हिन्दू महिलाओं के सोलह श्रृंगार का रिश्ता उनके सुहाग से होता है।
हिन्दू महिलाओं के सोलह श्रृंगार🙏🙏
सोलह श्रृंगार का रिश्ता हमेशा से ही औरतों की खूबसूरती के साथ जुड़ता आया है। यदि दूसरे शब्दों में कहा जाये तो सोलह श्रृंगार और औरतों की खूबसूरती के बीच में चोली दामन जैसा ही रिश्ता है।
हिन्दू महिलाओं के सोलह श्रृंगार का रिश्ता उनके सुहाग से होता है।
१६ श्रृंगारों में प्रथम चरण है स्नान। कोई भी और श्रृंगार करने से पूर्व नियम पूर्वक स्नान करने का अत्यंत महत्व है। स्नान में शिकाकाई, भृंगराज, आंवला, उबटन और अन्य कई सामग्रियां और नियम – इन सबका आयुर्वेद के ग्रंथों में विस्तार से जिक्र है।
हिन्दू परिवारों में सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि सुहागिन स्त्रियों को कुमकुम या सिंदूर से अपने माथे पर लाल बिंदी जरूर लगाना चाहिए। इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना जाता है। सात फेरों के बाद जब दूल्हा-दुल्हन की मांग भरता है तो इसका मतलब होता है कि वह उसका साथ जीवन भर निभाएगा। इसलिए विवाह के बाद स्त्री को पति की लंबी उम्र की कामना के साथ रोज मांग भरना चाहिए।
काजल आंखों का सिंगार है। इससे आंखों की सुंदरता तो बढ़ती ही है, साथ ही,काजल की बुरी नजर से भी बचाता है। इसे भी धर्म-ग्रंथों में सौभाग्य का प्रतीक माना गया है।
मेहंदी के बिना सिंगार अधूरा माना जाता है। इसलिए त्यौहार पर परिवार की सुहागिन स्त्रियां अपने हाथों और पैरों में मेहंदी रचाती है। इसे सौभाग्य का शुभ प्रतीक तो माना ही जाता है। साथ ही, मेहंदी लगाना त्वचा के लिए भी अच्छा होता है।
यदि कोई सुहागन स्त्री रोज सुबह नहाकर सुगंधित फूलों का गजरा लगाकर भगवान की पूजा करती है तो बहुत शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास होता है।
मांग के बीचों बीच पहना जाने वाला यह स्वर्ण आभूषण सिंदूर के साथ मिलकर स्त्री की सुंदरता में चार चांद लगा देता है। इसे भी सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
शादी के बाद यदि कोई स्त्री नाक में नथ या कांटा नहीं पहनती तो उसे अच्छा नहीं माना जाता है, क्योंकि इसे भी सौभाग्य से जोड़कर देखा जाता है।
कान में पहने जाने वाले आभूषण कई तरह की सुंदर आकृतियों में आते हैं। विवाहिता स्त्री के लिए इसे शुभता का प्रतीक माना जाता है। साथ ही, कान छेदन से कई बीमारियां भी दूर रहती हैं।
गले में पहना जाने वाला सोने या मोतियों का हार पति के प्रति सुहागन स्त्री के वचनबद्धता का प्रतीक माना जाता है। शादी के समय वधू के गले में वर मंगलसूत्र पहनाने की रस्म निभाता है। इसलिए गले में हार या मंगलसूत्र पहनना शुभ माना जाता है।
कड़े के समान आकृति वाला यह आभूषण सोने या चांदी का होता है। यह बांहों में पूरी तरह कसा रहता है, इसी कारण इसे बाजूबंद कहा जाता है। किसी भी त्यौहार या धार्मिक आयोजन पर सुहागन स्त्रियों का इसे पहनना शुभ माना जाता है।
सास अपनी बडी़ बहू को मुंह दिखाई रस्म में सुखी और सौभाग्यवती बने रहने के आशीर्वाद के साथ वही कंगन देती है, जो पहली बार ससुराल आने पर उसकी सास ने उसे दिए थे। पारंपरिक रूप से सुहागिन स्त्रियों की कलाइयां चूडिय़ों से भरी रहनी चाहिए।
शादी के पहले सगाई की रस्म में वर-वधू एक-दूसरे को अंगूठी पहनाते हैं। अंगूठी को सदियों से पति-पत्नी के आपसी प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता रहा है। शादी के बाद भी स्त्री का इसे पहने रहना शुभता का प्रतीक माना जाता है।
कमरबंद कमर में पहना जाने वाला आभूषण है, जिसे स्त्रियां विवाह के बाद पहनती है। इससे उनकी छरहरी काया और भी आकर्षक दिखाई देती है। कमरबंद इस बात का प्रतीक कि स्त्री अपने घर की स्वामिनी है।
पैरों के अंगूठे में रिंग की तरह पहने जाने वाले इस आभूषण को अरसी या अंगूठा कहा जाता है। इस आभूषण के अलावा स्त्रियां छोटी उंगली को छोड़कर तीनों उंगलियों में बिछुआ पहनती है। बिछुआ स्त्री के सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
पैरों में पहने जाने वाले इस आभूषण के घुंघरुओं की सुमधुर ध्वनि को बहुत शुभ माना जाता है। हर सौभाग्यवती स्त्री को पैरों में पायल जरूर पहनना चाहिए।