SSSIndore's Categories

SSSIndore's Authors

Latest Saves

प्रश्न = कैसे सिद्ध होता है कि शब्द यात्रा करते हैं ?

बहुत ही रोचक प्रश्न किया है आपने। यहाँ पर हम शब्दों की यात्रा में निहित वैज्ञानिक व दार्शनिक पक्षों के विषय पर चर्चा करेंगे।

हमारे शब्द एक ऊर्जा का रूप ही होते है, जो एक बार शब्द उच्चारित हो गए,


फिर वे वायुमंडल में ही चिर निरंतर के लिए स्थित हो जाते है और यात्रा करते रहते है। कैसे और किस प्रकार?? आगे जानेंगे;

शोधकर्ताओं का मत है कि यदि 50 लोग 3 घंटे तक लगातार एक शब्द उच्चारित करते रहे, तो लगभग छह हज़ार खरब वॉट ऊर्जा उत्पादित होती हैं। याने कि जब हम कोई भी शब्द बोलते है

तो उसका ब्लू प्रिंट ऊर्जा तरंगों के रूप में वायुमंडल में ठहर जाता है। और ये शब्द तरंग कभी भी नष्ट नहीं होती।

जैसा कि न्यूटन की गति का तीसरा नियम- 'ऊर्जा का न तो सृजन और न ही विनाश सम्भव है।'

इस प्राकृतिक नियम पर वैज्ञानिकों को इतना विश्वास है कि इसके बलबूते पर वे द्वापर कालीन गीता उपदेश की शब्द तरंगों को पकड़ने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मत है कि हजारों वर्ष पूर्व श्री केशव ने जो गीता श्लोक अपने मुखारविंद से कहे थे, वे आज भी वायुमंडल में यात्रा कर रहे है।

सूक्ष्म तरंगों के रूप में!

यदि इन तरंगों को कैद कर डिकोड कर लिया जाए, तो हम आज भी कृष्ण जी की प्रत्यक्ष वाणी का श्रवण कर सकते हैं!

आतः जिन शब्दों का एक बार हमारे मुख से प्रस्फुटन हो गया, उनकी ऊर्जा-तरंगें हमेशा के लिए वातावरण में विद्यमान हो जाती हैं।
चार प्रकार की उपासना

उपासना में उप+आसना दो पद हैं । उप माने समीप आसना माने बैठना । अपने इष्टदेव का सान्निध्य प्राप्त करना उपासना है ।

"शिव-गीता" में भगवान् शंकर श्रीराम जी को उपदेश करते हुए कहते हैं :: "राम ! उपासना चार प्रकार की हैं


१. सम्पदा :: थोड़े गुणों का अधिक रूप में चिन्तन करना सम्पदा है । जैसे एक मन होने पर भी वृत्ति-भेद से अनेक है , अतः "अनन्तम् वै मन:" कहा गया है । अनन्त रूप में मन का चिन्तन सम्पदा है ।

२. आरोप :: यही सम्पदा मूर्ति-पूजा के रूप में , धातु-पत्थर आदि की मूर्ति में इष्टदेव की भावना करने से प्रतीकोपासना कहलाती है , वह भी दो प्रकार की है

आरोप प्रधान सम्पत्ति :: सगुण-मूर्ति का चिन्तन ।

अधिष्ठान प्रधान अभ्यास :: अधिष्ठान को उद्द्येश्य करके आरोपित का ध्यान करना ।

जैसे सगुण ब्रह्म के चिन्तन करते हुए निर्गुण ब्रह्म का अनुसन्धान करना आरोप है । इसमें विधि-विधान से इष्ट की पूजा , मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण तथा मूर्ति में ब्रह्म-बुद्धि आरोप कहा गया है ।

जैसे प्रणवाक्षर उद्गीथ है । अर्थात् प्राणों की उपासना उद्गीथ उपासना है । प्रणवाक्षर का उच्चारण करते हुए की गई उपासना उद्गीथ है तथा प्रधान रूप से जिसका विधान किया जाए उसे विधि कहते हैं ।
The Moplah Files (Thread)

Dark chapter of India that was purposefully omitted from History books coz it expose hypocrisy of Gandhi, it burns fake narrative of Hindu Muslim unity. All Mslm know abt Moplah files but no hindu knows but today every Hindu will also know abt it.
1/n


https://t.co/nXkWhFJqZN


Kerala was major spice exporter since 3000 BC. Kerala used to be considered the heaven of spices. Spices brought Arab in Kerala in 700 AC and with that Islam arrived in Kerala. With that Arabs started to settle in Kerala and first mosque was built in 10th century.

Trade between Kerala n Arab kept goin m lot of Arab Mslm settled here. With arrival of Islamic rule, Islam further spread. At time of Tipu Sultan, lot of Hindu were forcefully converted 2 Mslm n with that Islam became prominent religion in Kerala. Kerala Mslms are called Mappilas

https://t.co/4MuTArff2Y
इस देश को लूटने वाले हमारे प्यारे बन गए और इसे सोने की चिड़िया बनाने वाले चक्रवर्ती सम्राट महाराजा विक्रमादित्य को भुला दिया गया!

सम्राट विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संवत चल रहा और 2078 पूर्ण होकर 2 अप्रैल (चैत्र शुक्‍ल प्रतिपदा) से 2079 विक्रम संवत आरम्भ हो रहा।

#LongThread


महान सम्राट महाराजा विक्रमदित्य (विक्रम सेन परमार) और उनकी वीरता और महानता के बारे में आज देश के सिर्फ़ मुट्ठी भर लोगों को ज्ञात होगा, कि उन्होंने इस देश को सोने की चिड़िया बनाया था और देश में स्वर्णिम काल लाया था

विक्रमादित्य के पिता जी का नाम गर्दभील्ल (गंधर्वसेन) था।

सम्राट विक्रमादित्य की बहन का नाम मैनावती था तथा उनके भाई भर्तृहरि महाराज थे। सम्राट विक्रमादित्य की माँ जी का नाम सौम्यदर्शना था।

महाराज विक्रमादित्य, चक्रवर्ती (अर्थात् जिसका संपूर्ण भारत में राज हो) सम्राट थे कहते हैं उनके राज में कभी भी सूर्यास्त नहीं होता था।

महाराज विक्रमादित्य ने हिंदुत्व का परचम पूरे विश्व में लहराया था तथा उन्हीं के कारण ही आज सनातन धर्म बचा हुआ है।

सम्राट विक्रमादित्य का जन्म 101 BCE अवंतिका( उज्जैन) मध्य प्रदेश में हुआ था और 57 BCE में शको ( विदेशी आक्रमणकारियों ) को हराने के उपलक्ष में

नए काल सत्र का निर्माण किया, जिसे हिंदू पंचांग में “विक्रम संवत” के नाम से जाना जाता है |
आज जो भी ज्योतिष गणना है जैसे , हिन्दी सम्वंत , वार ,तिथीयाँ , राशि , नक्षत्र , गोचर आदि उन्ही की रचना है

(विक्रमी संवत् = current year + 57)