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WHAT IS TATV OF ENTIRE MANTRAS ?

मन्त्र के अन्य तत्त्व -

1. ऋषि- शिवमुख से जिस ऋषि ने मन्त्र को सुनकर सिद्ध किया वही उसका प्रणेता है। उस मन्त्र का आदिगुरु उस ऋषि को मानकर जप करने से फल प्राप्त होगा। अतः विनियोग में ऋषि का उल्लेख जरुरी है।


2. देवता- मन्त्र की शक्ति के अधिष्ठाता देव का ज्ञान होना जरुरी है।

3. छन्दः संसार की उत्पत्ति हेतु ब्रह्म की शक्ति का छन्दोमय आवरण माना है अतः मन्त्र की शक्ति का विभाग, प्रकार जानने हेतु छन्द का ज्ञान विनियोग हेतु जरूरी है।

4. बीज मन्त्र जो बीज है उसी अनुरूप मन्त्र का फल व दिशा होती है अतः इसका स्मरण अवश्य किया जाना चाहियें। बीज मन्त्र का गर्भ होता है।

5. शक्ति- जिसकी सहायता से बीज मन्त्र बन जाता है वह शक्ति कहलाती है। विनियोग ऋषि, छन्द, देवता, बीज, शक्ति एवं कीलक का उल्लेख करते हुये अपनी कामना का

उल्लेख करके (सकाम अथवा निष्काम) विनियोग करने से मन्त्र के फल की दिशा एवं मार्ग तथा प्रतिफल का स्वरूप निर्धारित होता है।

6. ऋषिन्यास- विनियोग के बाद मन्त्र का ऋष्यदिन्यस करके ऋषि, देवता, छन्द, बीज आदि आपके अंग बन जाते हैं और आपके शरीर को मन्त्र-सदृश बना देते हैं।

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