MAHARAANI TARARANI: THE QUEEN OF MARATHAS

Rani Tarabai was the brave daughter-in-law of Chhatrapati Shivaji and one of the greatest medieval Monarchs India ever had.
She was born in 1675 to one of the bravest commander-in-chiefs of Shivaji's Army named Hambir Rao Mohite.

Tarabai was just 8yrs old when she was married to Shivaji's younger son, Rajaram. Mughals and Marathas were constantly at war with each other. Shivaji was crowned the ruler of the Independent Maratha Swarajya in 1674 which was established by him.
However,the great leader died in 1680&the Maratha Samrajya went into a complete&total chaos.Marathas saw some very tough times ahead. In 1689,when Raigad Fort fell to the Mughal Army of over 15000,Shivaji's first wife Saibai and his elder son Sambhaji were captured&put to death.
Sambhaji's wife and son Shahu were taken prisoners to the Mughal court. During the same battle, Shivaji's second son Rajaram(Tarabai's husband) , who was the heir to the throne now, managed to escape using a disguise. He made his way to the Gingee Fort in Tamil Nadu.
Mughal General Zulfikar Khan, however, followed them to Gingee laying siege to the Gingee Fort. From 1690-1698,This was the longest siege by a Mughal Army of any Fort which stands testimony to the military and diplomatic credentials of Rani Tarabai.
During the siege, it was Rani Tarabai calling the shots in her husband's name who was having health issues. Not only did she held the Fort but she also directed the fight against Mughals.
In another blow to the Marathas, Rajaram passed away due to a lung ailment in 1700.
Tarabai was widowed at 25 &she had already seen&handled a complete chaos to the best of her ability. Instead of grieving, she organised a well-planned &vigorous opposition to Aurangzeb.
In her short 7 yr tenure as a Regent,Tarabai directed the Maratha resistance against Mughals.
She was aided in her efforts by the very loyal and able Generals Santaji Ghorpade and Dhanaji Jadhav who have been immortalized in the Maratha Folklore for their Guerrilla Warfare Tactics. The Queen was famous to lead her army and destroy the enemy using Guerrilla Tactics.
She was an indomitable warrior Queen deeply devoted to her Kingdom who not only prevented Maratha confederacy from disintegrating but also played a crucial role in rising it to National power.
Amidst repeated failures in crushing Maratha resistance, Aurangzeb died on 2-Mar-1707.
After the death of Aurangzeb, Mughals faced a power vacuum when they decided to release Shahu, son of Sambhaji(Shivaji's elder son). Their aim was to create a dispute regarding the claim on throne. As the Mughals hoped, Shahu challenged Tarabai and her son's claim on the throne.
Tarabai refused as she sensed a betrayel since Shahu was suddenly released by Mughals without any conditions.Dispute took the form of battle in no time.
Since Shahu had a strong legal claim on the throne,General sent by Tarabai to fight him had a change of heart&he switched sides
Shahu succeeded in his ambitions in 1708 with the help of Peshwa Balaji Vishwanath's &new Mughal emperor's resources.
But Tarabai wasn't the one to give up easily&she established a rival court in Kolhapur.Retaliating to this Shahu joined hands with Rajaram's second wife Rajsabai.
Shahu wanted Rajasabai's son Sambhaji II to sit on the Kolhapur Throne. Tarabai and her son Shivaji II were thrown into prison where she spent 16 yrs and her son died.Sambhaji II later turned against Shahu and Shahu reconciled his differences with Tarabai and he released her.
Shahu then placed Tarabai under house arrest in Satara Palace&he used to take her advice&consult her in major administrative, military&diplomatic decisions. When Tarabai was 73yr old,Shahu fell seriously ill&there were no direct descendents of Shivaji left to be appointed as heir
Tarabai then revealed a secret to Shahu at his death bed dat she has a grandson whom she kept away safe fearing his assassination,who is now 22yrs old .So Shahu adopted Tarabai's grandson Ramaraj as his heir&died in 1749.With Tarabai's help the young Prince ascended the throne.
Tarabai died at the age of 86 in https://t.co/ybBpB1A0MT her lifetime she witnessed the rise,fall and revival of the Maratha Empire. Had she not taken the reigns of Maratha Empire in her hands in 1701, the History of India could have been very different.

More from Vibhu Vashisth

प्राचीन काल में गाधि नामक एक राजा थे।उनकी सत्यवती नाम की एक पुत्री थी।राजा गाधि ने अपनी पुत्री का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र से करवा दिया।महर्षि भृगु इस विवाह से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होने अपनी पुत्रवधु को आशीर्वाद देकर उसे कोई भी वर मांगने को कहा।


सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र का वरदान मांगा।ये जानकर महर्षि भृगु ने यज्ञ किया और तत्पश्चात सत्यवती और उसकी माता को अलग-अलग प्रकार के दो चरू (यज्ञ के लिए पकाया हुआ अन्न) दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम्हारी माता पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन...

...करें और तुम भी पुत्र की इच्छा लेकर गूलर वृक्ष का आलिंगन करना। आलिंगन करने के बाद चरू का सेवन करना, इससे तुम दोनो को पुत्र प्राप्ति होगी।परंतु मां बेटी के चरू आपस में बदल जाते हैं और ये महर्षि भृगु अपनी दिव्य दृष्टि से देख लेते हैं।

भृगु ऋषि सत्यवती से कहते हैं,"पुत्री तुम्हारा और तुम्हारी माता ने एक दुसरे के चरू खा लिए हैं।इस कारण तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय सा आचरण करेगा और तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण सा आचरण करेगा।"
इस पर सत्यवती ने भृगु ऋषि से बड़ी विनती की।


सत्यवती ने कहा,"मुझे आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करे।"तब महर्षि ने उसे ये आशीर्वाद दे दिया कि उसका पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करेगा किन्तु उसका पौत्र क्षत्रियों सा व्यवहार करेगा। सत्यवती का एक पुत्र हुआ जिसका नाम जम्दाग्नि था जो सप्त ऋषियों में से एक हैं।
शमशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायी और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में अपने तीन वर्ष के बालक को रख के स्वयं चिता पे बैठ कर सती हो गयी ।इस प्रकार ऋषी दधीचि और उनकी पत्नी की मुक्ति हो गयी।


परन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़पने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो वो कोटर में पड़े पीपल के गोदों (फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के फलों और पत्तों को खाकर बालक का जीवन किसी प्रकार सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजर रहे थे ।नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देख कर उसका परिचय मांगा -
नारद बोले - बालक तुम कौन हो?
बालक - यही तो मैं भी जानना चहता हूँ ।
नारद - तुम्हारे जनक कौन हैं?
बालक - यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने आँखें बन्द कर ध्यान लगाया ।


तत्पश्चात आश्चर्यचकित हो कर बालक को बताया कि 'हे बालक! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो । तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्रास्त्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी।तुम्हारे पिता की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी'।

बालक - मेरे पिता की अकाल मृत्यु का क्या कारण था?
नारद - तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक - मेरे उपर आयी विपत्ति का कारण क्या था?
नारद - शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर बड़े हुए उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।

More from All

कुंडली में 12 भाव होते हैं। कैसे ज्योतिष द्वारा रोग के आंकलन करते समय कुंडली के विभिन्न भावों से गणना करते हैं आज इस पर चर्चा करेंगे।
कुण्डली को कालपुरुष की संज्ञा देकर इसमें शरीर के अंगों को स्थापित कर उनसे रोग, रोगेश, रोग को बढ़ाने घटाने वाले ग्रह


रोग की स्थिति में उत्प्रेरक का कार्य करने वाले ग्रह, आयुर्वेदिक/ऐलोपैथी/होमियोपैथी में से कौन कारगर होगा इसका आँकलन, रक्त विकार, रक्त और आपरेशन की स्थिति, कौन सा आंतरिक या बाहरी अंग प्रभावित होगा इत्यादि गणना करने में कुंडली का प्रयोग किया जाता है।


मेडिकल ज्योतिष में आज के समय में Dr. K. S. Charak का नाम निर्विवाद रूप से प्रथम स्थान रखता है। उनकी लिखी कई पुस्तकें आज इस क्षेत्र में नए ज्योतिषों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
प्रथम भाव -
इस भाव से हम व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता, सिर, मष्तिस्क का विचार करते हैं।


द्वितीय भाव-
दाहिना नेत्र, मुख, वाणी, नाक, गर्दन व गले के ऊपरी भाग का विचार होता है।
तृतीय भाव-
अस्थि, गला,कान, हाथ, कंधे व छाती के आंतरिक अंगों का शुरुआती भाग इत्यादि।

चतुर्थ भाव- छाती व इसके आंतरिक अंग, जातक की मानसिक स्थिति/प्रकृति, स्तन आदि की गणना की जाती है


पंचम भाव-
जातक की बुद्धि व उसकी तीव्रता,पीठ, पसलियां,पेट, हृदय की स्थिति आंकलन में प्रयोग होता है।

षष्ठ भाव-
रोग भाव कहा जाता है। कुंडली मे इसके तत्कालिक भाव स्वामी, कालपुरुष कुंडली के स्वामी, दृष्टि संबंध, रोगेश की स्थिति, रोगेश के नक्षत्र औऱ रोगेश व भाव की डिग्री इत्यादि।
1. Mini Thread on Conflicts of Interest involving the authors of the Nature Toilet Paper:
https://t.co/VUYbsKGncx
Kristian G. Andersen
Andrew Rambaut
Ian Lipkin
Edward C. Holmes
Robert F. Garry

2. Thanks to @newboxer007 for forwarding the link to the research by an Australian in Taiwan (not on

3. K.Andersen didn't mention "competing interests"
Only Garry listed Zalgen Labs, which we will look at later.
In acknowledgements, Michael Farzan, Wellcome Trust, NIH, ERC & ARC are mentioned.
Author affiliations listed as usual.
Note the 328 Citations!
https://t.co/nmOeohM89Q


4. Kristian Andersen (1)
Andersen worked with USAMRIID & Fort Detrick scientists on research, with Robert Garry, Jens Kuhn & Sina Bavari among


5. Kristian Andersen (2)
Works at Scripps Research Institute, which WAS in serious financial trouble, haemorrhaging 20 million $ a year.
But just when the first virus cases were emerging, they received great news.
They issued a press release dated November 27, 2019:

You May Also Like