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Benefits of writing SRI RAMA Jayam!!!

Writing Sri Rama Jayam is known as Likitha Japam- Writing Meditation. This gives one a complete sense of surrender to an inner conscience and peace while writing or chanting the mantras.

#Sri_Rama_Jayam #RamaNavami

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You can write this in any language of your choice. It is the connecting chords with the divine and your inner self.

Below are some points that we came across on the benefits :

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1. Vedas tell that as the sun dispels the darkness, the chanting of Rama Nama dispels all evil and obstacles of life. It is a way of liberation and salvation of human suffering.

2. When you think, that all roads are blocked to walk away from day to day problems..

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writing ‘Sri Ram Ram Ram’ gives you the most needed clarity of thoughts to find away out of odd situations.

3. It was told that a calmness engulfs as one indulges in writing the Sri Rama Jayam bringing in more clarity of mind, tolerance & strength to withstand obstacles in life.
4. Devotion of service of life and its varied forms is devotion to God. So there is no right or wrong way of writing this. The very thought and process to write is a connection with god and finds a inner meaning.

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5. It is a gateway to higher consciousness and spiritual uplift. The chanting of Ram Mantra protects you with divine flow of energy transforming a balanced progress in your materialistic well being and spiritual wellness.

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6. It dissolves all other sounds with it’s vibration and create acoustic silence.

7. Ram is the beej mantra of manipur chakra. this manipur chakra is the psychic center of human body where Sanchit karmasare stored..

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Ram nam writing helps to clean those karmas. It also helps to release suppressed emotions, negative samskaras from subconscious mind and unresolved issues of past.

#Sri_Rama_Jayam
#RamaNavami
#JaiShriRam
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कौन से ऋषि का क्या है महत्व:

अंगिरा ऋषि :-

ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा ब्रह्मा के पुत्र थे। उनके पुत्र बृहस्पति देवताओं के गुरु थे। ऋग्वेद के अनुसार, ऋषि अंगिरा ने सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न की थी।

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विश्वामित्र ऋषि :-

गायत्री मंत्र का ज्ञान देने वाले विश्वामित्र वेदमंत्रों के सर्वप्रथम द्रष्टा माने जाते हैं। आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत इनके पुत्र थे। विश्वामित्र की परंपरा पर चलने वाले ऋषियों ने उनके नाम को धारण किया। यह परंपरा अन्य ऋषियों के साथ भी चलती रही।

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वशिष्ठ ऋषि :-

ऋग्वेद के मंत्रद्रष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक थे। उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्मो में उनकी सहभागी थीं।

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कश्यप ऋषि :-

मारीच ऋषि के पुत्र और आर्य नरेश दक्ष की १३ कन्याओं के पुत्र थे। स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार, इनसे देव, असुर और नागों की उत्पत्ति हुई।

जमदग्नि ऋषि :-

भृगुपुत्र यमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के १६ मंत्रों की रचना की है।

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केदारखंड के अनुसार, वे आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के भी विद्वान थे।

अत्रि ऋषि :-

सप्तर्षियों में एक ऋषि अत्रि ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अधिकांश सूत्रों के ऋषि थे। वे चंद्रवंश के प्रवर्तक थे। महर्षि अत्रि आयुर्वेद के आचार्य भी थे।

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हिन्दू धर्म के 10 महत्वपूर्ण रहस्य:-

हिन्दू धर्म एक रहस्यमयी धर्म है। यह एकेश्‍वरवादी होने के साथ-साथ इस धर्म में देवी-देवता, भगवान, गुरु, पितृ, प्रकृति आदि को भी पूर्ण सम्मान दिया गया है। पाप और पुण्य की विस्तार से चर्चा की गई है।

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न्याय और अन्याय की भी परिभाषा बताई गई है। कर्मफल को भाग्यफल से महत्वपूर्ण माना गया है। पुनर्जन्म में इस धर्म की गहरी आस्था है। यम और नियम के सिद्धांत इस धर्म के मुख्‍य सिद्धांत हैं। प्रार्थना, व्रत, तीर्थ, दान और... प्रत्येक हिन्दू का कर्तव्य है।

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ज्ञात रूप से इस धर्म के 12 हजार वर्ष प्राचीन इतिहास एक रहस्य ही है।

पहला रहस्य...
कल्प वृक्ष : वेद और पुराणों में कल्पवृक्ष का उल्लेख मिलता है। कल्पवृक्ष स्वर्ग का एक विशेष वृक्ष है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार यह माना जाता है कि...

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इस वृक्ष के नीचे बैठकर व्यक्ति जो भी इच्छा करता है, वह पूर्ण हो जाती है, क्योंकि इस वृक्ष में अपार सकारात्मक ऊर्जा होती है। यह वृक्ष समुद्र मंथन से निकला था।

दूसरा रहस्य...
कामधेनु गाय : कामधेनु गाय की उत्पत्ति भी समुद्र मंथन से हुई थी।

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यह एक चमत्कारी गाय होती थी जिसके दर्शन मात्र से ही सभी तरह के दु:ख-दर्द दूर हो जाते थे। दैवीय शक्तियों से संपन्न यह गाय जिसके भी पास होती थी उससे चमत्कारिक लाभ मिलता था। इस गाय का दूध अमृत के समान माना जाता था।

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।। हरि ॐ।।
शिव के रुद्राभिषेक से होते हैं 18 आश्चर्यजनक लाभ, जरूर पढ़े..

रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही 'रुद्र' कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी कि भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।


हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है।


और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं..


और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं।


रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली के महापाप भी जलकर भस्म हो जाते हैं और हममें शिवत्व का उदय होता है। भगवान शिव का शुभाशीर्वाद प्राप्त होता है। सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं
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कब तक नेहरू - गांधी की अंध पूजा ?

हमारे देश की पाठ्य-पुस्तकों में जवाहरलाल नेहरू का गुण-गान होते रहना कम्युनिस्ट देशों वाली परंपरा की नकल है। अन्य देशों में किसी की ऐसी पूजा नहीं होती जैसी यहाँ गाँधी-नेहरू की होती है।

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अतः जैसे रूसियों, चीनियों ने वह बंद किया, हमें भी कर लेना चाहिए। वस्तुतः खुद नेहरू ने जीवन-भर जिन बातों को सब से अधिक दुहराया था, उसमें यह भी एक था – ‘हमें रूस से सीखना चाहिए’ और सचमुच नेहरू और पीछे-पीछे पूरे भारत ने कम्युनिस्ट रूस से अनेकों नारे और हानिकारक चीजें सीखीं।

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तब क्या अब कुछ अच्छा नहीं सीखना चाहिए?

जिस तरह रूसियों ने लेनिन-पूजा बंद कर दी, हमें भी नेहरू और गाँधी-पूजा खत्म करनी चाहिए। यह तुलना अनोखी नहीं है। यहाँ पैंतीस-चालीस साल पहले नेहरू की लेनिन से तुलना बड़ी ठसक से होती थी।

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नेता और प्रोफेसर इस पर लेख, पुस्तकें लिखते थे, और सरकार से ईनाम पाते थे। तब रूस में लेनिन और यहाँ नेहरू की महानता एक स्वयं-सिद्धि थी। दोनों को अपने-अपने देश का प्रथम मार्गदर्शक, महामानव, दार्शनिक, आदि बताने का चलन था। फिर समय आया कि रूसियों ने लेनिन-पूजा बंद कर दी।

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वही स्थिति चीन में माओ की हुई। आज उन देशों में अपने उन कथित मार्गदर्शकों की जयंती तक मनना बंद हो चुका है। रूस और चीन में इस अंध-पूजा के पटाक्षेप के लिए कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं हुई। जनता ने सर्वसम्मति से उस कथित महानता का अध्याय बंद किया।

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आइऐ आज इंदिरा गांधी की हिंदू विरोधी नीतीयों के बारे में जानते है, जिसे सबको जानने का अधिकार है

इंदिरा गांधी के बनाये नियम :

इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा था।
धर्मनिरपेक्षता यानी कि सरकार और कानून धार्मिक...

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आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव भी नहीं कर सकते।सभी धर्मों को एक समान माना जाएगा। सभी धर्म के लोगों को एक जैसे ही अधिकार प्राप्त होंगे।तो आइए आज इस धर्मनिरपेक्षता की सच्चाई को जान लिया जाए-

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शादी शगुन: केवल मुस्लिम लड़कियों की शादी पर 51,000 रु

नई उड़ान: UPSC & PSC की परीक्षाओं के लिए हर मुस्लिम की एक लाख की मदद

सीखो और कमाओ: हर मुस्लिम प्रतिभागी को 25,000

नई मंजिल : हर मुस्लिम प्रतिभागी को 56,500

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नई रोशनी : मुस्लिम महिलाओं में नेतृत्व क्षमता के लिए 2,25,000

हमारी धरोहर योजना : मुस्लिम प्रतिभागी को 3,32,000 प्रति वर्ष

अल्पसंख्यक पिछड़ों को *बीस लाख* तक के रियायती ऋण

उस्ताद योजना : हर अल्पसंख्यक अध्येता को नौ लाख बारह हजार रू

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नया सवेरा : मुस्लिम प्रतिभागी को कोचिंग के लिए भोजन आवास के साथ 1,00,000

मौलाना आजाद फेलोशिप : मुस्लिम प्रतिभागी को 28,000 प्रतिमाह व मकान भत्ता

मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति योजना कक्षा 6 से 10 तक : मुस्लिम प्रतिभागी को 12,000 रू प्रतिवर्ष

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॥ॐ॥
अस्य श्री गायत्री ध्यान श्लोक:
(gAyatri dhyAna shlOka)
• This shloka to meditate personified form of वेदमाता गायत्री was given by Bhagwaan Brahma to Sage yAgnavalkya (याज्ञवल्क्य).

• 14th shloka of गायत्री कवचम् which is taken from वशिष्ठ संहिता, goes as follows..


• मुक्ता-विद्रुम-हेम-नील धवलच्छायैर्मुखस्त्रीक्षणै:।
muktA vidruma hEma nIla dhavalachhAyaiH mukhaistrlkShaNaiH.

• युक्तामिन्दुकला-निबद्धमुकुटां तत्वार्थवर्णात्मिकाम्॥
yuktAmindukalA nibaddha makutAm tatvArtha varNAtmikam.

• गायत्रीं वरदाभयाङ्कुश कशां शुभ्रं कपालं गदाम्।
gAyatrIm vardAbhayANkusha kashAm shubhram kapAlam gadAm.

• शंखं चक्रमथारविन्दयुगलं हस्तैर्वहन्ती भजै॥
shankham chakramathArvinda yugalam hastairvahantIm bhajE.

This shloka describes the form of वेदमाता गायत्री.

• It says, "She has five faces which shine with the colours of a Pearl 'मुक्ता', Coral 'विद्रुम', Gold 'हेम्', Sapphire 'नील्', & a Diamond 'धवलम्'.

• These five faces are symbolic of the five primordial elements called पञ्चमहाभूत:' which makes up the entire existence.

• These are the elements of SPACE, FIRE, WIND, EARTH & WATER.

• All these five faces shine with three eyes 'त्रिक्षणै:'.

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