हाबूर पत्थर
गजब हैं !!!
मेरी धरती मैया
दही जमा देनें वाला
दही जमाने के लिए लोग अक्सर जामन ढूंढ़ते नजर आते हैं... वहीं राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित इस गांव में जामन की जरूरत नहीं पड़ती है...यहां ऐसा पत्थर है जिसके संपर्क में आते ही दूध जम जाता है...

इस पत्थर पर विदेशों में भी कई बार रिसर्च हो चुकी है...फॉरेनर यहां से ले जाते हैं इस पत्थर के बने बर्तन
स्वर्णनगरी जैसलमेर का पीला पत्थर विदेशों में अपनी पहचान बना चुका है. इसके साथ ही जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर स्थित हाबूर गांव का पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है
..इसके चलते इसकी डिमांड निरंतर बनी हुई है...हाबूर का पत्थर दिखने में तो खूबसूरत है ही, साथ ही उसमें दही जमाने की भी खूबी है... इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है... इसी खूबी के चलते यह विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है..
इस पत्थर से बने बर्तनों की भी डिमांड बढ़ गई है..।

कहा जाता है कि जैसलमेर पहले अथाह समुद्र हुआ करता था और कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए व पहाड़ों का निर्माण हुआ.. हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज व अन्य जीवाश्मों की भरमार है.
जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है। साथ ही वैज्ञानिकों के लिए भी ये पत्थर शोध का विषय बन गया है... इस पत्थर से सजे दुकानों पर बर्तन व अन्य सामान पर्यटकों की खास पसंद होते हैं
और जैसलमेर आने वाले वाले लाखों देसी विदेशी सैलानी इसको बड़े चाव से खरीद कर अपने साथ ले जाते हैं...।

▪️क्यों है खास
▪️हाबूर का पत्थर

इस पत्थर में दही जमाने वाले सारे कैमिकल मौजूद है...
विदेशों में हुए रिसर्च में ये पाया गया है कि इस पत्थर में एमिनो एसिड, फिनायल एलिनिया, रिफ्टाफेन टायरोसिन हैं... ये कैमिकल दूध से दही जमाने में सहायक होते हैं... इसलिए इस पत्थर से बने कटोरे में दूध डालकर छोड़ देने पर दही जम जाता है….
इन बर्तनों में जमा दही और उससे बनने वाली लस्सी के पयर्टक दीवाने हैं... अक्सर सैलानी हाबूर स्टोन के बने बर्तन खरीदने आते हैं... इन बर्तनों में बस दूध रखकर छोड़ दीजिए, सुबह तक शानदार दही तैयार हो जाता है, जो स्वाद में मीठा और सौंधी खुशबू वाला होता है...
इस गांव में मिलने वाले इस स्टोन से बर्तन, मूर्ति और खिलौने बनाए जाते हैं... ये हल्का सुनहरा और चमकीला होता है.. इससे बनी मूर्तियां लोगों को खूब अट्रैक्ट करती हैं..।

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*🛕टूटी झरना, रामगढ़(झारखंड)*

*🛑झारखंड के रामगढ़ में एक मंदिर ऐसा है जहां भगवान शंकर जी के शिवलिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं माँ गंगा करती हैं। यहां जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीस घंटे होता है। इस जगह का उल्‍लेख पुराणों में भी मिलता है।*


*🛑 झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर को लोग टूटी झरना के नाम से जानते है। मंदिर का इतिहास 1925 से जुड़ा हुआ है और माना जात है कि तब अंग्रेज इस क्षेत्र से रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे।

पानी के लिए खुदाई के दौरान उन्हें भूमि के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा। अंग्रेजों ने इस बात को जानने के लिए पूरी खुदाई करवाई और अंत में ये मंदिर पूरी तरह से नजर आया।*

*🛑मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिव लिंग मिला और उसके ठीक ऊपर मां गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली। प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिव लिंग पर गिरता है।*

सोर्स-टेलीग्राम चेनल-रोचक बाते
जानिये कश्मीर के पराक्रमी सम्राट ललितादित्य मुक्तापीड की गौरवमयी वीरगाथा, जिसकी तलवार का डंका मध्य एशिया तक बजा।

राजा श्रीललितादित्य: सार्वभौमस्ततोऽभवत् ।
प्रादेशिकेश्वरस्त्रष्टुर्विघेर्बुद्धेरगोचर: ।।१२६।। राजतरंगिणी


ब्रह्मा ने प्रादेशिकेश्वर रूप में उसकी सृष्टि की थी किन्तु अनन्तर ब्रम्हा की बुद्धि से भी अगोचर श्री ललितादित्य सार्वभौम राजा हुआ ।

[ सार्वभौम का अर्थ है..
1 - इसका अर्थ है सब भूमि का सम्राट। यह प्राचीन राज पद है। मुद्राराक्षस में भी इस शब्द का प्रयोग किया गया हैं।

2 - सार्वभौम राजा की आय उस समय इक्कावन करोड़ कर्ष वार्षिक आय मानी जाती है।]

ललितादित्य मुक्तपीड “कार्कोटा वंश” के कश्मीर के महान हिन्दू सम्राट थे। इनका कार्यकाल 724 ईस्वी से 760 ईस्वी तक था।

श्री दत्त राजा ललितादित्य मुक्तापीड प्रथम का राज्य अभिषेक काल सन् ६९७ ई. राजतरंगिणी में बताया गया है। 
आइने अकबरी में ललितादित्या का राज्यकाल 36 वर्ष 7 मास 11 दिन दिया गया है। (पेज नम्बर 375)


ललितादित्य मुक्तापीड की दो ताम्र मुद्राएं मिली हैं। मुद्रा के एक तरफ लक्ष्मी देवी और श्री प्रताप तथा दूसरी तरफ दण्डायमान राजा तथा कि(दार) टंकणित है। श्री ललितादित्या की मुद्रायें भिटवारी गाँव फैजाबाद, बाँदा, राजघाट, सारनाथ(वाराणसी), पटना, मूँगेर, तक मिली हैं।
क्या आपको पता है कि भगवान_शिव के प्रतिक माने जाने वाले रुद्राक्ष कुल कितने प्रकार है और उनके पहनने से क्या-क्या लाभ होते हैं।

रूद्राक्ष को धारने करने वाले के जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवमहापुराण ग्रंथ में कुल सोलह प्रकार के रूद्राक्ष बताएं गए है


औऱ सभी के देवता, ग्रह, राशि एवं कार्य भी अलग-अलग बताएं है।
जानें रुद्राक्ष के प्रकार एवं उनसे होने वाले लाभ।
🚩
जानें जीवन में बुरा समय कब-कब शुरू होता है, पहले से मिलने लगते हैं ऐसे संकेत


1- एक मुखी रुद्राक्ष- इसे पहनने से शोहरत, पैसा, सफलता प्राप्ति और ध्‍यान करने के लिए सबसे अधिक उत्तम होता है। इसके देवता भगवान शंकर, ग्रह- सूर्य और राशि सिंह है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।


2- दो मुखी रुद्राक्ष- इसे आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान अर्धनारिश्वर, ग्रह- चंद्रमा एवं राशि कर्क है।
मंत्र- ।। ॐ नम: ।।


3- तीन मुखी रुद्राक्ष- इसे मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पहना जाता है। इसके देवता अग्नि देव, ग्रह- मंगल एवं राशि मेष और वृश्चिक है।
मंत्र- ।। ॐ क्‍लीं नम: ।।
#संस्कृत कुछ #रोचक #तथ्य....

#संस्कृत के बारे में ये तथ्य जान कर आपको #भारतीय होने पर #गर्व होगा।

आज हम #आपको #संस्कृत के बारे में कुछ
ऐसे तथ्य बता रहे हैं,जो किसी भी भारतीय
का सर गर्व से ऊंचा कर देंगे;;

.1. संस्कृत को सभी #भाषाओं की #जननी
माना जाता है।


2. #संस्कृत #उत्तराखंड की #आधिकारिक #भाषा है।

3. #अरब #लोगो की #दखलंदाजी से पहले
#संस्कृत #भारत की #राष्ट्रीय भाषा थी।

4. #NASA के मुताबिक, #संस्कृत #धरती
पर बोली जाने वाली #सबसे #स्पष्ट भाषा है।

5. संस्कृत में #दुनिया की किसी भी #भाषा से
#ज्यादा #शब्द है।


#वर्तमान में #संस्कृत के में 102
अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्द है।

6. संस्कृत किसी #विषय के लिए एक
#अद्भुत #खजाना है।
जैसे #हाथी के लिए ही #संस्कृत में 100 से
ज्यादा शब्द है।

7. #NASA के पास #संस्कृत में #ताड़पत्रो
पर लिखी 60,000 #पांडुलिपियां है जिन
पर #नासा रिसर्च कर रहा है।


8. #फ़ोबर्स ने जुलाई,1987 में
#संस्कृत को #Computer #Software
के लिए सबसे बेहतर माना था।

9. किसी और भाषा के मुकाबले संस्कृत
में सबसे कम शब्दो में वाक्य पूरा हो
जाता है।

10. संस्कृत #दुनिया की अकेली ऐसी
भाषा है जिसे बोलने में #जीभ की सभी
#मांसपेशियो का इस्तेमाल होता है।


11. #अमेरिकन #हिंदु #युनिवर्सिटी के अनुसार
संस्कृत में बात करने वाला #मनुष्य #बीपी,
#मधुमेह,#कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से #मुक्त हो
जाएगा।
संस्कृत में बात करने से शरीर का
#तंत्रिका तंत्र सदा सक्रिय रहता है जिससे
शरीर #सकारात्मक आवेश
(PositiveCharges) के साथ सक्रिय
हो जाता है।
पूर्वांचल के महान क्रान्तिवीर शम्भुधन फूंगलो

भारत में सब ओर स्वतन्त्रता के लिए प्राण देने वाले वीर हुए हैं। ग्राम लंकर (उत्तर कछार, असम) में शम्भुधन फूंगलो का जन्म फागुन पूर्णिमा, 1850 ई0 में हुआ। डिमासा जाति की कासादीं इनकी माता तथा देप्रेन्दाओ फूंगलो पिता थे।


शम्भुधन के पिता काम की तलाश में घूमते रहते थे। अन्ततः वे माहुर के पास सेमदिकर गाँव में बस गये। यहीं शम्भुधन का विवाह नासादी से हुआ।

शम्भु बचपन से ही शिवभक्त थे। एक बार वह दियूंग नदी के किनारे कई दिन तक ध्यानस्थ रहे। लोगों के शोर मचाने पर उन्होंने आँखें खोलीं और कहा

कि मैं भगवान शिव के दर्शन करके ही लौटूँगा। इसके बाद तो दूर-दूर से लोग उनसे मिलने आने लगे। वह उनकी समस्या सुनते और उन्हें जड़ी-बूटियों की दवा भी देते। उन दिनों पूर्वांचल में अंग्रेज अपनी जड़ें जमा रहे थे। शम्भुधन को इनसे बहुत घृणा थी। वह लोगों को दवा देने के साथ-साथ देश और धर्म

पर आ रहे संकट से भी सावधान करते रहते थे। धीरे-धीरे उनके विचारों से प्रभावित लोगों की संख्या बढ़ने लगी।

एक समय डिमासा काछारी एक सबल राज्य था। इसकी राजधानी डिमापुर थी। पहले अहोम राजाओं ने और फिर अंग्रेजों ने 1832 ई0 में इसे नष्ट कर दिया। उस समय तुलाराम सेनापति राजा थे।

वे अंग्रेजों के प्रबल विरोधी थे। 1854 ई0 में उनका देहान्त हो गया। अब अंग्रेजों ने इस क्षेत्र में फैले विद्रोह को दबाने के लिए राज्य को विभाजित कर दिया।

शम्भुधन ने इससे नाराज होकर एक क्रान्तिकारी दल बनाया और उसमें उत्साही युवाओं को भर्ती किया।

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