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🌺भीमबेटका शैलाश्रय🌺

भीमबेटका (भीमबैठका) भारत के मध्य प्रदेश प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। यह आदि-मानव द्वारा बनाये गए शैलचित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्यपाषाण काल के समय का माना जाता है।


ये चित्र भारतीय उपमहाद्वीप में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं। यह स्थल मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से ४५ किमी दक्षिणपूर्व में स्थित है। इनकी खोज वर्ष १९५७-१९५८ में डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर द्वारा की गई थी


युनेस्को विश्व धरोहर स्थल भीमबेटका शैलाश्र भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त १९९० में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई २००३ में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।


यहाँ पर अन्य पुरावशेष भी मिले हैं जिनमें प्राचीन किले की दीवार,लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन,शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख,शंख अभिलेख व परमार कालीन मंदिर के अवशेष सम्मिलित हैं।

ऐसा माना जाता है कि यह स्थान महाभारत के चरित्र भीम से संबन्धित है एवं इसी से इसका नाम भीमबैठका (भीमबेटका)पड़ा।


ये गुफाएँ मध्यभारत के पठार के दक्षिणी किनारे पर स्थित विन्ध्याचल की पहाड़ियों के नीचे हैं।इसके दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियाँ आरम्भ होतीहैं।यहाँ600शैलाश्रय हैं जिनमें275 शैलाश्रय चित्रों द्वारा सज्जित हैं।पूर्व पाषाणकाल से मध्य ऐतिहासिक काल तक यह स्थान मानव गतिविधि का केंद्र था।
ప్రాణాలకు తెగించి #శబరిమలను కాపాడుతున్న
#హిందూవీరులను తయారుచేసిన ఈ #వీరవనిత ఎవరో తెలుసా.?
********ఈరోజు రాజకీయాలకు అతీతంగా కేరళలో బంద్ ఎందుకు జరుగుతున్నదో తెలుసా.?
********
అది 1975 సంవత్సరం.
కేరళలోని పాలక్కాడ్ జిల్లాలో ఒక ఉన్నత పాఠశాలలో 9వ తరగతి గదిలో చరిత్ర ఉపాధ్యాయుడు పాఠం


చెబుతున్నాడు.
ఆరోజుటి పాఠం #ఔరంగజేబు దండయాత్రలు-#శివాజీ మరియు #శంభాజీ లు ఔరంగజేబు ఆగ్రా బంధీఖానా నుంచి తప్పించుకుని ప్రతాప్‌ఘడ్ కోటకు చేరుకున్న ఘట్టం..
15 ఏళ్ళ బాలిక చెవులు చాటంత చేసుకుని ఏకాగ్రతగా వింటున్నది.
పాఠం అయిపోయిన తరువాత తిన్నగా ఉపాధ్యాయుని దగ్గరకెళ్ళి ఔరంగజేబు

దౌర్జన్యాలూ/అరాచకాల గురించి మరింతగా వివరంగా చెప్పమని ప్రాధేయపడింది.
చుట్టూ ఉన్న పరిస్థితుల రీత్యా చెప్పడానికి ఆ ఉపాధ్యాయుడు నిరాకరించాడు.
కానీ ఆ బాలిక చలాకీతనాన్ని ఏకసంథాగ్రాహ నిశితాగ్ర బుధ్ధిని గమనించిన ఆ టీచరు కొన్ని పుస్తకాల పేర్లు చెప్పి లైబ్రరీకి వెళ్ళమన్నాడు.
అంతే.

ఆ బాలిక సరాసరి లైబ్రరీకి వెళ్ళి.. లైబ్రేరియన్ "ఈరోజు సమయం అయిపోయింది, ఇక తలుపులు మూసేయాలి.." అని చెప్పేవరకు ప్రతిరోజు అనేక చరిత్ర పుస్తకాలు చదివేది..
ఆతరువాత 6 ఏళ్ళకు 1981లో టీచర్స్ రిక్రూట్‌మెంట్ పరీక్షలో Social Studies & History విభాగంలో ఈ బాలికే జిల్లాలో ప్రథమ

స్థానం దక్కించుకుని #ఉపాధ్యాయురాలిగా తన ఉద్యోగ జీవితాన్ని ప్రారంభించింది..
ఆమె చరిత్ర పాఠాలు చెబుతుంటే విద్యార్థులు నిజంగానే చరిత్రలోకి (ఆదిత్య 369 సినిమాలో మాదిరి) వెళ్ళినంతగా ముగ్దులయ్యేవారు..
మన దేశంపై 712 AD లో #మహమ్మద్_బీన్‌ఖాసిం తో ప్రారంభమైన దండయాత్రలు
🌺महाकाल मंदिर ,दार्जिलिंग एक अनोखा मंदिर है, यहां एक साथ विराजते हैं भगवान शिव और गौतम बुद्ध🌺

दार्जिलिंग में वेधशाला पहाड़ी के ऊपर प्राकृतिक प्राचीन शिवलिंग है। इस स्थान का पता तब लगा जब यहां पर लामा दोरजे रिनजिंग 1765 में दोर्जे-लिंग मठ बनवा रहे थे।


इसके बाद यहां के महत्व को देखते हुए लामा द्वारा 1782 में मंदिर का निर्माण कराया गया था।

भारत में मंदिरों की अनगिनत श्रृंखलाएं हैं। जो अपने रहस्‍यों या फिर अद्भुत इतिहास के चलते पूरे विश्‍व में जाने जाते हैं।


इन मंदिरों में कभी पंरपराओं के जरिए मानव सभ्‍यता को संभालने के संदेश मिलते हैं तो कभी अनेकता में एकता का सूत्र देखने और सुनने को मिलता है। ऐसा ही मंदिर है दार्जीलिंग की वादियों में। जहां दो धर्म एक साथ पूजे जाते हैं। वह भी अलग-अलग स्‍थानों की बजाए एक ही स्‍थान पर।
वो क्रान्तिकारी थे बटुकेश्वर दत्त.
देश आज़ाद होने के बाद बटुकेश्वर दत्त भी रिहा कर दिए गए. लेकिन दत्त को जीते जी भारत ने भुला दिया. इस बात का खुलासा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब “बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी” में किया गया है.


नवम्बर 1947 में उन्होंने अंजलि नाम की लड़की से शादी की. अब उनके सामने कमाने और घर चलाने की समस्या आ गई. बटुकेश्वर दत्त ने एक सिगरेट कंपनी में एजेंट की नौकरी कर ली. बाद में बिस्कुट बनाने का एक छोटा कारखाना भी खोला, लेकिन नुकसान होने की वजह से इसे बंद कर देना पड़ा.

सोचने में बड़ा अजीब लगता है कि भारत का सबसे बड़ा क्रांतिकारी देश की आजादी के बाद यूं भटक रहा था.
भारत में उनकी उपेक्षा का एक किस्सा और है. अनिल वर्मा बताते हैं कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे. इसके लिए दत्त ने भी आवेदन किया. परमिट के लिए जब वो

पटना के कमिश्नर से मिलने गए तो कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लाने को कहा. बटुकेश्वर दत्त के लिए ये दिल तोड़ने वाली बात थी.
बाद में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को जब ये पता चला तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर दत्त से क्षमा मांगी उनके मित्र चमनलाल आज़ाद ने

एक लेख में लिखाः “क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी गलती की है. खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत