महर्षि अगस्त्य एक वैदिक कालीन महान ऋषि थे। उनका जन्म काशी में जिस जगह हुआ था, उसे आज अगस्त्य कुंड के नाम से जाना जाता है।
महर्षि अगस्त्य का विवाह विदर्भ देश की राजकुमारी लोपमुद्रा से हुआ था जो एक पतिव्रता, वीर और बुद्धिमान स्त्री थी।

ऋग्वेद के कई मंत्रो की रचना महर्षि अगस्त्य ने की है तथा ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तो को बताया है। महर्षि अगस्त्य ने तपस्या काल में मंत्रो की शक्ति को देखा था। इसलिए इन्हे मन्त्रदृष्टा ऋषि भी कहा जाता है।
भारत देश में महर्षि अगस्त्य के कई आश्रम है। उत्तराखंड के अगस्त्यमुनि नामक शहर में मुनि का प्राचीन आश्रम है।

यहाँ पर अगस्त्य ऋषि तपस्या करते थे। यही वह स्थान है जहाँ पर मुनि ने दो राक्षसों आतापी और वातापी का वध करके उनको यमपूरी पहुँचाया था।
आज यहाँ पर एक प्रसिद्ध मंदिर है और आसपास के गाँव में मुनि को इष्टदेव मानकर पूजा की जाती है।

महर्षि का एक आश्रम तमिलनाडु में भी है और ऐसी मान्यता है की अगस्त्य मुनि का शिष्य विंध्याचल पर्वत था जो अपनी ऊंचाई पर बहुत घमंड करता था...
...और एक दिन कौतुहलवश उसने अपनी ऊंचाई इतनी बड़ा दी की धरती पर सूर्य की किरणे आना बंद हो गयी तथा धरती पर हाहकार मच गया

तब सभी जन अगस्त्य ऋषि के पास गए और उनसे अपने शिष्य को समझाने की विनती करने लगे तब मुनि अगस्त्य ने विंध्याचल पर्वत से कहा मुझे दक्षिण की तरफ जाना है, इसलिए..
..अपनी ऊंचाई कम करो व जब तक में लौट ना आऊं अपनी ऊंचाई ना बढ़ाना। विंध्याचल ने गुरु के आदेश का पालन किया और तबसे विंध्याचल की ऊंचाई स्थायी हो गयी।
अगस्त्य मुनि की जन्मकथा बड़ी ही रोचक है।धर्म-ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि मित्र तथा वरुण नामक देवताओं से अगस्त्य की उत्पत्ति हुई थी।
यह बात उस समय की है,जब एक यज्ञ में मित्र तथा वरुण नामक दो देवता उपस्थित थे और सौभाग्यवश उसी यज्ञ में अप्सरा उर्वशी भी उपस्थित थी जिसकी सुंदरता की चर्चा तीनों लोकों में विख्यात थी।तभी मित्र और वरुण देवताओं ने अप्सरा उर्वशी की तरफ देखा तो आसक्त हो गए, खुद को रोक न सके और...
...यज्ञ के अंतराल में ही कुम्भ में स्खलित वीर्य के कारण कुम्भ से अगस्त्य का प्रादुर्भाव हुआ। इसलिए इन्हें कुम्भयोनी भी कहा गया और उर्वशी को इनकी माता कहा गया। 

हमारे सनातन धर्म में कई ऐसे ऋषि मुनि हुये है, जिनके पास अपार शक्तियों का भंडार था।
और उन्होंने अपनी शक्ति के द्वारा ऐसे कार्य किये की बड़े बड़े देवता भी नहीं कर पाए।

ऐसी ही एक घटना है, जब अगस्त्य मुनि सम्पूर्ण समुद्र को पी जाते हैं।यह घटना उस समय की है जब राक्षस वृतासुर के आतंक से धरती कांप उठी थी। देवताओं और राक्षसों में भयंकर युद्ध हुआ और वृतासुर मारा गया।
राक्षस राज वृतासुर के वध होने के बाद बहुत से राक्षस राजा के आभाव में देवताओं के भय से यहाँ वहाँ छिपते भागते फिर रहे थे और देवताओं ने राक्षसों को ढूंढ ढूंढ कर मारा। तब बहुत से राक्षस समुद्र में प्रवेश कर छुप गए और वहीं छुपे-छुपे देवराज इंद्र की वध की योजना बनाने लगे।
तब राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने राक्षसों को सुझाव दिया की पहले ऋषि मुनियों को नष्ट कर दिया जाये तो देवराज का वध करना आसान हो जायेगा।

क्योंकि देवताओं की शक्तियाँ ऋषि मुनियों के द्वारा किये गए पूजा पाठ यज्ञ आदि से दिन प्रीतिदिन बढ़ती रहती है।
अब राक्षस दिन में समुद्र में छुपते और रात में निकलकर ऋषि मुनियों के यज्ञ नष्ट करते
तथा उन्हें मारकर खा जाते थे। इस प्रकार ऋषि समुदाय में हाहाकार मच गया क्योंकि देवता भी ऋषि मुनियों की रक्षा करने में असमर्थ थे।
तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे और सारी घटना से अवगत कराया तो भगवान विष्णु बोले तुम्हें समुद्र को सुखाना होगा तब समुद्र सूखने पर सभी राक्षसों का वध कर सकते हो

यही एकमात्र उपाय है। किन्तु प्रश्न यह था इतने विशाल समुद्र को सुखाया कैसे जाये?
तब भगवान विष्णु ने कहा कि पूरे समुद्र को सुखाने की शक्ति सिर्फ अगस्त्य मुनि के पास है।

अगर तुम सब उनके पास जाकर प्रार्थना करोगे तो वह तुम्हारी विनती अवश्य स्वीकार कर लेंगे। तब सभी देवता अगस्त्य मुनि के पास पहुंचे और उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया।
अगस्त्य मुनि मान गए और समुद्र तट पर पहुंचे और देखते ही देखते सारे समुद्र को पी गए। इसके बाद सभी देवताओं ने मिलकर राक्षसों का वध कर दिया कुछ राक्षस डर कर पाताल लोक भी भाग गए।

इसके बाद देवताओं ने कहा अगस्त्य मुनि आप समुद्र का जल दोबारा भर दीजिए।
तब अगस्त्य मुनि ने उत्तर दिया कि अब यह संभव नहीं है।

अब तुम्हें कोई दूसरा उपाय करना होगा इसके पश्चात सभी देवी देवता ब्रह्मा जी के पास पहुंचे।

ब्रह्मा जी ने कहा जब भागीरथ धरती पर गंगा लाने का प्रयत्न करेंगे तब समुद्र जल से भर जाएगा।
ऋषि अगस्त्य ने 'अगस्त्य संहिता' नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ की बहुत चर्चा होती है। इस ग्रंथ की प्राचीनता पर भी शोध हुए हैं और इसे सही पाया गया।

-आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं।
-अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव भी कहते हैं।
-महर्षि अगस्त्य कहते हैं-सौ कुंभों (उपरोक्त प्रकार से बने तथा श्रृंखला में जोड़े गए सौ सेलों) की शक्ति का पानी पर प्रयोग करेंगे, तो पानी अपने रूप को बदलकर प्राणवायु (Oxygen)तथा उदान वायु (Hydrogen)में परिवर्तित हो जाएगा।
विद्युत तार: आधुनिक नौकाचलन और विद्युत वहन,संदेशवहन आदि के लिए जो अनेक बारीक तारों की बनी मोटी केबल या डोर बनती है वैसी प्राचीनकाल में भी बनती थी जिसे रज्जु कहते थे।

-इसके अलावा अगस्त्य मुनि ने गुब्बारों को आकाश में उड़ाने और विमान को संचालित करने की तकनीक का भी उल्लेख किया है।
-उदानवायु (Hydrogen)को वायु प्रतिबंधक वस्त्र में रोका जाए तो यह विमान विद्या में काम आता है। यानी वस्त्र में हाइड्रोजन पक्का बांध दिया जाए तो उससे आकाश में उड़ा जा सकता है।
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