प्रस्तुत प्रसंग रामायण के सुंदरकांड में से लिया गया है जिसमें बहुत ही सरल तरीके से हनुमान जी की अन्तर्मन की भावनाओं से ये समझाया गया है कि ईश्वर की इच्छा बिना संसार में कुछ भी होना संभव नहीं।
अत: जो हुआ, जो हो रहा है और जो होगा, सब प्रभु की इच्छा से होगा।

अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध से भरकर, तलवार लेकर, सीता माता को मारने के लिए दौड़ पड़ा , तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीनकर, इसका सिर काट लेना चाहिए।
किन्तु अगले ही क्षण उन्होंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। ये देखकर वे गदगद हो उठे और ये सोचने लगे कि यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो सीता जी को कौन बचाता?
बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है,
मैं न होता, तो क्या होता ?
परंतु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने स्वयं रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गए कि प्रभु जिससे जो काम लेना चाहते हैं, वह उसीसे लेते हैं। कोई और चाहकर भी वह काम नहीं कर सकता।

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है और वह लंका जलाएगा।
तो हनुमान जी बड़ी चिंता में पड़ गए कि प्रभु राम ने तो लंका जलाने को कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है कि उन्होने स्वप्न में देखा है कि एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिये। फिर उन्होने सोचा,'जो प्रभु कि इच्छा।'
तत्पश्चात जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिए दौड़े तो हनुमान जी ने स्वयं को बचाने की तनिक भी चेष्टा नहीं की। सभा में पकड़ कर लाए गए हनुमान जी को जब मारने की बात की जाने लगी तब विभीशण ने कहा कि दूत को मारना अनीति है। तब हनुमान जी समझ गए कि उन्हें बचाने के लिए...
...प्रभु ने ये उपाय कर दिया है।
आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बन्दर को मारा नहीं जाएगा परंतु दंड तो अवश्य दिया जाएगा, इसलिए इसकी पूंछ पे कपड़ा बांधकर घी डालकर आग लगाई जाए।
तब हनुमान जी मन ही मन बड़े आश्चर्यचकित हुए और प्रसन्न भी।
आश्चर्यचकित इसलिए कि उन्हें त्रिजटा की बात सत्य होते दिख रही थी और प्रसन्न इसलिए कि अब उन्हें लंका को जलाने में ज्यादा प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा क्योंकि उन्हें कपड़ा, घी और आग तो अपने आप ही प्राप्त हो गए नहीं तो वे कहां ये सब चीजें ढूंढते फिरते।प्रभु ने ये काम भी रावण से करा दिया।
हे प्रभु! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं तो मुझसे करा लेने में क्या आश्चर्य।
उसके बाद का प्रकरण तो जग-जाहिर है।
हनुमान जी ने कैसे लंका जलाई और कैसे सीताजी का सन्देसा प्रभु राम तक पहुंचाया।
इसलिए सदैव याद रखें कि संसार में जो हो रहा है,वह सब ईश्वरीय विधान है। हम और आप तो केवल ईश्वर के विधान को निभाने वाले पात्र हैं। इसलिए कभी भी ये भ्रम न पालें कि मैं न होता तो क्या होता? मैं अगर नहीं भी होता तो भी वह सब होता जो होना है।
इसलिए हमेशा यह सोचें कि

'न ही मैं श्रेष्ठ हूं, न ही मैं खास हूं ।
मैं तो बस एक छोटा सा प्रभु का दास हूं ।।'

🌺 जय श्री राम 🌺
❤ जय सियाराम ❤
🚩 जय हनुमान 🚩

More from Vibhu Vashisth

🌺कैसे बने गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन और क्यों दो भागों में फटी होती है नागों की जिह्वा🌺

महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थीं।लेकिन विनता व कद्रु नामक अपनी दो पत्नियों से उन्हे विशेष लगाव था।एक दिन महर्षि आनन्दभाव में बैठे थे कि तभी वे दोनों उनके समीप आकर उनके पैर दबाने लगी।


प्रसन्न होकर महर्षि कश्यप बोले,"मुझे तुम दोनों से विशेष लगाव है, इसलिए यदि तुम्हारी कोई विशेष इच्छा हो तो मुझे बताओ। मैं उसे अवश्य पूरा करूंगा ।"

कद्रू बोली,"स्वामी! मेरी इच्छा है कि मैं हज़ार पुत्रों की मां बनूंगी।"
विनता बोली,"स्वामी! मुझे केवल एक पुत्र की मां बनना है जो इतना बलवान हो की कद्रू के हज़ार पुत्रों पर भारी पड़े।"
महर्षि बोले,"शीघ्र ही मैं यज्ञ करूंगा और यज्ञ के उपरांत तुम दोनो की इच्छाएं अवश्य पूर्ण होंगी"।


महर्षि ने यज्ञ किया,विनता व कद्रू को आशीर्वाद देकर तपस्या करने चले गए। कुछ काल पश्चात कद्रू ने हज़ार अंडों से काले सर्पों को जन्म दिया व विनता ने एक अंडे से तेजस्वी बालक को जन्म दिया जिसका नाम गरूड़ रखा।जैसे जैसे समय बीता गरुड़ बलवान होता गया और कद्रू के पुत्रों पर भारी पड़ने लगा


परिणामस्वरूप दिन प्रतिदिन कद्रू व विनता के सम्बंधों में कटुता बढ़ती गयी।एकदिन जब दोनो भ्रमण कर रहीं थी तब कद्रू ने दूर खड़े सफेद घोड़े को देख कर कहा,"बता सकती हो विनता!दूर खड़ा वो घोड़ा किस रंग का है?"
विनता बोली,"सफेद रंग का"।
तो कद्रू बोली,"शर्त लगाती हो? इसकी पूँछ तो काली है"।

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कुंडली में 12 भाव होते हैं। कैसे ज्योतिष द्वारा रोग के आंकलन करते समय कुंडली के विभिन्न भावों से गणना करते हैं आज इस पर चर्चा करेंगे।
कुण्डली को कालपुरुष की संज्ञा देकर इसमें शरीर के अंगों को स्थापित कर उनसे रोग, रोगेश, रोग को बढ़ाने घटाने वाले ग्रह


रोग की स्थिति में उत्प्रेरक का कार्य करने वाले ग्रह, आयुर्वेदिक/ऐलोपैथी/होमियोपैथी में से कौन कारगर होगा इसका आँकलन, रक्त विकार, रक्त और आपरेशन की स्थिति, कौन सा आंतरिक या बाहरी अंग प्रभावित होगा इत्यादि गणना करने में कुंडली का प्रयोग किया जाता है।


मेडिकल ज्योतिष में आज के समय में Dr. K. S. Charak का नाम निर्विवाद रूप से प्रथम स्थान रखता है। उनकी लिखी कई पुस्तकें आज इस क्षेत्र में नए ज्योतिषों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
प्रथम भाव -
इस भाव से हम व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता, सिर, मष्तिस्क का विचार करते हैं।


द्वितीय भाव-
दाहिना नेत्र, मुख, वाणी, नाक, गर्दन व गले के ऊपरी भाग का विचार होता है।
तृतीय भाव-
अस्थि, गला,कान, हाथ, कंधे व छाती के आंतरिक अंगों का शुरुआती भाग इत्यादि।

चतुर्थ भाव- छाती व इसके आंतरिक अंग, जातक की मानसिक स्थिति/प्रकृति, स्तन आदि की गणना की जाती है


पंचम भाव-
जातक की बुद्धि व उसकी तीव्रता,पीठ, पसलियां,पेट, हृदय की स्थिति आंकलन में प्रयोग होता है।

षष्ठ भाव-
रोग भाव कहा जाता है। कुंडली मे इसके तत्कालिक भाव स्वामी, कालपुरुष कुंडली के स्वामी, दृष्टि संबंध, रोगेश की स्थिति, रोगेश के नक्षत्र औऱ रोगेश व भाव की डिग्री इत्यादि।

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The first ever world map was sketched thousands of years ago by Indian saint
“Ramanujacharya” who simply translated the following verse from Mahabharat and gave the world its real face

In Mahabharat,it is described how 'Maharishi Ved Vyasa' gave away his divine vision to Sanjay


Dhritarashtra's charioteer so that he could describe him the events of the upcoming war.

But, even before questions of war could begin, Dhritarashtra asked him to describe how the world looks like from space.

This is how he described the face of the world:

सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन। परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः॥
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः। एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले॥ द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।

—वेद व्यास, भीष्म पर्व, महाभारत


Meaning:-

हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है, जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है, उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है। इसके दो अंशो मे पीपल और दो अंशो मे विशाल शश (खरगोश) दिखायी देता है।


Meaning: "Just like a man sees his face in the mirror, so does the Earth appears in the Universe. In the first part you see leaves of the Peepal Tree, and in the next part you see a Rabbit."

Based on this shloka, Saint Ramanujacharya sketched out the map, but the world laughed
1. Project 1742 (EcoHealth/DTRA)
Risks of bat-borne zoonotic diseases in Western Asia

Duration: 24/10/2018-23 /10/2019

Funding: $71,500
@dgaytandzhieva
https://t.co/680CdD8uug


2. Bat Virus Database
Access to the database is limited only to those scientists participating in our ‘Bats and Coronaviruses’ project
Our intention is to eventually open up this database to the larger scientific community
https://t.co/mPn7b9HM48


3. EcoHealth Alliance & DTRA Asking for Trouble
One Health research project focused on characterizing bat diversity, bat coronavirus diversity and the risk of bat-borne zoonotic disease emergence in the region.
https://t.co/u6aUeWBGEN


4. Phelps, Olival, Epstein, Karesh - EcoHealth/DTRA


5, Methods and Expected Outcomes
(Unexpected Outcome = New Coronavirus Pandemic)