So 25% of Wharton students believe the average American earns more than $100,000 per year. Normally, I'd chuckle at how "stupid" these youngsters are. These days, I despair at the level of entitlement they display. If knowledge is power, America is really freaking weak, y'all.

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कुंडली में 12 भाव होते हैं। कैसे ज्योतिष द्वारा रोग के आंकलन करते समय कुंडली के विभिन्न भावों से गणना करते हैं आज इस पर चर्चा करेंगे।
कुण्डली को कालपुरुष की संज्ञा देकर इसमें शरीर के अंगों को स्थापित कर उनसे रोग, रोगेश, रोग को बढ़ाने घटाने वाले ग्रह


रोग की स्थिति में उत्प्रेरक का कार्य करने वाले ग्रह, आयुर्वेदिक/ऐलोपैथी/होमियोपैथी में से कौन कारगर होगा इसका आँकलन, रक्त विकार, रक्त और आपरेशन की स्थिति, कौन सा आंतरिक या बाहरी अंग प्रभावित होगा इत्यादि गणना करने में कुंडली का प्रयोग किया जाता है।


मेडिकल ज्योतिष में आज के समय में Dr. K. S. Charak का नाम निर्विवाद रूप से प्रथम स्थान रखता है। उनकी लिखी कई पुस्तकें आज इस क्षेत्र में नए ज्योतिषों का मार्गदर्शन कर रही हैं।
प्रथम भाव -
इस भाव से हम व्यक्ति की रोगप्रतिरोधक क्षमता, सिर, मष्तिस्क का विचार करते हैं।


द्वितीय भाव-
दाहिना नेत्र, मुख, वाणी, नाक, गर्दन व गले के ऊपरी भाग का विचार होता है।
तृतीय भाव-
अस्थि, गला,कान, हाथ, कंधे व छाती के आंतरिक अंगों का शुरुआती भाग इत्यादि।

चतुर्थ भाव- छाती व इसके आंतरिक अंग, जातक की मानसिक स्थिति/प्रकृति, स्तन आदि की गणना की जाती है


पंचम भाव-
जातक की बुद्धि व उसकी तीव्रता,पीठ, पसलियां,पेट, हृदय की स्थिति आंकलन में प्रयोग होता है।

षष्ठ भाव-
रोग भाव कहा जाता है। कुंडली मे इसके तत्कालिक भाव स्वामी, कालपुरुष कुंडली के स्वामी, दृष्टि संबंध, रोगेश की स्थिति, रोगेश के नक्षत्र औऱ रोगेश व भाव की डिग्री इत्यादि।
#ज्योतिष_विज्ञान #मंत्र_विज्ञान

ज्योतिषाचार्य अक्सर ग्रहों के दुष्प्रभाव के समाधान के लिए मंत्र जप, अनुष्ठान इत्यादि बताते हैं।

व्यक्ति के जन्म के समय ग्रहों की स्थिति ही उसकी कुंडली बन जाती है जैसे कि फ़ोटो खींच लिया हो और एडिट करना सम्भव नही है। इसे ही "लग्न" कुंडली कहते हैं।


लग्न के समय ग्रहों की इस स्थिति से ही जीवन भर आपको किस ग्रह की ऊर्जा कैसे प्रभावित करेगी का निर्धारिण होता है। साथ साथ दशाएँ, गोचर इत्यादि चलते हैं पर लग्न कुंडली का रोल सबसे महत्वपूर्ण है।


पृथ्वी से अरबों खरबों दूर ये ग्रह अपनी ऊर्जा से पृथ्वी/व्यक्ति को प्रभावित करते हैं जैसे हमारे सबसे निकट ग्रह चंद्रमा जोकि जल का कारक है पृथ्वी और शरीर के जलतत्व पर पूर्ण प्रभाव रखता है।
पूर्णिमा में उछाल मारता समुद्र का जल इसकी ऊर्जा के प्रभाव को दिखाता है।


अमावस्या में ऊर्जा का स्तर कम होने पर वही समुद्र शांत होकर पीछे चला जाता है। जिसे ज्वार-भाटा कहते हैं। इसी तरह अन्य ग्रहों की ऊर्जा के प्रभाव होते हैं जिन्हें यहां समझाना संभव नहीं।
चंद्रमा की ये ऊर्जा शरीर को (अगर खराब है) water retention, बैचेनी, नींद न आना आदि लक्षण दिखाती है


मंत्र क्या हैं-
मंत्र इन ऊर्जाओं के सटीक प्रयोग करने के पासवर्ड हैं। जिनके जप से संबंधित ग्रह की ऊर्जा को जातक की ऊर्जा से कनेक्ट करके उन ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम किया और शुभ प्रभाव को बढ़ाया जाता है।