कुंडली में 12 भाव होते हैं। कैसे ज्योतिष द्वारा रोग के आंकलन करते समय कुंडली के विभिन्न भावों से गणना करते हैं आज इस पर चर्चा करेंगे।
कुण्डली को कालपुरुष की संज्ञा देकर इसमें शरीर के अंगों को स्थापित कर उनसे रोग, रोगेश, रोग को बढ़ाने घटाने वाले ग्रह

रोग की स्थिति में उत्प्रेरक का कार्य करने वाले ग्रह, आयुर्वेदिक/ऐलोपैथी/होमियोपैथी में से कौन कारगर होगा इसका आँकलन, रक्त विकार, रक्त और आपरेशन की स्थिति, कौन सा आंतरिक या बाहरी अंग प्रभावित होगा इत्यादि गणना करने में कुंडली का प्रयोग किया जाता है।
मेडिकल ज्योतिष में आज के समय में Dr. K. S. Charak का नाम निर्विवाद रूप से प्रथम स्थान रखता है। उनकी लिखी कई पुस्तकें आज इस क्षेत्र में नए ज्योतिषों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
प्रथम भाव -
इस भाव से हम व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता, सिर, मष्तिस्क का विचार करते हैं।
द्वितीय भाव-
दाहिना नेत्र, मुख, वाणी, नाक, गर्दन व गले के ऊपरी भाग का विचार होता है।
तृतीय भाव-
अस्थि, गला,कान, हाथ, कंधे व छाती के आंतरिक अंगों का शुरुआती भाग इत्यादि।

चतुर्थ भाव- छाती व इसके आंतरिक अंग, जातक की मानसिक स्थिति/प्रकृति, स्तन आदि की गणना की जाती है
पंचम भाव-
जातक की बुद्धि व उसकी तीव्रता,पीठ, पसलियां,पेट, हृदय की स्थिति आंकलन में प्रयोग होता है।

षष्ठ भाव-
रोग भाव कहा जाता है। कुंडली मे इसके तत्कालिक भाव स्वामी, कालपुरुष कुंडली के स्वामी, दृष्टि संबंध, रोगेश की स्थिति, रोगेश के नक्षत्र औऱ रोगेश व भाव की डिग्री इत्यादि।
घाव, स्वाद, नाभी, औऱ पेट व इसके आंतरिक अंगों की गणना छठे भाव से होती है। छठे भाव का स्वामी किस भाव पर दृष्टि डाल रहा है। नक्षत्र इत्यादि से प्रभावित कर रहा है। मुख्यतः इससे ही शरीर के विभिन्न रोगों का अध्यन होता है।
सप्तम भाव-
सप्तम भाव जातक के मूत्राशय, कमर, जातिका के जनन अंगों के अध्ययन के लिए प्रयोग होता है। महिलाओं के रोगों की गणना का केंद्र है।

अष्टम भाव-
आयु, जननेन्द्रियां, मृत्यु, मलद्वार, गुप्तांगों, रोग की गहराई/जटिलता का आँकलन

नवम भाव-
वात पित्त रोग, जाँघ
दशम भाव-
नींद, घुटना

एकादश भाव-
एकादश भाव से पिंडलियों, बायां कान, टखनों का विचार करते हैं।

द्वादश भाव-
बायां नेत्र, पँजे इत्यादि
द्वादश भाव को व्यय भाव व भाव स्वामी को व्ययेश भी कहते हैं इस की स्थिति से, दृष्टि संबंध, भाव स्वामित्व, अंशों इत्यादि की गणना
अंगहीनता, आपरेशन इत्यादि में अंग को निकालने/ व्यय/खर्च का अध्यन इस भाव, भावेश की स्थिति से होगा।

कुंडली अध्यन क्लिष्ट /कठिन प्रक्रिया है। धीरे धीरे अध्यन करते करते अनुभव के आधार पर फल कथन में सटीकता आती जाती है। यहां एक थ्रेड के रूप में विस्तार से रोग और ज्योतिष की चर्चा
करना संभव नहीं है।मेरा उद्देश्य मात्र लोगों को ज्योतिष के वैज्ञानिक पहलुओं से परिचित कराना है। हमारे ग्रंथों को विदेशी आक्रमणकारियों ने बहुत नुकसान किया है जिसकारण कई महत्वपूर्ण ग्रन्थ अब अस्तित्व में ही नहीं है। पर ज्योतिष विज्ञान में अनंत संभावनाएं हैं। लोग जब चर्चा करेंगे तभी
कुछ सीखने को मिलेगा।
गर्व करिये कि हम एक उन्नत समाज और वैज्ञानिक जीवनशैली का पालन करने वाले लोग हैं। जिनके पूर्वजों ने हज़ारो वर्षों पूर्व ही ज्योतिष औऱ खगोल शास्त्र जैसे विषयों पर सूक्ष्मता पूर्ण अध्यन कर हमें संसार की हर सभ्यता से आगे रखा है।

जयतु सनातन संस्कृति🚩
नमः शिवाय

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#ज्योतिष_विज्ञान #मंत्र_विज्ञान

ज्योतिषाचार्य अक्सर ग्रहों के दुष्प्रभाव के समाधान के लिए मंत्र जप, अनुष्ठान इत्यादि बताते हैं।

व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति ही उसकी कुंडली बन जाती है जैसे कि फ़ोटो खींच लिया हो और एडिट करना सम्भव नही है। इसे ही "लग्न" कुंडली कहते हैं।


लग्न के समय ग्रहों की इस स्थिति से ही जीवन भर आपको किस ग्रह की ऊर्जा कैसे प्रभावित करेगी का निर्धारिण होता है। साथ साथ दशाएँ, गोचर इत्यादि चलते हैं पर लग्न कुंडली का रोल सबसे महत्वपूर्ण है।


पृथ्वी से अरबों खरबों दूर ये ग्रह अपनी ऊर्जा से पृथ्वी/व्यक्ति को प्रभावित करते हैं जैसे हमारे सबसे निकट ग्रह चंद्रमा जोकि जल का कारक है पृथ्वी और शरीर के जलतत्व पर पूर्ण प्रभाव रखता है।
पूर्णिमा में उछाल मारता समुद्र का जल इसकी ऊर्जा के प्रभाव को दिखाता है।


अमावस्या में ऊर्जा का स्तर कम होने पर वही समुद्र शांत होकर पीछे चला जाता है। जिसे ज्वार-भाटा कहते हैं। इसी तरह अन्य ग्रहों की ऊर्जा के प्रभाव होते हैं जिन्हें यहां समझाना संभव नहीं।
चंद्रमा की ये ऊर्जा शरीर को (अगर खराब है) water retention, बैचेनी, नींद न आना आदि लक्षण दिखाती है


मंत्र क्या हैं-
मंत्र इन ऊर्जाओं के सटीक प्रयोग करने के पासवर्ड हैं। जिनके जप से संबंधित ग्रह की ऊर्जा को जातक की ऊर्जा से कनेक्ट करके उन ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम किया और शुभ प्रभाव को बढ़ाया जाता है।
#ज्योतिष_विज्ञान #Medical_Astrology #चिकित्सीय_ज्योतिष
चिकित्सीय ज्योतिष के विषय मे बात करती हूँ तो अक्सर लोग हैरान हो जाते हैं कि कैसे बिना जांच के पूर्व में हुए/वर्तमान के/या भविष्य में होने वालें रोगों के विषय मे बिना जाँच के सटीक जानकारी सिर्फ जातक की कुंडली से निकल आती है।


हमें समझना होगा कि ज्योतिष गणनाओं पर आधारित एक विशुद्ध विज्ञान है। कुंडली की सटीकता/समय इत्यादि सही होने चाहिए तो व्यक्ति की शारीरिक संरचना से लेकर आंतरिक रोगों भी की कही जाती है।
दुःख ये है कि आजकल इस विद्या में जरूरत से ज्यादा प्रोफेशनल बनकर कुछ लोग इस विद्या को बदनाम करते हैं


बारह भावों, नव ग्रहों, नक्षत्रों, ग्रहों के अंश, भाव स्वामी, विभिन्न भावों उनकी उपस्थिति, दृष्टि संबंध, षोडशवर्ग, महादशा व अन्य दशाएँ इत्यादि और भी बहुत से तथ्यों पर गणना होती है। ज्योतिष के 12 भावों में अंगों की गणना कालपुरुष कुंडली कही जाती है।


आज कुंडली के भावों में कैसे शरीर के विभिन्न अंगों पर ज्योतिषीय आधार से हम रोग के विषय मे बताते हैं ये दिखाना चाहूंगी। ताकि ज्योतिष को अंधविस्वास न मान आप उसके वैज्ञानिक पहलुओं को समझ सकें।
आप लोगों की जिज्ञासा हुई तो आने वाले समय इससे आगे भी लिखने का प्रयास करूँगी।


लिखने को तो बहुत कुछ होता है पर यहां संक्षेप में लिखूँगी।
सूर्य- हड्डियाँ, हृदय, पित्त
चंद्रमा- मस्तिष्क, निद्रारोग, कफ विकार, जलतत्व
मंगल- लाल रक्त कणिकाएं(हीमोग्लोबिन), रक्त सम्बन्धी रोग, चोट, सर्जरी
बुध- त्वचा, त्वचा रोग, ENT वर्टिगो, स्पीच डिसऑर्डर, फेफड़े, नपुसंकता
#ज्योतिष #बुध_ग्रह #उपाय

ज्योतिष में बुध ग्रह को बुद्धि ज्ञान, तर्क, त्वचा व वाणी का कारक माना गया है। कुंडली मे बुध की लाभकारी स्थिति जातक को बुद्धिमान, तार्किक, गणित और अकाउंट्स पर प्रभाव, ज्योतिष में रुचि, वाक्पटु बनाता है।


काव्य संगीत में रुचि, भाषणों/बोली के द्वारा प्रभाव डालने वाला , हँसमुख, कल्पनाशील, लेखनमे रुचि लेने वाला, व्यंगप्रेमी और हाजिरजवाब बनाता है।
ये सेल्स/मार्केटिंग के क्षेत्र में अग्रणी बनाता है।


वहीं बुध के नकारात्मक प्रभाव व्यक्ति को संकोची, बोलने में तुतलाना/हकलाना, सूंघने की क्षमता पर प्रभाव, व्यापार/कार्यक्षेत्र में हानि और दांतों से सम्बंधित समस्याएं देता है।
अलग अलग भाव मे बुध का प्रभाव अलग ही होता है साथ ही दृष्टि संबंध और युति के भी परिणाम बदल जाते हैं।


द्वितीय भाव मे ये बेबी फेस, चेहरे पर लावण्य और व्यक्ति को उसकी आयु से कम दिखाता है।
वैसे तो बुद्ध ग्रह का फ़लित व उपचार हर कुंडली के अनुसार अलग अलग होगा पर यहां कुछ ऐसे उपाय लिख रही हूँ जो सभी कर सकते हैं।
बुधवार को गाय को अंकुरित मूँग खिलाएँ।
बुध की दान सामग्री दान करें।


किन्नरों को हरे कपड़े और चूड़ियाँ दें।
छोटी कन्याओं का पूजन कर उन्हें हरे कपड़े/चूड़ियाँ और मिठाइयां देकर दक्षिणा दें।
माँ दुर्गा की आराधना करें
बहन बुआ बेटियों का सम्मान करें।
बहन को नाक का आभूषण(नाक की लौंग) दें।
तुलसी की सेवा करें सूखने पर तुरंत दूसरी लगा दें।

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THREAD: 12 Things Everyone Should Know About IQ

1. IQ is one of the most heritable psychological traits – that is, individual differences in IQ are strongly associated with individual differences in genes (at least in fairly typical modern environments). https://t.co/3XxzW9bxLE


2. The heritability of IQ *increases* from childhood to adulthood. Meanwhile, the effect of the shared environment largely fades away. In other words, when it comes to IQ, nature becomes more important as we get older, nurture less.
https://t.co/UqtS1lpw3n


3. IQ scores have been increasing for the last century or so, a phenomenon known as the Flynn effect. https://t.co/sCZvCst3hw (N ≈ 4 million)

(Note that the Flynn effect shows that IQ isn't 100% genetic; it doesn't show that it's 100% environmental.)


4. IQ predicts many important real world outcomes.

For example, though far from perfect, IQ is the single-best predictor of job performance we have – much better than Emotional Intelligence, the Big Five, Grit, etc. https://t.co/rKUgKDAAVx https://t.co/DWbVI8QSU3


5. Higher IQ is associated with a lower risk of death from most causes, including cardiovascular disease, respiratory disease, most forms of cancer, homicide, suicide, and accident. https://t.co/PJjGNyeQRA (N = 728,160)
The chorus of this song uses the shlokas taken from Sundarkand of Ramayana.

It is a series of Sanskrit shlokas recited by Jambavant to Hanuman to remind Him of his true potential.

1. धीवर प्रसार शौर्य भरा: The brave persevering one, your bravery is taking you forward.


2. उतसारा स्थिरा घम्भीरा: The one who is leaping higher and higher, who is firm and stable and seriously determined.

3. ुग्रामा असामा शौर्या भावा: He is strong, and without an equal in the ability/mentality to fight

4. रौद्रमा नवा भीतिर्मा: His anger will cause new fears in his foes.

5.विजिटरीपुरु धीरधारा, कलोथरा शिखरा कठोरा: This is a complex expression seen only in Indic language poetry. The poet is stating that Shivudu is experiencing the intensity of climbing a tough peak, and likening

it to the feeling in a hard battle, when you see your enemy defeated, and blood flowing like a rivulet. This is classical Veera rasa.

6.कुलकु थारथिलीथा गम्भीरा, जाया विराट वीरा: His rough body itself is like a sharp weapon (because he is determined to win). Hail this complete

hero of the world.

7.विलयगागनथाला भिकारा, गरज्जद्धरा गारा: The hero is destructive in the air/sky as well (because he can leap at an enemy from a great height). He can defeat the enemy (simply) with his fearsome roar of war.