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सृष्टि की रचना व भगवान विष्णु के बीच चार का महत्व

भगवान विष्णु की चार भुजाएं होती हैं। यह जग विख्यात है। कहा जाता है कि चार का अंक ऐसा अंक है, जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है।

चार भुजाधारी भगवान विष्णु के भीतर जब सृष्टि रचना की इच्छा हुई तो उनकी नाभि से चतुर्भुज ब्रह्माजी का जन्म हुआ। ब्रम्हा के हाथों में चार वेद क्रमशः 'ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेद' थे।
ब्रह्माजी ने विष्णु जी की आज्ञानुसार विश्व के प्राणियों को चार वर्गों 'अण्डज, जरायुज, स्वेदज एवं उदभिज' में बांटा और उन प्राणियों की जीवन व्यवस्था को भी चार अवस्थाओं में बांट दिया। जिनमें 'जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरीय में की।'
इसके बाद उन्होंने काल को चार युगों 'सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग में बांट दिया।' विष्णु जी ने सृष्टि की रचना अपने चार मानस पुत्रों 'सनक, सनंदन, सनत्कुमार तथा सनातन' से प्रारंभ की
लेकिन वे चारों मानस पुत्र भगवान के चार धामों 'बदरीनाथ धाम, रामेश्वरधाम, द्वारकाधाम और जगन्नाथ धाम' में भगवान विष्णु की भक्ति करने चले गए।
जब इन चारों मानस पुत्रों से सृष्टि रचना का कार्य पूर्ण नहीं हुआ तो ब्रह्माजी ने चार वर्ण 'ब्रह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र बन' जिनसे चार आश्रमों 'ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास' का निर्माण हुआ, इस तरह सृष्टि का कार्य सुचारू रूप से चलने लगा।
भगवान विष्णु के चतुर्भुजरूप धारण कर भक्तों को चार पदार्थ 'धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष' देने पड़े। इस लिए भगवान विष्णु को चतुर्भुजरूप धारण करना पड़ा। यही कारण है कि उनकी चार भुजाएं होती हैं।

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शास्त्रों में स्वच्छता के सूत्र

हमारे पूर्वज अत्यंत दूरदर्शी थे। उन्होंने हजारों वर्षों पूर्व वेदों व पुराणों में महामारी की रोकथाम के लिए परिपूर्ण स्वच्छता रखने के लिए स्पष्ट निर्देश दे कर रखें हैं-


1. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं तैलं तथैव च ।
लेह्यं पेयं च विविधं हस्तदत्तं न भक्षयेत् ।।
- धर्मसिन्धू ३पू. आह्निक

✍️नामक, घी, तेल, चावल, एवं अन्य खाद्य पदार्थ चम्मच से परोसना चाहिए हाथों से नही।

2. अनातुरः स्वानि खानि न स्पृशेदनिमित्ततः ।।
- मनुस्मृति ४/१४४

✍️अपने शरीर के अंगों जैसे आँख, नाक, कान आदि को बिना किसी कारण के छूना नही चाहिए।

3. अपमृज्यान्न च स्न्नातो गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।।
- मार्कण्डेय पुराण ३४/५२

✍️एक बार पहने हुए वस्त्र धोने के बाद ही पहनना चाहिए। स्नान के बाद अपने शरीर को शीघ्र सुखाना चाहिए।

4. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे भोजनं चरेत् ।।
- पद्म०सृष्टि.५१/८८
नाप्रक्षालितपाणिपादो भुञ्जीत ।।
- सुश्रुतसंहिता चिकित्सा २४/९८

✍️अपने हाथ, मुहँ व पैर स्वच्छ करने के बाद ही भोजन करना चाहिए।
चक्र इस शरीर-प्रणाली में क्या करते हैं?
सात चक्रों में प्रत्येक चक्र का अपना चेतनत्व है और यह हमारी भावनात्मक तंदुरुस्ती से संबंधित है।
1.मूलाधार या रुट चक्र रीढ़ की हड्डी के आधार पर स्थित है और यह बुनियादी मानव वृत्ति और अस्तित्व से संबंधित है।


2.स्वाधिष्ठान चक्र, रूट चक्र से ऊपर सैक्रम पर स्थित है और प्रजनन चक्र के सदृश्य है।
3.मणिपुर चक्र, उदर क्षेत्र में स्थित है और आत्मसम्मान, शक्ति, भय आदि से संबंधित है और शारीरिक रूप से यह पाचन से संबंधित है।

4.अनाहत चक्र, हृदय से थोड़ा ऊपर छाती में स्थित है और प्यार, आंतरिक शांति और भक्ति से सम्बद्ध है।

5.विशुद्धी चक्र, गले में स्थित है और संचार, आत्म-अभिव्यक्ति आदि से सम्बद्ध है।
6.आज्ञा चक्र जो दोनों भौंहों के बीच स्थित है और अंतर्ज्ञान, कल्पना और स्थितियों से निपटने की क्षमता का प्रत्युतर देता है।
इस चक्र पर मंत्र का आघात करने से शरीर के सारे चक्र नियंत्रित होते हैं.

7.सहस्रार - जो सिर के शीर्ष पर है इसी स्थान को तंत्र में काशी कहा जाता है और आंतरिक और बाहरी सौंदर्य, आध्यात्मिकता के साथ संबंध से जुड़ा है।
"पिपलन्त्री" राजसमंद , राजस्थान नाम का एक भारतीय गाँव है, जो हर बालिका के जन्म का जश्न मनाता है। 111 पेड़ लगाकर।‌‌

डेनमार्क के प्राइमरी स्कूलों में दिया जाता है राजस्थान के इस गाँव का उदाहरण!


राजसमंद जिले में बसे पिपलांत्री नाम के इस गाँव को ‘आदर्श ग्राम’, ‘निर्मल गाँव’, ‘पर्यटन ग्राम’, ‘जल ग्राम’, ‛वृक्ष ग्राम’, ‛कन्या ग्राम’, ‛राखी ग्राम’ जैसे विविध उपमाओं के साथ देशभर में पहचाना जाता है। इस गाँव पर सैकड़ों डॉक्यूमेंट्रीज बनी हैं।

राजस्थान के कक्षा सात व आठ की सरकारी पुस्तकों में पिपलांत्री को पाठ के रूप में पढ़ाया जा रहा है ।
वृक्षारोपण के बाद पिपलांत्री।
करीब दो हजार की आबादी वाले इस गाँव के बदलाव की कहानी 2005 के बाद से शुरू होती है

जब श्याम सुन्दर पालीवाल यहां के सरपंच बने। हालांकि पिपलांत्री पहले भी खूबसूरत हुआ करता था लेकिन मार्बल खनन क्षेत्र में बसे होने के चलते यहाँ की पहाड़ियां खोद दी गई, पानी पाताल में चला गया और प्रकृति के नाम पर कुछ भी नहीं बचा।

ऐसे में श्याम सुन्दर ने अपने गाँव की वन संपदाओं को नष्ट होते देख मुंह फेरकर निकल जाने की बजाय इन पहाड़ियों पर हरियाली की चादर ओढ़ाने की कसम खाई। उनके इसी संकल्प के चलते आज 15 साल बाद पिपलांत्री देश के उन चुनिंदा गाँवों की सूची में सबसे अव्वल नंबर पर आता है, जहाँ कुछ नया हुआ है।
क्या आपको पता है कि भगवान_शिव के प्रतिक माने जाने वाले रुद्राक्ष कुल कितने प्रकार है और उनके पहनने से क्या-क्या लाभ होते हैं।

रूद्राक्ष को धारने करने वाले के जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवमहापुराण ग्रंथ में कुल सोलह प्रकार के रूद्राक्ष बताएं गए है


औऱ सभी के देवता, ग्रह, राशि एवं कार्य भी अलग-अलग बताएं है।
जानें रुद्राक्ष के प्रकार एवं उनसे होने वाले लाभ।
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जानें जीवन में बुरा समय कब-कब शुरू होता है, पहले से मिलने लगते हैं ऐसे संकेत


1- एक मुखी रुद्राक्ष- इसे पहनने से शोहरत, पैसा, सफलता प्राप्ति और ध्‍यान करने के लिए सबसे अधिक उत्तम होता है। इसके देवता भगवान शंकर, ग्रह- सूर्य और राशि सिंह है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।


2- दो मुखी रुद्राक्ष- इसे आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान अर्धनारिश्वर, ग्रह- चंद्रमा एवं राशि कर्क है।
मंत्र- ।। ॐ नम: ।।


3- तीन मुखी रुद्राक्ष- इसे मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पहना जाता है। इसके देवता अग्नि देव, ग्रह- मंगल एवं राशि मेष और वृश्चिक है।
मंत्र- ।। ॐ क्‍लीं नम: ।।

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