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A scholar of Ayurveda in 600BC, identified 5 mosquito species as source of a "King of Diseases" causing chills & fevers.

For next 2500 yrs ur "Allopathy" & whole world thought, it causes due to Bad Air & named it MALARIA : Mal = Bad, Aria = Air.

This is the legacy of #Ayurveda https://t.co/M440lfZKWR


A British scientist named Joseph Constantine Carpue wrongfully accessed details of traditional Indian surgery (Ayurvedic) & Using these techniques, he performed world’s first “modern Rhinoplasty” 20 yrs later.

This is Your loved #Allopathy

UNIVERISTY OF MINNESOTA SPENDING MILLIONS OF DOLLARS & THEIR TIME ON ITS RESEARCH.

And some over educated doctors makes fun of

WHY THE HELL WEB MED is praising AYURVEDA? FOR WHAT JOY..?? Are they sifting their optics from alopathy to AYURVEDIC therapy to cure a disease... Can Dr. Anomitro reply to

WHY AYURVEDA IS MOST EXPENSIVE MEDICAL THERAPY IN FOREIGN LAND & ITS PERFORMANCE IS 100/100 WITHOUT FAILURE... Why Dr. Anomitro why??
क्या आपको पता है कि भृगु ऋषिकौन थे और भृगु संहिता क्या है?

भृगु संहिता में भृगु जी ने अपने ज्ञान द्वारा ग्रहों, नक्षत्रों की गति को देख कर उनका पृथ्वी और मनुष्यों पर पड़ने वाला प्रभाव जाना और अपने सिद्धांतो को प्रतिपादित किया।


शोध एवं खोज के उपरांत उन्होंने ग्रहों और नक्षत्रों की गति तथा उनके पारस्परिक सम्बंधों के आधार पर कालगणना को निर्धारित किया।

पौराणिक कथानुसार जब भृगु ऋषि को ब्रह्मा ऋषि मंडल में स्थान नहीं मिला तो वे क्रोधित होकर भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे।परंतु विष्णु जी निद्रामग्न थे अत: ऋषि के आने का उन्हें पता न चला। अपनी अवहेलना देख भृगु जी ने क्रोधित होकर विष्णु जी के वक्षस्थल...

...पर लात से प्रहार किया जिससे विष्णु जी जाग उठे और उठते ही ऋषि से पूछते हैं कि कहीं उन्हें उनके वक्षस्थल पर लात मारने से चोट तो नहीं लगी। प्रभु का ये आचरण देख भृगु ऋषि को अपनी गलती पर बड़ा पश्चाताप होता है, वे रोने लगते हैं और प्रभु से क्षमा-याचना करते हैं।


दीनदयालु प्रभु विष्णु उन्हें तुरंत क्षमा कर देते हैं। परंतु प्रभु के चरणों पे विराजमान माता लक्ष्मी अपने स्वामी की ये अवहेलना नहीं देख पाती और भृगु ऋषि को श्राप दे देती हैं कि वे कभी भी ब्राह्मण के घर निवास नहीं करेंगी और ज्ञानी एवं सरस्वती के उपासक दरिद्र ही रहेंगे।
महान गणितज्ञ आर्यभट ने अपनी पुस्तक ‘आर्यभटीय’ में 120 सूत्र दिए. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, पाई का सटीक मान, सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की व्याख्या, समयगणना, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित आदि के कई सूत्र व प्रमेय


आधुनिक विज्ञान से कई वर्षों पहले हमें आर्यभट द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’ में मिलते हैं.

1. 🌺🌺🌺पृथ्वी का घूमना🌺🌺🌺

अनुलोमगतिर्नौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्।
अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लंकायाम्।।
(आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 9)


अर्थ: जिस प्रकार से नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है तो उसे लगता है कि पेड़-पौधे, पत्थर और पर्वत आदि उल्टी गति से जा रहे हैं. उसी प्रकार अपनी धुरी पर घूम रही पृथ्वी से जब हम नक्षत्रों की ओर देखते हैं तो वे उल्टे दिशा में जाते हुए दिखाई देते हैं.


इस श्लोक के जरिए आर्यभट ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घूमती है.

2. 🌺🌺🌺पाई का मान🌺🌺🌺

चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्राणाम्।
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाहः॥
(आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक 10)


अर्थ: 100 में चार जोड़ें, आठ से गुणा करें और फिर 62000 जोड़ें. इस नियम से 20000 परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है.
(100 + 4) x 8 +62000/ 20000= 3.1416
इसके अनुसार व्यास और परिधि का अनुपात (2πr/2r) यानी 3.1416 है, जो पांच महत्वपूर्ण आंकड़ों तक बिलकुल सटीक है.
जानिये कश्मीर के पराक्रमी सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड की गौरवमयी वीरगाथा, जिसकी तलवार का डंका मध्य एशिया तक बजा।

राजा श्रीललितादित्य: सार्वभौमस्ततोऽभवत् ।
प्रादेशिकेश्वरस्त्रष्टुर्विघेर्बुद्धेरगोचर: ।।१२६।। राजतरंगिणी


ब्रह्मा ने प्रादेशिकेश्वर रूप में उसकी सृष्टि की थी किन्तु अनन्तर ब्रम्हा की बुद्धि से भी अगोचर श्री ललितादित्य सार्वभौम राजा हुआ ।

[ सार्वभौम का अर्थ है..
1 - इसका अर्थ है सब भूमि का सम्राट। यह प्राचीन राज पद है। मुद्राराक्षस में भी इस शब्द का प्रयोग किया गया हैं।

2 - सार्वभौम राजा की आय उस समय इक्कावन करोड़ कर्ष वार्षिक आय मानी जाती है।]

ललितादित्य मुक्तपीड “कार्कोटा वंश” के कश्मीर के महान हिन्दू सम्राट थे। इनका कार्यकाल 724 ईस्वी से 760 ईस्वी तक था।

श्री दत्त राजा ललितादित्य मुक्तापीड प्रथम का राज्य अभिषेक काल सन् ६९७ ई. राजतरंगिणी में बताया गया है। 
आइने अकबरी में ललितादित्या का राज्यकाल 36 वर्ष 7 मास 11 दिन दिया गया है। (पेज नम्बर 375)


ललितादित्य मुक्तापीड की दो ताम्र मुद्राएं मिली हैं। मुद्रा के एक तरफ लक्ष्मी देवी और श्री प्रताप तथा दूसरी तरफ दण्डायमान राजा तथा कि(दार) टंकणित है। श्री ललितादित्या की मुद्रायें भिटवारी गाँव फैजाबाद, बाँदा, राजघाट, सारनाथ(वाराणसी), पटना, मूँगेर, तक मिली हैं।
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राजस्थान के ढोला मारू की गाई जाने वाली प्रेम-कहानी ..

इस कहानी के अनुसार नरवर के राजा नल के पुत्र साल्हकुमार का विवाह महज 3 साल की उम्र में बीकानेर स्थ‍ित पूंगल क्षेत्र के पंवार राजा पिंगल की पुत्री से हुआ। चूंकि यह बाल-विवाह था, अत: गौना नहीं हुआ था। जब राजकुमार


वयस्क हुआ तो उसकी दूसरी शादी कर दी गई, परंतु राजकुमारी को गौने का इंतजार था। बड़ी होकर वह राजकुमारी अत्यंत सुंदर और आकर्षक दिखाई देती थी। 

राजा पिंगल ने दुल्हन को लिवाने के लिए नरवर तक कई संदेश भेजे लेकिन राजकुमार की दूसरी पत्नी उस देश से आने वाले हर संदेश वाहक की हत्या

करवा देती थी। राजकुमार अपने बचपन की शादी को भूल चुके थे, लेकिन दूसरी रानी इस बात का जानती थी। उसे डर था कि राजकुमार को सब याद आते ही वे दूसरी रानी को छोड़कर चले जाएंगे, क्योंकि पहली रानी बेहद खूबसूरत थी।

पहली रान इस बात से अंजान, राजकुमार को याद किया करती थी। उसकी इस दशा को देख पिता ने इस बार एक चतुर ढोली को नरवर भेजा। जब ढोली नरवर के लिए रवाना हो रहा था, तब राजकुमारी ने उसे अपने पास बुलाकर मारू राग में दोहे बनाकर दिए और समझाया कि कैसे उसके प्रियतम के सम्मुख जाकर गाकर सुनाना है।

चतुर ढोली एक याचक बनकर नरवर के महल पहुंचा। रात में रिमझिम बारिश के साथ उसने ऊंची आवाज में ने मल्हार राग में गाना शुरू किया। मल्हार राग का मधुर संगीत राजकुमार के कानों में गूंजने लगा। ढोली ने गाते हुए साफ शब्दों में राजकुमारी का संदेश सुनाया। गीत में जैसे ही राजकुमार ने
हिन्दू महिलाओं के सोलह श्रृंगार🙏🙏
सोलह श्रृंगार का रिश्ता हमेशा से ही औरतों की खूबसूरती के साथ जुड़ता आया है। यदि दूसरे शब्दों में कहा जाये तो सोलह श्रृंगार और औरतों की खूबसूरती के बीच में चोली दामन जैसा ही रिश्ता है।


लेकिन यह जानने से पहले कि हिंदू महिलाओं के सोलह श्रृंगार में कौन कौन से साजो सामान आते हैं, इससे पहले हमारा यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिरकार ये सोलह श्रृंगार होता क्या है और इसका नारियों के जीवन में क्या महत्व है।
हिन्दू महिलाओं के सोलह श्रृंगार का रिश्ता उनके सुहाग से होता है।


ऐसा माना जाता है कि औरतों की सुंदरता और खुद को संवारने के लिए किया गया श्रृंगार अधूरा है यदि उनके श्रृंगार में सोलह श्रृंगार शामिल न हो। सोलह श्रृंगार उनके सुहाग को लंबी उम्र के साथ साथ उनके घर परिवार की खुशियों को बरकरार रखने में मदद करता है।


1) स्नान – श्रृंगार पूर्व 
१६ श्रृंगारों में प्रथम चरण है स्नान। कोई भी और श्रृंगार करने से पूर्व नियम पूर्वक स्नान करने का अत्यंत महत्व है। स्नान में शिकाकाई, भृंगराज, आंवला, उबटन और अन्य कई सामग्रियां और नियम – इन सबका आयुर्वेद के ग्रंथों में विस्तार से जिक्र है।


2) बिंदी
हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सुहागिन स्त्रियों को कुमकुम या सिंदूर से अपने माथे पर लाल बिंदी जरूर लगाना चाहिए। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
प्रस्तुत प्रसंग रामायण के सुंदरकांड में से लिया गया है जिसमें बहुत ही सरल तरीके से हनुमान जी की अन्तर्मन की भावनाओं से ये समझाया गया है कि ईश्वर की इच्छा बिना संसार में कुछ भी होना संभव नहीं।
अत: जो हुआ, जो हो रहा है और जो होगा, सब प्रभु की इच्छा से होगा।


अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध से भरकर, तलवार लेकर, सीता माता को मारने के लिए दौड़ पड़ा , तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीनकर, इसका सिर काट लेना चाहिए।


किन्तु अगले ही क्षण उन्होंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। ये देखकर वे गदगद हो उठे और ये सोचने लगे कि यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो सीता जी को कौन बचाता?
बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है,
मैं न होता, तो क्या होता ?

परंतु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने स्वयं रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गए कि प्रभु जिससे जो काम लेना चाहते हैं, वह उसीसे लेते हैं। कोई और चाहकर भी वह काम नहीं कर सकता।

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है और वह लंका जलाएगा।


तो हनुमान जी बड़ी चिंता में पड़ गए कि प्रभु राम ने तो लंका जलाने को कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है कि उन्होने स्वप्न में देखा है कि एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिये। फिर उन्होने सोचा,'जो प्रभु कि इच्छा।'