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क्यूँ मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व और क्या हैं इस पर्व से जुड़ी, माँ लक्ष्मी और राजा बलि की पौराणिक कथा

कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है. भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान माँगा, दानवीर बलि इसके लिए सहज राजी हो गये


वामन ने पहले ही पग में धरती नाप ली,तो राजा बलि समझ कि गये कि ये वामन कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु ही हैं. बलि ने विनय पूर्वक भगवान विष्णु को प्रणाम किया और अगला पग रखने के लिए अपने शीश को प्रस्तुत किया. विष्णु भगवान बलि पर प्रसन्न हुए और वरदान माँगने को कहा


तब असुर राज बलि ने वरदान में भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने । भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गई।

नारद मुनि के पास पहुंचकर उन्होंने उनसे पूछा के भगवान विष्णु कहाँ है। जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और वरदान हेतु राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हुए हैं।

तब माता लक्ष्मी के आग्रह पे नारद मुनि ने भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय बताया ।

उन्होंने कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बाँध दें। रक्षासूत्र बाँधने के बाद राजा बलि से उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को वापस माँग लें।

तब माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह वैसा ही किया और असुर राज बलि को राखी बाँधी
बिजली के आविष्कारक - महर्षि अगस्त्य

राव साहब कृष्णाजी वझे ने १८९१ में विज्ञान संबंधी ग्रंथों की खोज के दौरान उन्हें उज्जैन में दामोदर त्र्यम्बक जोशी के पास अगस्त्य संहिता के कुछ पन्ने मिले।

इस संहिता के पन्नों में उल्लिखित वर्णन को पढ़कर नागपुर में संस्कृत के विभागाध्यक्ष


रहे डा. एम.सी. सहस्रबुद्धे को आभास हुआ कि यह वर्णन डेनियल सेल से मिलता-जुलता है। अत: उन्होंने नागपुर में इंजीनियरिंग के प्राध्यापक श्री पी.पी. होले को वह दिया और उसे जांचने को कहा। श्री अगस्त्य ने अगस्त्य संहिता में विधुत उत्पादन से सम्बंधित सूत्रों में लिखा:

संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्‌।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्‌॥

अगस्त्य संहिता :

अर्थात: एक मिट्टी का पात्र (Earthen pot) लें, उसमें ताम्र पट्टिका (copper sheet)


डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु (wet saw dust) लगायें, ऊपर पारा (mercury‌) तथा दस्त लोष्ट (Zinc) डालें, फिर तारों को मिलाएंगे तो, उससे मित्रावरुणशक्ति का उदय होगा।

पर अब यहाँ थोड़ी सी हास्यास्पद स्थति उत्पन्न हुई।

उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले


तथा उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो
उपर्युक्त वर्णन के आधार पर श्री होले तथा उनके मित्र ने तैयारी चालू की तो शेष सामग्री तो ध्यान में आ गई,

परन्तु शिखिग्रीवा समझ में नहीं आया। संस्कृत कोष में देखने पर ध्यान में आया कि शिखिग्रीवा याने मोर की गर्दन।

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**Thread on Bravery of Sikhs**
(I am forced to do this due to continuous hounding of Sikh Extremists since yesterday)

Rani Jindan Kaur, wife of Maharaja Ranjit Singh had illegitimate relations with Lal Singh (PM of Ranjit Singh). Along with Lal Singh, she attacked Jammu, burnt - https://t.co/EfjAq59AyI


Hindu villages of Jasrota, caused rebellion in Jammu, attacked Kishtwar.

Ancestors of Raja Ranjit Singh, The Sansi Tribe used to give daughters as concubines to Jahangir.


The Ludhiana Political Agency (Later NW Fronties Prov) was formed by less than 4000 British soldiers who advanced from Delhi and reached Ludhiana, receiving submissions of all sikh chiefs along the way. The submission of the troops of Raja of Lahore (Ranjit Singh) at Ambala.

Dabistan a contemporary book on Sikh History tells us that Guru Hargobind broke Naina devi Idol Same source describes Guru Hargobind serving a eunuch
YarKhan. (ref was proudly shared by a sikh on twitter)
Gobind Singh followed Bahadur Shah to Deccan to fight for him.


In Zafarnama, Guru Gobind Singh states that the reason he was in conflict with the Hill Rajas was that while they were worshiping idols, while he was an idol-breaker.

And idiot Hindus place him along Maharana, Prithviraj and Shivaji as saviours of Dharma.

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