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पंचाग में महूरत का महत्व क्या है?

प्राचीन कला जिससे गृह चाल और नक्षत्रो की सही गणना कैसे होती थी?

Information by - Swami kevalya ji 🙏


हिन्दू धर्म में किसी भी कार्य की शुरुआत से पहले पंडित द्वारा एक विशेष मुहूर्त निकलवाया जाता है | कार्य मंगलमय और लाभदायक हो इसलिए सही वार, नक्षत्र और तिथि देखी जाती है और इसलिए पंचांग का उपयोग होता है | कौनसा दिन और समय कितना शुभ है इसकी सटीक जानकारी पंचांग के माध्यम से आसानी से


प्राप्त हो सकती है पर इसको जानना भी एक कला है क्युकी हर कोई इतनी गूढ़ गणना करने में असमर्थ होता है |
पंचांग के पाँच अंग :

1) नक्षत्र: पंचांग का पहले अंग है नक्षत्र और प्राचीन ज्योतिष शास्त्र अनुसार 27 नक्षत्र होते है पर मुहूर्त की गणना करते है एक और नक्षत्र यानी 28 वे

नक्षत्र को भी गिना जाता है जो की "अभिजीत" नक्षत्र है | सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी, मुंडन, सगाई, गृह प्रवेश आदि से पहले नक्षत्रो का सही स्थान पर होना बहुत ज़रूरी है |

2) तिथी : पंचांग का दूसरा अंग तिथी है और यह 16 प्रकार की होती है और इनमे भी पूर्णिमां और अमावस

दो सबसे महत्वपूर्ण तिथियां होती है | यह दोनों महीने में एक बार ज़रूर आती है | हिन्दू कैलेंडर के हिसाब से एक महीने को दो भागो में बाटा जाता है जिसे कृष्णा पक्ष और शुक्ल पक्ष के नाम से जान जाता है | अमावस और पूर्णिमा के बीच के समय को शुक्ल पक्ष कहा जाता है वही पूर्णिमा से अमावस के

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