हिमालय पर्वत की एक बड़ी पवित्र गुफा थी।उस गुफा के निकट ही गंगा जी बहती थी।एक बार देवर्षि नारद विचरण करते हुए वहां आ पहुंचे।वह परम पवित्र गुफा नारद जी को अत्यंत सुहावनी लगी।वहां का मनोरम प्राकृतिक दृश्य,पर्वत,नदी और वन देख उनके हृदय में श्रीहरि विष्णु की भक्ति अत्यंत बलवती हो उठी।

और देवर्षि नारद वहीं बैठकर तपस्या में लीन हो गए।इन्द्र नारद की तपस्या से घबरा गए।उन्हें हमेशा की तरह अपना सिंहासन व स्वर्ग खोने का डर सताने लगा।इसलिए इन्द्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को उनके पास भेज दिया।वहां पहुंच कामदेव ने अपनी माया से वसंतऋतु को उत्पन्न कर दिया।
पेड़ और पौधों पर रंग बिरंगे फूल खिल गए और कोयलें कूकने लगी,पक्षी चहकने लगे।शीतल,मंद,सुगंधित और सुहावनी हवा चलने लगी।रंभा आदि अप्सराएं नाचने लगीं ।किन्तु कामदेव की किसी भी माया का नारद पे कोई प्रभाव नहीं पड़ा।तब कामदेव को डर सताने लगा कि कहीं नारद क्रोध में आकर मुझे श्राप न देदें।
जैसे ही नारद ने अपनी आंखें खोली, उसी क्षण कामदेव ने उनसे क्षमा मांगी।नारद मुनि को तनिक भी क्रोध नहीं आया और उन्होने शीघ्र ही कामदेव को क्षमा कर दिया।कामदेव प्रसन्न होकर वहां से चले गए।कामदेव के चले जाने पर देवर्षि के मन में अहंकार आ गया कि मैने कामदेव को हरा दिया।
नारद फिर कैलाश जा पहुंचे और शिवजी को अपनी विजयगाथा सुनाई।शिव समझ गए कि नारद अहंकारी हो गए हैं और अगर ये बात विष्णु जी जान गए तो नारद के लिए अच्छा नहीं होगा।ये सोचकर शिवजी ने नारद को भगवन विष्णु को ये बात बताने के लीए मना किया। परंतु नारद जी को ये बात उचित नहीं लगी।
उन्होनें सोचा कि मैने कामदेव को हराया है और इतनी बड़ी जीत का उल्लेख भी मैं किसी के साथ न करूं! ये सोच नारद कैलाश से क्षीरसागार की ओर चल पड़े। वहां पहुंचते ही नारद ने अपनी कामदेव पर विजय की गाथा भगवान विष्णु को भी सुना दी।विष्णु जी समझ गए कि मेरा प्रिय भक्त अहंकार से घिर चुका है ।
विष्णु जी ने सोचा कि मुझे नारद का घमंड दूर करने के लिए कोई उपाय तो करना होगा।विष्णु जी से विदा लेते हुए जब नारद चले तो अपनी माया से नारद के रस्ते में विष्णु जी ने एक बड़ा ही भव्य व सुन्दर नगर बना दिया।
उस नगर में शीलनिधि नाम का वैभवशाली राजा रहता था।उस राजा की विश्वमोहिनी नाम...
...की एक अत्यंत सुन्दर और भाग्यशाली बेटी थी जिसके रूप को देख लक्ष्मी जी भी मोहित हो जाएं।शीलनिधि राजा अपनी बेटी का स्वयंवर कराने जा रहे थे इसलिए दूर-दूर से कितने ही राजा नगर में आए हुए थे।नारद जी भी राजा से मिलने उनके राजमहल पहुंचे।राजा ने उनका पूजन कर उन्हें सिंहासन पे बैठाया।
फिर उनसे अपनी कन्या की हस्तरेखा देख कर उसके गुण-दोष बताने को कहा।विश्वमोहिनी के रूप को देख नारद मुनि वैराग्य भूल गए और उसे देखते ही रह गए।उसकी हस्तरेखा बता रही थी कि उस कन्या से जो विवाह करेगा,वह अमर हो जाएगा, उसे संसार में कोई भी जीत नहीं सकेगा और वह समस्त संसार पे राज करेगा।
परंतु ये बातें नारद मुनि ने राजा को नहीं बताई।राजा को उन्होने कुछ और बातें अपने मन से बनाकर बता दी। नारद जी के मन में अब अहंकार के साथ लोभ भी घर कर गया।वे सोचने लगे कि कुछ ऐसा उपाय किया जाए कि ये कन्या मुझसे ही विवाह करे।ऐसा सोचकर नारद ने श्री हरि को याद किया और भगवान विष्णु...
...उनके सामने प्रकट हो गए।नारद जी ने अपने दिलकी बात प्रभु को बताते हुए कहा,'हे नाथ!आप मुझे बहुत ही सुन्दर रूप प्रदान करें ताकि वो कन्या अपने स्वयंवर में केवल मुझे ही पसंद करे और मेरा उससे विवाह हो जाए।'ये सुन श्रीहरि बोले,'हे मुनिवर!मैं अवश्य ही वो करूंगा जिसमें तुम्हारी भलाई हो।
यह कहकर भगवान विष्णु ने तुरंत ही नारद को एक बन्दर का रूप दे दिया और कहा,'जाओ करलो अपनी मुराद पूरी।'नारद बड़े प्रसन्न हुए क्योंकि उन्हें लगा की प्रभु ने उन्हें बहुत ही सुन्दर रूप प्रदान किया है।वहां पर ही छुपे हुए शिवजी के दो गणों के सामने ही ये सब घटनाक्रम चल रहा था।
देवर्षि नारद शीघ्र ही विश्वमोहिनी के स्वयंवर पहुंचे और शिवजी के वे दो गण भी ब्राह्मण वेष धर वहां पहुंच गए।वे दोनो नारद को सुनाकर कहने लगे कि भगवान ने इन्हें इतना सुन्दर रूप दिया है कि राजकुमारी सिर्फ इन पर ही रिझेगी।उनकी बातें सुन नारद के मन में लड्डू फूट रहे थे।
स्वयं प्रभु श्रीहरि भी एक राजा का वेष धर वहां आगए।स्वयंवर शुरु हुआ और विश्वमोहिनी ने नारद की तरफ देखा भी नहीं।उसने जाकर सबसे सुन्दर राजा रुपी विष्णु के गले में वरमाला डाल दी।ये देख नारद अपना आपा खोबैठे तब शिवजी के गणों ने ताना कसते हुए उनसे कहा,'जरा दर्पण में अपना मुंह तो देखो।'
देवर्षि ने जब अपना मुंह दर्पण में देखा तो अपनी कुरूपता देख उनके क्रोध का ठिकाना नहीं रहा। क्रोधित हो उन्होने सबसे पहले उन शिवगणो को राक्षस हो जाने का शाप दे दिया।तत्पश्चात जब उन्होने दोबारा अपना मुंह पानी में देखा तो उन्हे अपना असली रूप वापस मिल चुका था।
श्रीहरि के ऊपर उन्हें बड़ा क्रोध आ रहा था क्योंकि उनकी वजह से ही नारद की इतनी जग हसाई हुई।भगवान विष्णु से मिलने के लिए नारद जी चले तो रास्ते में ही उन्हे प्रभु के दर्शन हो गए और उनके साथ देवी लक्ष्मी और विश्वमोहिनी भी थीं। उन्हें देखते ही नारद उनपे बरस पड़े।
नारद ने क्रोध में उनसे कहा,'आप किसी दूसरे की खुशी देख ही नहीं सकते।आपमें ईर्ष्या और कपट भरा पड़ा है।समुद्र मंथन के समय आपने भगवन शिव को विष दिया और राक्षसों को मदिरा पिला दी जबकि आपने लक्ष्मी जी और कौस्तुभ मणि को स्वयं के लिए ले लिया।आप बड़े धोखेबाज और कपटी हो।
आपने जो मेरे साथ किया उसका फल अवश्य पाओगे।आपने मनुष्य रूप धारण करके विश्वमोहिनी को पाया है, इसलिए मैं आपको श्राप देता हूं कि आपको मनुष्य योनि में जन्म लेना होगा।आपने मुझे स्त्री से दूर किया है इसलिए आपको भी स्त्री से दूरी का दुख सहना पड़ेगा और आपने मुझे वानर का रूप दिया इसलिए...
...आपको बंदरों से ही मदद लेनी होगी'।नारद के श्राप को श्री विष्णु ने पूरी तरह स्वीकार कर लिया और तब नारद पर से उन्होनें अपनी माया को हटा लिया। माया हटते ही नारद विष्णु जी को दिए गए अपने श्राप के कारण विलाप करने लगे किन्तु दिया गया श्राप वापस नहीं हो सकता था इसलिए श्री विष्णु...
...को श्रीराम के रूप में मनुष्य बनकर धरती पे अवतरित होना पड़ा।शिवजी के दोनो गण भी नारद के चरणों में गिरकर कहने लगे,'हे मुनिराज!हमदोनो शिवगण हैं।आपका मजाक उड़ाने के कारण हमें आपसे श्राप मिल चुका है।कृपा कर हमें भी अपने श्रापसे मुक्त करें।'नारद बोले कि मेरा श्राप वापस नहीं हो सकता।
इसलिए तुम दोनो रावण और कुम्भकर्ण के रूप में महान ऐश्वर्यशाली बलवान तथा तेजवान राक्षस बनोगे और अपनी भुजाओं के बल से पूरे विश्व पर विजय प्राप्त करोगे।उसी समय भगवान विष्णु राम के रूप में अवतरित होंगें। युद्ध में तुम दोनो उनके हाथों मारे जाओगे और तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी ।
तब श्री विष्णु ने नारद को बताया कि उन्होने ये माया क्यों रचाई थी। उन्होने कहा कि नारद तुम्हारे अन्दर अहंकार और लोभ के बीज रोपित हो चुके थे और इन्हीं से तुम्हें मुक्ति दिलाने के कारण मुझे ये माया करनी पड़ी।मेरे हृदय में हमेशा तुम्हरा हित ही होता है।
ये सुनकर देवर्षि नारद और भी दुखी हो गए और विलाप करते हुए अपने अराध्य श्री हरि के चरणों में गिर पड़े। भगवान विष्णु ने उन्हें उठाया और स्नेहपूर्वक अपने गले लगा लिया।

ऊँ नमो नारायणा ...💞🌺🙏

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@franciscodeasis https://t.co/OuQaBRFPu7
Unfortunately the "This work includes the identification of viral sequences in bat samples, and has resulted in the isolation of three bat SARS-related coronaviruses that are now used as reagents to test therapeutics and vaccines." were BEFORE the


chimeric infectious clone grants were there.https://t.co/DAArwFkz6v is in 2017, Rs4231.
https://t.co/UgXygDjYbW is in 2016, RsSHC014 and RsWIV16.
https://t.co/krO69CsJ94 is in 2013, RsWIV1. notice that this is before the beginning of the project

starting in 2016. Also remember that they told about only 3 isolates/live viruses. RsSHC014 is a live infectious clone that is just as alive as those other "Isolates".

P.D. somehow is able to use funds that he have yet recieved yet, and send results and sequences from late 2019 back in time into 2015,2013 and 2016!

https://t.co/4wC7k1Lh54 Ref 3: Why ALL your pangolin samples were PCR negative? to avoid deep sequencing and accidentally reveal Paguma Larvata and Oryctolagus Cuniculus?

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