अयोध्या में प्रभु श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का शिलान्यास करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां परिजात का पौधा लगाया। पौधारोपण के महत्व को उन्होंने बड़ी ही सहजता से सबको बता दिया। हमारे शास्त्रों में भी एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना सौ गायों का दान देने...

...के समान माना गया है। उस पर परिजात जैसा अति लाभदायक पौधा तो गुणों की खान है। हमारे शास्त्रों में परिजात को अत्यंत शुभ और पवित्र वृक्ष की श्रेणी में रखा गया है। इस वृक्ष की विशेषता है कि इसमें काफी मात्रा में फूल खिलते हैं। ये फूल सूर्यास्त के बाद खिलना शुरू होते हैं तथा
सूर्य के आगमन के साथ ही सारे फूल जमीन पर झर जाते हैं। अगले दिन यह फिर फूलों से सज जाता है। परिजात की उत्पत्ति के विषय में एक कथा है कि इसका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया था।
मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी परिजात के फूलों का प्रयोग किया जाता है। पुराणों में बताते हैं कि इसके वृक्ष को छूने भर से थकान मिनटों में गायब हो जाती है तथा शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। इस दैवीय वृक्ष से भगवान श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी की प्रेम कहानी भी जुड़ी है।
पारिजात एक खूबसूरत और सुगंधित पुष्प होता है जिसे हारसिंगार भी कहा जाता है और इसे आप अपने घर की बालकोनी में भी बड़े आराम से लगा सकते हैं।इसे कूरी,सिहारु,सेओली,प्राजक्ता, शेफालिका,शेफाली,शिउली और अंग्रेजी में ट्री ऑफ सैडनेस (Tree of sadness), मस्क फ्लॉवर (Musk flower),..
..कोरल जैसमिन(Coral jasmine),नाईट जैसमिन (Night jasmine)जैसे नामों से भी पहचाना जाता है।वहीं उर्दू में इसे गुलजाफरी कहा जाता है।पारिजात के फूलों को मुख्य रूप से हिन्दू धर्म में विशेष महत्व दिया जाता है।हालांकि इसके औषधीय गुणों की वजह से इसका इस्तेमाल विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियों..
..के उपचार के लिए भी किया जा सकता है।एक औषधी के तौर पर पारिजात के फूल,पत्ते,बीज और छाल का उपयोग मुख्य रूप से किया जा सकता है। ऐसा भी माना जाता है कि पारिजात के पौधे को छूने से ही शारीरिक थकान दूर हो सकती है।इसके अलावा,लोग हरसिंगार की पत्तियों से बनी चाय पीना भी पसंद करते हैं..
..जिसे हर्बल टी की श्रेणी में माना जाता है। पारिजात का पौधा लगभग 10 से 15 फीट और कहीं-कहीं 25 से 30 फीट तक बड़ा हो सकता है। इसकी अधिकांश शाखाएं जमीन की तरफ झुकी हो सकती हैं। पारिजात के पौधे में एक साल में सिर्फ एक बार ही फूल खिलते हैं। पारिजात के फूल जून माह में ही खिलते हैं।
जो सफेद और पीले रंग के हो सकते हैं। पारिजात का वानस्पतिक नाम निक्टैन्थिस् आर्बोर-ट्रिस्टिस् (Nyctanthes arbor-tristis Syn-Nyctanthes dentata Blume) है और यह ओलिएसी (Oleaceae) प्रजाति का होता है। धर्मिक मान्यताओं से जुड़े इस औषधीय पौधे की हिदू धर्म में पूजा-अर्चना भी की जाती है।
पारिजात के पत्तों में एंटी-आर्थ्रिटिक गुण होते हैं। इसके अलावा, पत्तियों के काढ़े से लीवर की रक्षा करने वाले, एंटी-वायरल, एंटी-फंगल, एनाल्जेसिक, एंटीपायरेटिक, एंटी-इंफ्लैमेटरी, एंटीस्पास्मोडिक, हाइपोटेंसिव जैसे गुण भी पाए जा सकते हैं।
इसकी पत्तियों में एंटी-लीशमैनियल गुण भी होते हैं, जो शरीर में परजीवियों को खत्म करने, जैसे पेट की कीड़ों की समस्या दूर करने में भी मदद कर सकते हैं।पारिजात की पत्तियों में पाए जाने वाले औषधीय गुण हैंः
-टैनिन एसिड (Tannin)
-लिनोलिक एसिड (Linoleic acid)
-मेथिलसेलिसिलेट
-डी-मैनिटोल (D-Mannitol) – 1.3 प्रतिशत
-बीटा-एमिरिन – 1.2 प्रतिशत
-बीटा-सिटोस्टेरोल (beta-sitosterol)
-हेंट्रिएकॉन्टेन
-बेंजोइक एसिड
-एस्ट्रैगलिन
-निकोटिफ्लोरिन
-ओलीनोलिक एसिड
-नेक्टेन्थिक एसिड फ्राइडेलिन (nyctanthic acid)
-विटामिन सी
-विटामिन ए
परिजात की छाल में पाए जाने वाला औषधीय गुण है :

-ग्लाइकोसाईड (Glycoside) - 1%

परिजात के पौधे का उपयोग :

-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए
-डेंगू के दौरान हड्डियों के दर्द को कम करने के लिए
-पेट के कीड़ों को खत्म करने के लिए
-खांसी बुखार के उपचार के लिए
हार-शृंगार का पौधा देवताओं का पौधा है और हमारे शास्त्रों में इसकी महत्ता का व्याख्यान भी मिलता है।ये औषधीय गुणों से भरपूर एक बहुत ही लाभदायक पौधा है।
और सबसे अच्छी बात ये है कि इसे आप अपने घरों में भी बड़े आराम से लगा सकते हैं।इससे आपके घर की शोभा और आपका स्वास्थ्य,दोनों बढ़ेंगे।

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⚜️हमारे शास्त्रों के अनुसार पूजा अर्चना में क्या-क्या कार्य वर्जित हैं, आइए जानें:-⚜️

🌺1) गणेश जी को तुलसी न चढ़ाएं।

🌺2) देवी पर दुर्वा न चढ़ाएं।

🌺3) शिव लिंग पर केतकी फूल न चढ़ाएं।

🌺4) विष्णु को तिलक में अक्षत न चढ़ाएं।

🌺5) दो शंख एक समान पूजा घर में न रखें।


🌺6)मंदिर में तीन गणेश मूर्ति न रखें।

🌺7)तुलसी पत्र चबाकर न खाएं।

🌺8)द्वार पर जूते चप्पल उल्टे न रखें।

🌺9)दर्शन करके वापस लौटते समय घंटा न बजाएं।

🌺10)एक हाथ से आरती नहीं लेनी चाहिए।

🌺11)ब्राह्मण को बिना आसन बैठाना नहीं चाहिए।

🌺12) स्त्री द्वारा दंडवत प्रणाम वर्जित है।


🌺13) बिना दक्षिणा ज्योतिषी से प्रश्न नहीं पूछना चाहिए।

🌺14) घर में पूजा करने के लिए अंगूठे से बड़ा शिवलिंग न रखें।

🌺15) तुलसी पेड़ में शिवलिंग किसी भी स्थान पर न हो।

🌺16) गर्भवती महिला को शिवलिंग स्पर्श नहीं करना है।

🌺17) स्त्री द्वारा मंदिर में नारियल नहीं फोडना है।


🌺18) रजस्वला स्त्री का मंदिर प्रवेश वर्जित है।

🌺19) परिवार में सूतक हो तो पूजा प्रतिमा स्पर्श न करें।

🌺20) शिव जी की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती।

🌺21) शिव लिंग से बहते जल को लांघना नहीं चाहिए।

🌺22)एक हाथ से प्रणाम न करें।

🌺23)दूसरे के दीपक से अपना दीपक जलाना नहीं चाहिए।


🌺24)चरणामृत लेते समय दायें हाथ के नीचे एक नैपकीन रखें ताकि एक बूंद भी नीचे न गिरे।

🌺25) चरणामृत पीकर हाथों को सिर या शिखा पर न पोछें बल्कि आंखों पर लगायें शिखा पर गायत्री का निवास होता है उसे अपवित्र न करें।

🌺26) देवताओं को लोभान या लोभान की अगरबत्ती का धूप न करें।

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