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आज बात बंगाल की धरती से उठे संन्यासी विद्रोह (Sanyasi rebellion) की जिसे कुछ शोधकर्ताओं ने भारत के प्रथम स्वराज्य विद्रोह के रूप में परिमार्जित किया है, परन्तु दुर्भाग्य से समकालीन विमर्श में जिसकी चर्चा विरले ही की जाती है -


१. अट्ठारहवीँ सदी के अन्तिम वर्षों 1763-1800ई में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध तत्कालीन भारत के कुछ भागों में संन्यासियों (केना सरकार , द्विजनारायन) ने उग्र आन्दोलन किये थे जिसे इतिहास में संन्यासी विद्रोह कहा जाता है।

२. यह आन्दोलन अधिकांशतः उस समय ब्रिटिश भारत के बंगाल और बिहार प्रान्त में हुआ था। 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी के पत्र व्यवहार में कई बार संन्यासियों के छापे का जिक्र हुआ है।


३. यह छापा उत्तरी बंगाल में पड़ते थे। 1770 ईस्वी में पड़े बंगाल में भीषण अकाल के कारण हिंदू यहां-वहां घूम कर अंग्रेजों तथा सरकारी अधिकारियों के घरों एवं अन्न भंडार को अधिकृत कर लिया करते थे। ये संन्यासी धार्मिक थे पर मूलतः वह किसान थे, जिसकी जमीन छीन ली गई थी।

४. किसानों की बढ़ती दिक्कतें,बढ़ती भू राजस्व, 1770 ईस्वी में पड़े अकाल के कारण छोटे-छोटे जमींदार, कर्मचारी, सेवानिवृत्त सैनिक और गांव के गरीब लोग इन संन्यासी दल में शामिल हो गए। यह बंगाल में पांच से सात हजार लोगों का दल बनाकर घूमा करते थे और आक्रमण के लिए गोरिल्ला तकनीक अपनाते।
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Part II of the betrayal by PM I K Gujral (IKG). #Thread

IKG served as a PM between April 1997 to March 1998.

And R&AW suffered massively. As usual, IKG wanted peace with Pak. What did peace mean for IKG? https://t.co/DANcFZiF4U


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Peace meant closure of the two secret operations by the covert groups of R&AW as a goodwill gesture to Pak:

Counterintelligence- X (CIT-X) for Pak & Counterintelligence- J (CIT-J) for Khalistan (funded by ISI to separate Punjab from India).

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A low-grade but steady campaign of bombings in major Pak cities, Kar@ch! and L@hore were carried out.

This forced the head of the ISI to meet his counterpart in RAW and agree on the rules of engagement as far as Punjab was concerned.

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The negotiation was brokered by then-Jordanian Crown Prince Hassan Talal, whose wife, Sarvath, was of Pak origin.

It was agreed that Pak would not carry out activities in the Punjab as long as RAW refrained from creating mayhem and violence inside Pak.

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Rabinder Singh, the RAW double agent who defected to the US in 2004, helped run CIT-J in its early years.

Both these covert groups used the services of cross-border traffickers to ferry weapons & funds across the border, much as their ISI counterparts were doing.
*வைகுண்டம் எவ்வளவு தூரம்?*

மன்னன் ஒருவனுக்கு ஒரு சந்தேகம் வந்தது. வைகுண்டம் என்று சொல்கிறார்களே, அது பூமியிலிருந்து எவ்வளவு தூரம்? என்பதே மன்னனின் சந்தேகம்.
அவையைக் கூட்டி சபையிலுள்ள பண்டிதர்களிடம் இந்தக் கேள்வியைக் கேட்டான். அவர்கள் அவரவர் அறிவுக்கு எட்டிய வரை, வைகுண்டம் 1

தூரத்தில் உள்ளது என்பதைக் குறிப்பிட்டனர்.
மன்னன் திருப்தி -யடையவில்லை.அப்போது சபையிலிருந்த விதூஷகன் எழுந்து,மகாராஜா! வைகுண்டம் கூப்பிடும் தூரத்தில் உள்ளது என்றான்.
இதற்கு ஆதாரம் என்ன? என்று மன்னன் கேட்டான். உடனே விதூஷகன், கஜேந்திரன் எனும் யானையை முதலை பிடித்தபோது, ஆதிமூலமே 2

என்று அழைத்தது அந்த யானை. அதன் குரல் கேட்டு க்ஷண நேரத்தில் மகாவிஷ்ணு அங்கே தோன்றி, கஜேந்திரனைக் காப்பாற்றினார். இது உண்மை எனில், வைகுண்டம் கூப்பிடும் தூரத்தில் இருக்கிறது என்பதும் உண்மைதானே? என்று பதிலளித்தான்.
பகவான் ஸ்ரீ கிருஷ்ணரின் நாமமே அவ்வளவு சக்தி வாய்ந்தது
ஹரி நாமத்தால் 3

காப்பாற்றப்பட்டவர்கள் பலர்‌.மன்னன் மனமகிழ்ந்து அவருக்குப் பரிசுகள் வழங்கினார்.எனவே கலியுகத்தின் தாரக மந்திரம்
ஹரே கிருஷ்ண ஹரே கிருஷ்ண கிருஷ்ண கிருஷ்ண ஹரே ஹரே
ஹரே ராம ஹரே ராம ராம ராம ஹரே ஹரே
என தினமும் 108 முறை இந்த திவ்யநாமங்களை ஜபம் செய்யவும். ஹரி‌ஹரி என்று ஏழு முறை சொல்லவும்.N
हिमालय पर्वत की एक बड़ी पवित्र गुफा थी।उस गुफा के निकट ही गंगा जी बहती थी।एक बार देवर्षि नारद विचरण करते हुए वहां आ पहुंचे।वह परम पवित्र गुफा नारद जी को अत्यंत सुहावनी लगी।वहां का मनोरम प्राकृतिक दृश्य,पर्वत,नदी और वन देख उनके हृदय में श्रीहरि विष्णु की भक्ति अत्यंत बलवती हो उठी।


और देवर्षि नारद वहीं बैठकर तपस्या में लीन हो गए।इन्द्र नारद की तपस्या से घबरा गए।उन्हें हमेशा की तरह अपना सिंहासन व स्वर्ग खोने का डर सताने लगा।इसलिए इन्द्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को उनके पास भेज दिया।वहां पहुंच कामदेव ने अपनी माया से वसंतऋतु को उत्पन्न कर दिया।


पेड़ और पौधों पर रंग बिरंगे फूल खिल गए और कोयलें कूकने लगी,पक्षी चहकने लगे।शीतल,मंद,सुगंधित और सुहावनी हवा चलने लगी।रंभा आदि अप्सराएं नाचने लगीं ।किन्तु कामदेव की किसी भी माया का नारद पे कोई प्रभाव नहीं पड़ा।तब कामदेव को डर सताने लगा कि कहीं नारद क्रोध में आकर मुझे श्राप न देदें।

जैसे ही नारद ने अपनी आंखें खोली, उसी क्षण कामदेव ने उनसे क्षमा मांगी।नारद मुनि को तनिक भी क्रोध नहीं आया और उन्होने शीघ्र ही कामदेव को क्षमा कर दिया।कामदेव प्रसन्न होकर वहां से चले गए।कामदेव के चले जाने पर देवर्षि के मन में अहंकार आ गया कि मैने कामदेव को हरा दिया।

नारद फिर कैलाश जा पहुंचे और शिवजी को अपनी विजयगाथा सुनाई।शिव समझ गए कि नारद अहंकारी हो गए हैं और अगर ये बात विष्णु जी जान गए तो नारद के लिए अच्छा नहीं होगा।ये सोचकर शिवजी ने नारद को भगवन विष्णु को ये बात बताने के लीए मना किया। परंतु नारद जी को ये बात उचित नहीं लगी।
A #Thread on SKANDGUPTA VIKRAMADITYA - THE SAVIOUR OF INDIA
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भारत की मिट्टी में एक महान योद्धा स्कन्दगुप्त विक्रमादित्य का जन्म हुआ। जब संसार की सारी प्राचीन सभ्यताओं नें सबसे खूंखार और बर्बर हूणों के सामने घुटने टेक दिए तब हूणों के आतंक का विनाश करने यह महान् योद्धा ..


स्कन्दगुप्त निकल पड़े जिनका पराक्रम पूरे विश्व में अमर हुआ।
परमवीर स्कन्दगुप्त के महाप्रताप को जानने के लिए ये हूण कौन थे, कहां से आए थे और क्या चाहते थे इसको पहले समझना होगा।


हूण एक अमानुष बर्बर जाति के लोग थे जिन्होंने यूनान, मिस्र, ग्रीस और रोम को राख का ढ़ेर बना दिया था। ये इतने बर्बर थे कि बच्चों को चीर फाड़ कर, महिलाओं की दुर्दशा करके, फिर उनको जला कर, भून‌ कर खाते थे।


तीसरी और चौथी इसवी तक हूणों के अत्याचारों से सम्पूर्ण यूरोप थर्रा उठा था और देखते ही देखते समूचा रोमन साम्राज्य भी अतीत का हिस्सा बन गया। खूंखार हूण जब अट्टहास कर के जब रूस की ओर बढ़े तो वोल्गा नदी रूस के लोगों के रक्त से लाल हो उठी।


चीन और मंगोलिया के उत्तर पश्चिमी हिस्सों में जन्में बर्बर हूण प्रजाति की घुसपैठ से महाकाय चीन भी त्राहि त्राहि कर रहा था। हूण सबसे पहले बच्चों को निशाना बनाते थे ताकि अगली पीढ़ी नष्ट हो जाए इसके बाद वो महिलाओं को उठा ले जाते थे और पुरुषों को तड़पा तड़पा कर मारते थे। ..
महाभारत की कहानी कौन नहीं जानता।लेकिन क्या आपको पता है कि महाभारत के ज्यादातर पात्र किसी न किसी श्राप में फंसे थे।अगर ये श्राप न होते तो कदाचित महाभारत की कहानी कुछ और होती।हिन्दु पौराणिक ग्रंथों में विभिन्न श्रापों का वर्णन मिलता है व हर श्राप के पीछे कोई कहानी अवश्य होती है।


आइए आज जानते हैं महाभारत कथा में वर्णित कुछ श्रापों के बारे में।

1) राजा पाण्डु को ऋषि किन्दम का श्राप

एकबार महाराज पाण्डु शिकार खेलने वन गए।झाडियों के पीछे कुछ हिल रहा था। मृग है सोचकर राजा ने बाण चलाया जो जाकर ऋषि किन्दम और उनकी पत्नी को लगा।वे दोनो रति-क्रीड़ा में लिप्त थे।

जब राजा ने उन्हें देखा तो बहुत दुखी हुए कि ये मुझसे क्या पाप हो गया।बहुत क्षमा याचना के बाद भी किन्दम ऋषि ने पाण्डु को श्राप दे दिया कि जब भी वो किसी स्त्री को काम भावना से स्पर्श करेंगे उसी क्षण उनकी मृत्यु हो जाएगी।पश्चाताप करने, वे सिंहासन पे अन्धे राजा धृतराष्ट्र को बैठाकर...


..स्वयं अपनी रानियों कुंती व माद्री के साथ वन चले गए।पांडवों का जन्म भी कुंती को ऋषि दुर्वासा द्वारा दिए गए मंत्र से हुआ था जिसमे किसी भी देव का स्मरण कर उस देव से कुंती,पुत्र प्राप्त कर सकती थी।एक बार माद्री पे मोहित हो जब पांडु ने उसे स्पर्श किया,उसी क्षण पांडु की मृत्यु होगयी।


2) उर्वशी का अर्जुन को श्राप

महाभारत युद्ध से पहले जब अर्जुन दिव्यास्त्र प्राप्त करने स्वर्ग गए तो वहां उर्वशी नाम की अप्सरा उन पर मोहित हो गयी। अर्जुन ने जब उन्हें अपनी माता के समान बताया तो यह सुनकर उर्वशी क्रोधित हो गयी और अर्जुन को श्राप दे डाला कि तुम नपुंसक की भांति...
हाबूर पत्थर
गजब हैं !!!
मेरी धरती मैया
दही जमा देनें वाला
दही जमाने के लिए लोग अक्सर जामन ढूंढ़ते नजर आते हैं... वहीं राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित इस गांव में जामन की जरूरत नहीं पड़ती है...यहां ऐसा पत्थर है जिसके संपर्क में आते ही दूध जम जाता है...


इस पत्थर पर विदेशों में भी कई बार रिसर्च हो चुकी है...फॉरेनर यहां से ले जाते हैं इस पत्थर के बने बर्तन
स्वर्णनगरी जैसलमेर का पीला पत्थर विदेशों में अपनी पहचान बना चुका है. इसके साथ ही जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर स्थित हाबूर गांव का पत्थर अपने आप में विशिष्ट खूबियां समेटे हुए है

..इसके चलते इसकी डिमांड निरंतर बनी हुई है...हाबूर का पत्थर दिखने में तो खूबसूरत है ही, साथ ही उसमें दही जमाने की भी खूबी है... इस पत्थर का उपयोग आज भी जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दूध को जमाने के लिए किया जाता है... इसी खूबी के चलते यह विदेशों में भी काफी लोकप्रिय है..

इस पत्थर से बने बर्तनों की भी डिमांड बढ़ गई है..।

कहा जाता है कि जैसलमेर पहले अथाह समुद्र हुआ करता था और कई समुद्री जीव समुद्र सूखने के बाद यहां जीवाश्म बन गए व पहाड़ों का निर्माण हुआ.. हाबूर गांव में इन पहाड़ों से निकलने वाले इस पत्थर में कई खनिज व अन्य जीवाश्मों की भरमार है.

जिसकी वजह से इस पत्थर से बनने वाले बर्तनों की भारी डिमांड है। साथ ही वैज्ञानिकों के लिए भी ये पत्थर शोध का विषय बन गया है... इस पत्थर से सजे दुकानों पर बर्तन व अन्य सामान पर्यटकों की खास पसंद होते हैं
एक बार भगवान कृष्ण की पत्नी महारानी सत्यभामा को अपनी सुन्दरता का अभिमान हो चला।दरबार में सिंहासन पर बैठे महारानी सत्यभामा ने श्री कृष्ण से अनायास ही पूछ लिया,"स्वामी!आपने त्रेता युग में भगवान राम के रूप में अवतार लिया था तथा सीता आपकी पत्नी थीं।क्या वह मुझसे भी ज्यादा सुन्दर थी?"


श्री कृष्ण सत्यभामा के प्रश्न का उत्तर देते कि उससे पहले ही गरुड़ बोल पड़े,"प्रभु!क्या मुझसे भी ज्यादा तीव्र गति से कोई इस सम्पूर्ण जग में उड़ सकता है।"
ये सुन सुदर्शन से भी नहीं रहा गया और वह भी बोल पड़ा,"भगवन!मैनें बड़े-बड़े युद्धों में आपको विजयश्री दिलवाई है।


क्या संसार में मुझसे भी बड़ा कोई शक्तिशाली है।" तीनों की ये बातें सुन श्री कृष्ण मंद-मंद मुस्कुरा रहे थे और जान रहे थे कि इन सबमें अहंकार आ गया है जिसे नष्ट करना अति आवश्यक है।तब श्री कृष्ण ने उन तीनो से कहा,"मेरा एक परम भक्त है, हनुमान।तुम तीनों के प्रश्नों के उत्तर वही...


...भलीभांति दे पाएगा। हे गरुड़! तुम तो बड़ी तीव्र गति से उड़ते हो।तुम जाओ और हनुमान को ये कहकर बुला लाओ कि भगवान राम , माता सीता के साथ उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। प्रभु राम और माता सीता का नाम सुनकर वे दौड़े-दौड़े चले आएंगे।" गरुड़ भगवान की आज्ञा लेकर हनुमानजी को बुलाने उड़ चले।

इधर श्री कृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि देवी आप सीता के रूप में तैयार हो जाएं और स्वयं द्वारकाधीश ने श्री राम का रूप धारण कर लिया।फिर श्री कृष्ण ने सुदर्शन को आज्ञा देते हुए कहा कि तुम महल के प्रवेशद्वार पर पहरा दो।ज्ञात रहे कि मेरी आज्ञा के बिना कोई भी महल में प्रवेश न करने पाए ।
*🛕टूटी झरना, रामगढ़(झारखंड)*

*🛑झारखंड के रामगढ़ में एक मंदिर ऐसा है जहां भगवान शंकर जी के शिवलिंग पर जलाभिषेक कोई और नहीं स्वयं माँ गंगा करती हैं। यहां जलाभिषेक साल के बारह महीने और चौबीस घंटे होता है। इस जगह का उल्‍लेख पुराणों में भी मिलता है।*


*🛑 झारखंड के रामगढ़ जिले में स्थित इस प्राचीन शिव मंदिर को लोग टूटी झरना के नाम से जानते है। मंदिर का इतिहास 1925 से जुड़ा हुआ है और माना जात है कि तब अंग्रेज इस क्षेत्र से रेलवे लाइन बिछाने का काम कर रहे थे।

पानी के लिए खुदाई के दौरान उन्हें भूमि के अन्दर कुछ गुम्बदनुमा चीज दिखाई पड़ा। अंग्रेजों ने इस बात को जानने के लिए पूरी खुदाई करवाई और अंत में ये मंदिर पूरी तरह से नजर आया।*

*🛑मंदिर के अन्दर भगवान भोले का शिव लिंग मिला और उसके ठीक ऊपर मां गंगा की सफेद रंग की प्रतिमा मिली। प्रतिमा के नाभी से आपरूपी जल निकलता रहता है जो उनके दोनों हाथों की हथेली से गुजरते हुए शिव लिंग पर गिरता है।*

सोर्स-टेलीग्राम चेनल-रोचक बाते
O Idi0t @shakirqad that wasn't any private report of Pt. Anand Koul that was a research text of Archeological Survey of India.
It is just a page of your destructive & blo0dy History.


The layout of Jamia Mosque resembles a Buddhist chaitya hall, while the ceiling of the central chamber is supported by four wooden columns.

Which was seen in the temples of medieval Kashmir

The whole structure is surmounted by a multi-tiered pyramidal roof with an open square pavilion (brangh) in the centre. The brangh is crowned by a spire... which was a part of Hindu and Buddhist building traditions.

Read along!
A Muslim chronicler writes in Baharistan-i-Shahi "Hindus were forcibly converted to Islam and were massacred in case they refused to be converted And Sikandarpura (a city laid out by Sultan Sikandar) was laid out on the debris of the destroyed temples of the Hindus.


In the neighborhood of the royal palaces in Sikandarpur, the Sultan destroyed the temples of Maha-Shri built by Praversena and another by Tarapida. The material from these was used for constructing a ‘Jami’ mosque in the middle of the city.”