1..महाभारत के भीष्म पर्व में लिखा है-
सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।
परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः।।
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः।
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले।।
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।
2...अर्थात: हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है,जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है,उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है।
इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे
महान शश (खरगोश) दिखायी देता है।
इसी श्लोक को पढ़ कर ११वीं सदी में
श्रीरामानुजाचार्य ने महर्षि व्यास द्वारा
वर्णित उस नक़्शे को बनाया था।
चित्र-(1)
इस चित्र को यदि उल्टा कर दिया जाये
तो ये बिलकुल हमारी पृथ्वी का नक्शा
बन जाता है।
चित्र-(2)
और जैसा कि महर्षि व्यास ने कहा है -
5.. महर्षि व्यास ने कहा है,
इसे पृथ्वी के दो अंशों में बांटा जाये तो
ये पूर्णतः हमारी पृथ्वी का नक्शा बन
जाता है।
चित्र-(3)
जिस समय श्रीरामानुजाचार्य ने ये नक्शा बनाया था उस समय पूरी दुनिया यही सोचती थी कि पृथ्वी सपाट है।
6..अगर महाभारत का कालखंड 5००० वर्षों का भी माना जाये तो भी ये सिद्ध हो जाता है कि पृथ्वी का वास्तविक नक्शा हमारे विद्वानों ने सहस्त्रों वर्षों पूर्व ही बता दिया था।
हम उस उत्कृष्ट संस्कृति के वंशज है जिसके पीछे संसार चला।
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