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ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
हम पृथ्वीलोक, भुवर्लोक और स्वर्लोक में व्याप्त उस सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परमात्मा के तेज का ध्यान करते हैं। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की तरफ चलने के लिए परमात्मा का तेज प्रेरित करे।
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ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
उस दुःखनाशक, तेजस्वी, पापनाशक, प्राणस्वरूप, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में परमात्मा प्रेरित करे।
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ॐ:सर्वरक्षक परमात्मा,भू:प्राणों से प्यारा,भुव:दुख विनाशक, स्व: सुखस्वरूप है,तत्:उस,सवितु: उत्पादक,प्रकाशक,प्रेरक, वरेण्य: वरने योग्य,भर्गो: शुद्ध विज्ञान स्वरूप का,देवस्य: देव के, धीमहि: हम ध्यान करें, धियो: बुद्धि को, यो: जो, न: हमारी, प्रचोदयात्: शुभ कार्यों में प्रेरित करें🙏
Is Danish astronomer ole Roemer really first person who measure the SPEED OF LIGHT? (1644-1710)

--Who describes first velocity of light first?
RIGVED ...
Let's see how ...?
प्रकाश की गति (Velocity of Light)

सूर्य-विषयक ऋग्वेद में एक मंत्र 'तरणिर्विश्वदर्शत:


ऋग्० १.५०.४

च स्मर्यते - योजनां सहस्रे द्वे द्वे शते द्वेच योजन । एकन निमिषार्धेन क्रमांकमाण नमोस्तु ते ..

ऋग्वेद 1.500 मंत्र की निरूपण
अर्थात् हे सूर्यतुम्हारी गति आधे निमेष ( पलक मारना) में दो हजार दो सौ दो (२२०२) योजन है। सूर्य की किरणों कि गति कितनी तीव्र है, निमेष क्या है


काल ज्ञान के लिए महाभारत का निम्नलिखित श्लोक बहुत महत्त्वपूर्ण है ।

काष्ठा निमेषा दश पञ्च चैव,

त्रिंशत् तु काष्ठा गणयेत् कलां ताम् ।

त्रिंशत् कलाश्चापि भवेन्मुहूर्तो

भागः कलाया दशमश्च यः स्यात् ।

त्रिंशन्मुहूर्तं तु भवेदहश्च ।

(महा शान्तिपर्व अध्याय २३१ श्लोक १२ और १३)


Now see what his theory says
It was the Danish astronomer, Olaus Roemer, who, in 1676, first successfully measured the speed of light. His method was based on observations of the eclipses of the moons of Jupiter

Roemer noted that the observed time interval

between successive eclipses of a given moon was about seven minutes greater when the observations were carried out when the earth in its orbit was moving away from Jupiter than when it was moving toward Jupiter. He reasoned that, when the earth was moving away from Jupiter, the
धनुर्वेद विद्या क्या है?

अग्निपुराण में धनुर्वेद के पांच अंग

यन्त्रमुक्त, पाणिमुक्त, मुक्तसंधारित, अमुक्त और बाहुयुद्ध - पाँच प्रकार का धनुर्वेद होता है। शस्त्र और अस्त्र ये दो भेद कहे हैं। शस्त्रास्त्रों के भी ऋजु और मायायुक्त दो भेद होते हैं।


तरकस से बाण को निकालना आदान कहलाता है। बाण को धनुष की प्रत्यञ्चा पर चढ़ाना सन्धान, लक्ष्य पर बाण को फेंकना मोक्षण, अल्पबलवाले लक्ष्य पर छोड़े गये अस्त्र को वापस लौटाना विनिवर्तन, विभिन्न पैंतरों में खड़े होकर धनुष पकड़ना, डोरी को खेंचना और बाण छोड़ना स्थान कहलाता है। तीन या चार

अङ्गुलियों से धनुष को पकड़ना मुष्टि, अंगूठा तर्जनी या मध्यमा अंगुली से डोरी को खेंचना प्रयोग, स्वतः या दूसरे से प्राप्त होनेवाले डोरी के आघात को दस्ताना पहनकर निवारण करना, कवच पहनकर दूसरों द्वारा छोड़े गये बाणों को रोकना अथवा सामने से आते हुए बाण को अपने बाण द्वारा काट देना

प्रायश्चित्त कहलाता है। इसी भाँति घूमते हुए वाहन से छोड़े गये बाण का स्वयं भी रथारूढ़ होकर वेधना मण्डल और शब्द के ऊपर बाण छोड़ना या एकसाथ अनेक लक्ष्यों पर शर-सन्धान करना ये सब रहस्य के अन्तर्गत आते हैं।

गुणागुणः- वृद्मुष्टनी, वज्रुमुष्टी, सिंहकर्णी, मत्सरी और काकर्णी—ये पांच मुष्टित है

पताका- जहाँ पर तर्जनी सीधी रहे और अंगूठे के मूल में मुड़े, उसे पताका कहते हैं। इसे बन्दूक की गोली चलाने में प्रयुक किया जाता है

सिंहकर्णमुष्टि में यदि तर्जनी फैली हुई हो तो उसे पताकामुष्टि
Śatāghnī, शताघनी क्या है?

As mentioned in Rāmāyaṇa's Sundara Kāṇḍa, refers to a bombarding instrument or a launchable missile.

It is one of the various weapons used by Rāvaṇa's army during the battle against shri Rāmā and the vanara armies of Sugrīva.


This deadly weapon is mentioned as a catapult in Dhanurveda and in Brahmāṇḍa Purāṇa as a cannon, used during the war between daityas and Goddess Lalita Parameśvari.

रामायण के सुंदर कांड उल्लेखानुसार, शताघनी, एक बमबारी साधन या एक प्रक्षेपण (लॉन्च) करने योग्य अस्त्र (मिसाइल) के रूप में संदर्भित होता है।

यह भगवान राम, और सुग्रीव की वानर सेना के विरुद्ध, युद्ध के दौरान, रावण की सेना द्वारा उपयोग किए गए विभिन्न हथियारों में से एक है।

इस घातक हथियार का उल्लेख धनुर्वेद में एक नोदक के रूप में, और ब्राह्म पुराण में एक तोप (कैनन) के रूप में किया गया है, जिसका उपयोग दैत्यों और देवी ललिता परमेश्वरी के बीच युद्ध के दौरान किया गया था।