The logic of Directional and Non Directional Option selling is explained in Video.
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𝗛𝗼𝘄 𝘁𝗼 𝗰𝗿𝗲𝗮𝘁𝗲 𝘆𝗼𝘂𝗿 𝗼𝘄𝗻 𝗖𝗵𝗮𝗿𝘁𝗶𝗻𝗸 𝗦𝗰𝗿𝗲𝗲𝗻𝗲𝗿

🧵 Thread 🧵
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𝗖𝗵𝗮𝗿𝘁𝗶𝗻𝗸 𝗦𝗰𝗿𝗲𝗲𝗻𝗲𝗿 is a Stock screening tool that is useful to screen stocks based on Technical & Fundamentals.
🔸 It scans stocks by using technical indicators like RSI, MACD, divergences, etc.
🔸 It also uses fundamental tools like Book Value, EPS,PE etc
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How To Create A Scan ?
Go to
https://t.co/JJEJBg3Cd8 & click on 𝘊𝘳𝘦𝘢𝘵𝘦 𝘚𝘤𝘢𝘯 under 𝘚𝘤𝘳𝘦𝘦𝘯𝘦𝘳𝘴.

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𝗙𝗶𝗿𝘀𝘁 𝗦𝘁𝗲𝗽 𝗧𝗼 𝗙𝗶𝗹𝘁𝗲𝗿 𝗦𝘁𝗼𝗰𝗸𝘀
We can select segments of stocks of our choice, e.g. cash or futures stocks, Nifty 100 etc.
Click on green ‘+’ icon to add conditions.
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𝗖𝗮𝗻𝗱𝗹𝗲 𝗧𝗶𝗺𝗲𝗳𝗿𝗮𝗺𝗲𝘀 & 𝗖𝗼𝗺𝗽𝗮𝗿𝗶𝘀𝗼𝗻 𝗢𝗽𝗲𝗿𝗮𝘁𝗼𝗿𝘀🔸 We can select any timeframe of candles in Chartink, from minutes to years.
🔸 And compare two candles using comparison operators like 𝘌𝘲𝘶𝘢𝘭 𝘵𝘰 or 𝘎𝘳𝘦𝘢𝘵𝘦𝘳 𝘛𝘩𝘢𝘯 , crossovers etc
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शमशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायी और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में अपने तीन वर्ष के बालक को रख के स्वयं चिता पे बैठ कर सती हो गयी ।इस प्रकार ऋषी दधीचि और उनकी पत्नी की मुक्ति हो गयी।


परन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़पने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो वो कोटर में पड़े पीपल के गोदों (फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के फलों और पत्तों को खाकर बालक का जीवन किसी प्रकार सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजर रहे थे ।नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देख कर उसका परिचय मांगा -
नारद बोले - बालक तुम कौन हो?
बालक - यही तो मैं भी जानना चहता हूँ ।
नारद - तुम्हारे जनक कौन हैं?
बालक - यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने आँखें बन्द कर ध्यान लगाया ।


तत्पश्चात आश्चर्यचकित हो कर बालक को बताया कि 'हे बालक! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो । तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्रास्त्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी।तुम्हारे पिता की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी'।

बालक - मेरे पिता की अकाल मृत्यु का क्या कारण था?
नारद - तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक - मेरे उपर आयी विपत्ति का कारण क्या था?
नारद - शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर बड़े हुए उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।