#ज्योतिष
कुछ दिन पहले एक जातक की कुंडली मे मंगल/राहु की स्थिति देखते हुए जाँच के लिए कहा था। रक्त में इंफेक्शन की पूर्ण संभावना थी जोकि सही भी निकली, विशुद्ध वैज्ञनिक ज्योतिष शास्त्र चिर सत्य है हम ज्योतिषों की गणना औऱ ज्ञान में कमी हो सकती है ज्योतिष शास्त्र कभी गलत नही होता।

शरीर व इसके घटकों पर ग्रहों के प्रभाव पर चर्चा करते हैं।

सूर्य-हड्डियों
चंद्र-शरीर का जल और श्वेत रक्त कणिकाएं(WBC)है
मंगल- रक्त मुख्यतः(RBC), दाँत
बुध-त्वचा
गुरु- वसा (fat),हॉर्मोन्स
शुक्र- विटामिन्स
शनि-मुख्यतःनसों का कारक है
राहु केतु और शनि मिलकर शरीर के मिनरल्स के कारक हैं।
किसी एक ग्रह के द्वारा जातक पर ग्रह के प्रभाव को नही कहा जा सकता इसके लिए उसकी डिग्री, दृष्टि संबंध, नक्षत्र, भाव, गोचर और भी बहुत कुछ देखा जाता है।

महादेव हम सब का कल्याण करें।🙏
नमः शिवाय🚩
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#ज्योतिष_विज्ञान #Medical_Astrology #चिकित्सीय_ज्योतिष
चिकित्सीय ज्योतिष के विषय मे बात करती हूँ तो अक्सर लोग हैरान हो जाते हैं कि कैसे बिना जांच के पूर्व में हुए/वर्तमान के/या भविष्य में होने वालें रोगों के विषय मे बिना जाँच के सटीक जानकारी सिर्फ जातक की कुंडली से निकल आती है।


हमें समझना होगा कि ज्योतिष गणनाओं पर आधारित एक विशुद्ध विज्ञान है। कुंडली की सटीकता/समय इत्यादि सही होने चाहिए तो व्यक्ति की शारीरिक संरचना से लेकर आंतरिक रोगों भी की कही जाती है।
दुःख ये है कि आजकल इस विद्या में जरूरत से ज्यादा प्रोफेशनल बनकर कुछ लोग इस विद्या को बदनाम करते हैं


बारह भावों, नव ग्रहों, नक्षत्रों, ग्रहों के अंश, भाव स्वामी, विभिन्न भावों उनकी उपस्थिति, दृष्टि संबंध, षोडशवर्ग, महादशा व अन्य दशाएँ इत्यादि और भी बहुत से तथ्यों पर गणना होती है। ज्योतिष के 12 भावों में अंगों की गणना कालपुरुष कुंडली कही जाती है।


आज कुंडली के भावों में कैसे शरीर के विभिन्न अंगों पर ज्योतिषीय आधार से हम रोग के विषय मे बताते हैं ये दिखाना चाहूंगी। ताकि ज्योतिष को अंधविस्वास न मान आप उसके वैज्ञानिक पहलुओं को समझ सकें।
आप लोगों की जिज्ञासा हुई तो आने वाले समय इससे आगे भी लिखने का प्रयास करूँगी।


लिखने को तो बहुत कुछ होता है पर यहां संक्षेप में लिखूँगी।
सूर्य- हड्डियाँ, हृदय, पित्त
चंद्रमा- मस्तिष्क, निद्रारोग, कफ विकार, जलतत्व
मंगल- लाल रक्त कणिकाएं(हीमोग्लोबिन), रक्त सम्बन्धी रोग, चोट, सर्जरी
बुध- त्वचा, त्वचा रोग, ENT वर्टिगो, स्पीच डिसऑर्डर, फेफड़े, नपुसंकता
कुंडली में 12 भाव होते हैं। कैसे ज्योतिष द्वारा रोग के आंकलन करते समय कुंडली के विभिन्न भावों से गणना करते हैं आज इस पर चर्चा करेंगे।
कुण्डली को कालपुरुष की संज्ञा देकर इसमें शरीर के अंगों को स्थापित कर उनसे रोग, रोगेश, रोग को बढ़ाने घटाने वाले ग्रह


रोग की स्थिति में उत्प्रेरक का कार्य करने वाले ग्रह, आयुर्वेदिक/ऐलोपैथी/होमियोपैथी में से कौन कारगर होगा इसका आँकलन, रक्त विकार, रक्त और आपरेशन की स्थिति, कौन सा आंतरिक या बाहरी अंग प्रभावित होगा इत्यादि गणना करने में कुंडली का प्रयोग किया जाता है।


मेडिकल ज्योतिष में आज के समय में Dr. K. S. Charak का नाम निर्विवाद रूप से प्रथम स्थान रखता है। उनकी लिखी कई पुस्तकें आज इस क्षेत्र में नए ज्योतिषों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
प्रथम भाव -
इस भाव से हम व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता, सिर, मष्तिस्क का विचार करते हैं।


द्वितीय भाव-
दाहिना नेत्र, मुख, वाणी, नाक, गर्दन व गले के ऊपरी भाग का विचार होता है।
तृतीय भाव-
अस्थि, गला,कान, हाथ, कंधे व छाती के आंतरिक अंगों का शुरुआती भाग इत्यादि।

चतुर्थ भाव- छाती व इसके आंतरिक अंग, जातक की मानसिक स्थिति/प्रकृति, स्तन आदि की गणना की जाती है


पंचम भाव-
जातक की बुद्धि व उसकी तीव्रता,पीठ, पसलियां,पेट, हृदय की स्थिति आंकलन में प्रयोग होता है।

षष्ठ भाव-
रोग भाव कहा जाता है। कुंडली मे इसके तत्कालिक भाव स्वामी, कालपुरुष कुंडली के स्वामी, दृष्टि संबंध, रोगेश की स्थिति, रोगेश के नक्षत्र औऱ रोगेश व भाव की डिग्री इत्यादि।
#मंत्र_शक्ति #ब्रह्मांड
चरक संहिता में कहा गया है
यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे अर्थात मानव शरीर भी ब्रह्माण्ड के अनुसार प्रभावित रहता है।
धरती व अन्य सभी ग्रह अपनी अपनी धुरी और ब्रह्मांड में चलायमान हैं जिससे एक प्रकार का कम्पन्(vibration) होता है। यही कम्पन ब्रह्माण्ड का प्राण है।


सभी ग्रह वृत्ताकार(गोल) हैं व अपनी और ब्रह्माण्ड की वृत्ताकार परिधि में चलते रहते हैं।इस की एक गोल श्रृंखला चलती रहती है जिस श्रृंखला के अंदर और भी श्रृंखलाएं चलती रहती हैं। इसी कम्पन से आकाश गंगा में तारों का सृजन और संहार होता है।


इस कम्पन को हम सुन नही पाते, महसूस नही कर पाते क्योंकि स्थूल शरीर के रूप में हमारी पहुंच सीमित है और इनको सुनना और महसूस करना हमारे शरीर के लिये नुकसान दायक भी होगा।
ऐसे ही हमारे दिमाग़ का अंतरिम हिस्सा भी वृत्ताकार(गोल) है,कोशिकाओं(cells) का स्वरूप भी गोल है


जिसमे धड़कन(heart beat)रूपी कम्पन इनको चलायमान रखता है, संसार मे सृजन करने वाला हर बीज वृत्ताकार है।
हमारे देव स्वरूप ऋषियों ने ब्रह्माण्ड व पिण्ड(शरीर) की इस vibration को जोड़ने के लिए ही मंत्रों का प्रयोग किया है।


क्योंकि मंत्र के वास्तविक उच्चारण से एक प्रकार का vibration का अनुभव होता है जोकि एक सतत प्रक्रिया है जिसे पहले शरीर, मन, मष्तिष्क और फिर उच्चत्तम स्तर पर पहुंचने पर सूक्ष्म शरीर अनुभव करता है और स्वयं को ब्रह्माण्ड की चलायमान ऊर्जा के साथ जोड़ता है।

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