प्राचीन भारत की प्रमुख व्यूह रचनाएं
“महाभारत” एक ऐसा महाग्रंथ है जिसमे निहित ज्ञान आज भी प्रासंगिक है| इसमें बताये गए युद्ध के १८ दिनों में तरह तरह की रणनीतिया और व्यूह रचे गए थे | जैसे अर्धचंद्र, वज्र, और सबसे अधिक प्रसिद्ध चक्रव्यूह |

आखिर कैसे दिखते थे ये व्यूह? 👇

वज्र व्यूह

महाभारत युद्ध के प्रथम दिन अर्जुन ने अपनी सेना को इस व्यूह के आकार में सजाया था| इसका आकार देखने में इन्द्रदेव के वज्र जैसा होता था अतः इस प्रकार के व्यूह को "वज्र व्यूह" कहते हैं।
@RekhaSharma1511
@DeshBhaktReva
क्रौंच व्यूह

क्रौंच एक पक्षी होता है, जिसे आधुनिक अंग्रेजी भाषा में Demoiselle Crane कहते हैं| ये सारस की एक प्रजाति है| इस व्यूह का आकार इसी पक्षी की तरह होता है| युद्ध के दूसरे दिन युधिष्ठिर ने पांचाल पुत्र को इसी क्रौंच व्यूह से पांडव सेना सजाने का सुझाव दिया था| 1/3
राजा द्रुपद इस पक्षी के सिर की तरफ थे, तथा कुन्तीभोज इसकी आँखों के स्थान पर थे| आर्य सात्यकि की सेना इसकी गर्दन के स्थान पर थी| भीम तथा पांचाल पुत्र इसके पंखो (Wings) के स्थान पर थे| द्रोपदी के पांचो पुत्र तथा आर्य सात्यकि इसके पंखो की सुरक्षा में तैनात थे।
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इस तरह से हम देख सकते है की, ये व्यूह बहुत ताकतवर एवं असरदार था| पितामह भीष्म ने स्वयं इस व्यूह से अपनी कौरव सेना सजाई थी| भूरिश्रवा तथा शल्य इसके पंखो की सुरक्षा कर रहे थे| सोमदत्त, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा इस पक्षी के विभिन्न अंगों का दायित्व संभाल रहे थे|

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अर्धचन्द्र व्यूह

इसकी रचना अर्जुन ने कौरवों के गरुड़ व्यूह के प्रत्युत्तर में की थी ।पांचाल पुत्र ने इस व्यूह को बनाने में अर्जुन की सहायता की थी।इसके दाहिने तरफ भीम थे।
मंडल व्यूह

भीष्म पितामह ने युद्ध के सांतवे दिन कौरव सेना को इसी मंडल व्यूह द्वारा सजाया था। इसका गठन परिपत्र रूप में होता था।ये बेहद कठिन व्यूहों में से एक था, पर फिर भी पांडवों ने इसे वज्र व्यूह द्वारा भेद दिया था।इसके प्रत्युत्तर में भीष्म ने "औरमी व्यूह" की रचना की थी
इसका तात्पर्य होता है समुद्र| ये समुद्र की लहरों के समान प्रतीत होता था| फिर इसके प्रत्युत्तर में अर्जुन ने "श्रीन्गातका व्यूह" की रचना की थी| ये व्यूह एक भवन के समान दिखता था|
चक्रव्यूह

इसके बारे में सभी ने सुना है..इसकी रचना गुरु द्रोणाचार्य ने युद्ध के तेरहवें दिन की थी।दुर्योधन इस चक्रव्यूह के बिलकुल मध्य में था।बाकि सात महारथी इस व्यूह की विभिन्न परतों में थे।इस व्यूह के द्वार पर जयद्रथ था।सिर्फ अभिमन्यु ही इस व्यूह को भेदने में सफल हो पाया।
चक्रशकट व्यूह

अभिमन्यु की ह त्या के पश्चात जब अर्जुन, जयद्रथ के प्राण लेने को उद्धत हुए, तब गुरु द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा के लिए युद्ध के चौदहवें दिन इस व्यूह की रचना की थी !!

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#हर_हर_महादेव


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#हर_हर_महादेव_जय_शिव_शंभू

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#हर_हर_महादेव__ॐ

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#ॐ_नमः_शिवायः

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#ॐ_नमः_शिवाय
जब पूरी दुनिया विश्व में 2500 किग्रा के रॉकेट बना रही थी तब भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश था जो 250 किग्रा के क्रायोजेनिक रॉकेट बना रहा था और उसका श्रेय एकमात्र भारत के वैज्ञानिक को था वो हैं "Nambi Narayan".
एक थ्रेड पूरे Nambi मामले पर एवम् भारतीय वैज्ञानिकों की दशा पर।


शुरूआत होती है अक्टूबर 1994 से जब केरल के तिरूवनन्तपुरम् से दो मालदीव की लड़कियां मरियम राशिदा एवम् फौजिया हसन को गिरफ्तार किया जाता है जिनके पास से एक चित्र निकलता है जिसमें कुछ रॉकेट छपे होते हैं और वो सहज भाव में ही बता देतीं हैॆ कि वो ये चित्र इसरो से प्राप्त की हैं

व इसको उन्होंने पाकिस्तान को बेचा है। केरल पुलिस ने आनन फानन में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के डायरेक्टर नम्बी नारायण,डी शशिकुमार एवम् के चन्द्रशेखर को गिरफ्तार कर लिया।
भारतीय मीडिया ने कुछ ही पलों में बिना सबूत के पुलिस की जानकारी के आधार पर ही नम्बी को भारत का गद्दार बता दिया।

जिस समय नम्बी की गिरफ्तारी हुयी उस समय वो अपने प्रोजेक्ट की समाप्ति के बेहद नजदीक थे और यदि ये प्रोजेक्ट समय पर समाप्त हो जाता तो आज जिस स्थान पर NASA है वहां पर ISRO होता क्योंकि NASA के पास इतने हल्के रॉकेट बनाने की क्षमता नहीं थी।
नम्बी ने स्वयं NASA का ऑफर ठुकराया था।

दिसम्बर 1994 में मामला सीबीआइ एवम् IB के पास आया तब तक Nambi को ढेरों मानसिक एवम् शारीरिक प्रताड़ना दी जा चुकीं थीॆ व उनका दोष सिर्फ इतना था कि वो देशहित में काम कर रहे थे और केरल पुलिस पर CIA का दवाब था।
"स्वतंत्रता हमारा अधिकार है, तुम्हारी ये गोलियां हमारे संकल्प को डिगा नहीं सकतीं"
ये शब्द उस वीरांगना के अन्तिम शब्द थे जिसने अपने हाथ से भारत का उस समय का झंडा गिरने न दिया यद्यपि अंग्रेजी गोली उनका सीना भेद गयी।
जानिये 17 वर्षीय कनकलता बरूआ "वीरबाला" के बारे में
@Sanjay_Dixit


असम के बारंगबाड़ी में जन्मीं वीरांगना की पारिवारिक स्थिति ये थी कि मात्र 5 वर्ष की अवस्था में मां का देहान्त हो गया अगले ही वर्ष सौतेली मां का भी देहावसान हो गया लेकिन वीर चुनौतियों से डिगते नहीं अपितु चुनौतियों का हंसकर सामना करते हैं चूंकि नाम ही वीरबाला था यथा नाम तथा गुण।

सात वर्ष की अवस्था मेॆ कवि ज्योति प्रसाद अग्रवाल के गीतों ने राष्ट्रभक्ति की अलख जगा दी वीरबाला के हृदय में,
मात्र 17 वर्ष में नेताजी की आजाद हिन्द फौज में शामिल होने की याचिका दी इन्होंने परन्तु वो याचिका निरस्त हो गयी क्योंकि कहा गया कि आप अभी नाबालिग हैं लेकिन वो रूकी नहीं।

फिर वो स्वयंसेवकों के आत्मघाती दल मृत्यु वाहिनी में शामिल हो गयीं उस समय भारत छोड़ो आन्दोलन चल रहा था दिनांक 20 सितम्बर 1942 को इनकी योजना थी कि गोहपुर थाने पर भारतीय झंडा फहरायेंगी व दादा को ये वादा किया कि जैसे अहोम वंश देश के लिये लड़ा वैसे ही वो देश के लिये लड़ेंगी।

वीरबाला स्वयं उस दल का नेतृत्व कर रहीं थीं हाथों में तिरंगा लिये बढती जा रहीं थीं थानेदार ने इनको रोका, इन्होंने कहा कि हम आपसे कोई हिंसक संघर्ष नहीं चाहते हम केवल झंडा फहराना चाहते एवम् राष्ट्रभक्ति की अलख जगाना चाहते परन्तु थानेदार नहीं माना और गोली चलाने की चेतावनी दी

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