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क्या आप जानते हैं कि क्या है, पितृ पक्ष में कौवे को खाना देने के पीछे का वैज्ञानिक कारण!

श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है। कहते है कौआ यम का प्रतीक है, यदि आपके हाथों दिया गया भोजन ग्रहण कर ले, तो ऐसा माना जाता है कि पितरों की कृपा आपके ऊपर है और वे आपसे ख़ुश है।


कुछ लोग कहते हैं की व्यक्ति मरकर सबसे पहले कौवे के रूप में जन्म लेता है और उसे खाना खिलाने से वह भोजन पितरों को मिलता है

शायद हम सबने अपने घर के किसी बड़े बुज़ुर्ग, किसी पंडित या ज्योतिषाचार्य से ये सुना होगा। वे अनगिनत किस्से सुनाएंगे, कहेंगे बड़े बुज़ुर्ग कह गए इसीलिए ऐसा करना

शायद ही हमें कोई इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण बता सके।

हमारे ऋषि मुनि और पौराणिक काल में रहने वाले लोग मुर्ख नहीं थे! कभी सोचियेगा कौवों को पितृ पक्ष में खिलाई खीर हमारे पूर्वजों तक कैसे पहुंचेगी?

हमारे ऋषि मुनि विद्वान थे, वे जो बात करते या कहते थे उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण छुपा होता था।

एक बहुत रोचक तथ्य है पितृ पक्ष, भादो( भाद्रपद) प्रकृति और काक के बीच।

एक बात जो कह सकते कि हम सब ने स्वतः उग आये पीपल या बरगद का पेड़/ पौधा किसी न किसी दीवार, पुरानी

इमारत, पर्वत या अट्टालिकाओं पर ज़रूर देखा होगा। देखा है न?

ज़रा सोचिये पीपल या बरगद की बीज कैसे पहुंचे होंगे वहाँ तक? इनके बीज इतने हल्के भी नहीं होते के हवा उन्हें उड़ाके ले जा सके।
🌺सनातन धर्म की के बारे में कुछ महत्त्वपूर्ण बातें🌺

हिन्दू धर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ वेद हैं।
वेद के चार भाग हैं- ऋग, यजुर, साम और अथर्व।वेद के ही तत्वज्ञान को उपनिषद कहते हैं जो लगभग 108 हैं। वेद के अंग को वेदांग कहते हैं जो छह हैं; शिक्षा,कल्प,व्याकरण,छंद,ज्योतिष और नियुक्त।


मनु आदि की स्मृतियां, 18 पुराण, रामायण, महाभारत या अन्य किसी भी ऋषि के नाम के सूत्रग्रन्थ धर्मग्रंथ नहीं है। वेद, उपनिषद का सार गीता में है, इसीलिए गीता को भी धर्मग्रंथ की श्रेणी में रखा गया है जो महाभारत का एक हिस्सा है।


वेदों के अनुसार ईश्वर एक ही है और उसका नाम ब्रह्म है (ब्रह्मा नहीं)।उसे ही परमेश्वर, परमपिता, परमात्मा, परब्रह्म आदि कहते हैं। वह निराकार, निर्विकार, अजन्मा, अप्रकट, अव्यक्त, आदि और अनंत है। सभी देवी, देवता, पितृ, ऋषि-मुनि, भगवान आदि उसी का ध्यान और प्रार्थना करते हैं।


विद्वानों के अनुसार लगभग 90000 वर्षों से हिन्दू धर्म निरंतर है। नाम बदला, रूप बदला, परंपराएं बदलीं लेकिन ज्ञान नहीं बदला, देव नहीं बदले और न ही तीर्थ। हमारे पास इस बात के सबूत हैं कि 8000ई पूर्व सिंधु घाटी के लोग हिन्दू ही थे। द्रविड और आर्य एक ही थे।

हिन्दू धर्म जीवन जीने की एक शैली है।
योग, आयुर्वेद, और व्रत के नियम को अपनाकर आप हमेशा सेहतमंद बने रह सकते हैं। इसमे भोजन, पानी, निद्रा, ध्यान, कर्म, मन, बुद्धि और विचार के संबंध में महत्वपूर्ण जानकारी है जिसे आज विज्ञान भी मानता है।
#Thread
आइऐ आज इंदिरा गांधी की हिंदू विरोधी नीतीयों के बारे में जानते है, जिसे सबको जानने का अधिकार है

इंदिरा गांधी के बनाये नियम :

इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा था।
धर्मनिरपेक्षता यानी कि सरकार और कानून धार्मिक...

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आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव भी नहीं कर सकते।सभी धर्मों को एक समान माना जाएगा। सभी धर्म के लोगों को एक जैसे ही अधिकार प्राप्त होंगे।तो आइए आज इस धर्मनिरपेक्षता की सच्चाई को जान लिया जाए-

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शादी शगुन: केवल मुस्लिम लड़कियों की शादी पर 51,000 रु

नई उड़ान: UPSC & PSC की परीक्षाओं के लिए हर मुस्लिम की एक लाख की मदद

सीखो और कमाओ: हर मुस्लिम प्रतिभागी को 25,000

नई मंजिल : हर मुस्लिम प्रतिभागी को 56,500

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नई रोशनी : मुस्लिम महिलाओं में नेतृत्व क्षमता के लिए 2,25,000

हमारी धरोहर योजना : मुस्लिम प्रतिभागी को 3,32,000 प्रति वर्ष

अल्पसंख्यक पिछड़ों को *बीस लाख* तक के रियायती ऋण

उस्ताद योजना : हर अल्पसंख्यक अध्येता को नौ लाख बारह हजार रू

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नया सवेरा : मुस्लिम प्रतिभागी को कोचिंग के लिए भोजन आवास के साथ 1,00,000

मौलाना आजाद फेलोशिप : मुस्लिम प्रतिभागी को 28,000 प्रतिमाह व मकान भत्ता

मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति योजना कक्षा 6 से 10 तक : मुस्लिम प्रतिभागी को 12,000 रू प्रतिवर्ष

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#Thread
क्यों जरूरी है श्राद्ध, क्या है पितृ पक्ष का महत्व और क्या है सही विधि

भारतीय महीनों की गणना के अनुसार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सृष्टि पालक भगवान विष्णु के प्रतिरूप श्रीकृष्ण का जन्म धूमधान से मनाया जाता है।
#पितृपक्ष

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तदुपरांत शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रथम देव गणेशजी का जन्मदिन यानी गणेश महोत्सव के बाद भाद्र पक्ष माह की पूर्णिमा से अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व शुरू हो जाता है।

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इसको महापर्व इसलिए बोला जाता है क्योंकि नौदुर्गा महोत्सव नौ दिन का होता है, दशहरा पर्व दस दिन का होता है, पर यह पितृ पक्ष सोलह दिनों तक चलता है।

हिंदू धर्म की के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा है।

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यानी कि 12 महीनों के मध्य में छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से (यानी आखिरी दिन से) 7वें माह अश्विन के प्रथम पांच दिनों में यह पितृ पक्ष का महापर्व मनाया जाता है।

सूर्य भी अपनी प्रथम राशि मेष से भ्रमण करता हुआ जब छठी राशि कन्या में एक माह के लिए भ्रमण करता है...

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तब ही यह सोलह दिन का पितृ पक्ष मनाया जाता है। उपरोक्त ज्योतिषीय पारंपरिक गणना का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि शास्त्रों में भी कहा गया है कि आपको सीधे खड़े होने के लिए रीढ़ की हड्डी यानी बैकबोन का मजूबत होना बहुत आवश्यक है...

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महात्मा की खाल ओढ़े ऐक भेड़िये का सच!!

मनु बेन के आइने में गांधी:

मनु बेन महात्मा गाँधी के अंतिम वर्षों की निकट सहयोगी थीं। मनु को प्रायः गाँधीजी की पौत्री कहा जाता है। वास्तव में यह रिश्ता बहुत दूर का था। वह गाँधीजी के चाचा की प्रपौत्री थी।

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लगभग अशिक्षित, सोलह-सत्रह वर्ष की लड़की, जिस के पिता जयसुखलाल गाँधी एक लाचार से साधारण व्यक्ति थे। उसी मनु को लेकर गाँधी के ‘ब्रह्मचर्य प्रयोग’ न केवल गाँधी के जीवन के अंतिम प्रयोग हैं, बल्कि सर्वाधिक विवादास्पद भी।

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गाँधी की जिद और उन के परिवार व निकट सहयोगियों के विरोध का यह दौर 1946-1947 ई. के दौरान कई महीने चला। इस पर गाँधी से उन के पुत्र देवदास तथा सरदार पटेल, किशोरलाल, नरहरि, आदि सहयोगियों ने गाँधी से आंशिक/ पूर्ण संबंध-विच्छेद तक कर लिया था।

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जिन लोगों ने तीखा विरोध किया उन में ठक्कर बापा, बिनोबा भावे, घनश्याम दास बिड़ला, आदि भी थे। आजादी से पहले एक बार सरदार पटेल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि गांधी जी के ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग बन्द कर दिए जाने चाहिए। परन्तु नेहरू ने कभी इन प्रयोगों पर प्रश्न नही उठाया।

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शायद इसी कारण सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नही बन सके। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 25 जनवरी 1947 को गांधी जी को पत्र लिखा था, जिसमें उनके प्रयोग को भयंकर भूल बताते हुए उसे रोकने को कहा था। पटेल ने लिखा था कि ऐसे प्रयोग से उनके अनुयायियों को गहरी पीड़ा होती है।

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हिंदू धर्म में मृत्यु के पश्चात क्यूँ करते हैं अंतिम संस्कार (शव-दाह) !

मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है जिसे कोई टाल नहीं सकता। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हो गई है उसका जन्म भी निश्चित है।
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इस कथन से ज्ञात होता है कि जीवन और मृत्यु एक चक्र है जिससे होकर सभी देहधारियों को गुजरना होता है। मृत्यु से जीवन का नया आरंभ होता है इसलिए जीवात्मा का सफर सुखद हो और उसे अगले जन्म में उत्तम शरीर मिले इस कामना से अंतिम संस्कार नियम का पालन जरूरी बताया गया है।

हिन्दू धर्म में गर्भधारण से लेकर मृत्यु के बाद तक कुल सोलह संस्कार बताए गए हैं। सोलहवें संस्कार को अंतिम संस्कार और दाह संस्कार के नाम से जाना जाता है।

इसमें मृत व्यक्ति के शरीर को स्नान कराकर शुद्ध किया जाता है। इसके बाद वैदिक मंत्रों से साथ शव की पूजा की जाती है

फिर बाद में मृतक व्यक्ति का ज्येष्ठ पुत्र अथवा कोई निकट संबंधी मुखाग्नि देता है।

शास्त्रों के अनुसार परिवार के सदस्यों के हाथों से मुखाग्नि मिलने से मृत व्यक्ति की आत्मा का मोह अपने परिवार के सदस्यों से खत्म होता है। और वह कर्म के अनुसार बंधन से मुक्त होकर

अगले शरीर को पाने के लिए बढ़ जाता है

दाह संस्कार इसलिए जरूरी होता है शास्त्रों में बताया गया है शरीर की रचना पंच तत्व से होती है ये पंच तत्व हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।

शव का दाह करने से शरीर जल कर पुन: पंचतत्व में विलीन हो जाता है।
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जन्मदिवस विशेष

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की 6 अच्छी बातें जो उनसे सीख सकते हैं:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने आप को युथ के अनुसार सबसे अधिक ढाला है। कार्यों को लेकर उनका जुनून, यूथ से लगातार जुड़े रहना, टेक्‍नोलॉजी से अपडेट रहना..

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जमी से आसमां तक के फैसले उन्होंने इस कदर लिए है कि उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है। राजनीति दष्टि को एकतरफ रखते हैं तो उनमें कई सारी ऐसी स्किल्‍स है जो जीवन में हमेशा काम आएगी। तो आइए जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 6 कौन सी अच्‍छी बातें हैं जो जरूर सीखना चाहिए -

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1. लीडरशीप स्किल - पीएम मोदी से लीडरशीप स्किल जरूर सीखना चाहिए। एक बार मंच से संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा था कि, 'अपने सबऑर्डिनेट से हमेशा एक घंटा अधिक काम करना चाहिए। ताकि अपने तजुर्बे से तुम उन्हें आगे की रणनीति बता सकों।

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2.विनम्रता - पीएम मोदी ने हमेशा जगह को देखते हुए अपने भाषण को उस अनुसार प्रस्‍तुत किया। जब देश को गंभीर मुद्दे पर संबोधित करते हैं तब वह कभी उग्र तो एकदम विनम्र भाव में जनता से अपील करते हैं। जब विदेश में भारत को प्रस्‍तुत करते हैं तो उनके प्रजेंटेशन स्किल पूरी तरह से बदल जाती है


जोश से वह भारत को प्रस्‍तुत करते हैं और जब कोई उनसे कोई सवाल करता है तब उसका सहजता और विनम्रता से उत्‍तर देते हैं।

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