#समुद्र_मंथन से प्राप्त #चौदह_रत्नों का #रहस्य :- (First Part)
यह वह समय था, जब देवगण पृथ्वी पर रहते थे। पृथ्वी पर वे हिमालय के उत्तर में रहते थे। कार्य था पृथ्वी का निर्माण करना तथा उसको रहने हेतु उपयुक्त बनाना और पृथ्वी पर मानव सहित अन्य प्रजातियों (जीवों) का विस्तार करना।

देवताओं के साथ यहाँ दैत्य भी निवास करते थे। तब पृथ्वी मात्र एक द्वीप ही थी, अर्थात पृथ्वी का एक ही भाग जल से बाहर निकला हुआ था। यह भी बहुत छोटा-सा भाग था। जल के बीचो बीच था मेरू पर्वत।

पृथ्वी के विस्तार और इस पर विविध प्रकार के...
जीवन निर्माण के लिए देवताओं के भी इष्ट ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश ने लीला रची और उन्होंने देवगण तथा दैत्यगण की शक्त्ति का उपयोग कर समुद्र मंथन कराया। समुद्र मंथन कराने के लिए सर्वप्रथम कारण निर्मित किया गया।

ऋषि दुर्वासा ने अपना अपमान होने के कारण...
देवराज इन्द्र को ‘श्री’ (लक्ष्मी ) से हीन हो जाने का शाप दे दिया।

भगवान श्री हरि विष्णु ने इंद्र को शाप-मुक्त्ति के लिए दैत्यों के साथ 'समुद्र मंथन' के लिए कहा और दैत्यों को अमृत का लालच दिया। इस तरह हुआ समुद्र मंथन।

यह समुद्र था क्षीर सागर जिसे आज हिन्द महासागर कहते हैं।
जब देवताओं तथा दैत्यों ने समुद्र मंथन आरंभ किया, तब भगवान विष्णु ने कच्छप बनकर मंथन में भाग लिया।

वे समुद्र के बीचो बीच में स्थिर हो गये और उनके ऊपर रखा गया मंदराचल पर्वत। फिर वासुकी नाग को रस्सी बनाकर एक ओर से देवता और दूसरी ओर से दैत्यों ने समुद्र का मंथन करना प्रारंभ कर दिया।
प्राप्त रत्न :
1. हलाहल (विष ) : समुद्र का मंथन करने पर सबसे पहले कालकूट (हलाहल) विष निकला जिसकी ज्वाला बहुत तीव्र थी।
कालाकूट विष की ज्वाला से सभी देवता तथा दैत्य जलने लगे। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की।

भगवान शंकर ने उस विष को हथेली पर रखकर पी लिया...
किंतु माता गौरी ने उसे कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया, तथा उस विष के प्रभाव से शिव का कंठ नीला पड़ गया, इसीलिए महादेवजी को 'नीलकंठ' कहा जाने लगा।
हथेली से पीते समय कुछ विष धरती पर गिर गया था जिसका अंश आज भी हम साँप, बिच्छू और जहरीले कीड़ों में देखते हैं।
2. कामधेनु : विष के बाद मथे जाते हुए समुद्र के चारों ओर बड़े जोर की आवाज उत्पन्न हुई । देव और असुरों ने जब सिर उठाकर देखा, तो पता चला कि यह साक्षात सुरभि कामधेनु गाय थी।
इस गाय को श्वेत, श्याम, पीत, धानी तथा रक्त वर्ण की सैकड़ों गौएँ घेरे हुई थीं।
गाय को हिन्दू धर्म में पवित्र जीव माना जाता है। गाय मनुष्य जाति के जीवन को चलाने के लिए महत्वपूर्ण अंग है। गाय को कामधेनु कहा गया है। कामधेनु सबका पालन करने वाली है। गाय को संस्कृत में धेनु कहा जाता है।

3. उच्चैःश्रवा घोड़ा : घोड़े तो कई हुए लेकिन श्वेत रंग का...
उच्चैःश्रवा घोड़ा सबसे तेज और उड़ने वाला घोड़ा था। अब इसकी कोई भी प्रजाति धरती पर शेष नहीं है। यह देवराज इंद्र के पास है।
उच्चै:श्रवा का पोषण अमृत से होता है। यह अश्वों का राजा है। उच्चै:श्रवा के कई अर्थ हैं, जैसे जिसका यश ऊँचा हो, जिसके कान ऊँचे हों अथवा जो ऊँचा सुनता हो।
4. ऐरावत हाथी : हाथी तो सभी अच्‍छे और सुंदर नजर आते हैं, लेकिन सफेद हाथी को देखना अद्भुत होता है।
ऐरावत श्वेत हाथियों का राजा था। 'इरा' का अर्थ जल है, अत: 'इरावत' (समुद्र ) से उत्पन्न हाथी को 'ऐरावत' नाम दिया गया है।

यह हाथी सुर तथा असुरों द्वारा किए गए समुद्र मंथन के...
समय निकली 14 मूल्यवान वस्तुओं में से एक था। मंथन से प्राप्त रत्नों के बंटवारे के समय ऐरावत को भी देवराज इन्द्र को दे दिया गया था। चार दाँतों वाला सफेद हाथी मिलना अब असंभव है।

महाभारत (भीष्म पर्व के अष्टम अध्याय) में भारतवर्ष से उत्तर के भू-भाग को...
उत्तर कुरु के बदले 'ऐरावत' कहा गया है। तथा जैन साहित्य में भी यही नाम आया है। उत्तर का भू-भाग अर्थात तिब्बत, मंगोलिया और रूस के साइबेरिया तक का हिस्सा।
हालाँकि, उत्तर कुरु भू-भाग उत्तरी ध्रुव के पास था संभवत: इसी क्षेत्र में यह हाथी पाया जाता रहा होगा।
5. कौस्तुभ मणि : मंथन के समय पांचवाँ रत्न था कौस्तुभ मणि। कौस्तुभ मणि को भगवान विष्णु धारण करते हैं।
"महाभारत में इसका उल्लेख है कि कालिया नाग को श्री कृष्ण ने गरूड़ के त्रास से मुक्त्त किया था। उस समय कालिया नाग ने अपने मस्तक से उतारकर श्रीकृष्ण को कौस्तुभ मणि दे दी थी।"
यह एक चमत्कारिक मणि है । माना जाता है कि इच्छाधारी नागों के पास ही अब यह मणि बची है या फिर समुद्र की किसी अतल गहराइयों में कहीं दबी पड़ी होगी। हो सकता है कि पृथ्वी की कंदरायों में दफन हो यह मणि।

6. कल्पद्रुम : यह दुनियाँ का पहला धर्मग्रंथ माना जा सकता है, जो...
समुद्र मंथन के समय प्रकट हुआ। बुद्धिजीवी इसे संस्कृत भाषा की उत्पत्ति से जोड़ते हैं, और कुछ लोग मानते हैं कि इसे ही कल्पवृक्ष कहते हैं। जबकि कुछ का कहना है कि पारिजात को कल्पवृक्ष कहा जाता है।

~यह स्पष्ट नहीं है कि कल्पद्रुम आखिर क्या है ? ज्योतिषियों के अनुसार...
कल्पद्रुप एक प्रकार का योग होता है।

7. रंभा - समुद्र मंथन के समय एक सुंदर अप्सरा प्रकट हुई जिसे रंभा कहा गया।
पुराणों में रंभा का चित्रण एक प्रसिद्ध अप्सरा के रूप में किया जाता है, जो कि कुबेर की सभा में अभिन्न अंग थी।
ऋषि कश्यप और प्राधा की पुत्री का नाम भी रंभा था। महाकाव्य महाभारत में इसे तुरुंब नाम के गंधर्व की पत्नी बताया गया है।

समुद्र मंथन के समय इन्द्र ने देवताओं से रंभा को अपनी राजसभा के लिए प्राप्त किया था। विश्वामित्र की घोर तपस्या से विचलित होकर इंद्र ने रंभा को बुलाकर.....
विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए भी भेजा था। अप्सराओं को गंधर्वलोक का वासी माना जाता है। कुछ लोग इन्हें 'परी' कहते हैं।

8. श्री (लक्ष्मी जी) - समुद्र मंथन के समय लक्ष्मीजी की उत्पत्ति भी हुई। लक्ष्मी अर्थात श्री और समृद्धि की उत्पत्ति। कुछ लोग इसे सोने (गोल्ड) से जोड़ते हैं।
माना जाता है कि जिस भी घर में स्त्री का सम्मान होता है, वहाँ धन-समृद्धि स्थिर रहती है।

•द्वितीय विचार - महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से एक त्रिलोक सुन्दरी कन्या उत्पन्न हुई जिसका नाम लक्ष्मी था, और जिसने भगवान विष्णु से विवाह किया।
9. वारुणि (मदिरा) - वारुणि नाम से एक शराब होती थी। वारुणि नाम से एक पर्व भी होता है, और वारुणि नाम से एक खगोलीय योग भी।

समुद्र मंथन के समय जिस मदिरा की उत्पत्ति हुई उसका नाम वारुणि रखा गया। वरुण का अर्थ जल है। जल से उत्प‍न्न होने के कारण ही उसे वारुणि कहा गया।
वरुण नाम के एक देवता हैं, जो असुरों की तरफ थे। असुरों ने वारुणि को अपनी ओर लिया।

वरुण की पत्नी को भी वारुणि कहते हैं। कदंब के फलों से बनाई जाने वाली मदिरा को भी वारुणि ही कहते हैं।

10. चन्द्रमा - ब्राह्मणों तरह क्षत्रियों के कई गोत्र होते हैं।
उनमें चंद्र से जुड़े कुछ गोत्र नाम हैं, जिन्हें चंद्रवंशी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार चंद्रमा को अत्रि मुनि और माता अनुसूया की संतान बताया गया है, जिसका नाम 'सोम' है।

दक्ष प्रजापति की 27 पुत्रियाँ थीं, जिनके नाम पर 27 नक्षत्रों के नाम पड़े हैं। ये सब चन्द्रमा को ब्याही थीं।
आकाश में हम जो चंद्रमा देखते हैं, वह भी समुद्र मंथन के समय उत्पन्न हुआ था। तथा पुराणों के अनुसार चंद्रमा की उत्पत्ति धरती से हुई है।

11. पारिजात वृक्ष - समुद्र मंथन के समय.....
कल्पवृक्ष के अतिरिक्त पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति भी हुई थी। 'पारिजात' या 'हरसिंगार' उन प्रमुख वृक्षों में से एक है, जिसके फूल ईश्वर की आराधना में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

पूरा जानने के लिए, समुद्र मंथन से प्राप्त चौदह रत्नों के रहस्य के Second Part को अवश्य पढ़ें।
धन्यवाद। 🙏🏻

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आप सभी ने सोरहा, सौरठा और बधाई के बारे में सुना या पढ़ा होगा? बृज क्षेत्र में बच्चे के जन्मोत्सव के समय बधाईयाँ बजाते हैं, गाते हैं। ऐसी ही एक बधाई-सोरहा मैं आपको बताती हूँ, आप भी गा सकते हो -

श्रीराम जन्मोत्सव बधाई 🙏🏻
राजा जू के आँगने री बधाइया बाजै।
पुत्र जन्म उत्सव अति आनंद,


आढ़यो बहुती भागने री।
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रात दिवस लव लागने री।
विविध बाजने बजत मधुर मधु,
सोहिल सुखकर रागने री।
गायक गुनी बिदूषक निज निज,
करहिं कला कल पागने री।
नचहिं अपसरा नारि नगर की,
बीती रजनी जागने री।
भूमि अकाश अनन्द अथाही,
देव मुनी नर नागने री।


पुष्प-इन-घन वर्षत सबहीं,
हर्षण हर्षित मागने री।।

आप सभी श्री राम-जन्म के बधाई महोत्सव की अनन्त शुभकामनाएँ। 🙏🏻😊

#रामनवमी_की_हार्दिक_शुभकामनाएं
#जयश्रीराम #रामनवमी२०२२

जय श्री राम! 🙌🏻💐
विज्ञप्ति जारी (आवश्यक सूचना) :

-जोशीमठ, चमोली
(आश्विन कृष्ण चतुर्दशी तदनुसार दिनांक 5 अक्टूबर 2021)

ज्योतिर्मठ में आयोजित होगा शारदीय नवरात्रि महोत्सव :- आगामी 7 अक्टूबर से पूरे देश में शारदीय नवरात्रि में शक्ति उपासना का क्रम शुरू हो जाएगा।

चतुराम्नाय शांकर पीठ में अन्यतम ज्योतिर्मठ जिसे 'श्रीमठ' भी कहा जाता है।

इस शक्ति क्षेत्र में विविध क्रम से साधक अपनी - अपनी 'शक्ति' उपासना और आराधना सम्पन्न करते हैं।

उत्तर भारत की आध्यात्मिक राजधानी 'ज्योतिर्मठ' जो कि उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ में स्थित है।

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ज्योतिष्पीठ के जगद्गुरु शंकराचार्य पूज्यपाद स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने...

भगवती के श्रृंगार के लिए रजत मुकुट और ६४ योगिनी देवियों के लिए विशेष वस्त्र और श्रृंगार सामग्री प्रेषित की है।
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मन को साधना और अन्त में आत्मा को साधना। सूक्ष्म शरीर से साधना करने को ही सही अर्थ में आध्यात्मिक साधना करने का प्रारंभ कहते हैं।
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🔺 #राधा_कुंड की महिमा और इसकी कथा : #अहोई_अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान करने से होती है संतान की प्राप्ति -

•भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में "गोवर्धन गिर (पर्वत)" की परिक्रमा के मार्ग में एक चमत्कारी कुंड है जिसे राधा कुंड के नाम से जाना जाता है।


•इस कुंड की ऐसी महिमा है कि, यदि नि:संतान दंपत्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को (वह दंपत्ति) एक साथ स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है।

अहोई अष्टमी का यह पर्व यहां पर प्राचीनकाल से मनाया जाता है।

इस दिन पति और पत्नी दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं, और मध्य रात्रि में राधाकुंड में डूबकी लगाते हैं। तो ऐसा करने पर उस दंपत्ति के घर में बालक की किलकारियां शीघ्र ही गूंजने लगती हैं।

•इतना ही नहीं, जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है वह भी अहोई अष्टमी के दिन...


अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में उपस्थिति लगाने आते हैं। माना जाता है कि यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है।

🔺 राधा कुंड की कथा :

•इस प्रथा से जुड़ी एक कथा का पुराणों में भी वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है -
जिस समय कंस ने भगवान श्री कृष्ण का वध करने के लिए...


अरिष्टासुर नामक दैत्य को भेजा था उस समय अरिष्टासुर गाय के बछड़े का रूप लेकर श्री कृष्ण की गायों के बीच में शामिल हो गया, और उन्हें मारने के लिए आया।

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சூரியன் உலக இயக்கத்திற்கு மிக முக்கியமானவர். சூரிய சக்தியால்தான் ஜீவராசிகள், பயிர்கள்