चार प्रकार की उपासना

उपासना में उप+आसना दो पद हैं । उप माने समीप आसना माने बैठना । अपने इष्टदेव का सान्निध्य प्राप्त करना उपासना है ।

"शिव-गीता" में भगवान् शंकर श्रीराम जी को उपदेश करते हुए कहते हैं :: "राम ! उपासना चार प्रकार की हैं

१. सम्पदा :: थोड़े गुणों का अधिक रूप में चिन्तन करना सम्पदा है । जैसे एक मन होने पर भी वृत्ति-भेद से अनेक है , अतः "अनन्तम् वै मन:" कहा गया है । अनन्त रूप में मन का चिन्तन सम्पदा है ।
२. आरोप :: यही सम्पदा मूर्ति-पूजा के रूप में , धातु-पत्थर आदि की मूर्ति में इष्टदेव की भावना करने से प्रतीकोपासना कहलाती है , वह भी दो प्रकार की है

आरोप प्रधान सम्पत्ति :: सगुण-मूर्ति का चिन्तन ।

अधिष्ठान प्रधान अभ्यास :: अधिष्ठान को उद्द्येश्य करके आरोपित का ध्यान करना ।
जैसे सगुण ब्रह्म के चिन्तन करते हुए निर्गुण ब्रह्म का अनुसन्धान करना आरोप है । इसमें विधि-विधान से इष्ट की पूजा , मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण तथा मूर्ति में ब्रह्म-बुद्धि आरोप कहा गया है ।
जैसे प्रणवाक्षर उद्गीथ है । अर्थात् प्राणों की उपासना उद्गीथ उपासना है । प्रणवाक्षर का उच्चारण करते हुए की गई उपासना उद्गीथ है तथा प्रधान रूप से जिसका विधान किया जाए उसे विधि कहते हैं ।
देवताओं के अङ्गों में उनकी शक्ति का आरोप = जैसे जब भगवती सती ने दक्ष के यज्ञ में योगाग्नि से अपना शरीर जला दिया , भगवान् शंकर उनके शरीर को उठाकर रोते घूमने लगे । विष्णु भगवान् ने उनका मोह भङ्ग करने के लिए सुदर्शन से काटकर भगवती के शरीर के अङ्ग-प्रत्यंगों को यत्र-तत्र डाल दिया
वे ५२ स्थानों पर गिरे और ५२ शक्तिपीठों के रूप में प्रसिद्ध है । किसी-किसी ग्रन्थों में १०८ शक्तिपीठ बताये गये हैं । उनके अङ्गों में शक्ति-बुद्धि उपासना है ।
३. अध्यास :: बुद्धिपूर्वक जो आरोप किया जाता है , उसकी विधि अध्यास विधि है । जैसे वेद आज्ञा देता है -- 'आदित्यो वै यूप:' अर्थात् खैर की लकड़ी के बने हुए खूंटे में जिसको छीलकर , मनुष्य जैसा आकार बनाकर यज्ञशाला में पशु बाँधने के लिए गाड़ा जाता है ,
उसे यूप कहते हैं । वेद आज्ञा देता है कि उस यूप की सूर्यबुद्धि से उपासना करें । यह अध्यास उपासना है । वह लकड़ी होने पर भी उसमें सूर्य की भावना का आरोप किया जाता है ।
४. सम्वर्ग उपासना :: क्रिया-योग द्वारा अर्थात् पूर्ण सामग्री से की गई इष्ट-पूजा सम्वर्ग उपासना है ।जैसे प्रलयकालीन प्रचण्ड वायु सभी प्राणियों को अपने वश में करती है ,वैसे समस्त प्राणियों को वश में करने के लिए अनेकों उपचारों से की जाने वाली इष्ट की उपासना सम्वर्गोपासना कहलाती है ।
सद्गुरुओं द्वारा प्राप्त ज्ञान से इष्ट में अभेद-बुद्धि से इष्ट की पूजा विशेष उपासना है । वह मूर्ति आदि में होने के कारण बहिरङ्ग उपासना कही जाती है ।

मेरा भक्त मेरा ध्यान किस प्रकार करे ?

इसे बताते हुए भगवान् शिव कहते हैं
राम ! मैं अचिन्त्य अव्यक्त अनन्त अमृत शिव अविनाशी परम् शान्त सर्वकारण सवव्यापी चिदानन्द अरूप -अजन्मा आदि अद्भुत गुणों से युक्त होने पर भी अपने भक्तों की भावना के अनुरूप कोटि सूर्य के समान तेजस्वी,
" शुभ्र-स्फटिक मणि के समान अर्द्धनारीश्वर , कोटि चन्द्रमाओं के समान शीतल तथा सूर्य-चन्द्र-अग्नि आदि तीन नेत्रों वाले मेरे सगुण स्वरूप का भक्त ध्यान करें ।

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