सोने जा रहा था ... अब नींद उड़ चुकी है!
थोड़ा ज्यादा ही "नीलकंठ" बनने लगा हूँ| पर अगर ज़रा सा विष नहीं उगला तो आप सभी को लगेगा की विष होता ही नहीं है|
अतः विषपान का आनंद लें और मेरी आगे की ट्वीट @Hiranyareta जी की ट्वीट के साथ मिला के पढ़ें|

@Hiranyareta "मोदी जी काशी की धरोहर नष्ट करने पर तुले हैं" , पिछले कुछ दिनों से यह सुनियोजित प्रचार प्रारंभ हुआ है| बहुत से मित्रों ने सत्य पूछा,मैंने कहा छोड़ो, अनर्गल बातों से नकारात्मकता आती है|
पर अब देख रहा हूँ की भगवा चोला,बुद्धिजीवी का लबादा, पत्रकारिता का मुखौटा ओढ़ कुछ लोग 1/n
@Hiranyareta ...कुचक्रों में दिन रात पूरे समर्पण के साथ लगे हैं|
समय आ चुका है की जो इच्छा रखते हैं उनसे सत्य का परिचय कराया जाए| तो यदि आप इस "सत्य" को जानना चाहते हैं तो ध्यान से आगे पढ़ें|
अगर मैं गलत हूँ तो बताएँ, खुद को सुधारने में मैं समय नहीं लूँगा ! 2/2
@Hiranyareta इस तस्वीर में आपको क्या दिख रहा है ??
दीवाल से घिरा हुआ, एक मंदिर? जिसको घेर कर कब धाराशायी कर के गेस्ट हाउस में तब्दील कर देंगे पता ही नहीं चलेगा|
ये किसने किया ?? मोदी जी ने ??
किसी ने भी ऐसे सैकड़ों निर्माणों का विरोध किया ??
@Hiranyareta और साफ़ देखिये, ध्यान से!!
कहाँ है मंदिर ?? क्या इस प्राचीन मंदिर के चारों और उसक सौन्दर्य को कोढ़ सी दीवार भी मंदिर के साथ ही बनी थी??
उत्तर आप सभी जानते हैं - नहीं !!
ये कौन लोग है जो इन प्राचीन मंदिरों का विनाश कर रहे हैं ???
@Hiranyareta इस तस्वीर को भी देखिये ध्यान से, कैसे मंदिर के भीतर से ही ईंटे जोड़ के उसको नष्ट कर दिया| जब ये सब हुआ तो कोई आवाज़ उठी??
क्या इस चित्र को देख कर क्रोध, बेबसी और इस कृत्य को करने वालों से घृणा नहीं हो रही ???
ये मोदी जी ने किया ???
@Hiranyareta इसे भी देखिये, देखिये की लालच कैसे धरोहरों को लील रहा है| कोई सीमा नहीं है लोभ की|
कैसे मंदिर के गुम्बद को समाप्त कर धीरे धीरे कमरे में तब्दील किया जा रहा है!!

कभी सुना इसका विरोध?? क्या ये विनाश मोदी जी ने किया???
@Hiranyareta आज जग कर लिख रहा हूँ तो चाहता हूँ की आप भी वो देखें जो मैंने देखा|
क्या प्राचीन मंदिरों के अगल बगल कुकुरमुत्ते सी उग आई इमारतें हमारी धरोहर हैं??
दिग्भ्रमित करने वाले मिथ्या संवादों व् तथाकथित आन्दोलनों से यह सत्य छुपेगा की पाप हो रहा था!! खुलेआम !!
@Hiranyareta प्राचीन मंदिरों को दीवारों में चिनवा देने वाले आज धरोहरों की रक्षा के आन्दोलन का स्वांग कर रहे हैं|
आप स्वयं देखिये, काशी में लालच का यह नंगा नाच हर कदम पर दिखेगा|पांडित्य का लबादा ओढ़े ठग श्लोकों में कुकृत्य छुपायेंगे|
पर सच सूर्य सा होता है , छुपता नहीं !!
@Hiranyareta स्वयं देखें आप! क्या कर दिया है मंदिरों का! ऐसा घृणित कृत्य करने वाले आज धरोहरों की रक्षा आन्दोलन के बैनर लिए जनता को बरगलाने चले हैं|
और पत्रकारिता को निकृष्टतम गहराइयों तक ले जा चुके पत्रकार आज उनके साथ कदम से कदम मिलाकर खड़े हैं !!
ध्यान से देखिये...
कैसे इस विग्रह को कमरे में लील कर ऊपर से सीढ़ी बना दी गयी थी।
इन्हें दीवारों में लोभवश चिनवा देने वाले किस प्रकार के लोग होंगे???
और भी देखिए ... इस भूख में कम से कम ये मंदिरों को तो छोड़ देते।
किराये पर उठाने के लिए अटैच्ड टॉयलेट वाले अनाधिकृत कमरे और मलजल गंगाजी में।
आज सब खड़े हैं धरोहर बचाने का लबादा ओढ़े!!!
इतनी सारी ट्वीट्स के बाद भी कुछ मित्र बौद्धिक दे रहे हैं। कह रहे हैं कि पूरा मंदिर तोड़ डाला , सौंदर्यीकरण के नाम पर!
ये प्रबुद्ध लोग निरंतर भ्रम फैला रहे हैं। तो मैं आप सभी के समक्ष कुछ तस्वीरें ग्राउंड ज़ीरो से प्रस्तुत करता हूँ।
धैर्य से खुला दिमाग रख के देखें।
ये तस्वीर बायीं तरफ से ली है जहाँ कुछ निर्माणों को ध्वस्त किया है।
क्या आपको बायीं तरफ एक छोटे से मंदिर का केसरिया रंग का शिखर दिख रहा है??
कुछ समय पहले तक यहाँ केवल कमरे ही कमरे थे।
अब ज़रा इसी तस्वीर को सामने तथा अन्य एंगलों से देखते हैं।
पुरातन मंदिरों को मुक्त करने का यह प्रयास किस कोने से हमारी धरोहर नष्ट करना लग रहा है ये मैं समझना चाहता हूँ ।
और कौन सनातनी हिन्दू होगा जो मंदिरों के अतिक्रमण व दीवारों में चिनवाने का समर्थन करेगा ??
इन ट्वीट्स के पीछे मेरा उद्देश्य है कि आप भी वो देखें जो मुझे दिखा।
क्या आपको मंदिरों की यह दशा अच्छी लग रही है???
अगर नही तो फिर षड्यंत्रकारियों के कुत्सित प्रयासों को नाकाम कीजिये।
आप सभी प्रबुद्ध हैं, संभव हो सके तो इस प्रश्न का उत्तर देने का प्रयास करें- इन तस्वीरों में आप क्या देख पा रहे हैं?
All of you are educated .. if possible ,try answering this question - What do you see in these pics? #Kashi
आग्रह है, इस वीडियो को पहले म्यूट कर के देखिए। उसके बाद जो बोला जा रहा है उसके साथ ।
https://t.co/8cUhThuRhh

हो सकता है की मैं गलत हूँ , ये वीडियो गलत हो, आप स्वयं काशी जा के देखें, क्या मंदिरों का अतिक्रमण उचित है??
आस्था क्या मात्र व्यवसाय है??
सभी प्रबुद्ध हैं ,स्वयं सोचें।
इस थ्रेड में और भी तस्वीरें जोड़ रहा हूँ, आप ही देखिये और चिंतन कीजिये !!

क्या मंदिरों की इस अवस्था से आप सहमत हैं??

अपने विचार अवश्य व्यक्त करें |

(चित्र अनिरुद्ध पाण्डेय जी की फेसबुक वाल से)
मेरे लिए बहुत ही दुःख की बात है की ये थ्रेड लम्बी होती जा रही है| लेकिन ये भी आवश्यक है की आप सब ये देखें !!
ये किसने किया?
क्या मंदिरों की ऐसी हालत होनी चाहिए?
और कोई अगर इनके जीर्णोद्धार की बात करे तो उसपर "धरोहर" नष्ट करने का लांछन लगे ???
हिंदी में लिख रहा हूं क्योंकि जो दिल में भाव है वह बहुत हद तक उसी रूप में पहुँचा पाता हूँ। थ्रेड को आगे बढ़ा रहा हूं क्योंकि आप में से बहुत सारे मित्र जानना चाहते थे कि हो क्या रहा है।
इस छोटी सी क्लिप में देखें एक बड़ा सा मंदिर जो भवन के अंदर था,अब दिखने लगा है।
जैसे जैसे काम आगे बढ़ रहा है वैसे वैसे भवनों के भीतर छुपे हुए मंदिर बाहर आ रहे हैं। यहाँ बात किसी के सही या गलत होने की नहीं है, आप स्वयं से पूछिए की आप मंदिरों को उन्मुक्त , खुला देखना चाहेंगे या चार दीवारों के भीतर कैद??
किस निर्दयता से इस मंदिर को घेरकर उसके ऊपर भवन निर्माण कर लिया था!!मंदिर व गंगा जी धैर्य से मानवीय संवेदनहीनता को देखते रहे।
और आज जब एक प्रयास हो रहा है इन सांस्कृतिक धरोहरों का ना केवल रक्षण किया जाए बल्कि आने वाले भविष्य के लिए भी उन्हें सजाया व सँवारा जाए तो विरोध हो रहा है??
अनेकों महानुभाव दिन रात प्रचार करने में लगे हैं कि मोदी मंदिर तुड़वा रहे हैं। इन प्रलापों की तथ्यहीनता को दिखाता हुआ यह क्लिप अवश्य देखें जहाँ चारों और तोड़फोड़ तो हो रही है किंतु मंदिरों को छुआ नहीं गया है क्योंकि इस तोड़फोड़ का उद्देश्य मंदिरों को सहेजना ही है।
बाबा विश्वनाथ के परिसर से माँ गंगा के दर्शन!!

जो काशी नहीं गए या जो हिंदी नहीं पढ़ सकते उनको इस वाक्य का न भाव समझ आएगा न ही अर्थ किंतु हर क्षण मोक्ष ही जी रहे हमारे जैसे तुच्छ प्राणियों को इस वाक्य में छिपी संभावनाओं के स्मरण या चिंतन से ही अनेकों स्वर्गों का सुख प्राप्त होगा!
इस स्तर की योजना जो कि पता नहीं कितने सौ सालों से किसी ने सोची भी नहीं और उसी से मिलता जुलता कार्य!!
आप ही बताइए क्या इस प्रकार का निर्णय लेना आसान कार्य था??
वह भी तब,जब अनेकों नर रूपी महासर्प कदम कदम पर मोदी जी को डसने के लिए फन उठाए बैठे हैं!!
लेकिन निर्णय लिया तो लिया!!
बहुत बड़ा काम है,करने वाले दुष्प्रचार से ही नहीं,हमारे कान के कच्चे होने की प्रवृत्ति से भी लड़ रहे हैं!
कोई भी ज़रा सी मेमने की खाल पहन कर आ के हमें हिन्दू धर्म के विनाश को दुहाई देता है तो हम मान लेते हैं क्योंकि तथ्य जानने में मेहनत लगती है।
ये कैद मंदिर भी प्रतीक्षा में हैं।
टि्वटर पर उपस्थित काशी के बहुत सारे धुरंधर धर्मरक्षक केदार घाट के रास्ते में स्थित इस दुकान से या तो सब्जी लेते हैं या रोज इस रास्ते से आते जाते हैं,और बड़ी ही निर्लज्जता के साथ दिन रात मोदी जी पर आक्षेप लगाते हैं कि वो धर्म का विनाश कर रहे हैं।
मंदिर की ये दशा उचित है?दिखी नहीं?
शायद आप पिछले कई दिनों से अखबारों में आप पढ़ रहे होंगे की वाराणसी में काशी विश्वनाथ जी जैसा एक और मंदिर मिला है।

"मंदिर मिला है"!!

कहाँ से?
गड़ा था?
किसी की जेब से गिर गया?
जमीन की खुदाई में प्राप्त हुआ?

आइये इस दुर्भाग्यपूर्ण थ्रेड को आगे बढ़ाते हैं.. क्लिप में वही मंदिर है!

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1. Mini Thread on Conflicts of Interest involving the authors of the Nature Toilet Paper:
https://t.co/VUYbsKGncx
Kristian G. Andersen
Andrew Rambaut
Ian Lipkin
Edward C. Holmes
Robert F. Garry

2. Thanks to @newboxer007 for forwarding the link to the research by an Australian in Taiwan (not on

3. K.Andersen didn't mention "competing interests"
Only Garry listed Zalgen Labs, which we will look at later.
In acknowledgements, Michael Farzan, Wellcome Trust, NIH, ERC & ARC are mentioned.
Author affiliations listed as usual.
Note the 328 Citations!
https://t.co/nmOeohM89Q


4. Kristian Andersen (1)
Andersen worked with USAMRIID & Fort Detrick scientists on research, with Robert Garry, Jens Kuhn & Sina Bavari among


5. Kristian Andersen (2)
Works at Scripps Research Institute, which WAS in serious financial trouble, haemorrhaging 20 million $ a year.
But just when the first virus cases were emerging, they received great news.
They issued a press release dated November 27, 2019:

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I like this heuristic, and have a few which are similar in intent to it:


Hiring efficiency:

How long does it take, measured from initial expression of interest through offer of employment signed, for a typical candidate cold inbounding to the company?

What is the *theoretical minimum* for *any* candidate?

How long does it take, as a developer newly hired at the company:

* To get a fully credentialed machine issued to you
* To get a fully functional development environment on that machine which could push code to production immediately
* To solo ship one material quanta of work

How long does it take, from first idea floated to "It's on the Internet", to create a piece of marketing collateral.

(For bonus points: break down by ambitiousness / form factor.)

How many people have to say yes to do something which is clearly worth doing which costs $5,000 / $15,000 / $250,000 and has never been done before.