HiteshAwasthi89 Authors दीपक शर्मा(सनातन सर्व श्रेष्ठ)

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क्या आपको पता है कि भगवान_शिव के प्रतिक माने जाने वाले रुद्राक्ष कुल कितने प्रकार है और उनके पहनने से क्या-क्या लाभ होते हैं।

रूद्राक्ष को धारने करने वाले के जीवन से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवमहापुराण ग्रंथ में कुल सोलह प्रकार के रूद्राक्ष बताएं गए है


औऱ सभी के देवता, ग्रह, राशि एवं कार्य भी अलग-अलग बताएं है।
जानें रुद्राक्ष के प्रकार एवं उनसे होने वाले लाभ।
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जानें जीवन में बुरा समय कब-कब शुरू होता है, पहले से मिलने लगते हैं ऐसे संकेत


1- एक मुखी रुद्राक्ष- इसे पहनने से शोहरत, पैसा, सफलता प्राप्ति और ध्‍यान करने के लिए सबसे अधिक उत्तम होता है। इसके देवता भगवान शंकर, ग्रह- सूर्य और राशि सिंह है।
मंत्र- ।। ॐ ह्रीं नम: ।।


2- दो मुखी रुद्राक्ष- इसे आत्‍मविश्‍वास और मन की शांति के लिए धारण किया जाता है। इसके देवता भगवान अर्धनारिश्वर, ग्रह- चंद्रमा एवं राशि कर्क है।
मंत्र- ।। ॐ नम: ।।


3- तीन मुखी रुद्राक्ष- इसे मन की शुद्धि और स्‍वस्‍थ जीवन के लिए पहना जाता है। इसके देवता अग्नि देव, ग्रह- मंगल एवं राशि मेष और वृश्चिक है।
मंत्र- ।। ॐ क्‍लीं नम: ।।
सूतक का पालन किसके लिए करें ?

कई बार मृत्योपरांत के क्रियाकर्म केवल धर्मशास्त्र में बताई गई विधि अथवा परिजनों के प्रति कर्तव्य-पूर्ति के एक भाग के रूप में किया जाता है । अधिकांश लोग इनके महत्त्व अथवा अध्यात्मशास्त्रीय दृष्टिकोण से अपरिचित होते हैं


किसी कर्म के अध्यात्मशास्त्रीय आधार एवं महत्त्व को समझ लेने पर उस पर व्यक्ति का विश्‍वास बढ जाता है और वह उस कर्म को अधिक श्रद्धा से कर पाता है । जन्म-मरण के क्रम में परिजनों के मन सहज स्थिति में नहीं रहते । उनमें राग, शोक, भय आदि का प्रभाव बना रहता है। ते है

विक्षोभ की ऐसी अस्त-व्यस्त मानसिकता में धार्मिक प्रयोग सिद्ध नहीं होते। इसलिए उन विक्षोभों का शमन होने तक उन प्रयोगों को रोककर रखना उचित होता है। दाह संस्कार करने के अधिकार के संदर्भ में सूतक का क्या अर्थ है, यह हम समझकर लेते है ।

१. सूतक का अर्थ
व्यक्ति की मृत्यु होने के पश्‍चात गोत्रज तथा परिजनों को विशिष्ट कालावधि तक अशुचिता होती है, उसे ही सूतक कहते हैं ।

२. सूतक पालन के नियम क्या हैं ?
अ. मृत व्यक्ति के परिजनों को १० दिन तथा अंत्यक्रिया करनेवाले को १२ दिन (सपिंडीकरण तक) सूतक का पालन करना होता है । सात पीढियों के पश्‍चात ३ दिन का सूतक होता है ।
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सृष्टि की रचना व भगवान विष्णु के बीच चार का महत्व

भगवान विष्णु की चार भुजाएं होती हैं। यह जग विख्यात है। कहा जाता है कि चार का अंक ऐसा अंक है, जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है।


चार भुजाधारी भगवान विष्णु के भीतर जब सृष्टि रचना की इच्छा हुई तो उनकी नाभि से चतुर्भुज ब्रह्माजी का जन्म हुआ। ब्रम्हा के हाथों में चार वेद क्रमशः 'ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्वेद' थे।

ब्रह्माजी ने विष्णु जी की आज्ञानुसार विश्व के प्राणियों को चार वर्गों 'अण्डज, जरायुज, स्वेदज एवं उदभिज' में बांटा और उन प्राणियों की जीवन व्यवस्था को भी चार अवस्थाओं में बांट दिया। जिनमें 'जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति एवं तुरीय में की।'

इसके बाद उन्होंने काल को चार युगों 'सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग में बांट दिया।' विष्णु जी ने सृष्टि की रचना अपने चार मानस पुत्रों 'सनक, सनंदन, सनत्कुमार तथा सनातन' से प्रारंभ की

लेकिन वे चारों मानस पुत्र भगवान के चार धामों 'बदरीनाथ धाम, रामेश्वरधाम, द्वारकाधाम और जगन्नाथ धाम' में भगवान विष्णु की भक्ति करने चले गए।