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नाना फडणवीस ।।
नाना फडणवीस, पेशवे कार्यप्रणाली में मराठा हिन्दवी सम्राज्य के सबसे योग्य एवम प्रभावशाली मंत्री हुए। इस चित्र में उन्हें लाल पेशवे शिखाबन्ध एवम त्रिपुंड तिलक के साथ देखा जा सकता है। लाल पर्दे ऊपर की ओर है , एक लाल शाल है, कपड़ो में रत्न जड़े हैं और पूरा चित्र


शीशे में बनाया गया है।
नाना फडणवीस "भानुराव" को अपभ्रंश में फडनवीस , फुरनवीस एंड फदनीस भी कहा गया है। 12 फ़रवरी 1742 में जन्म हुआ और 13 मार्च 1800 को कैद में मृत्यु हुई।
ग्रैंड डफ़ के अनुसार नाना फडणवीस हिंदुस्तान के श्रेष्ठ राजनीतिक है। जब तक नाना हैं तब तक अंग्रेज़ इस

देश में पैर नही जमा पाए।
नाना फडणवीस हिंदुस्तान के कुछ अंतिम लोगो मे से हैं जिन्होंने पेशवा नीतियों पे चलते हुए फिरंगियों को इस देश मे पनपने नही दिया और अंत तक विदेशियों और मॉंगोलो का विरोध करते रहे।
उच्च राजनीति में पारंगत होने के कारण अक्सर

यूरोपियन इन्हें "भारतीय मैकियावीली" कहते हैैं।
स्त्रोत्र : ब्रिटिश म्यूजियम , लंदन ।।
वो क्रान्तिकारी थे बटुकेश्वर दत्त.
देश आज़ाद होने के बाद बटुकेश्वर दत्त भी रिहा कर दिए गए. लेकिन दत्त को जीते जी भारत ने भुला दिया. इस बात का खुलासा नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित किताब “बटुकेश्वर दत्त, भगत सिंह के सहयोगी” में किया गया है.


नवम्बर 1947 में उन्होंने अंजलि नाम की लड़की से शादी की. अब उनके सामने कमाने और घर चलाने की समस्या आ गई. बटुकेश्वर दत्त ने एक सिगरेट कंपनी में एजेंट की नौकरी कर ली. बाद में बिस्कुट बनाने का एक छोटा कारखाना भी खोला, लेकिन नुकसान होने की वजह से इसे बंद कर देना पड़ा.

सोचने में बड़ा अजीब लगता है कि भारत का सबसे बड़ा क्रांतिकारी देश की आजादी के बाद यूं भटक रहा था.
भारत में उनकी उपेक्षा का एक किस्सा और है. अनिल वर्मा बताते हैं कि एक बार पटना में बसों के लिए परमिट मिल रहे थे. इसके लिए दत्त ने भी आवेदन किया. परमिट के लिए जब वो

पटना के कमिश्नर से मिलने गए तो कमिश्नर ने उनसे स्वतंत्रता सेनानी होने का प्रमाण पत्र लाने को कहा. बटुकेश्वर दत्त के लिए ये दिल तोड़ने वाली बात थी.
बाद में राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को जब ये पता चला तो कमिश्नर ने बटुकेश्वर दत्त से क्षमा मांगी उनके मित्र चमनलाल आज़ाद ने

एक लेख में लिखाः “क्या दत्त जैसे क्रांतिकारी को भारत में जन्म लेना चाहिए, परमात्मा ने इतने महान शूरवीर को हमारे देश में जन्म देकर भारी गलती की है. खेद की बात है कि जिस व्यक्ति ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए प्राणों की बाजी लगा दी और जो फांसी से बाल-बाल बच गया, वह आज नितांत