Authors ब्राह्मण महिला

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सुविचार:
धर्मो रक्षति रक्षितः। 🚩
(Read fullThread) आज बात गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर की जिसकी धर्म ध्वजा चढाने-उताने का अधिकार अबोटी ब्राह्मणों को प्राप्त है-


१. हिंदू धर्म के चार धामों में यह एक धाम माना जाता है। यहां पर भगवान द्वारकाधीश की पूजा की जाती है। जिसका अर्थ है द्वारका का राजा। द्वापर युग में यहां स्‍थान भगवान कृष्‍ण की राजधानी थी।

२. इस मंदिर में ध्वजा पूजन का विशेष महत्व है मंदिर के शिखर पर ध्वज हमेशा पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर लहराता रहता है।

३. मंदिर पर लगे ध्वज को कई किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है। यह ध्वज 52 गज का होता है। 52 गज के ध्वज को लेकर यह यह कथा है कि द्वारका पर 56 प्रकार के यादवों ने शासन किया।

४. सभी के अपने भवन थे। इनमें चार भगवान श्रीकृष्ण, बलराम, अनिरुद्धजी और प्रद्युमनजी देवरूप होने से इनके मंदिर बने हुए हैं और इनके मंदिर के शिखर पर अपने ध्वज लहराते हैं।
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आज बात बंगाल की धरती से उठे संन्यासी विद्रोह (Sanyasi rebellion) की जिसे कुछ शोधकर्ताओं ने भारत के प्रथम स्वराज्य विद्रोह के रूप में परिमार्जित किया है, परन्तु दुर्भाग्य से समकालीन विमर्श में जिसकी चर्चा विरले ही की जाती है -


१. अट्ठारहवीँ सदी के अन्तिम वर्षों 1763-1800ई में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध तत्कालीन भारत के कुछ भागों में संन्यासियों (केना सरकार , द्विजनारायन) ने उग्र आन्दोलन किये थे जिसे इतिहास में संन्यासी विद्रोह कहा जाता है।

२. यह आन्दोलन अधिकांशतः उस समय ब्रिटिश भारत के बंगाल और बिहार प्रान्त में हुआ था। 18 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी के पत्र व्यवहार में कई बार संन्यासियों के छापे का जिक्र हुआ है।


३. यह छापा उत्तरी बंगाल में पड़ते थे। 1770 ईस्वी में पड़े बंगाल में भीषण अकाल के कारण हिंदू यहां-वहां घूम कर अंग्रेजों तथा सरकारी अधिकारियों के घरों एवं अन्न भंडार को अधिकृत कर लिया करते थे। ये संन्यासी धार्मिक थे पर मूलतः वह किसान थे, जिसकी जमीन छीन ली गई थी।

४. किसानों की बढ़ती दिक्कतें,बढ़ती भू राजस्व, 1770 ईस्वी में पड़े अकाल के कारण छोटे-छोटे जमींदार, कर्मचारी, सेवानिवृत्त सैनिक और गांव के गरीब लोग इन संन्यासी दल में शामिल हो गए। यह बंगाल में पांच से सात हजार लोगों का दल बनाकर घूमा करते थे और आक्रमण के लिए गोरिल्ला तकनीक अपनाते।
राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🏻
ॐ रामचंद्राय नमः
ॐ रामभद्राय नमः
(Read full thread) आज बात इक्ष्वाकु वंश के राजा मर्यादापुरूषोत्तम श्री राम के(राजकुल)गुरू ऋषि वशिष्ठ की-


१. वशिष्ठ एक सप्तर्षि हैं - यानि के उन सात ऋषियों में से एक जिन्हें ईश्वर द्वारा सत्य का ज्ञान एक साथ हुआ था और जिन्होंने मिलकर वेदों का दर्शन किया (वेदों की रचना की, ऐसा कहना अनुचित होगा क्योंकि वेद तो अनादि है)।

२. उनकी पत्नी अरुन्धती है। वह योग-वासिष्ठ में राम के गुरु हैं। वशिष्ठ राजा दशरथ के राजकुल गुरु भी थे। उन्होंने ही राजा दशरथ को पुत्रकामेष्टि अनुष्ठान कराने का सुझाव दिया था।वशिष्ठ ब्रम्हा के मानस पुत्र थे। त्रिकाल दर्शी तथा बहुत ज्ञान वान ऋषि थे।


३. सूर्य वंशी राजा इनकी आज्ञा के बिना कोई धार्मिक कार्य नही करते थे। त्रेता के अंत मे ये ब्रम्हा लोक चले गए थे । आकाश में चमकते सात तारों के समूह में पंक्ति के एक स्थान पर वशिष्ठ को स्थित माना जाता है।


४. महर्षि वशिष्ठ सातवें और अंतिम ऋषि थे। वे श्री राम के गुरु भी थे और सुर्यवंश के राजपुरोहित भी थे। उनके पास कामधेनु गाय थी । कामधेनु जिसके पास होती हैं वह जो कुछ कामना करता है (माँगता है) उसे वह मिल जाता है। (काम = इच्छा , धेनु=गाय)।