Presenting a small thread on some of our rishis of ancient time.

1. ऋषि वशिष्ठ- ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु और चारों पुत्रों श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने...

...के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था।

2. ऋषि विश्वामित्र- ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र एक राजा थे और वे ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय हड़पना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने युद्ध भी किया था, लेकिन वे वशिष्ठ ऋषि से हार गए। इस हार ने ही...
...उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या अप्सरा मेनका ने भंग की थी। विश्वामित्र ने एक नए स्वर्ग की रचना भी कर दी थी। विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की है जो आज भी सबसे चमत्कारी मंत्र है।
3. ऋषि कण्व- वैदिक काल के ऋषि हैं कण्व। इन्होंने अपने आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया था। भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत हुआ है। ऋषि कण्व ने लौकिक ज्ञान-विज्ञान और अनिष्ट-निवारण संबंधी असंख्य मंत्र रचे हैं।
4. ऋषि भारद्वाज- वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का स्थान भी काफी ऊंचा है। भारद्वाज के पिता बृहस्पतिदेव और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि श्रीराम के जन्म से पहले अवतरित हुए थे, इनकी लंबी आयु का पता इस बात से चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे। भारद्वाज ऋषि ने...
...वेदों में कई मंत्र रचे हैं। उन्होंने भारद्वाज-स्मृति और भारद्वाज-संहिता की भी रचना की है।

5. ऋषि अत्रि- महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति बताए गए हैं। एक कथा के अनुसार अत्रि जब अपने आश्रम से बाहर गए थे, तब...
...त्रिदेव अनुसूया के घर ब्राह्मण के भेष में भिक्षा लेने पहुंचे थे। माता अनुसूया ने देवी सीता को पतिव्रत धर्म का उपदेश दिया था। ये भगवान दत्तात्रेय, चंद्रमा और दुर्वासा के माता-पिता हैं।
6. ऋषि वामदेव- वामदेव ने सामगान यानी संगीत की रचना की है। गौतम ऋषि के पुत्र थे। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। हज़ारों वर्ष पूर्व रचे गए सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी मिलती है।
7. ऋषि शौनक- प्राचीन समय में शौनक ऋषि ने दस हज़ार विद्यार्थियों का गुरुकुल स्थापित किया और कुलपति बनने का सम्मान हासिल किया। किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया था। साथ ही, इन्होंने भी कई मंत्र रचे हैं।
Credit- respected owner.
📸- unknown.

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🌺श्री गरुड़ पुराण - संक्षिप्त वर्णन🌺

हिन्दु धर्म के 18 पुराणों में से एक गरुड़ पुराण का हिन्दु धर्म में बड़ा महत्व है। गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद सद्गती की व्याख्या मिलती है। इस पुराण के अधिष्ठातृ देव भगवान विष्णु हैं, इसलिए ये वैष्णव पुराण है।


गरुड़ पुराण के अनुसार हमारे कर्मों का फल हमें हमारे जीवन-काल में तो मिलता ही है परंतु मृत्यु के बाद भी अच्छे बुरे कार्यों का उनके अनुसार फल मिलता है। इस कारण इस पुराण में निहित ज्ञान को प्राप्त करने के लिए घर के किसी सदस्य की मृत्यु के बाद का समय निर्धारित किया गया है...

..ताकि उस समय हम जीवन-मरण से जुड़े सभी सत्य जान सकें और मृत्यु के कारण बिछडने वाले सदस्य का दुख कम हो सके।
गरुड़ पुराण में विष्णु की भक्ति व अवतारों का विस्तार से उसी प्रकार वर्णन मिलता है जिस प्रकार भगवत पुराण में।आरम्भ में मनु से सृष्टि की उत्पत्ति,ध्रुव चरित्र की कथा मिलती है।


तदुपरांत सुर्य व चंद्र ग्रहों के मंत्र, शिव-पार्वती मंत्र,इन्द्र सम्बंधित मंत्र,सरस्वती मंत्र और नौ शक्तियों के बारे में विस्तार से बताया गया है।
इस पुराण में उन्नीस हज़ार श्लोक बताए जाते हैं और इसे दो भागों में कहा जाता है।
प्रथम भाग में विष्णुभक्ति और पूजा विधियों का उल्लेख है।

मृत्यु के उपरांत गरुड़ पुराण के श्रवण का प्रावधान है ।
पुराण के द्वितीय भाग में 'प्रेतकल्प' का विस्तार से वर्णन और नरकों में जीव के पड़ने का वृत्तांत मिलता है। मरने के बाद मनुष्य की क्या गति होती है, उसका किस प्रकार की योनियों में जन्म होता है, प्रेत योनि से मुक्ति के उपाय...