वेदों के अनुसार हमारे ब्रह्मांड की आयु :

1 महायुग = 4,320,000 मानव वर्ष

1 मन्वंतर = 71 महायुग

ब्रह्मा का 1 दिन = 14 मन्वंतर = 14 x 71= 994 महायुग

14 x 71 x 4320000 = 4,294,080,000 वर्ष

4,320,000,000 – 4,294,080,000 =25,920,000 वर्ष

25,920,000 वर्ष की कमी युगों के बीच संधिकाल से पूरी की गई हैं।

1 कलियुग = 432000 सौर वर्ष!

एक कलियुग की लंबाई एक युग की होती है।

युग = 25,920,000 ÷ 432000 = 60

कलियुग एक युग के बराबर हैं और महायुग कलयुग का दस गुना हैं।
ब्रह्मा का 1 दिन = 14 मन्वंतर + संधिकाल

= 994 महायुग + 60 युग

= 994 महायुग + 6 महायुग = 1000

ब्रह्मा का 1 दिन = 1000 महायुग = 4,320,000,000 मानव वर्ष

ब्रह्म का 1 रात= 1000 महायुग = 4,320,000,000 मानव वर्ष
ब्रह्म का 1 पूरा दिन = दिन + रात = 8,640,000,000 वर्ष = 8.64 अरब वर्ष।

वर्तमान 7वें मन्वन्तर में हैं।

ब्रह्मा कितने वर्ष बीत चुके हैं :

6 मन्वन्तरों = 71x 6 = 426 महायुग

सूर्य मंडल के परमेष्ठी मंडल (आकाश गंगा) के केंद्र का चक्र पूरा होने पर उसे मन्वंतर काल कहा गया।
इसका माप है 30,67,20,000 (तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्ष)। एक से दूसरे मन्वंतर के बीच 1 संध्यांश सतयुग के बराबर होता है अत: संध्यांश सहित मन्वंतर का माप हुआ 30, 84,48,000 वर्ष।

30, 84,48,000 – 30,67,20,000 = 1,728,000 वर्ष (सतयुग के बराबर)
प्रत्येक मन्वंतर के बीच अंतराल 7 x 4 युग = 2.8 महायुग है

मन्वंतर में वर्तमान महायुग है जो 28वां है।

हम इसके अंतिम 1/10 में हैं (याद रखें कलियुग 4 युगों में से अंतिम है और एक महायुग का 1/10 काल है)।

यह 27.9 महायुग है।
कुल 426+2.8+27.9 = 456.7 महायुग पहले से ही ब्रह्मा के वर्तमान दिन में बिताए जा चुके हैं।

लगभग 543 और हो जाने पर हम सब वापस ब्रह्म में लीन हो जाते हैं।

ठीक है तो 456.7 मानव वर्षों के संदर्भ में

456.7 x 4,320,000 = 1,972,944,456 वर्ष है।

पृथ्वी पे जीवन का उद्भव :
जो लगभग 2 बिलियन वर्ष है। पृथ्वी पर जीवन के लिए विकासवाद के प्रस्ताव के कुछ हद तक करीब! ब्रह्मांड की आयु :

ब्रह्मा के एक दिन में 2000 महायुग (दिन + रात) होते हैं।

ब्रह्मा के एक वर्ष में 360 दिन होते हैं

हम 51वें वर्ष के पहले दिन में हैं।
अब तक 360 x 50 = 18000 ब्रह्मा दिन बीत चुके हैं।

18000 x 2000 x 4320000 = 155,520,000,000,000 मानव वर्ष

ब्रह्मा का वर्तमान दिन जोड़ें 1,972,944,456 मानव वर्ष है

ब्रह्मांड की वर्तमान आयु 155,521,972,944,456 वर्ष है !!
आधुनिक विज्ञान हमारे ब्रह्मांड की आयु का अनुमान केवल 15-20 अरब वर्ष ही बता सका है! इसके अलावा चूंकि हम ब्रह्मा के 51वें वर्ष के पहले दिन में हैं, इस ब्रह्मांड के समाप्त होने से पहले लगभग बराबर समय गुजरना होगा !!
1 ब्रह्मा का पूरा दिन = 2 कल्प = दिन + रात = 4,32,00,00,000 x 2 = 8.64 अरब वर्ष।

संपूर्ण ब्रह्मांड की पूर्ण आयु :

पूरे ब्रह्मांड की पूर्ण आयु = 100 वर्ष ब्रह्मा की 360 दिन प्रति वर्ष = 100 x 360 x 8,640,000,000 = 311,040,000,000,000 वर्ष

311.04 ट्रिलियन वर्ष !!
सनातन धर्म दुनिया के महान विश्वासों में से एकमात्र है जो इस विचार को समर्पित है कि ब्रह्मांड स्वयं एक विशाल, अनंत मौत और पुनर्जन्म से गुजरता है। यह एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें समय का पैमाना आधुनिक वैज्ञानिक ब्रह्मांड विज्ञान के अनुरूप हैं।
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।।

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प्रश्न = कैसे सिद्ध होता है कि शब्द यात्रा करते हैं ?

बहुत ही रोचक प्रश्न किया है आपने। यहाँ पर हम शब्दों की यात्रा में निहित वैज्ञानिक व दार्शनिक पक्षों के विषय पर चर्चा करेंगे।

हमारे शब्द एक ऊर्जा का रूप ही होते है, जो एक बार शब्द उच्चारित हो गए,


फिर वे वायुमंडल में ही चिर निरंतर के लिए स्थित हो जाते है और यात्रा करते रहते है। कैसे और किस प्रकार?? आगे जानेंगे;

शोधकर्ताओं का मत है कि यदि 50 लोग 3 घंटे तक लगातार एक शब्द उच्चारित करते रहे, तो लगभग छह हज़ार खरब वॉट ऊर्जा उत्पादित होती हैं। याने कि जब हम कोई भी शब्द बोलते है

तो उसका ब्लू प्रिंट ऊर्जा तरंगों के रूप में वायुमंडल में ठहर जाता है। और ये शब्द तरंग कभी भी नष्ट नहीं होती।

जैसा कि न्यूटन की गति का तीसरा नियम- 'ऊर्जा का न तो सृजन और न ही विनाश सम्भव है।'

इस प्राकृतिक नियम पर वैज्ञानिकों को इतना विश्वास है कि इसके बलबूते पर वे द्वापर कालीन गीता उपदेश की शब्द तरंगों को पकड़ने का प्रयास कर रहे हैं। उनका मत है कि हजारों वर्ष पूर्व श्री केशव ने जो गीता श्लोक अपने मुखारविंद से कहे थे, वे आज भी वायुमंडल में यात्रा कर रहे है।

सूक्ष्म तरंगों के रूप में!

यदि इन तरंगों को कैद कर डिकोड कर लिया जाए, तो हम आज भी कृष्ण जी की प्रत्यक्ष वाणी का श्रवण कर सकते हैं!

आतः जिन शब्दों का एक बार हमारे मुख से प्रस्फुटन हो गया, उनकी ऊर्जा-तरंगें हमेशा के लिए वातावरण में विद्यमान हो जाती हैं।
प्रश्न = इतिहास में पाशुपतास्त्र कब कब इस्तेमाल हुआ ?

पाशुपतास्त्र बहुत विध्वंसक महास्त्र है और इतिहास में केवल कुछ लोग ही थे जिनके पास ये अस्त्र था। उसपर भी बहुत कम लोगों ने इस अस्त्र का उपयोग किया। पाशुपतास्त्र के उपयोग का सबसे बड़ा नियम ये था कि उसे अपने से निर्बल अथवा


किसी निःशस्त्र योद्धा पर नहीं चलाया जा सकता था। अगर ऐसा किया जाता तो पाशुपतास्त्र वापस चलाने वाले का ही नाश कर देता था। ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि का समय पूर्ण हो जाता है तो महादेव सृष्टि का विनाश पाशुपतास्त्र और अपने तीसरे नेत्र से ही करते हैं।

इसके अतिरिक्त जहाँ ब्रह्मास्त्र का निवारण दूसरे ब्रह्मास्त्र से और नारायणास्त्र का निवारण दूसरे नारायणास्त्र अथवा निःशस्त्र होकर किया जा सकता था, वही पाशुपतास्त्र का कोई निवारण नहीं था। इसके द्वारा किये गए विध्वंस को वापस ठीक नहीं किया जा सकता था।

यही कारण है कि त्रिदेवों के तीन महास्त्रों (ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र और पाशुपत) में पाशुपतास्त्र को सबसे विनाशकारी माना गया है। सबसे पहले पाशुपतास्त्र का उपयोग भगवान शंकर द्वारा ही सतयुग में हुआ जिससे उन्होंने त्रिपुर का संहार किया।

ऐसी मान्यता है कि उन्होंने पाशुपतास्त्र का निर्माण ही केवल इस कार्य के लिए किया था। त्रेतायुग में इस महान अस्त्र के पांच लोगों के पास होने की जानकारी मिलती है - विश्वामित्र, भगवान परशुराम, रावण, मेघनाद और श्रीराम इनमें से मेघनाद को छोड़ कर बांकी चारों के पास पाशुपतास्त्र होने
प्रश्न = प्रत्येक मन्वन्तर काल में कौन-कौन से सप्तऋषि रहे हैं ?

देखिए आकाश में 7 तारों का एक मंडल नजर आता है। उन्हें सप्तर्षियों का मंडल कहा जाता है। इसके अतिरिक्त सप्तर्षि से उन 7 तारों का बोध होता है, जो ध्रुव तारे की परिक्रमा करते हैं उक्त मंडल के तारों के नाम भारत के महान 7


संतों के आधार पर ही रखे गए हैं। वेदों में उक्त मंडल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है।

ऋषियों की संख्या सात ही क्यों ?

तो देखिए सप्त ब्रह्मर्षि, देवर्षि, महर्षि, परमर्षय:। कण्डर्षिश्च, श्रुतर्षिश्च, राजर्षिश्च क्रमावश:।।

अर्थात : 1. ब्रह्मर्षि, 2. देवर्षि, 3. महर्षि, 4. परमर्षि, 5. काण्डर्षि, 6. श्रुतर्षि और 7. राजर्षि-
ये 7 प्रकार के ऋषि होते हैं इसलिए इन्हें सप्तर्षि कहते हैं।

भारतीय ऋषियों और मुनियों ने ही इस धरती पर धर्म, समाज, नगर, ज्ञान, विज्ञान, खगोल, ज्योतिष, वास्तु, योग आदि

ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया था। दुनिया के सभी धर्म और विज्ञान के हर क्षेत्र को भारतीय ऋषियों का ऋणी होना चाहिए। उनके योगदान को याद किया जाना चाहिए। उन्होंने मानव मात्र के लिए ही नहीं, बल्कि पशु-पक्षी, समुद्र, नदी, पहाड़ और वृक्षों सभी के बारे में सोचा और सभी के सुरक्षित

जीवन के लिए कार्य किया। आओ, संक्षिप्त में जानते हैं कि किस काल में कौन से ऋषि थे भारत में ऋषियों और गुरु-शिष्य की लंबी परंपरा रही है ब्रह्मा के पुत्र भी ऋषि थे तो भगवान शिव के शिष्यगण भी ऋषि ही थे प्रथम मनु स्वायंभुव मनु से लेकर बौद्धकाल तक ऋषि परंपरा के बारे में जानकारी मिलती है
प्रश्न = भारतीय पुराणों के मुताबिक़ रामायण-महाभारत काल में अमेरिका आदि बाकी देश कहाँ थे ?

हम हमारे प्रश्नो के उत्तर सही जगह नहीं खोज रहे !

जी हा , दूसरे देशो और संस्कृतियों का हमारे प्राचीन ग्रंथो /पुराणों में उल्लेख है ,किन्तु हम वहा नहीं खोज रहे आप वाल्मीकि रामायण के


विभिन्न देशो के सन्दर्भ पाएगे। यह उत्तर लम्बा है ,कित्नु आप सभी को निश्चित ही पसंद आएगा !

ऑस्ट्रेलिया ,न्यूज़ीलैण्ड एवं परकास ट्रिडेंट पेरू

रामायण में रामजी की अपहृत पत्नी सीताजी को खोजने के लिए चार अलग-अलग दिशाओं में खोजने निकले वानरों

(वन में भटकने वाले मनुष्य) के बारे में वर्णन किया गया है।

वानर राजा सुग्रीव ने उसपूर्व की ओर यात्रा करते खोजी समूह को बताया था की , कि पहले उन्हें समुद्र पार करना होगा और याव (जावा) द्वीप में उतरना होगा।

उसके बाद उन्हें एक और द्वीप पार करके एक लाल /पीले पानी वाले समुद्र तक पहुंचना होगा (ऑस्ट्रेलिया का कोरल समुद्र ),तब उन्हें पिरामिड (वर्तमान में ऑस्ट्रेलिया के पश्चिमी छोर पर मौजूद गिम्पी पिरामिड ) मिलेंगे।

सुग्रीव के पात्र द्वारा रचियता वाल्मीकिजी ने आगे लिखाः है की

इस महाद्वीप (शाल्मली / ऑस्ट्रेलिया ) को पार करने के बाद उन्हें ऋषभ पर्वत मिलेगा , जो ‘नीचे मोतिओं की माला जैसी जैसे लहरों वाला एक श्वेत बादल ‘ जैसा दिखता है !

उसी के पास ,उन्हें सुदर्शन सरोवर मिलेगा , जिसमे ‘सोने जैसी पंखुड़ियों वाले चांदी जैसे कमल’ खिले हुए होंगे !
#धागा

अट्ठारह पुराणों का संक्षिप्त परिचय

पुराण शब्द का अर्थ ही है प्राचीन कथा, पुराण विश्व साहित्य के सबसे प्राचीन ग्रँथ हैं, उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं..


वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है, पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है, पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य बहुत से विषय हैं,..


विशेष तथ्य यह है कि पुराणों में देवी-देवताओं, राजाओं, और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथाओं का भी उल्लेख किया गया हैं, जिस से पौराणिक काल के सभी पहलूओं का चित्रण मिलता है।


महृर्षि वेदव्यासजी ने अट्ठारह पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है, ब्रह्मदेव, श्री हरि विष्णु भगवान् तथा भगवान् महेश्वर उन पुराणों के मुख्य देव हैं, त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं, इन अट्ठारह पुराणों के अतिरिक्त सोलह उप-पुराण भी हैं।


पुराणों का संक्षिप्त परिचय:

1. #ब्रह्म_पुराण

ब्रह्मपुराण सब से प्राचीन है, इस पुराण में दो सौ छियालीस अध्याय तथा चौदह हजार श्र्लोक हैं, इस ग्रंथ में ब्रह्माजी की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं,..

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