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इस मानचित्र में उन सभी शहरों और राज्यों की राजधानियों का जिक्र संस्कृत में किया गया है, जो महाभारतकाल में मौजूद थे। मानचित्र में आप देख सकते हैं कि इसके पश्चिमोत्तर में गंधार (अफगानिस्तान) का उल्लेख है, वहीं, भारत की हृदयस्थली पर पांचाल उल्लिखित है।

1.

#महाभारतकाल 🚩


जिसका नाम हिन्दुस्तान है वह भारतवर्ष का एक टुकड़ा मात्र है। जिसे आर्यावर्त कहते हैं वह भी भारतवर्ष का एक हिस्साभर है और जिसे भारतवर्ष कहते हैं वह तो जम्बू द्वीप का एक हिस्सा है मात्र है।

#जम्बूद्वीप #भारतवर्ष 🚩

2.


जम्बू द्वीप में पहले देव-असुर और फिर बहुत बाद में कुरुवंश और पुरुवंश की लड़ाई और विचारधाराओं के टकराव के चलते यह जम्बू द्वीप कई भागों में बंटता चला गया।

#जम्बूद्वीप #भारतवर्ष 🚩

3.
कल्कि अवतार।

युधिष्ठिर द्वारा मार्कण्डेय से पूछने पर मार्कण्डेय युगान्तकालिक कलियुग समय के बर्ताव के बारे में युधिष्ठिर को बताते हैं और तब कल्कि अवतार का वर्णन के बारे में बताया गया जिसका उल्लेख महाभारत वनपर्व के 'मार्कण्डेयसमस्या पर्व' के अंतर्गत..

1.


अध्याय 190 में बताया गया है मार्कण्डेय का संवाद मार्कण्डेय कहते हैं- युधिष्ठिर युगान्तकाल आने पर सब ओर आग जल उठेगी। उस समय पापीयों को मांगने पर कहीं अन्न, जल या ठहरने के लिये स्थान नहीं मिलेगा। वे सब ओर से कड़वा जवाब पाकर निराश हो सड़कों पर ही सो रहेंगे।

2.

युगान्तकाल उपस्थित होने पर बिजली की कड़क के समान कड़वी बोली बोलने वाले कौवे, हाथी, शकुन, पशु और पक्षी आदि बड़ी कठोर वाणी बोलेंगे। उस समय के मनुष्य अपने मित्रों, सम्बन्धियों, सेवकों तथा कुटुम्बीजनों की भी अकारण त्याग देंगे।

3.

प्रायः लोग स्वदेश छोड़कर दूसरे देशों, दिशाओं, नगरों और गांवों का आश्रय लेंगे इत्यादि रूप से अत्यन्त दुःखद वाणी में एक-दूसरे को पुकारते हुए इस पृथ्वी पर विचरेंगे। युगान्तकाल में संसारकी यही दशा होगी। उस समय एक ही साथ समस्त लोकों का भयंकर संहार होगा।

4.

तदन्तर कालान्तर में सत्ययुग का आरम्भ होगा और फिर क्रमशः ब्राह्मण आदि वर्ण प्रकट होकर अपने प्रभाव का विस्तार करेंगे। उस समय लोक के अभ्युदय के लिये पुनः अनायास दैव अनुकूल होगा।

5.
🌺मार्कंडेय ऋषी की कथा🌺

मृगशृंग नामक एक ऋषि थे जिनका विवाह सुवृता के संग संपन्न हुआ। मृगश्रृंग और सुवृता के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। उनका पुत्र हमेशा अपना शरीर खुजलाते रहते थे। इसलिए मृगश्रृंग ने उनका नाम मृकण्डु रख दिया। मृकण्डु में समस्त श्रेष्ठ गुण थे।


पिता के पास रहकर उन्होंने वेदों व शास्त्रों का अधययन किया।पिता की आज्ञा अनुसार उन्होने मृदगुल मुनि की कन्या मरुद्वती से विवाह किया।उनका वैवाहिक जीवन शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था लेकिन बहुत समय तक उनके घर किसी संतान ने जन्म नहीं लिया था।इस कारण उन्होने अपनी पत्नी सहित कठोर तप किया।

तपस्या करके उन्होने भगवान शिव को प्रसन्न कर लिया तब शिवजी उनके सम्मुख प्रकट हुए और कहा,"हे मुनि! मांगो क्या वर मांगते हो।"
मुनि मृकण्डु ने कहा,"प्रभु! यदि आप सच मे हमारी तपस्या से प्रसन्न हैं तो हमें संतान के रूप में एक पुत्र प्रदान करें।"


महादेव ने तब मृकंडु ऋषि से कहा,"हे मुनि! तुम्हें दीर्घायु वाला गुणरहित पुत्र चाहिए या 16 वर्ष की आयु वाला गुणवान पुत्र चाहते हो?" तब मुनि बोले," भगवन मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जो अत्यंत गुणवान और ज्ञानी हो, फिर चाहे वो अल्पायु ही क्यों न हो।"

भगवान शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गए। समय आने पर ऋषि मृकंडु और मरुद्वती के घर एक बालक ने जन्म लिया जो आगे चलकर मार्कंडेय ऋषि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। महामुनि मृकंडु ने मार्कंडेय को हर प्रकार की शिक्षा दी। मार्कंडेय एक आज्ञाकारी पुत्र थे।
हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं यह सभी जानते हैं।

पर अगर आपको बताया जाए कि उनका विवाह हुआ था तो शायद आप सब अचंभित हो जाएंगे।

हैं ना..??!!


तेलंगाना के खम्मम जिले में एक मंदिर है जहां हनुमानजी और उनकी पत्नी सुवर्चला देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठित है और आज भी स्थानीय लोग ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को इनके विवाह का उत्सव मनाने हैं। 😇🙏

अब आप सोच रहे होंगे कि अगर हनुमान जी विवाहित हैं तो ब्रह्मचारी कैसे?! 😅


आइए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य...

हनुमान जी को भगवान सूर्य देव से नव निधियों का ज्ञान प्राप्त करना था। सूर्य देव ने ५ निधियों का ज्ञान तो हनुमान जी को से दिया पर शेष ४ के लिए उनके सामने एक समस्या खड़ी हो गई..


उन ४ निधियों का ज्ञान पाने के लिए विवाहित होना अनिवार्य था। हनुमान जी ने कहा कि में तो ब्रह्मचारी हूं मैं कैसे विवाह कर सकता हूं
भगवान सूर्य नारयण ने समाधान बताते हुए कहा कि उन्हे और उनकी पत्नी संध्या देवी को विश्वकर्मा जी की कृपा से एक पुत्री प्राप्त हुई है जिसका नाम सुवर्चला है


सूर्य देव ने कहा कि क्यूंकि सुवर्चला उनके प्रकाश से उत्पन्न हुई हैं, इसलिए उनको हनुमान जी के अलावा कोई और धारण करने में समर्थ नहीं। वे परम तपस्विनी हैं इसलिए विवाहोप्रांत तपस्या में फिर से लीन हो जाएंगी। इस कारण हनुमान जी का ब्रह्मचर्य अखंड रहेगा। समस्या का उचित निराकरण जान कर
The bizzare version created to again divide and rule.

This #Thread is not to give these jokers undeserved attention but to expose the fraud of this racist pseudo-history.


1. If Durga Puja story is a myth, so would be the Mahishasur martyrdom story.

2. If Durga Puja story is based on the Brahminical fraud, will Mahishasur martyrdom story break this fraud?

3. History must be rewritten. To appease Bahuj@ns?


4. SC/STs and other D@lit - B@hujans were systematically oppressed by the Brahmins.

Then how did the Ahoms, Bhils, Marathas, Garos, Khasis, Jats, Gujjar, etc rise?

How did the above create history?


5. The bizzarest of bizzare

Who created this Mahishasura Martyrdom day?

This story was first published in an insignificant Hindi magazine called Yadava Shakti. In 2011, it was published in Forward Press & was used by the AIBSF(All India Backward Student Federation) unit of JNU


The orginal article was made chatpata by adding phrases like 'must be', 'may have been' etc

Forward press is run by a OBC - Xti@n.

So who are the real people spreading these pseudo-historical stories? Xtian missionaries and the infamous JNU activists.
हनुमानजी के बारे में कई बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं।
शास्त्रों अनुसार हनुमानजी इस धरती पर एक कल्प तक सशरीर रहेंगे।

1.हनुमानजी का जन्मस्थान

कर्नाटक के कोपल जिले में स्थित हम्पी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा मानते हैं।

किष्किन्धा हनुमान मन्दिर


तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मार्ग में पंपा सरोवर आता है। यहां स्थित एक पर्वत में शबरी गुफा है जिसके निकट शबरी के गुरु मातंग ऋषि के नाम पर प्रसिद्ध 'मातंगवन' था। हम्पी में ऋष्यमूक के राम मंदिर के पास स्थित पहाड़ी आज भी मातंग पर्वत के नाम से जानी जाती है।


मातंग ऋषी के आश्रम में ही हनुमानजी का जन्म हुआ था। श्रीराम के जन्म के पूर्व हनुमानजी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व अयोध्या में हुआ था। हनुमान का जन्म चैत्र मास की शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।


2. कल्प के अंत तक सशरीर रहेंगे हनुमानजी :
इंद्र से उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्पांत होने पर उन्हें सायुज्य की प्राप्ति होगी।सीता माता के वरदान अनुसार वे चिरंजीवी रहेंगे। इसी वरदान के चलते द्वापर युग में हनुमानजी भीम व अर्जुन की परीक्षा लेते हैं।


कलियुग में वे तुलसीदासजी को दर्शन देते हैं। ये वचन हनुमानजी ने ही तुलसीदासजी से कहे थे -

'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर ।
तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर ।।'
श्रीमद् भागवत अनुसार हनुमानजी
कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं।