15 Deep Philosophy Quotes From “Rumi "

| Thread

1. “Goodbyes are only for those who love with their eyes.

Because for those who love with heart and soul there is no such thing as separation."

– Rumi
2. “Raise your words, not voice. It is rain that grows flowers, not thunder.”

- Rumi
3. “Don’t grieve. Anything you lose comes round in another form."

– Rumi
4. “Whenever you are alone, remind yourself that God has sent everyone else away so that there is only you and Him."

- Rumi
5. “The wound is the place where the Light enters you."

– Rumi
6. “The art of knowing is knowing what to ignore."

- Rumi
7. “What you seek is seeking you."

– Rumi
8. “Set your life on fire. Seek those who fan your flames."

– Rumi
9. "As you start to walk out on the way, the way appears."

- Rumi
10. "Be patient where you sit in the dark. The dawn is coming."

- Rumi
11. "Protect yourself from your own thoughts."

- Rumi
12. "Be silent, Only the Hand of God Can remove The burdens of your heart."

- Rumi
13. "The quieter you become, the more you are able to hear."

- Rumi
14. "The inspiration you seek is already within you. Be silent and listen."

- Rumi
15. "Yesterday I was clever, so I wanted to change the world.

Today I am wise, so I am changing myself."

– Rumi
You can't improve if you don't know what you're doing wrong.

• Make time for stillness
• Master over your mind
• Practice decision-making skills

Work on your mental models. Practice critical thinking

get your copy:

https://t.co/Dsp8zPhmjV
Follow 'Philosophy Thoughts' on Instagram for Daily Wise Quotes:

https://t.co/Wv8hJCBioa

More from Philosophy Thoughts

More from Principles

You May Also Like

हिमालय पर्वत की एक बड़ी पवित्र गुफा थी।उस गुफा के निकट ही गंगा जी बहती थी।एक बार देवर्षि नारद विचरण करते हुए वहां आ पहुंचे।वह परम पवित्र गुफा नारद जी को अत्यंत सुहावनी लगी।वहां का मनोरम प्राकृतिक दृश्य,पर्वत,नदी और वन देख उनके हृदय में श्रीहरि विष्णु की भक्ति अत्यंत बलवती हो उठी।


और देवर्षि नारद वहीं बैठकर तपस्या में लीन हो गए।इन्द्र नारद की तपस्या से घबरा गए।उन्हें हमेशा की तरह अपना सिंहासन व स्वर्ग खोने का डर सताने लगा।इसलिए इन्द्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को उनके पास भेज दिया।वहां पहुंच कामदेव ने अपनी माया से वसंतऋतु को उत्पन्न कर दिया।


पेड़ और पौधों पर रंग बिरंगे फूल खिल गए और कोयलें कूकने लगी,पक्षी चहकने लगे।शीतल,मंद,सुगंधित और सुहावनी हवा चलने लगी।रंभा आदि अप्सराएं नाचने लगीं ।किन्तु कामदेव की किसी भी माया का नारद पे कोई प्रभाव नहीं पड़ा।तब कामदेव को डर सताने लगा कि कहीं नारद क्रोध में आकर मुझे श्राप न देदें।

जैसे ही नारद ने अपनी आंखें खोली, उसी क्षण कामदेव ने उनसे क्षमा मांगी।नारद मुनि को तनिक भी क्रोध नहीं आया और उन्होने शीघ्र ही कामदेव को क्षमा कर दिया।कामदेव प्रसन्न होकर वहां से चले गए।कामदेव के चले जाने पर देवर्षि के मन में अहंकार आ गया कि मैने कामदेव को हरा दिया।

नारद फिर कैलाश जा पहुंचे और शिवजी को अपनी विजयगाथा सुनाई।शिव समझ गए कि नारद अहंकारी हो गए हैं और अगर ये बात विष्णु जी जान गए तो नारद के लिए अच्छा नहीं होगा।ये सोचकर शिवजी ने नारद को भगवन विष्णु को ये बात बताने के लीए मना किया। परंतु नारद जी को ये बात उचित नहीं लगी।