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Most Popular on 1st of May, 2021
A #Thread on SKANDGUPTA VIKRAMADITYA - THE SAVIOUR OF INDIA
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भारत की मिट्टी में एक महान योद्धा स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य का जन्म हुआ। जब संसार की सारी प्राचीन सभ्यताओं नें सबसे खूंखार और बर्बर हूणों के सामने घुटने टेक दिए तब हूणों के आतंक का विनाश करने यह महान् योद्धा ..


स्कन्दगुप्त निकल पड़े जिनका पराक्रम पूरे विश्व में अमर हुआ।
परमवीर स्कन्दगुप्त के महाप्रताप को जानने के लिए ये हूण कौन थे, कहां से आए थे और क्या चाहते थे इसको पहले समझना होगा।


हूण एक अमानुष बर्बर जाति के लोग थे जिन्होंने यूनान, मिस्र, ग्रीस और रोम को राख का ढ़ेर बना दिया था। ये इतने बर्बर थे कि बच्चों को चीर फाड़ कर, महिलाओं की दुर्दशा करके, फिर उनको जला कर, भून‌ कर खाते थे।


तीसरी और चौथी इसवी तक हूणों के अत्याचारों से सम्पूर्ण यूरोप थर्रा उठा था और देखते ही देखते समूचा रोमन साम्राज्य भी अतीत का हिस्सा बन गया। खूंखार हूण जब अट्टहास कर के जब रूस की ओर बढ़े तो वोल्गा नदी रूस के लोगों के रक्त से लाल हो उठी।


चीन और मंगोलिया के उत्तर पश्चिमी हिस्सों में जन्में बर्बर हूण प्रजाति की घुसपैठ से महाकाय चीन भी त्राहि त्राहि कर रहा था। हूण सबसे पहले बच्चों को निशाना बनाते थे ताकि अगली पीढ़ी नष्ट हो जाए इसके बाद वो महिलाओं को उठा ले जाते थे और पुरुषों को तड़पा तड़पा कर मारते थे। ..
महाभारत की कहानी कौन नहीं जानता।लेकिन क्या आपको पता है कि महाभारत के ज्यादातर पात्र किसी न किसी श्राप में फंसे थे।अगर ये श्राप न होते तो कदाचित महाभारत की कहानी कुछ और होती।हिन्दु पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न श्रापों का वर्णन मिलता है व हर श्राप के पीछे कोई कहानी अवश्य होती है।


आइए आज जानते हैं महाभारत कथा में वर्णित कुछ श्रापों के बारे में।

1) राजा पाण्डु को ऋषि किन्दम का श्राप

एकबार महाराज पाण्डु शिकार खेलने वन गए।झाडियों के पीछे कुछ हिल रहा था। मृग है सोचकर राजा ने बाण चलाया जो जाकर ऋषि किन्दम और उनकी पत्नी को लगा।वे दोनो रति-क्रीड़ा में लिप्त थे।

जब राजा ने उन्हें देखा तो बहुत दुखी हुए कि ये मुझसे क्या पाप हो गया।बहुत क्षमा याचना के बाद भी किन्दम ऋषि ने पाण्डु को श्राप दे दिया कि जब भी वो किसी स्त्री को काम भावना से स्पर्श करेंगे उसी क्षण उनकी मृत्यु हो जाएगी।पश्चाताप करने, वे सिंहासन पे अन्धे राजा धृतराष्ट्र को बैठाकर...


..स्वयं अपनी रानियों कुंती व माद्री के साथ वन चले गए।पांडवों का जन्म भी कुंती को ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गए मंत्र से हुआ था जिसमे किसी भी देव का स्मरण कर उस देव से कुंती,पुत्र प्राप्त कर सकती थी।एक बार माद्री पे मोहित हो जब पांडु ने उसे स्पर्श किया,उसी क्षण पांडु की मृत्यु होगयी।


2) उर्वशी का अर्जुन को श्राप

महाभारत युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गयी। अर्जुन ने जब उन्हें अपनी माता के समान बताया तो यह सुनकर उर्वशी क्रोधित हो गयी और अर्जुन को श्राप दे डाला कि तुम नपुंसक की भांति...
Most Popular on 30th of April, 2021
Most Popular on 29th of April, 2021
एक बार भगवान कृष्ण की पत्नी महारानी सत्यभामा को अपनी सुन्दरता का अभिमान हो चला।दरबार में सिंहासन पर बैठे महारानी सत्यभामा ने श्री कृष्ण से अनायास ही पूछ लिया,"स्वामी!आपने त्रेता युग में भगवान राम के रूप में अवतार लिया था तथा सीता आपकी पत्नी थीं।क्या वह मुझसे भी ज्यादा सुन्दर थी?"


श्री कृष्ण सत्यभामा के प्रश्न का उत्तर देते कि उससे पहले ही गरुड़ बोल पड़े,"प्रभु!क्या मुझसे भी ज्यादा तीव्र गति से कोई इस सम्पूर्ण जग में उड़ सकता है।"
ये सुन सुदर्शन से भी नहीं रहा गया और वह भी बोल पड़ा,"भगवन!मैनें बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है।


क्या संसार में मुझसे भी बड़ा कोई शक्तिशाली है।" तीनों की ये बातें सुन श्री कृष्ण मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे और जान रहे थे कि इन सबमें अहंकार आ गया है जिसे नष्ट करना अति आवश्यक है।तब श्री कृष्ण ने उन तीनो से कहा,"मेरा एक परम भक्त है, हनुमान।तुम तीनों के प्रश्नों के उत्तर वही...


...भलीभांति दे पाएगा। हे गरुड़! तुम तो बड़ी तीव्र गति से उड़ते हो।तुम जाओ और हनुमान को ये कहकर बुला लाओ कि भगवान राम , माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रभु राम और माता सीता का नाम सुनकर वे दौड़े-दौड़े चले आएंगे।" गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमानजी को बुलाने उड़ चले।

इधर श्री कृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने श्री राम का रूप धारण कर लिया।फिर श्री कृष्ण ने सुदर्शन को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेशद्वार पर पहरा दो।ज्ञात रहे कि मेरी आज्ञा के बिना कोई भी महल में प्रवेश न करने पाए ।
The official name of this mosque is "Atala Devi Masjid".

It still stands on the pillars of the Hindu temple that originally stood at this site.

The temple was destroyed and its material was used in the construction of the Mosque. Egyptian?


"The original name of Jaunpur was Yavanapura".

"Even in the 19th century, no Hindu called it by the name 'Jaunpur'".

"The local Sharqi Sultans were great destroyers, and every mosque in Jaunpur was built on an existing Hindu temple"

- Archaeological survey of India report


"There is a Sanskrit inscription dating back to 8th century in the Southern Gate of the Jaunpur's Jami mosque".

"There is at present not ANY trace of old temples standing, for the Muhammadan conquerors did their work of destruction with unusual completeness"

- ASI report


"After destroying Karar Bir temple, Firoz Shah saw Atala Devi temple.

He ordered the temple to be destroyed immediately.

But Hindus violently attacked the workmen & pelted the emperor with stones.

Hindus were initially victorious"

- Tarikh I Jaunpur, translated by Pogson


"But fresh Muslim troops arrived from Jaunpur Capital Zafarabad.

An order for slaughter was issued.

Thousands of Hindu infidels became food to the d0gs of death. The river Gomati ran red with Hindu blo0d. Yet, Hindus did not refrain from fighting" -

Tarikh I Jaunpur
Most Popular on 28th of April, 2021
Tip from the Monkey
Pangolins, September 2019 and PLA are the key to this mystery
Stay Tuned!


1. Yang


2. A jacobin capuchin dangling a flagellin pangolin on a javelin while playing a mandolin and strangling a mannequin on a paladin's palanquin, said Saladin
More to come tomorrow!


3. Yigang Tong
https://t.co/CYtqYorhzH
Archived: https://t.co/ncz5ruwE2W


4. YT Interview
Some bats & pangolins carry viruses related with SARS-CoV-2, found in SE Asia and in Yunnan, & the pangolins carrying SARS-CoV-2 related viruses were smuggled from SE Asia, so there is a possibility that SARS-CoV-2 were coming from
दधीचि ऋषि को मनाही थी कि वह अश्विनी कुमारों को किसी भी अवस्था में ब्रह्मविद्या का उपदेश नहीं दें। ये आदेश देवराज इन्द्र का था।वह नहीं चाहते थे कि उनके सिंहासन को प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से कोई भी खतरा हो।मगर जब अश्विनी कुमारों ने सहृदय प्रार्थना की तो महर्षि सहर्ष मान गए।


और उन्होनें ब्रह्मविद्या का ज्ञान अश्विनि कुमारों को दे दिया। गुप्तचरों के माध्यम से जब खबर इन्द्रदेव तक पहुंची तो वे क्रोध में खड़ग ले कर गए और महर्षि दधीचि का सर धड़ से अलग कर दिया।मगर अश्विनी कुमार भी कहां चुप बैठने वाले थे।उन्होने तुरंत एक अश्व का सिर महर्षि के धड़ पे...


...प्रत्यारोपित कर उन्हें जीवित रख लिया।उस दिन के पश्चात महर्षि दधीचि अश्वशिरा भी कहलाए जाने लगे।अब आगे सुनिये की किस प्रकार महर्षि दधीचि का सर काटने वाले इन्द्र कैसे अपनी रक्षा हेतु उनके आगे गिड़गिड़ाए ।

एक बार देवराज इन्द्र अपनी सभा में बैठे थे, तो उन्हे खुद पर अभिमान हो आया।


वे सोचने लगे कि हम तीनों लोकों के स्वामी हैं। ब्राह्मण हमें यज्ञ में आहुति देते हैं और हमारी उपासना करते हैं। फिर हम सामान्य ब्राह्मण बृहस्पति से क्यों डरते हैं ?उनके आने पर क्यों खड़े हो जाते हैं?वे तो हमारी जीविका से पलते हैं। देवर्षि बृहस्पति देवताओं के गुरु थे।

अभिमान के कारण ऋषि बृहस्पति के पधारने पर न तो इन्द्र ही खड़े हुए और न ही अन्य देवों को खड़े होने दिया।देवगुरु बृहस्पति इन्द्र का ये कठोर दुर्व्यवहार देख कर चुप चाप वहां से लौट गए।कुछ देर पश्चात जब देवराज का मद उतरा तो उन्हे अपनी गलती का एहसास हुआ।
Most Popular on 27th of April, 2021
🌺कैसे बने गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन और क्यों दो भागों में फटी होती है नागों की जिह्वा🌺

महर्षि कश्यप की तेरह पत्नियां थीं।लेकिन विनता व कद्रु नामक अपनी दो पत्नियों से उन्हे विशेष लगाव था।एक दिन महर्षि आनन्दभाव में बैठे थे कि तभी वे दोनों उनके समीप आकर उनके पैर दबाने लगी।


प्रसन्न होकर महर्षि कश्यप बोले,"मुझे तुम दोनों से विशेष लगाव है, इसलिए यदि तुम्हारी कोई विशेष इच्छा हो तो मुझे बताओ। मैं उसे अवश्य पूरा करूंगा ।"

कद्रू बोली,"स्वामी! मेरी इच्छा है कि मैं हज़ार पुत्रों की मां बनूंगी।"
विनता बोली,"स्वामी! मुझे केवल एक पुत्र की मां बनना है जो इतना बलवान हो की कद्रू के हज़ार पुत्रों पर भारी पड़े।"
महर्षि बोले,"शीघ्र ही मैं यज्ञ करूंगा और यज्ञ के उपरांत तुम दोनो की इच्छाएं अवश्य पूर्ण होंगी"।


महर्षि ने यज्ञ किया,विनता व कद्रू को आशीर्वाद देकर तपस्या करने चले गए। कुछ काल पश्चात कद्रू ने हज़ार अंडों से काले सर्पों को जन्म दिया व विनता ने एक अंडे से तेजस्वी बालक को जन्म दिया जिसका नाम गरूड़ रखा।जैसे जैसे समय बीता गरुड़ बलवान होता गया और कद्रू के पुत्रों पर भारी पड़ने लगा


परिणामस्वरूप दिन प्रतिदिन कद्रू व विनता के सम्बंधों में कटुता बढ़ती गयी।एकदिन जब दोनो भ्रमण कर रहीं थी तब कद्रू ने दूर खड़े सफेद घोड़े को देख कर कहा,"बता सकती हो विनता!दूर खड़ा वो घोड़ा किस रंग का है?"
विनता बोली,"सफेद रंग का"।
तो कद्रू बोली,"शर्त लगाती हो? इसकी पूँछ तो काली है"।
Most Popular on 26th of April, 2021
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राम-रावण युद्ध समाप्त हो चुका था। जगत को त्रास देने वाला रावण अपने कुटुम्ब सहित नष्ट हो चुका था।श्रीराम का राज्याभिषेक हुआ और अयोध्या नरेश श्री राम के नेतृत्व में चारों दिशाओं में शन्ति थी।
अंगद को विदा करते समय राम रो पड़े थे ।हनुमान को विदा करने की शक्ति तो राम में थी ही नहीं ।


माता सीता भी हनुमान को पुत्रवत मानती थी। अत: हनुमान अयोध्या में ही रह गए ।राम दिनभर दरबार में, शासन व्यवस्था में व्यस्त रहते थे। संध्या को जब शासकीय कार्यों में छूट मिलती तो गुरु और माताओं का कुशल-मंगल पूछ अपने कक्ष में जाते थे। परंतु हनुमान जी हमेशा उनके पीछे-पीछे ही रहते थे ।


उनकी उपस्थिति में ही सारा परिवार बहुत देर तक जी भर बातें करता ।फिर भरत को ध्यान आया कि भैया-भाभी को भी एकांत मिलना चाहिए ।उर्मिला को देख भी उनके मन में हूक उठती थी कि इस पतिव्रता को भी अपने पति का सानिध्य चाहिए ।

एक दिन भरत ने हनुमान जी से कहा,"हे पवनपुत्र! सीता भाभी को राम भैया के साथ एकांत में रहने का भी अधिकार प्राप्त है ।क्या आपको उनके माथे पर सिन्दूर नहीं दिखता?इसलिए संध्या पश्चात आप राम भैया को कृप्या अकेला छोड़ दिया करें "।
ये सुनकर हनुमान आश्चर्यचकित रह गए और सीता माता के पास गए ।


माता से हनुमान ने पूछा,"माता आप अपने माथे पर सिन्दूर क्यों लगाती हैं।" यह सुनकर सीता माता बोलीं,"स्त्री अपने माथे पर सिन्दूर लगाती है तो उसके पति की आयु में वृद्धि होती है और वह स्वस्थ रहते हैं "। फिर हनुमान जी प्रभु राम के पास गए ।