#ज्योतिष_विज्ञान #मंत्र_विज्ञान

ज्योतिषाचार्य अक्सर ग्रहों के दुष्प्रभाव के समाधान के लिए मंत्र जप, अनुष्ठान इत्यादि बताते हैं।

व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति ही उसकी कुंडली बन जाती है जैसे कि फ़ोटो खींच लिया हो और एडिट करना सम्भव नही है। इसे ही "लग्न" कुंडली कहते हैं।

लग्न के समय ग्रहों की इस स्थिति से ही जीवन भर आपको किस ग्रह की ऊर्जा कैसे प्रभावित करेगी का निर्धारिण होता है। साथ साथ दशाएँ, गोचर इत्यादि चलते हैं पर लग्न कुंडली का रोल सबसे महत्वपूर्ण है।
पृथ्वी से अरबों खरबों दूर ये ग्रह अपनी ऊर्जा से पृथ्वी/व्यक्ति को प्रभावित करते हैं जैसे हमारे सबसे निकट ग्रह चंद्रमा जोकि जल का कारक है पृथ्वी और शरीर के जलतत्व पर पूर्ण प्रभाव रखता है।
पूर्णिमा में उछाल मारता समुद्र का जल इसकी ऊर्जा के प्रभाव को दिखाता है।
अमावस्या में ऊर्जा का स्तर कम होने पर वही समुद्र शांत होकर पीछे चला जाता है। जिसे ज्वार-भाटा कहते हैं। इसी तरह अन्य ग्रहों की ऊर्जा के प्रभाव होते हैं जिन्हें यहां समझाना संभव नहीं।
चंद्रमा की ये ऊर्जा शरीर को (अगर खराब है) water retention, बैचेनी, नींद न आना आदि लक्षण दिखाती है
मंत्र क्या हैं-
मंत्र इन ऊर्जाओं के सटीक प्रयोग करने के पासवर्ड हैं। जिनके जप से संबंधित ग्रह की ऊर्जा को जातक की ऊर्जा से कनेक्ट करके उन ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम किया और शुभ प्रभाव को बढ़ाया जाता है।
जैसे पासवर्ड का एक दम सटीक होना जरूरी है ऐसे ही मंत्र का उच्चारण भी बिल्कुल दोष रहित होना चाहिए। तभी आप उस ऊर्जा को अनलॉक कर पाएंगे। सनातन धर्म का मुख्य आधार ही इसका विशुद्ध वैज्ञानिक धरातल है।

क्यों नही मिलता जप/अनुष्ठान का पूर्ण लाभ-
जब उच्चारण या मंत्र के क्रियान्वयन में
किसी प्रकार की त्रुटि/कमी रह जाये ये समझें कि पासवर्ड गलत लगा है जिससे आप ऊर्जा से कनेक्ट नहीं कर पाएं। संस्कृत भाषा भी वैज्ञानिक भाषा है इसका आधार ही इसका स्पष्ट उच्चारण है। इसलिए मंत्र जप अनुष्ठान के लिए किसी ज्ञानी/कर्मकांडी आचार्य जोकि संस्कृत और मंत्रो के प्रयोग के
मूलभूत नियमों के अच्छे जानकार हों उन्ही की सहायता लें। जिससे आपको आपके किये गए कार्य का अभीष्ट फल प्राप्त हो और आप सब ज्योतिष औऱ मंत्र विज्ञान का पूर्ण लाभ ले पाएं।

मंत्र जप, अनुष्ठान, दान, कारक तत्वों के प्रयोग, कारक पारिवारिक सम्बन्ध इस सब पर भी आगे लिखूँगी।
क्योंकि परिवार समाज के प्रति कर्तव्यों की अनदेखी करके मात्र ज्योतिष उपायों से आप इसका पूर्ण लाभ नही ले सकते। ज्योतिष केवल दुष्प्रभाव की तीव्रता को कम कर सकता है उसे बिल्कुल समाप्त नही करता। बस ये समझे कि तलवार की लगने वाली चोट सही उपायों से सुई की चोट में बदल सकती है।
वैदिक ग्रंथो का सार है ज्योतिष इसलिए ज्योतिष को वेदों की आँखे भी कहा जाता है।

"ज्योतिषं वेदानां चक्षु:"

महादेव हम सब का कल्याण करें

नमः शिवाय🚩🙏

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