राजकुमार का सिर कट गया और वह मर गया।

राजकन्या पति के मरने का बहुत शोक करने लगी। उसने इसगवार से प्रार्थना की कि, 'हे प्रभु! मुझसे अचानक यह पाप कैसे हो गया? पति की मृत्यु मेरे ही हाथों हो गयी। आप तो जानते ही हैं, परंतु सभा में मैं सत्य न कहूँगी क्योंकि...
विज्ञप्ति जारी (आवश्यक सूचना) :

-जोशीमठ, चमोली
(आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तदनुसार दिनांक 5 अक्टूबर 2021)

ज्योतिर्मठ में आयोजित होगा शारदीय नवरात्रि महोत्सव :- आगामी 7 अक्टूबर से पूरे देश में शारदीय नवरात्रि में शक्ति उपासना का क्रम शुरू हो जाएगा।

चतुराम्नाय शांकर पीठ में अन्यतम ज्योतिर्मठ जिसे 'श्रीमठ' भी कहा जाता है।

इस शक्ति क्षेत्र में विविध क्रम से साधक अपनी - अपनी 'शक्ति' उपासना और आराधना सम्पन्न करते हैं।

उत्तर भारत की आध्यात्मिक राजधानी 'ज्योतिर्मठ' जो कि उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित है।

वहां पर स्थापित तोटकाचार्य गुफा ज्योतिष्पीठ परिसर में प्रतिवर्ष की भांति इस बार भी अखिलकोटिब्रहाण्ड नायिका राजराजेश्वरी त्रिपुरसुन्दरी माता जी की भव्य आराधना कार्यक्रम सम्पन्न होगा।

ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने...

भगवती के श्रृंगार के लिए रजत मुकुट और ६४ योगिनी देवियों के लिए विशेष वस्त्र और श्रृंगार सामग्री प्रेषित की है।
शारदीय नवरात्रि के अवसर पर देवी जी के प्रांगण में सविधि कलशस्थापन कर प्रतिदिन माता जी की विशेष आराधना, महाश्रृंगार के साथ ही योगिनियों की पूजा का क्रम भी सम्पन्न होगा।

उपरोक्त सभी कार्यक्रम शंकराचार्य जी महाराज के प्रतिनिधि पूज्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती जी महाराज के कुशल मार्गदर्शन व ब्रह्मचारी श्रवणानन्द जी एवं ब्रह्मचारी मुकुन्दानन्द जी के सान्निध्य में सम्पन्न होगा।

मुख्य यजमान के रूप में भगवती ने इस सेवा का अवसर...

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